गंगा स्नान के बाद पंडित से चुदी मैं

(Meri Porn Chudai Kahani)

मेरी पोर्न चुदाई कहानी में मैं बस से गंगा स्नान के लिए जा रही थी. मेरी दोस्ती एक आदमी से हो गयी. हम दोनों ने साथ में स्नान किया. फिर वह मुझे अपने साथ ले गया.

नमस्कार पाठको,
मेरा नाम अथर्व देवराज है और मैं कानपुर से हूं।
मेरी उम्र 28 वर्ष है और पेशे से बैंक क्लर्क हूं।

मैं आपके सामने अपनी कथा की श्रृंखला की तीसरी कहानी लेकर प्रस्तुत हुआ हूं, आशा है कि आपको पसन्द आयेगी।
मेरी पिछली कहानी
सहेली के पति से सेक्स का मजा लिया
में आपने अमृता और उसके जीवन के बारे में जाना।

तो चलिए, मेरी पोर्न चुदाई कहानी को आगे बढ़ाते हैं।

पिछले भागों में आपने पढ़ा की अमृता ने तांत्रिक द्वारा बताए गए उपाय पूरे किए और उसके जीवन की एक नई यात्रा शुरू हो गई।

अमृता का पहला संबंध अपनी सहेली सुधा के पति मुकेश से बना था।

अमृता की शारीरिक आवश्यकताएं बढ़ने लगी थी और उसके यौवन का आकर्षण बरबस ही किसी भी व्यक्ति को उसकी ओर आकर्षित करने में सक्षम था।

सोमवती अमावस्या का त्यौहार आने वाला था।
अमृता आज के दिन को गंगा स्नान के लिए जाती और दान पुण्य करती।
पति के देहांत के बाद भी उसका ये क्रम जारी रहा।
सुधा व्यस्त रहती थी इसलिए अमृता को अकेला ही जाना पड़ता था।

इस बार भी वो गंगा स्नान के लिए जाने वाली थी।

इसके आगे की कहानी सुनिए अमृता की जुबानी।

मैंने सोचा कि इसके लिए बस मुफीद रहेगी इसलिए मैं अपने के झोले के साथ सड़क पर बस का इंतजार करने लगी।

बसें आ जा रही थी लेकिन त्यौहार की वजह से काफी ज्यादा भीड़ भाड़ थी।

कोई और रास्ता न देख कर मैंने बस में ही जाने का फैसला किया और इसी बीच एक बस मेरे बगल में आकर रुक गई।
मैं बस में चढ़ी, उस समय काफी भीड़ थी।
मैं खड़ी हो कर यात्रा करने लगी।

बस शहर के बीच से जा रही थी और काफी रुक रुक कर चलती थी.

मैं बस का पाइप पकड़े अपना मोबाइल चेक कर रही थी कि ब्रेक लगा और पीछे के लोग आगे की तरफ झुके और मेरे बदन से टकरा गए।

अचानक कानों में एक रौबदार आवाज पड़ी- सालों तमीज नहीं है क्या? बस में धक्का देते हो, देख नहीं रहे आगे लेडीज खड़ी है। अगली बार किसी ने हरामीपन किया तो यहीं पटक के पेलूंगा।

मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो एक जवान तगड़ा तंदुरुस्त मर्द मेरे पीछे खड़ा था और अपने पीछे वालों पर गुस्सा निकाल रहा था।
उसकी बातें सुनकर सभी लोग चुप थे।

वो एक लम्बा और हट्टा कट्टा नौजवान था, 6 फुट कद रंग गोरा चेहरे पर दाढ़ी और माथे पर तिलक।

क्योंकि भीड़ ज्यादा थी इसलिए उन दोनों के बदन बीच बीच मे टकरा जाते थे।

मैंने उसकी तरफ देखा और उनकी आंखें मिली।
मैं हल्का सा मुस्कुराई और फिर सामने देखने लगी।

