लोहपथगामिनी में एक यादगार सफर

(Lohpathgamini Mein Ek Yadgar Safar)

प्यारे दोस्तो, अपनी रीना का अभिनंदन स्वीकार करें. मेरी पिछली कहानियाँ थी
लुटने को बेताब जवानी
नौकरानी के पति से तन की आग बुझाई
कई वर्षों के बाद आपकी रीना फिर हाज़िर है अपनी दास्तां लेकर.

मेरे चचरे भाई के बेटे की शादी थी. मेरे पतिदेव बहुत व्यस्त थे इसलिए उन्होंने कहा- तुम अकेले ही चली जाओ. मैं तुम्हारी रिजर्वेशन ट्रेन में करवा दूंगा.
शाम 6 बजे की ट्रेन थी मगर ए.सी की द्वितीय श्रेणी में प्रतिक्षा सूची दिखाई जा रही थी. वेटिंग लिस्ट चार पर मेरा टिकट रुक गया था.

मेरे पतिदेव ने टी.टी से बात की तो उसने भरोसा दिलाया- सर, आप चिंता न करें, हम आपकी वाइफ को एडजस्ट कर देंगे.
उन्होंने मुझे विदा किया और ट्रेन चल पड़ी.

कुछ देर बाद टी.टी. मेरे पास आया और बोला- मैडम सेकेण्ड क्लास में तो कोई जगह खाली नहीं है, आपको मैं फर्स्ट क्लास में एडजस्ट कर देता हूँ.
मैंने कहा- कोई बात नहीं. आप जहाँ कहेंगे मेरे लिए वही ठीक होगा.
फिर उसने मेरा समान उठाते हुए कहा कि आप मेरे साथ आइये.
मैं उसके पीछे चल पड़ी.

वो मुझे प्रथम श्रेणी के उस केबिन में ले गया जिसमें सिर्फ दो ही बर्थ होते हैं और बोला- आप यहाँ आराम कीजिये, मैं यात्रियों की टिकट चेक करके आता हूँ.
मुझे ये बंदा बहुत अच्छा लगा. मददगार होने के साथ-साथ वह काफी प्यार से बात भी कर रहा था. सच कहूँ तो मुझे वह हैंडसम भी लग रहा था.

करीब एक घंटे बाद वो आया और बोला- मैडम कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना आपको?
मैंने कहा- नहीं.
मैंने उससे पूछा कि दूसरी बर्थ पर किसी ने आना है क्या?
उसने कहा- नहीं, ये बर्थ मेरी है.

मैं ये सुनकर सिहर गयी किंतु उसने कहा- अगर आप को कोई परेशानी है तो मैं बाहर ही रहूंगा.
मैंने कहा- नहीं मुझे कोई परेशानी नहीं है.
वह बोला- आपके पति बहुत किस्मत वाले हैं.
मैंने पूछा- वो कैसे? आपने उनका हाथ देखा है क्या?
वो हँसने लगा और बोला- वो इसलिए कि उनको आप जैसी खूबसूरत वाइफ मिली है.
मैंने शर्माते हुए उसे थैंक्स बोला.

कुछ देर की चुप्पी को तोड़ते हुए मैंने उसका हौसला बढ़ाने के लिए उससे कहा- आप भी बहुत हैंडसम हो.
उसने मुझे थैंक्स बोला.
कुछ औपचारिक बातें फैमिली की करने के बाद मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए उसने पूछा- रीना जी, क्या हम दोस्त बन सकते हैं?
मैं थोड़ी देर चुप रही … समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूँ.

“बोलिये न रीना जी?” उसने फिर पूछा- अगर आप नहीं चाहतीं तो कोई बात नहीं.
मैंने धीरे से अपना हाथ उसकी हथेली पर रख दिया, मेरे मुंह से निकल पड़ा- ठीक है, हम दोस्त हैं अमित जी.
वह बोला- तो फिर दोस्ती के नाते अब यह भी बता दो कि मैं आपको किस तरह से हैंडसम लगा?
उसके इस सवाल पर मैं शरमा गई. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे गाल शर्म के मारे लाल हो चुके हैं. वह एकटक मेरी तरफ देख रहा था मगर मैं नजर ऊपर नहीं उठा पा रही थी.

