मेरी सहेली की मम्मी की चुत चुदाइयों की दास्तान-3

(Meri Saheli Ki Mammi Ki Chut Chudaiyon Ki Dastan- Part 3)

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मैंने अपनी पेंटी ऊपर सरकाई, सलवार को ठीक करके बाँधा, रोशन ने भी अपनी पैंट, बेल्ट बांध ली।

लेकिन दरवाज़ा खोलते ही जैसे ही हमारी नजर सामने उठी, हम दोनों के होश उड़ गये, सामने स्टिक लिए, गोल चश्मा लगाए डेलना मैडम खड़ी थी।
मेरी तो हालत बिगड़ गई।

हम दोनों भौंचक्के से डेलना मैडम को देखने लगे।

रोशन तुरन्त डर के मारे मेट्रन के पैरों पर गिर पड़ा- मेम, प्लीज हमें माफ़ कर दो…
रोशन गिड़गिड़ाने लगा।

मेरी तो रुलाई फ़ूट पड़ी, चुदाई के चक्कर में पकड़े गये, नौकरी कैसे जाती है, सामने नजर आ रहा था।
‘ऊपर उठ!’ डेलना मैडम ने रोशन के चूतड़ों पर एक ज़ोर की छड़ी जमाई, वह अपनी गांड सहलाता हुआ खड़ा हो गया।

‘मैडम माफ़ कर दो, इस बच्चे के चक्कर में मैं बहक गई थी।’
‘बहक गई थी? अरे! मैं मूतने आई तो देखा आवाज़े बाहर तक आ रहीं थीं। अब दोनों चुप हो जाओ, आगे से ध्यान रखो, दरवाजे की कुन्डी लगाना मत भूलो! समझे? अब रोशन जरा मेरे साथ आओ, और शहनाज़ तुम बाहर ध्यान रखना कि कहीं कोई आ ना जाये…!’

मैं भाग कर डेलना मैडम से लिपट पड़ी और उनके उनके गले लगकर फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी।
‘मुझे माफ़ कर दो मैडम, मैं सच्ची बहक गई थी, अब कभी कॉलेज में नहीं करूँगी।’ और माफ़ी मांगने लगी।

डेलना मैडम पचास वर्ष की होगी, थोड़े से बाल सफ़ेद भी थे…पर उसका मन कठोर नहीं था- पगली! मैं भी तो इन्सान हूँ। मेरे पति बूढ़े हो चुके हैं। तुम्हारी तरह मुझे भी तो लंड चाहिये… जाओ खेलो और जिन्दगी की मस्तियाँ लो…’
और अपनी हैबिट ( मैक्सी या गाउन जैसी पोशाक) उठाकर मेरी जगह झुक कर खड़ी हो गई।

उनकी सफ़ेद चड्डी नीचे सरका कर रोशन उसके पीछे लग चुका था।

मैंने अपना बैग उठाया और वाशरूम के दरवाज़े पर पहरेदार बनकर खड़ी हो गई। अन्दर वासनायुक्त सिसकारियाँ गूंजने लगी थी… शायद डेलना मैडम की चुदाई चालू हो चुकी थी।

मेरी धड़कन अब सामान्य होने लगी थी, मुझे लगा कि बस ऊपर वाले ने हमारी नौकरी बचा ली थी। डेलना मैडम अन्दर चुद रही थी और हम बच गये थे वर्ना यह चुदाई तो हम दोनों को मार जाती।

उस दिन के बाद से मैं और डेलना मैडम काफी घुल मिल गए थे।
एक दिन की बात है, मेरी कॉलेज की प्रिंसपल डेलना मैडम ने मुझे नंगी फिल्म की सी डी दी, वो देसी ब्लू फिल्म की सीडी थी।

मैंने उस दिन पहली बार इंडियन देसी ब्लू-फिल्म देखी थी, उसमें लम्बा मोटा विदेशी लंड एक मासूम सी कम उम्र इंडियन लड़की को स्विमिंग पूल में चोद रहा था।