हंसी तो फंसी, शायद यही सोचकर उस आदमी ने मुझ से बातचीत शुरू कर दी- आपको कोई दिक्कत तो नहीं हुई बहन जी?
मैंने जवाब दिया- जी नहीं, बस में तो धक्का मुक्की चलती रहती है।

वो आदमी- वो तो सही है बहन जी, आजकल मर्द किसी औरत को देखते हैं और उसे छूने का बहाना ढूंढने लगते हैं।
मैंने कहा- जी, सही कहा आपने।

इसी दौरान ड्राइवर ने अचानक से ब्रेक लगा दिया तो वो आदमी झुकते हुए मेरी पूरी पीठ से सट गया।
मैंने उसकी तरफ देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान थी।
मैं भी मुस्कुराई और बोली- कोई बात नहीं, ये सब तो भीड़ भाड़ में होता रहता है।

मेरे द्वारा की इस बात से शायद उस आदमी का हौसला बढ़ गया।

बस रुकी तो दो लोग उतर गए और करीब 6 लोग और चढ़ गए।
अब बस में और कम जगह बची थी।

मुझे भी थोड़ा और अंदर खिसकना पड़ा और अब मेरा बदन उस आदमी से सट गया था।

उसके बदन से इत्र की भीनी खुशबू आ रही थी।

मैंने कहा- जी आपने कोई इत्र लगाया है क्या?
वो- जी हां, गुलाब का इत्र है।

मैं बोली- मुझे इसकी खुशबू पसंद आई।
वह मुस्कुरा कर बोला- फिर तो हमारा इत्र लगाना सफल हो गया।
उसकी बात सुनकर मैं भी हंस पड़ी।

अब उस आदमी की हिम्मत जरा बढ़ गई, उसे समझ आ गया था कि मैं भी उसे बराबर घास डाल रही थी।

वो भीड़ का बहाना बनाकर उसके और करीब आ गया और अब मेरी पीठ उसके बदन से चिपक सी गई।

उस समय मेरी पीठ ब्लाउज में अधनंगी सी थी।
उसने धीरे से अपना एक हाथ मेरी नंगी पीठ पर लगाया तो मुझे करंट सा लगा।

वो मेरी दुविधा समझ गया और उसने धीरे से मेरे कान में कहा- आपकी ब्रा की स्ट्रैप झलक रही है, आप कहें तो मैं जरा सा एडजस्ट कर दूं?
मैंने भी हल्के से सर हिलाकर अपनी सहमति दे दी।

उसका हाथ मेरी पीठ पर आया और मेरे ब्लाउज को एडजस्ट कर दिया।

उसने फिर कहा- हो गया बहन जी।
मैंने शुक्रिया कहा और धीरे से सर हिला दिया।

अब तक बस में काफी भीड़ बढ़ चुकी थी।
वो आदमी मेरे मादक जिस्म के पिछले हिस्से से चिपका हुआ था।

अचानक मुझे अपनी कमर पर एक हाथ महसूस हुआ।
उफ … ये मर्दों का कामुक स्पर्श।
अगर सही तरीके से औरत के बदन को कोई पुरुष स्पर्श करे तो उसे उत्तेजित होते देर नहीं लगती।

मैंने इस स्पर्श को अनदेखा कर दिया।
कुछ ही पलों के बाद मुझे कमर पर उनके हाथ थिरकते हुए से मालूम हुए.
मुझे जरा गुदगुदी सी हुई।

मैं पीछे पलटी तो देखा कि वो आदमी मुस्कुरा रहा है।
मैंने कुछ नहीं कहा और हल्के से मुस्कुरा दी.
तो उसने अपनी एक आंख दबा दी।

मैंने लजा कर अपना मुंह घुमा लिया।
उसे बिना कुछ कहे ही मेरी सहमति मिल गई थी।

अब उसने अपना खेल खेलना शुरू किया।
वो अब बेहद करीबी तरीके से मेरे बदन से चिपक गया।
मेरे नितम्ब अब उसके पजामे को छू रहे थे।