उसने फिर पूछा- बताइये न रीना जी? मैं आपके जवाब का इंतजार कर रहा हूँ.
मैंने कुछ देर तक कुछ नहीं बोला. मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहूँ और कैसे कहूँ.
वह बोला- इसका मतलब आप झूठ बोल रही थीं मेरे बारे में.
मैंने कहा- नहीं, सच में आप बहुत हैंडसम हो.
वह बोला- तो फिर ये भी बता दीजिये क्या अच्छा लगा आपको मेरे अंदर?
मैंने कहा- आपके बात करने का अंदाज मुझे बहुत पसंद आया.
वह बोला- यह तो मेरे हैंडसम होने से कहीं भी मेल नहीं खाता.

मैंने सोचा कि अब यह मुंह खुलवाकर ही रहेगा. मैंने कहा- आपकी कद-काठी बहुत अच्छी है. देखने में आप लम्बे-चौड़े लगते हो. आपका चेहरा भी आकर्षित करने वाला है. आपकी शारीरिक बनावट भी लुभावनी है.
वह बोला- जैसे कि?
मैंने कहा- आपकी चौड़ी और मजबूत छाती है जो आपकी शर्ट और कोट के अंदर से ही पता चल रही है. आपके होंठ भी बिल्कुल लाल हैं. आपकी आंखें और नैन नक्श देख कर ऐसा लगता है कि कोई फिल्मी हीरो हैं आप.

वह मेरी बात सुनकर हँसता हुआ बोला- अच्छा! इतनी तारीफ तो मेरी गर्लफ्रेंड ने भी नहीं की मेरी.
मैंने कहा- वह शायद आपकी विशेषताएँ अच्छी तरह देख नहीं पा रही होगी.
वह बोला- तो आपको क्या दिखाई दे रहा है मेरे अंदर?
मैंने कहा- आपको देख कर कोई भी महिला आपसे दोस्ती करने के लिए तैयार हो सकती है.
अमित ने पूछा- वह कैसे?
मैंने कहा- आपका मजबूत शरीर और हैंडसम सा चेहरा है. जब आप मुस्कराते हुए बात करते हो काफी आकर्षित करते हो.

यह सुनकर उसने एक लम्बी-गहरी सांस भरी. मैंने देखा कि उसकी नेवी ब्लू पैंट में कुछ आकृति उठ कर एक आकार लेने लगी थी. जब मैंने ध्यान से देखा तो वह भी समझ गया कि मैं उसकी पैंट में बन रही उस आकृति को देख रही हूँ. यह देख कर उस डंडे जैसी लम्बी आकृति ने एक उछाल दे दिया और उसकी पैंट को तान दिया.
अमित ने उत्तेजित होकर मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया था. वह मेरी हथेली को सहला रहा था.

उसके मजबूत कठोर हाथों में जाकर मेरे बदन में एक गर्मी सी पैदा होनी शुरू हो गई थी.
उसने दूसरा हाथ भी मेरे हाथ पर रख दिया और मेरी बगल में आकर बैठते हुए मेरे हाथ को सहलाते हुए बोला- कितनी प्यारी हथेलियां हैं तुम्हारी रीना.
मैं शर्माते हुए अपनी हथेली छुड़ाने का प्रयास करने लगी.
“रीना क्यों शर्मा रही हो? तुम नहीं चाहोगी तो कोई जबरदस्ती नहीं है.” अमित ने धीरे से उन्माद भरे स्वर में बोला.

थोड़े से उन्माद में मैं भी भर चली थी पर लज्जा के मारे हल्का सा विरोध कर रही थी- आप क्या कर रहे हैं अमित जी … हम सिर्फ़ दोस्त बने हैं.
वो बोला- रीना प्लीज़ … मुझे भी नहीं पता मैं क्या कर रहा हूँ. बस तुम्हें देख कर पागल हो गया हूँ. अपने नये दोस्त को एक मौका दो कि वो तुम्हारी खिदमत कर सके. ऐसी खिदमत करूंगा कि हमेशा याद रखोगी.

उसकी बात सुनकर सिहरन मेरे अंदर तक दौड़ गई थी, मैं निर्विरोध होती जा रही थी. उसकी हिम्मत बढ़ती जा रही थी. उसने अपने एक हाथ से मेरी जूड़ा-पिन खोल दी और मेरे बिखरे केसुओं को पीछे से मेरे कंधों की तरफ आगे ले आया. मुझे आज भी याद है उसने उस वक्त जो बोला था- उफ्फ रीना … क्या हुस्न है तुम्हारा!
पराये मर्द से फ़्लर्ट होना मुझे भी आनंद देने लगा था. मैंने आँखें बंद कर ली थीं और कह रही थी- मुझे डर लग रहा है अमित. कोई आ गया तो? बाहर कोच का अटेंडेंट भी है.
उसने कहा- डरने की कोई बात नहीं है. कोई नहीं आएगा. डोर लॉक किया हुआ है.