यह देखकर मुझे अजीब सा लगा, मन बार बार रोशन को याद करने लगा, कॉलेज के टॉयलेट में उसकी ज़बरदस्त चुदाई दिमाग़ में फिर से आने लगी, जंगली तरह से उसने मेरी सलवार खीचकर ज़बरदस्ती झुकाकर गांड मारी थी वह मैं भूल नहीं पा रही थी, दो दिन तक मेरी गांड दुखती रही थी।

मेरी भी प्यास भड़क गई थी और मैं भी अपनी चुत को उस जैसे किसी लंड से चुदवाना चाहती थी। घर में मेरा मन नहीं लग रहा था। मैं ब्लू जीन्स सफ़ेद टी शर्टपहन कर कुछ खरीददारी करने के बहाने से बाहर गई।
मैंने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी ढीली सफ़ेद टी शर्ट से मेरे टिट्स साफ़ चमक रहे थे।

मैंने एक रेस्टोरेंट में बैठकर तुरंत अपने पति के दोस्त असलम को कॉल किया- असलम कहाँ हो?
‘शहनाज़ कैसी है मेरी डार्लिंग? मैं तो यहीं हूँ शहर में!’
‘कुछ करो, बहुत दिन हो गए मिले हुए?’
‘क्या? सीधा सीधा बोल न, क्यों परेशान है?’
‘और कितना सीधा बोलू यार… चुदवाना चाहती हूँ, यह बोलूँ? तूने ऐसा चस्का लगाया है कि दिल करता है कि बस जो भी चोदना चाहे खोलकर हाँ कर दूँ।’

‘हा हा हा… अभी तो मुश्किल है, कुछ दिन रुक जा कुछ जुगाड़ करता हूँ।’
‘चूतिया… चुत में आग अभी लगी है और तू बोलता है कि रुक जा… क्या यहीं चौराहे पर चुदवा लूँ? मादरचोद…’
‘रंडी बिगड़ गई है तू दो-दो लौड़े लेकर। कौन बोलेगा कि तू स्कूल में शरीफ सी टीचर है। रुक जा कल तक किसी होटल की जुगाड़ करता हूँ। नहीं हो पाया तो एक दोस्त का फॉर्म हाउस है वहाँ ले चलूँगा तुझे। लेकिन फॉर्म हाउस का किराया लगेगा तुझसे?’

‘मतलब एक और…?’
‘तो क्या दिक्कत है? ग्रुप सेक्स में तो तू मास्टर हो गई है, अकरम को भी बुलवा लूँगा।’
‘चल मादरचोद, ठीक हैम चल बाय!’

रेस्टोरेंट में एक कॉफ़ी पीकर मैं एक से डेढ़ घंटा तक यूं ही सड़कों पर यहाँ वहाँ घूमती रही। भीड़ में मौक़ा देखकर कोई मेरी गांड को दबा देता तो कोई मेरे मम्मो को मसलता हुआ निकल जाता था, मैं अन्दर तक सिहर जाती।

मैं अन्दर ही अन्दर जल रही थी, मैंने वहाँ से निकल कर फिल्म देखने का प्लान बनाया। मुझे सेंट्रल पार्क के पास वाले सिनेमा हाल में जाना था। मैंने एक ऑटो वाले को हाथ दिखाकर ऑटो को रोका- ऑटो वाला, सेंट्रल पार्क चलोगे?
‘नहीं उधर बहुत ट्राफिक रहता है।’
‘निकल मादरचोद यहाँ से, क्या अपनी माँ चुदाने निकला है।’ ऑटो वाला गुस्से से मेरा मुँह देखता हुआ वहाँ से बढ़ गया, कुछ बोला नहीं क्योंकि मैं औरत थी।