उसने कमर पर हाथ फेरा और धीरे धीरे मेरी नाभि पर ले गया।
उसने मेरी गोल गहरी नाभी में अपनी उंगली डाल दी और गुदगुदी करने लगा।

एक औरत ही जानती है कि ये अहसास कितना सुखद होता है।

अब वो मेरे पेट पर जोर डालने लगा और मुझे अपनी तरफ खींचने लगा।

अचानक मुझे अपने नितम्बों पर कुछ दबाव महसूस हुआ।
मुझे समझते देर न लगी कि ये उसके लिंग का उभार है।
मैंने पलट कर देखा और मुस्कुरा दी।

उसने अपना काम बखूबी जारी रखा।

नियती ने अबकी बार एक और अवसर उसकी झोली में डाल दिया।
बस को अचानक ब्रेक लगाना पड़ा और इसी मौके का फायदा उठाकर उसने अचानक ही मेरे गले पर चुम्बन ले लिया।

मुझे इस अचानक हुए अहसास की आशा न थी तो मेरे मुंह से आह निकल गई।
उसने मेरे कान में कहा- आप कहां तक जाओगी?
मैं- गंगा घाट तक, आज सोमवती अमावस्या है इसलिए स्नान करने जा रही हूं।

वो- मुझे भी वहीं तक जाना है, मेरे वहां कुछ जानने वाले पंडे हैं, इसी बहाने उनसे भी मिल लूंगा. चलिए साथ में चलते हैं।
मैं- जी, साथ ही चलेंगे।

बस में भीड़ और गर्मी की वजह से अब मेरे जिस्म पर पसीने की बूंदे झलकने लगी थी।
उस आदमी ने मुझे अपनी ओर खींच कर सटा लिया और धीरे धीरे मेरी साड़ी के अंदर हाथ पहुंचाने की कोशिश करने लगा तो मैंने उनका हाथ पकड़ कर रोक लिया और फिर आंखों के इशारे से मना किया।

उसने अपना हाथ मेरी साड़ी में से हटा कर मेरी नाभि पर रख लिया और फिर अपने पजामे के उभार को मेरे पीछे के हिस्से पर रगड़ने लगा।

मुझे उसके लिंग के आकार का आभास हो गया था।
उसका लिंग काफी मोटा और करीब 8 इंच लंबा था।
वो साड़ी के ऊपर से ही मेरे नितम्ब की दरार में घुस रहा था।

मैं भी अब तक इस मस्ती का लुत्फ उठा रही थी।

तभी बस में ब्रेक लगी और पीछे से कुछ यात्री बस से उतर गए और सबसे पीछे वाली दो सीट भी खाली हो गई।
उसने कहा- चलिए पीछे बैठते हैं।
मैं उसके साथ सरकते हुए बस के पिछले हिस्से में आ गई।

भीड़ कुछ हटी तो कोने की सीट में मैं बैठी और फिर मेरे बगल में वो बैठ गया।

उसने एक हाथ मेरी कमर में डाल दिया और अपना झोला मेरी टांगों पर रख दिया जिससे की मेरी कमर और टांगों के पास का क्षेत्र ढक गया।
उसकी उंगलियां मेरी कमर को सहला रही थी।

आसपास की भीड़ के कारण किसी को हमारा ख्याल नहीं था।

मुझे इतनी जोर से जकड़ कर बैठा था वो जैसे मैं उसकी बीवी हूं।

उसने मुझसे पूछा- आपको आराम तो मिल रही है ना?
मैं- जी, बस जरा सा पेट दर्द है।

वो शरारती अंदाज में बोला- कहीं माहवारी की दिक्कत तो नहीं? क्योंकि इस हालत में गंगा स्नान वर्जित है।
मैं शर्मा कर बोली- जी नहीं, शायद कुछ ऑयली खाने की वजह से है।