उसके हाथ मेरी ज़ुल्फों से होते हुए मेरे मुखड़े को सहलाते हुए होंठों तक पहुंच चुके थे.
मैंने आँखे मूंदीं हुई थीं और कब उसके होंठ मेरे लबों से चिपक गए पता ही नहीं चला. मेरी आँखों में नशा भर गया था. कंपकंपाती ज़ुबान में बोली- अमित प्लीज़ … हद मत पार करो, इतना ही काफी है.

अमित बोला- मेरी प्यारी रीना. एन्जॉय करो … क्यों ऐसे मौके को हाथ से जाने देना चाहती हो? मेरी ड्यूटी रात 1:30 बजे तक चार स्टेशनों बाद खत्म हो जाएगी. 9 बजने वाले हैं. खाना साथ में लायी हो तो खा लो.
मैंने पूछा- तुम्हारा खाना?
उसने कहा- मैं पैंट्री में खा कर आ जाता हूँ तब तक तुम खा लो.
मैंने कहा- मेरे साथ ही खा लेना. जो लेकर आई हूं, थोड़ा-थोड़ा खा लेंगे.
उसने कहा- थैंक्स रीना, तुम बहुत अच्छी हो. मैं अपने हाथ से अपनी रीना को खिलाऊँ?

हाथ धो कर फिर उसने मुझे अपने हाथों से खिलाना शुरू कर दिया और मुझसे बोला- तुम भी अपने प्यारे हाथों से मुझे खिलाओ. मैंने लज्जाते हुए ऐसा ही किया. खैर, खाना वाना होने के बाद 10 बजे का समय हो चला था. वो टाइम ख़राब नहीं करना चाहता था. उसने मुझे बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया.
फिर लबों की बारी आई जिनसे वो वहशी सा होकर खेल रहा था. काट रहा था. कुछ सिसकारियां मेरी भी शुरू हो चुकी थीं.

मदहोशी का आलम छाने लगा था. उसके हाथ गर्दन से होते हुए कंधों पर आकर सहलाने के बाद नीचे की ओर बढ़ने लगे थे. अमित का एक हाथ मेरी कुर्ती के अंदर सरक गया और सुरक्षा कवच के अंदर गंतव्य स्थान पर पहुंच कर उसने मेरे उरोजों को सहलाना शुरू कर दिया.
अमित मेरे ऊपर आ चुका था और मैं उसके नीचे लेटी हुई उस जवान मर्द के सामने खुद को समर्पित करती जा रही थी. उसने मेरी कुर्ती को उतरवा दिया और मेरी ब्रा में कैद मेरे उरोज उछल कर बाहर छलक पड़े.

अमित ने मेरी आंखों में देखा और मेरे लबों को पीने लगा. मैंने भी उसकी कमर पर अपने बांहों का घेरा बना दिया और उसके आगोश में खो जाने को मजबूर सी होती चली गई. उसके कपड़े अभी भी उसके शरीर पर थे जो मुझे अब कबाब में हड्डी के जैसे महसूस होने लगे थे.
मैंने नीचे हाथ ले जाकर उसकी बेल्ट को खोलना चाहा मगर उसके भारी-भरकम शरीर का वजन कुछ ज्यादा ही था. अत: अमित ने खुद ही अपने नितम्बों को ऊपर उठाते हुए अपनी बेल्ट को खोलकर अपनी पैंट को नीचे खींच दिया. इसी बीच में मैंने अपनी पजामी को अपने घुटनों तक कर लिया था.

जब पैंट को नीचे करने के बाद वह दोबारा मेरे ऊपर लेटा तो उसके लिंग का दबाव मुझे मेरी योनि पर यहाँ-वहाँ छूता हुआ महसूस होने लगा. मैंने दोबारा से उसको बांहों में जकड़ लिया और उसने मेरी गर्दन को चूमना शुरू कर दिया. अब मेरी जांघें नीचे से स्वयं ही उठने लगी थीं. अंडरवियर में तने हुए उसके लिंग को अपनी योनि पर मैं बार-बार स्पर्श करवाने का प्रयत्न करते हुए अपने नितम्बों को उठाने लगी थी.

बीच-बीच में उसका लिंग झटके देकर अपने उतावलेपन को जता दे रहा था कि वह मेरी योनि में जाने के लिए कितना बेताब है. अमित ने मेरी ब्रा को खोल दिया और मेरे उरोजों को अपने गर्म लाल होंठों में भर कर पीना शुरू कर दिया. कुछ ही पल में मेरे उरोजों के चूचक तनकर उसकी जीभ से टकराने लगे. उसके दांत मेरे चूचुकों को काट कर यह बता रहे थे कि आग अब दोनों तरफ बराबर की लगी हुई है जिस पर संभोग का पानी डालना अब बहुत आवश्यक हो गया है.

