ऑफिस की कमसिन कड़क लौंडिया के साथ सेक्स- 1

(Kamababa Sex Kahani)

कामबाबा सेक्स कहानी में मैंने अपने दफ्तर में आई एक नई लड़की को चोदने के लिए पटाने की कोशिश की. वह कड़क गर्म माल थी लेकिन मुझे ज्यादा घास नहीं डाल रही थी. नखरे चोद रही थी.

मेरे प्यारे चोदू दोस्तो और मस्त गर्मागर्म मसालेदार भाभियो, आप सभी को मेरा प्रणाम.

आज मैं आपके साथ अपने एक ऐसे अनुभव को साझा करने जा रहा हूँ जो मेरे ऑफिस में बतौर मैनेजर काम करने वाली कादम्बिनी और मेरे बीच घटित हुआ.

इस कहानी में इसकी हिरोइन के नाम कादम्बिनी से मिलता जुलता नाम मैंने कामबाबा रख लिया.

कादम्बिनी की उम्र 20 साल रही होगी और शरीर उसका इतना मादक, एक एक अंग ऐसा तराशा हुआ, चूचे इतने मस्ताने … ओहहो..हो … मन करता है कि अभी पानी गिरा दूँ.

यह कामबाबा सेक्स कहानी तभी से शुरू हुई थी, जब कादम्बिनी इंटरव्यू के लिए आयी थी.

उसका इंटरव्यू लेते हुए पता चला कि वह कुछ करना चाहती है क्योंकि घर पर कुछ ख़ास उसकी बनती नहीं.

मैंने पूछा- यहां काम बहुत है. आने जाने में जल्दी देरी हो सकती है.
कादम्बिनी- मैं सम्भाल लूँगी सर.

मैं- क्या क्या कर सकती हो?
कादम्बिनी मुस्कुराती हुई बोली- सब कुछ सर. आपको शिकायत का कोई मौक़ा नहीं मिलेगा.

मैं- आज कल दिल्ली में लड़कियां काम पर ध्यान कम देती हैं और दोस्तों में ज़्यादा!
कादम्बिनी तीखी नज़र से देखती हुई बोली- मेरा कोई ऐसा वैसा फ्रेंड नहीं है सर … बस काम करना है मुझे!

मुझे संतुष्ट करने को इतना बहुत था.
मैं समझ गया था कि पप्पू की दावत की जुगाड़ है ये लड़की.

मैंने उसके बायोडाटा में घर का एड्रेस देखा कि उसका घर मेरे घर के रास्ते में पड़ता है.
तो मौक़ा भी सही ही बन रहा था.

फिर शुरू हुआ कादम्बिनी का ऑफिस आना.

मैं भी मौक़ा देख के उसके काम का मुआयना करने चला जाता और थोड़ी देर उसका चक्षु चोदन कर आता.

थोड़ी थोड़ी बातें भी ज़रूरी थीं यारो … मुझे इसकी चुदाई जो करनी थी!

मैंने ध्यान दिया कि कादम्बिनी अपनी ड्रेस के ऊपर के बटन खोल कर रखती जिससे उसके चूचों का एक अच्छा भाग और उन घाटियों की गहराई को अच्छे से देखा जा सकता था.

सीधे शब्दों में कादम्बिनी दिल्ली की उन चुनिंदा बिंदास लड़कियों में से एक थी जो दिल्ली को इतना हसीन … और यहां के माहौल को इतना गर्मागर्म रखती हैं.

थोड़ा समय और बीता तो मुझे ये भी समझ आ गया कि कादम्बिनी को पेलना बहुत मुश्किल नहीं होगा.

मैंने आते जाते उसको इधर उधर छूना शुरू कर दिया था मगर उसने कभी विरोध से मेरी तरफ देखा तक नहीं.
तो मेरी हिम्मत दिन पर दिन बढ़ती रही.

एक दिन तो मैंने बातों बातों में उसके कंधे को मसलते हुए उसको बोला- कादम्बिनी, तुम बहुत हॉट हो. अगर मेरी स्टाफ नहीं होती तो शायद मैं ज्यादा लक्की होता!
इस पर उसने भीनी सी मुस्कान बिखेरी और मेरा हाथ अपने कंधे से हटा दिया.
मैं समझ गया था कि मामला सैट होने में ज्यादा देर और मेहनत, कुछ नहीं लगेगी.

एक दिन ऑफिस में काम थोड़ा ज़्यादा था तो सभी को देर तक रुकना पड़ा.
मैं घर के लिए निकल ही रहा था कि ऊपर से कादम्बिनी आती दिखी.

उसने मुझे गाड़ी में बैठे देखा तो बाय करने लगी.
पर मैंने उसको इशारा करके गाड़ी में बैठने को कहा.

कादम्बिनी ने खुले शीशे पर झुक कर अन्दर जो झांका, उसके बड़े चूचे मेरी नज़रों के सामने ऐसे झूले … जैसे कह रहे हों कि आज हमें निचोड़ ही दो.