तभी एक कोल्ड ड्रिंक बेचने वाला हमारी बस के पास से गुजरा तो उसने एक कोल्ड ड्रिंक ली।

वो- ये लीजिए, इसे पीकर आपको आराम मिलेगा।
मैं- मैं इसे नहीं पी पाऊंगी, ये ज्यादा है।
वो- आप पी लीजिए, बाकी हम पी लेंगे।

इसके बाद मैंने कोल्ड ड्रिंक पीना शुरू किया और कुछ देर बाद बोतल उसे दे दी।
उसने बोतल ली और उसे पीने लगा।

फिर कुछ ड्रिंक छोड़ कर मुझे पेश की।
मैं शरमाई सी उसे देख रही थी और बिना कुछ कहे मैंने बोतल ली और उसी झूठी कोल्ड ड्रिंक पी ली।

ये इशारा था कि मुझे उससे कोई दिक्कत नहीं थी।

उसने मेरी कमर को सहलाया और मेरी साड़ी में अपनी उंगली डाल कर मेरे पेटीकोट के नाड़े से शरारत करने लगा।
उसकी उंगली अब मेरी पैंटी के अंदर आ गई थी।

वो- आपके घर पर कौन कौन है?
मैं- जी एक बेटा है बस!
वो- और आपके पति?
मैं- जी उनका देहांत हो चुका है।

वो- बेटे की उम्र क्या है?
मैं- जी वो अभी 16 का है।

वो- लगता है कि आपको अकेलापन काफी सता रहा है?
मैं कुछ नहीं बोली और नजरें झुका ली।

मैंने पूछा- आप क्या करते हैं?
वो- मैं पुजारी हूं एक मंदिर में, पूजा हवन और कर्म काण्ड करवाता हूं।

फिर मैंने पूछा- आपके कितने बच्चे हैं?
वो- चार।
मैं- आपने इतने बच्चे क्यों कर लिए?
वो- किए नहीं, बस हो गए।

मैं- आप गर्भ निरोधक प्रयोग नहीं करते क्या?
वो- नहीं, मेरी बीवी को कॉन्डम में मजा नहीं आता।

मैं ये सुनकर शर्मा गई।
फिर भी मैंने कहा- लेकिन ऐसे तो उनके बदन को बहुत समस्या होती होगी, बार बार गर्भ धारण करना सही नहीं है।

पंडित मुस्कुराया और बोला- मैं वो नौबत नहीं आने देता हूं, पहले ही बाहर निकाल लेता हूं।
मैं मुस्कुराते हुए बोली- उनको संतुष्टि मिल जाती है?
पंडित- उनको मिल जाती है, मुझे नहीं मिलती।

मैं- आपको क्यों नहीं मिलती?
पंडित मेरे कान में आकर बोला- मुझे स्खलित होने में आधा घंटा और अगली बार में 45 मिनट लगते हैं, इतनी देर में मेरी बीवी 4 से 5 बार झड़ कर निढ़ाल हो जाती है।

उसकी बात सुनकर मैं अवाक रह गई।
उसका तगड़ा तंदुरुस्त जिस्म इस बात की गवाही दे रहा था कि वो एक मजबूत मर्द है और उसकी बातें शत प्रतिशत सत्य है।

मुझे शर्माती देख वो मुस्कुराया और बस के धक्के के बहाने उसके गाल को चूम लिया।
मैंने कोई विरोध न किया तो उसकी हिम्मत बढ़ गई।

उसने झोला अपने घुटनों पे रख लिया और फिर मेरा हाथ पकड़ कर झोले पर।

मैं हाथ ढीला किए बैठी हुई थी।

धीरे धीरे मेरे हाथ को सहलाते हुए उसने उसे झोले के नीचे कर दिया और अपने पजामे पर रख दिया।
उसका तना हुआ लिंग मेरे हाथ से छुआ तो मुझे सिरहन सी महसूस हुई।