अमित अकस्मात ही उठा और उसने अपनी सफेद शर्ट उतार फेंकी. बनियान में उसकी छाती भरी हुई थी और अगले ही पल उसने बनियान उतार कर एक तरफ डाल दी. अब उसने मेरी पैंटी को नीचे किया और मेरी गीली योनि पर अपने गर्मा-गर्म होंठ रख दिये. मेरे सारे बदन पर चीटियां सी दौड़ने लगीं. वह मेरी कामरस छोड़ रही योनि का रस चूस-चूस कर बाहर निकालने लगा.

मेरी हालत खराब होने लगी और पूरा बदन वासना की अग्नि में तपने लगा. मैंने अमित को अपने बदन पर खींच लिया और उसके होंठों को अपने होंठों पर लगाकर चूसना आरंभ कर दिया. मैंने अमित के अंडरवियर को खींचना चाहा किंतु इस बार भी कामयाबी नहीं मिली.

अंतत: अमित ने स्वयं ही अपने अंडरवियर को खींच कर नीचे किया और उसका गर्म लिंग मेरी योनि पर जाकर सट गया. आह्ह … वह अहसास तो मुझे कभी भुलाए नहीं भूलता. मेरी योनि तप रही थी और उस पर अमित का गर्म लिंग मेरी वासना की अग्नि को और भड़का रहा था.
जब अमित ने भांप लिया कि अब मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी तो उसने धीरे-धीरे मेरी कामरस से चू रही योनि पर अपने लिंग का घर्षण शुरू कर दिया.
“उफ्फ … स्सस … अमित … आह्ह … क्यों इतनी देर लगा रहे हो?” मैंने मिन्नत भरे स्वर में अमित से गुजारिश की.

अगले ही क्षण अमित ने अपने हाथ से लिंग को योनि द्वार पर लगाकर अपना पूरा भार मेरे शरीर पर डाल दिया और लिंग योनि में प्रवेश करता हुआ, उसको फैलाता हुआ अंदर तक जाकर ठहर गया. उम्म्ह… अहह… हय… याह… मैंने बेतहाशा अमित की गर्दन को चूमना शुरू कर दिया और उसने प्रतिउत्तर में मेरी योनि में लिंग के धक्कों की शुरूआत कर दी.
मेरे नाखून उसकी पीठ पर गड़े जा रहे थे. लिंग का घर्षण मेरी जलती हुई योनि में आनंद की बरसात करने लगा.

कुछ मिनट पश्चात् उसकी गति बढ़ गई और मेरी योनि में उसके मूसल लिंग का चोदन अपने चरम पर पहुंचने की दिशा में बढ़ने लगा.
उसके धक्के अब योनि में आनंद के साथ दर्द भी देने लगे थे. ए.सी. कोच में भी पसीना आ गया था दोनों को. अगले कुछ मिनटों की मेहनत के बाद योनि ने अपना प्रसाद कामरस की धार के रूप में उसके लिंग पर बरसा दिया.

जब अमित को पता लगा कि मैं स्खलित हो चुकी हूँ तो उसने तीन-चार जोरदार योनि भेदन वाले जबरदस्त धक्के लगाये और वह रुकते हुए मेरे नग्न शरीर पर निढाल हो गया.
कुछ क्षण के लिए हम दोनों ही एक दूसरे के साथ हुए इस संभोग का आनंद महसूस करते रहे. जब उसका लिंग मेरी योनि से स्वयं ही बाहर आ गया तो उसने उठते हुए अपने मोबाइल में टाइम देखा.

टाइम देख कर उसने अपने कपड़े एकत्रित किये, अपने जिस्म को कपड़ों के अंदर पैक करना शुरू कर दिया. अब तक मैंने भी खुद को व्यवस्थित कर लिया था.

उसके पश्चात् उसने अपना बैग उठाया और वह बर्थ से बाहर निकलने लगा. न उसने कुछ कहा और न ही मैंने कुछ कहने की जरूरत महसूस की. वह भी संतुष्ट था और मैं भी.

मगर उस टी.टी. के साथ हुआ वो वाकया आज भी मेरी योनि को गीली कर देता है. ऐसा सुहाना सफर फिर कभी हुआ तो अवश्य ही आपके साथ साझा करूंगी.
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