मैं वहाँ से मेट्रो के लिए बढ़ गई। कुछ ही देर में मैं मेट्रो के पुरुष बोगी में एक कोने में थी। शाम होने के कारण अन्दर बहुत भीड़ थी। औरत होने का यह फायदा है कि आप पुरुष डब्बे में चढ़ सकती हैं लेकिन पुरुष महिला डब्बे में नहीं चढ़ सकते।

अन्दर बिल्कुल भी जगह नहीं थी पर जगह बनाते हुए कई लोग अन्दर आ गए।
उनमें से एक की नज़र मुझ से मिली, और न जाने क्यों उसने मेरी तरफ बढ़ना शुरू कर दिया। भीड़ को चीरते हुए वह मेरी तरफ अन्दर आता रहा और मेरे पास आकर रुक गया।

मैं उसको पहचान गई थी, यह अभी कुछ देर पहले रेस्टोरेंट में बैठा मुझे घूर रहा था।
एक दूसरा लड़का भी उसके पीछे पीछे जगह बनता हुआ पास में आ गया। पहला लड़का ऊंचा और गोरा था, दूसरा लड़का साधारण ऊँचाई और रंग का था।

दोनों मेरे पास थोड़ी देर तक चुपचाप खड़े रहे। मेट्रो चलती रही और उसके तेज़ मोड़ बार-बार मुझे उस ऊंचे लड़के से टकराने पर मजबूर कर रहे थे।
शायद उस लड़के को मेरे मम्मों के उछाल से समझ में आ गया कि मैंने टी शर्ट के अन्दर ब्रा नहीं पहनी है, वह ध्यान से मेरे सीने की ओर देखने लगा और फिर थोड़ा और आगे बढ़ कर मेरे और करीब आ गया।

अब तो मेरी नाक उसकी छाती से टकरा रही थी। अगली बार जब ट्रेन का धक्का लगा, तो मैं करीब करीब उसके ऊपर गिर ही पड़ी। संभलने में मेरी मदद करते हुए उसने मेरे दोनों चूचियों को पूरी तरह जकड़ लिया।

इतनी भीड़ थी और हम इतने करीब थे कि मेरे सीने पर उसके हाथ और मेरी चूचियों का बेदर्दी से मसलना कोई और नहीं देख सकता था। मेरे सारे शरीर में करेंट दौड़ गया, अपनी चुत में मुझे अचानक तेज़ गर्मी महसूस होने लगी। इतना सुख महसूस हो रहा था कि दर्द होने के बावजूद मैंने उसे रोका नहीं।

भरे डब्बे में मैं अपनी चूचियां मसलवा रही थी, मुझे सुख की असीम अनुभूति हो रही थी, मेरी सिसकारियां अन्दर ही अन्दर घुट रहीं थीं।
बस फिर क्या था, उसकी समझ में आ गया कि मैं कुछ नहीं बोलूंगी। फिर तो वह और भी पास आ गया और मेरे मम्मे सहलाने लगा। मेरी चूचियाँ तन कर खड़ी हो गई थी, वह उनको मरोड़ता और सहलाता।

मेरी आँखें बंद होने लगी, मैं तो स्वर्ग में थी!

तभी मुझे एहसास हुआ कि पीछे से भी एक हाथ आ गया है जो मेरे मम्मे दबा रहा है। दूसरा लड़का मेरे पीछे आकर सट कर खड़ा हो गया था, उसका लंड खड़ा था और मेरी गांड से टकरा रहा था।

अब मैं उस दोनों के बीच में सैंडविच हो गई थी, दोनों बहुत ही करीब खड़े थे और मुझे घेर रखा था। इतने में पहले लड़के ने अपना हाथ नीचे से मेरी टी-शर्ट में डाल दिया। उसका हाथ मेरे नंगे बदन पर चलता हुआ मेरे मम्मों के तरफ बढ़ने लगा।