मैंने झट से हाथ झटका और बाहर निकाल लिया।

मैं- ऐसे मत करिए, कोई देख लेगा।
वह- कोई नहीं देखेगा, आप बेकार फिक्रमंद हैं। वैसे इस भरी दोपहरी में गंगा नहाकर कहां जाएंगी आप?
मैं- गंगा स्नान के बाद फिर घर जाऊंगी।
वो- जाना तो मुझे भी घर ही था लेकिन आपके साथ लम्बा सफर तय करने की तमन्ना है।

मैं- कितना लम्बा?वो- दोपहर तक, दोपहर हमारे संग बिता लीजिए, फिर चली जाइएगा जहां जाने की ख्वाहिश हो, आप चाहो तो मेरे मंदिर के दर्शन भी कर सकती हो।
मैं शर्मा कर हामी भर दी।

उसने मुझे कमर से जकड़ लिया और हमारी बस शहर के बाहर की तरफ गंगा घाट की ओर बढ़ गई।
गंगा घाट पहुंचकर हम दोनों पक्के घाट पर गए।

वहां बहुत ज्यादा भीड़ थी और सब आदमी औरत एक ही जगह स्नान कर रहे थे।

उसने मुझसे कहा- मैडम जी, साड़ी उतार दो और ब्लाउज पेटीकोट पहनकर नहाओ जैसे बाकी औरतें नहा रही हैं।

ये कहकर उसने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिया और अंडर वियर में आ गया।

उसका कसरती बदन और बालों से भरी छाती बहुत आकर्षक लग रही थी।
मैंने भी अपनी साड़ी उतार दी और उसी के साथ नदी में कूद गई।

हम हर हर गंगे का जयकारा लगाते हुए नहा रहे थे।

आगे कुछ बांस की बल्ली गड़ी हुई थी जिनके आगे जाना मना था क्यूंकि वहां पानी बहुत गहरा हो जाता है।

उसने धीरे से मुझसे कहा- बांस के पास जाकर डुबकी लगाइए, मैं आपको वहीं मिलूंगा।

मुझे समझ नहीं आया कि वो ऐसा क्यों कह रहा है.
फिर भी मैं तैरते हुए बांस के पास गई तो कई महिलाओं ने मुझे टोका- वहां मत जाओ, पानी गहरा है.
लेकिन मैंने कहा कि मुझे तैरना आता है और मैं बांस के पार नहीं जाऊंगी।
उन्होंने कुछ नहीं कहा और नहाने लगी।

पानी जरा गहरा था, इतना कि मेरी छातियां आधी डूब गई थी।

मैं डुबकी लगा कर हर हर गंगे का जाप कर रही थी कि तभी पानी के नीचे से एक हाथ मेरी कमर पर कस गया।
मैं जरा सी डरी और अंदर डुबकी लगाई तो देखा कि वही आदमी है।

मेरी जान में जान आई।

वो पानी के नीचे से मेरी कमर और जिस्म से खेल रहा था।
मेरे पेटीकोट को ऊपर उठा कर वो मेरी टांगों के बीच आ गया और अपना हाथ मेरे नितम्बों पर रख कर ऐसा दबाया कि मेरे मुंह से आह निकल गई।

पास खड़ी औरतों ने पूछा- क्या हुआ बहन जी, सब ठीक तो है?
मैं बहाना बना कर बोली- बहन जी, मेरी कमर के नीचे खुजली हो रही है, इसीलिए ऐसे कहा।
तो वो औरत बोली- आप परेशान मत हो, पेटीकोट हटा कर खुजा लो, हम औरतें यहां से देख रही हैं।

मैंने अपने पेटिकोट का नाड़ा खोल दिया और उतार के उस औरत को पकड़ा दिया।

अब मैं अपने हाथ से अपने चूतड़ खुजाने लगी तो उस आदमी को मौका मिल गया।
उसने अबकी बार अपना चेहरा मेरे चूतड़ों से सटा दिया, उसकी दाढ़ी की चुभन मेरे चूतड़ों को गुदगुदी के साथ कामुकता का अहसास दे रही थी।

कुछ देर बाद वो अंदर से ही तैर कर बाहर निकल गया और मैंने पेटीकोट पहन कर उस औरत को धन्यवाद किया।
इसके बाद बाहर निकल कर आई और कपड़े बदलने के लिए जगह ढूंढने लगी तो वो आए और बोले- पास ही एक कोठरी है मेरे दोस्त की, वहां जाकर कपड़े बदल लो।

मैं वहां एक पंडे की कुटिया में चली गई और जाकर कपड़े बदल लिए और नई ब्रा पैंटी और पेटीकोट ब्लाउज पहनकर साड़ी पहनी और बाल बांधकर बाहर आ गई।

बाहर वो आदमी खड़ा था.
वो मुझे लेकर पंडे के पास गया।

वहां हमने पूजा की और पंडे को 201 रुपए दक्षिणा दी।

फिर हम दोनों वहां से निकल आए।

बात करते करते हम सड़क पर आए तो उसने कहा- मैडम जी, मेरे मंदिर के दर्शन भी कर लो, पता नहीं फिर कब मौका मिले।
मैंने कहा- ठीक है जी करवा दीजिए, जिसके दर्शन का दिल करे।

मेरी इस द्विअर्थी बात को सुनकर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर हम ऑटो कर के शहर के बाहर की तरफ चल दिए।

शहर के बाहर पहुंचकर हम दोनों ऑटो से उतर गए।

वहां एक चाय के ढाबे पर उसकी साइकल खड़ी थी।
उसने चाय लेकर मुझे दी और चाय पीने के बाद हम अंदर की तरफ चल दिए।

शहर के बाहर जंगल था और वो मुझे उसी जंगल में ले जा रहा था।
साइकल पर बैठ कर हिचकोले खाने में बहुत मजा आ रहा था।

जंगल पहुंचकर उसने साइकल खड़ी कर दी।

वहां नदी का किनारा था और पास ही एक काफी पुराना मंदिर बना था और उसके पीछे एक पुराने समय का खंडहर था।

वो आदमी उसी मंदिर का पुजारी था।
हम दोनों वहां बैठकर बातें करने लगे।

आसपास कोई नहीं था और इस भयंकर जंगल में किसी के आने की उम्मीद भी नहीं थी।

वो मुझे अपने पास में बिठाए हुए था।
उसने मुझे अपने मंदिर के दर्शन करवाए और पूजा के बाद हम दोनों पास ही नदी किनारे बैठ गए।

उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे अपने पास खींच लिया और फिर मेरा सर अपनी गोद में रख कर सहलाने लगा।
मैंने कहा- पंडित जी आप मुझे यहां क्यों लेकर आए हैं, दोपहर हो गई है, मुझे घर भी जाना है।

पंडित- आज रात यहीं रुक जाइए, दोपहर क्या शाम और रात भी कब बीत जाएगी आपको पता नहीं चलेगा।
मैं शरारत भरे अंदाज में बोली- कहां रोकेंगे आप मुझे? यहां कोई घर तो है नहीं।

पंडित- इसी वीराने में रहिएगा, उस खंडहर में एक कमरा और गुसलखाना है, रुकने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
मैं- और रात में कैसे रहेंगे? यहां तो लाइट भी नहीं आती है।
पंडित- रात को ऊपर लेटेंगे, गर्मी भी नहीं लगेगी।
मैं बनावटी अंदाज में बोली- अगर कोई भूत आ गया तो?
पंडित- मैं हूं ना, आपको इतना चिपका कर रखूंगा कि भूत हमारे बीच आ ही नहीं पाएगा।