मेरी सांस रुकने लगी, मन कर रहा था कि खींच कर अपनी टीशर्ट उतार दूँ और उसके दोनों हाथ अपने नंगे सीने पर रख लूँ।
आखिर उसके हाथ मेरी नंगी चूचियों तक पहुँच ही गए। अब तो मेरी वासना बेकाबू हुए जा रही थी।

पीछे खड़े हुए लड़के ने भी अपना हाथ मेरी टीशर्ट के अन्दर डाल दिया। अब तो मैं सैंडविच बन कर खड़ी थी, मेरे एक मम्मे पर पीछे वाले का हाथ था, और दूसरे को आगे वाले ने दबोच रखा था।

तभी आगे वाले लड़के ने अपना मुँह मेरे कान के पास ला कर कहा- मजा आ रहा है न?
मैंने कोई जवाब नहीं दिया, मुँह में ज़ुबान ही नहीं थी।

उसने फुसफुसा के कहा- मैडम। थोड़ी टाँगें फैला दे तो और भी मजा दूंगा।

मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा लेकिन वासना की आग इतनी तेज़ जल चुकी थी कि अपने को रोक न पाई, बिना कुछ कहे मैंने अपने टाँगें थोड़ी फैला दी, उसने अपना एक हाथ मेरे मम्मे पर रखा और दूसरा मेरी जीन्स में घुसा दिया। उसकी उंगलियाँ मेरी कोमल नर्म चुत तक पहुँच गई ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’

जैसे ही उसके हाथ मेरी चुत के हल्के बालों से टकराए, वह चौंक गया, फिर अपने दोस्त से फुसफुसा कर बोला- साली ने पेंटी भी नहीं पहनी है। यह तो चुदने के लिए मेल कम्पार्टमेंट में चढ़ी है।

फिर अपनी उंगलियों से मेरी चुत की फांकें अलग करके उसने एक उंगली मेरी गीली चुत में घुसानी चाही, लेकिन उसको रास्ता नहीं मिला।
अब वह दुबारा चौंका और मुझसे ऐसी आवाज़ में बोला कि बस मैं और उसका दोस्त ही सुन सकते थे- मैडम, इतनी बेताब हो चुदने के लिए लेकिन अभी यहाँ पॉसिबल नहीं होगा, चलो अगले स्टेशन पर उतर जाते हैं।
मैं कसमसाई लेकिन कुछ नहीं बोली।

‘अगर तुम चाहो तो हम तुम्हारी चुत को ठंडा कर देते हैं। उसके बाद तुम अपने रास्ते हम अपने रास्ते?’ उसके दोस्त ने मेरी चूची को नोच कर मेरे दूसरे कान में मदहोश करने वाले तरीके से फुसफुसा के कहा- छुआ छुई में जो मजा है, रानी, असली चुदाई में उससे कहीं ज्यादा मजा आएगा। और हम तुझे चोदेंगे भी बहुत प्यार से… तीनों मिल के मौज करेंगे और फिर तुझे हिफाज़त से छोड़ देंगे।
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पता नहीं तब तक मेरी बुद्धि कहाँ जा चुकी थी, मेरी चुत से नदी बह रही थी, मम्मे और चूचियाँ बुरी तरह दुःख रहे थे लेकिन उनका मीठा मीठा दर्द मेरे शरीर में आग लगा रहा था, मैंने धीरे से पूछा- कहाँ और कैसे?