ये कहकर उसने मेरी छाती से पल्लू हटा दिया।
मैंने अपने ब्लाउज पर हाथ रखा और कहा- ये क्या कर रहे हैं आप? कोई देख लेगा।
तो उसने कहा- घबराइए मत, यहां कोई आता जाता नहीं है।
ये कहकर उसने मेरे ब्लाउज को खोल दिया।

मेरे नारियल जैसे सुडौल स्तन उसके सामने आ गए और बिना देर किए पंडित उनका रसपान करने लगा।
मैं किसी मां की तरह उसे स्तनपान करा रही थी।

मेरे स्तनों से खेलने के बाद वो मुझे मंदिर के पीछे बने खंडहर में ले गया।
वहां एक कमरा सा था जो टूटा फूटा था और कमरे के किनारे पर चटाई और कुछ बिस्तर थे।

असल में ये वही कमरा था जिसमें वो पुजारी रुकता था।

चटाई बिछाकर उसके ऊपर गद्दा खोल दिया गया और फिर पंडित ने मुझे उस बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे सामने धोती उतार कर वो खड़ा हो गया।

मैंने उसका लंगोट खोला तो उसका लिंग उछल कर उसके चेहरे के सामने आ गया।
तभी मैंने अपने होंठ खोल दिए और उसका काला लिंग मेरे मुंह में जा घुसा।

8 इंच का काला लिंग मेरे नाजुक होंठों पर नर्तन करने लगा और मैं भी पूरे मनोयोग से उसके लिंग को चूसकर गीला करने लगी।

ठीक से लिंग भिगो लेने के बाद पंडित ने मुझे लिटा दिया और मेरी धोती ऊपर उठा दी।

मेरी पैंटी अब पंडित के सामने थी।
पंडित ने मेरी पैंटी निकाल दी।

मेरी मुलायम योनि पंडित की नजरों के सामने थी।
उस पर उगे हल्के हल्के काले बाल मेरी योनि को आकर्षक बना रहे थे।

मैंने बिना समय गंवाए अपनी टांगें चौड़ी कर दी।
पंडित ने अपने लिंग के सुपारे पर थूक लगाया और फिर मेरी योनि पर रगड़ते हुए मुझे उत्तेजित करने लगा।

मेरी आंखें आनंद से बंद हो गई।

उसकी रगड़ मात्र से ही मेरी योनि से पानी छूटने लगा।

पंडित ने धीरे से मेरी योनि को अपनी उंगलियों से फैलाया और अपना लिंग सटा कर एक ही झटके में उसके अंदर उतार दिया।
मेरे मुंह से एक कामुक चीख निकल पड़ी लेकिन उस वीराने में उसे सुनने वाला कोई नहीं था।

खंडहर की दीवारों में मेरी चीखें दब गई।
पंडित ने मेरी टांगें थाम ली और फिर अपने लिंग के धक्के मेरी योनि में उतारने लगा।

मेरी रसभरी चूत से फच फाच की आवाजें आ रहीं थीं लेकिन मुझे ये एहसास बहुत ही उत्तेजक लग रहा था।
मैं भी अपनी कमर हिला हिला कर पंडित को चोदने में मदद करने लगी।

पंडित मेरी इस हरकत को देख कर बहुत खुश हुआ।
उसने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी।

मैं अब गद्दे को नोचने लगी और मेरी आंखें आनंद से बंद हो गई थी।
धक्कों का असर जल्द ही दिख गया और मैं किलकारी मार कर झड़ गई।
मेरी सांसें किसी कुतिया की तरह फूल रही थी।

पंडित उठ गया और मुझे भी खड़ा कर दिया।
फिर मेरी साड़ी और पेटीकोट को मेरे बदन से अलग कर दिया।

अब मैं पूर्ण रूप से नग्न हो चुकी थी।
पंडित ने मेरी एक टांग उठा कर अपने कंधे पर रख ली और फिर अपना मुंह मेरी योनि पर रख दिया।

मेरी योनि झड़ने की वजह से जरा सी झनझना उठी थी लेकिन पंडित का मुंह लगते ही उसे आराम मिल गया।

मैंने अपनी योनि का द्वार खोल दिया और पंडित ने अपनी जीभ मेरी योनि में घुसा दी।
मेरी योनि का पानी पीते हुए वो मेरी योनि के दाने को छेड़ने लगा।

ऐसा करने भर की देरी थी कि मेरा बदन फिर से वासना की अग्नि में जलने लगा।
मेरे मुंह से कामुक सीत्कार निकलने लगी- आह, उफ्फ पंडित जी, मेरी चूत, आह, मर गई मैं, हए दैय्या!
इसी प्रकार की कामुक आवाजें मेरे मुंह में से निकल रही थीं।

पंडित समझ गया कि मैं अब दूसरे राउंड के लिए तैयार हो गई हूं।
उसने मुझे घोड़ी वाली पोजीशन में झुका दिया और उसके पीछे आकर खड़ा हो गया।

मैंने बिना कहे अपने नितम्बों को ऊंचा उठा लिया।

पंडित ने एक जोर का चपत मेरे गद्देदार नितंबों पर लगाई तो मेरे मुंह से आह निकल गई- आह, पंडित जी जरा आराम से, दर्द होता है।
पंडित- इस दर्द का ही तो मजा है। चल अब तेरी फुद्दी मारता हूं।

ये कहकर पंडित ने अपना लिंग मेरी योनि से सटाया और एक ही धक्के में पूरा उसकी जड़ तक उतार दिया।
मैंने बिना किसी विरोध के वो लिंग अपने भीतर लील लिया।

पंडित ने मेरी कमर को पकड़ लिया और उसी के सहारे धक्के लगाने लगा।
मेरे नितम्बों से आती फट फट की आवाज माहौल को और अधिक उत्तेजक बना रही थी।

पंडित ने अब मेरे बाल पकड़ लिए जैसे घुड़सवार घोड़ी की लगाम को पकड़ता है और फिर मेरी योनि में धक्के लगाने लगा।

हर धक्के के साथ मेरी चीखें बढ़ती जा रही थी लेकिन पंडित ने कोई रहम नहीं किया।
वो अनवरत रूप से मेरी योनि को चोदता रहा.
मेरे झड़ जाने के बाद भी।

इस क्षण मैं कामुकता के वशीभूत होकर सीत्कार कर रही थी।
पंडित लगातार मेरे मांसल स्तनों को मसलता और अपने लिंग के प्रहार से मेरी योनि को तृप्त करता रहा।

आखिर कुछ समय बाद पंडित भी मेरी पोर्न चुदाई करते हुए चरमसुख की अवस्था में पहुंच गया।
वो घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए मेरी योनि में ही जा झड़ा।

हम दोनों ही इस दमदार चुदाई से थक गए थे इसलिए वहीं गद्दे पर लेट कर सांसें संयत करने लगे।
पंडित के बदन से लिपटकर मैं आराम करने लगी।

कुछ देर बाद पंडित का लिंग फिर से उठ गया और उसने एक बार फिर से मेरी योनि की चुदाई की।

शाम के 4 बज चुके थे और मैं समय से घर पहुंच जाना चाहती थी।

इसलिए उसके कहने पर पंडित ने मुझ को सड़क तक छोड़ दिया और एक बस में बिठा दिया।मैं ने पंडित को प्रणाम किया और फिर अपने घर की ओर लौट चली।

तो पाठको, यह थी अमृता की तीसरी कहानी!

इसके आगे की कहानी लेकर जल्दी ही आपके सामने प्रस्तुत होऊंगा।
मेरी पोर्न चुदाई कहानी पर आप अपने विचार मेरे ईमेल पर भेज सकते हैं।
[email protected]

What did you think of this story

Comments

Scroll To Top