बस, फिर क्या था, दोनों की आँखों में चमक आ गई।

लम्बे कद वाला लड़का बोला- अंसल प्लाज़ा उतर जाते हैं। उसके पार्क में कोई नहीं आता। उसका कैम्पस बड़ा है, और वहाँ काफी जंगल है। मुझे एक दो जगह मालूम हैं, वहाँ कहीं अपना काम बन जाएगा।

अंसल प्लाजा तो अगला ही स्टॉप था!
सोचने या संभलने का मौका मिले, इससे पहले ही मैं उनके साथ मेट्रो से उतर चुकी थी।

जैसे ही मैं उन दोनों के साथ स्टेशन से बाहर निकली, मुझे थोड़ा होश आया। यह मैं क्या कर रही थी? पर तब तक लम्बा लड़का एक ऑटो रोक चुका था और हम तीनों उस ऑटो में सवार हो गए।
उसने ऑटो वाले को रास्ता बताया।

मेरी किस्मत खराब भी या पता नहीं अच्छी थी, यह वही ऑटो वाला था जिसकी मैंने कुछ देर पहले गालियाँ देते हुए माँ बहन एक की थी।
इतने में दूसरे लड़के ने मुझे बीच में बैठा कर मेरा बैग मेरे घुटनों पर रख दिया। इस तरह ऑटो वाले की निगाह बचा कर उसने फिर मेरे मम्मे और चूचियाँ मसलने शुरू कर दिए। मेरे बदन में फिर से गर्मी आने लगी।

पर तब तक डर भी लगने लगा था, मैं एक शादीशुदा जवान औरत एक नहीं, दो बिल्कुल अनजाने मर्दों से चुदने जा रही थी, मुझे तो यह भी पता नहीं था कि ये कंडोम इस्तेमाल करेंगे या नहीं।

ऑटो चले जा रहा था और रास्ता सुनसान हो गया था, सड़क पतली थी। आखिर हिम्मत जुटा कर मैंने लम्बे लड़के से फुसफुसा के कहा- आज नहीं करते, कभी और करवा लूँगी, आज जाने दो।

उसने बोला- ऐसा मत बोल रानी, आज बात बन रही है, इसे तोड़ मत, इतना आगे आकर पीछे मत हट। हम दोनों दोस्त मिलकर तुझे बहुत प्यार से चोदेंगे।
मैंने कहा- देखो मैंने पहले कभी नहीं किया है, मेरे साथ ऐसा मत करो, मुझे जाने दो, शादीशुदा औरत हूँ।

हमारी बातों से ऑटो ड्राईवर को शायद शक हो गया, अचानक ऑटो किनारे पर रोक कर बोला- तुम लोग इस मैडम को जानते हो?

मुझे आशा बंधी कि ऑटो ड्राईवर के होते ये लड़के मेरे साथ कुछ नहीं कर सकते, मैंने कहा- हम मेट्रो में मिले थे और ये मुझे बेवक़ूफ़ बना कर यहाँ लाये हैं। कृपया मुझे वापस ले चलिए।

‘अरे! आप तो वही मैडम हो, जो अभी कुछ देर पहले ही हमको ज़बरदस्त गरियाई थीं?’
मैंने कोई जवाब नहीं दिया, आखें झुका लीं।

मैं अपनी गलती से फंस चुकी थीं। अब मुझे बस इतना लग रहा था कि इनको जो भी करना है फटाफट हो जाए ताकि मैं इस मुसीबत से निकलूं।

दूसरा लड़का बोला- चुप साली! मेट्रो में तो टांगें चौड़ी कर रही थी, मम्मे दबवा रही थी और चुदने को रजामंद होकर हमारे साथ यहाँ आई, और अब बात से फिरती है?

फिर ऑटो ड्राईवर से बोला- देख चुपचाप चला चल, इसकी चुत तो आज हम फाड़ेंगे ही, चाहे कुछ भी हो जाए। अगर तू बीच में पड़ेगा तो पिटेगा, अगर साथ देगा तो तू भी इसकी ले लेना।

‘तुम भैया फिकर मत करो, बहुत गालियाँ दे रही थी। मुझे शक था रंडी ही होगी। फिकर मत करो, ऐसी जगह ले चलेंगे कि पूरी रात भी इसको चोदोगे तो कोई नहीं आएगा वहाँ!’
इस पर वे दोनों जोर जोर से हंस पड़े।

कहानी जारी रहेगी।
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