मैं- घर जा रही हो तो साथ चलो, छोड़ देता हूँ. मैं उसी तरफ़ रहता हूँ.
कादम्बिनी- थैंक्यू सर, पर मैं चली जाऊंगी.

मैं- कोई दिक़्क़त नहीं है. आज मेरे साथ ही चलो …
कादम्बिनी- आप क्यों परेशान होते हैं सर. मैं ऑटो ले लेती हूँ.

मैं- परेशानी की बात कहां से आ गई? चलो, किराया ले लेंगे तुमसे … अब ठीक!

फिर कादम्बिनी मेरी गाड़ी में आ कर बैठ गई.

मैंने आगे बात बढ़ाई- तुम्हारा बॉयफ्रेंड क्या करता है?
कादम्बिनी चौंकती हुई बोली- मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है … मैंने आपको पहले दिन ही बोला था.

मैं- ऐसा नहीं हो सकता. तुम्हारे जैसी सुंदर और सेक्सी लड़की का बॉयफ्रेंड नहीं है … असंभव …
कादम्बिनी थोड़ी अटकती हुई बोली- सही कह रही हूँ सर … नहीं है …

मैंने मौक़ा ताड़ते हुए बोला- तो मेरी गर्लफ्रेंड बनोगी?
बस इतना कहकर मैंने कादम्बिनी के घुटने पर हाथ रख दिया और उसको सहलाने लगा.

मैं गाड़ी को सीधे रास्ते से ना ले जाकर थोड़ा घुमाता हुआ ले जा रहा था ताकि मुझे कादम्बिनी के साथ ज़्यादा समय बिताने को मिल जाए.

कादम्बिनी- आप कहां गाड़ी घुमा रहे हो? मुझे घर के बाद जिम जाना होता है. प्लीज़ पहले मुझे ड्राप कर दो सर!

मैं- ओह, तो तुम इसलिए इतनी मेंटेंड हो … मैं तो पूछता तुमसे कुछ दिनों में कि जिम वग़ैरह करती हो क्या?
कादम्बिनी- कुछ दिनों में क्यों सर. आपको जो पूछना है आप पूछ लें, मैं बता दूँगी!

इतना सुनते ही मेरे दिमाग़ ने बिजली की तेज़ी से एक प्लान बनाया.

मैं कादम्बिनी के चूचे को थामते हुए बोला- इतना खुल कर बात करने को कह रही हो तो बताओ जिम जाती हो फिर भी तुम्हारे बूब्स इतने बड़े हैं? और दबाने में टाइट भी लग रहे हैं … क्या बात?
कादम्बिनी मेरा हाथ झटकती हुई बोली- ये क्या कर रहे हो आप? मैंने बात करने को कहा है और आप इधर उधर हाथ लगाने लगे!

मैं होठों पर जीभ फेरते हुए बोला- मेरा बस चले तो इनको चूस भी लूँ और साथ में काट काट कर लाल भी कर दूँ!
इस बार मैंने कादम्बिनी के चूचे को पकड़ कर ज़ोर से मसल दिया.

कादम्बिनी दर्द से कराहती हुई बोली- आह … आप रहने दो. अभी गाड़ी रोको. मुझे यहीं उतरना है. मुझे बहुत दर्द हो रहा है!
मैं- तेरे बूब्स हैं ही इतने कड़क यार कि थोड़ा सा दबाने में तो लगता ही नहीं दबा दिए. इसलिए ज़ोर से दब गए. इनको सहला कर ठीक कर देता हूँ.

इस बार मैं कादम्बिनी के चूचों को सहलाते हुए दो उंगलियां उसकी ड्रेस के गले से अन्दर डाल कर उसके निप्पल तक पहुंचाने की कोशिश करने लगा.

कादम्बिनी विरोध तो कर रही थी, पर मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह ऊपरी मन से ही विरोध कर रही थी.

उसने मेरे हाथ को ख़ुद से अलग करके मेरी जांघ पर रखा और आंखों से ऐसे इशारा किया जैसे वह उसको वहीं रखने को कह रही हो.

कुछ ही देर में हम दोनों कादम्बिनी के घर के नज़दीक वाले स्टॉप पर पहुंच गए थे.

मेरा मन तो बिलकुल नहीं था, फिर भी मैंने उसको ड्राप किया और वह मुझे बाय बोल कर चली गई.

मुझे नहीं समझ आया कि कल क्या होगा, पर मन बहुत खुश था कि आज एक नये माल को पेलने की तैयारी शुरू हो गई.

अगले दिन मैं बेचैनी से कादम्बिनी का इंतज़ार कर रहा था और मेरे दिमाग़ को पता था कि कादम्बिनी आज से ऑफिस नहीं आने वाली है.
पर दिल है कि मानता नहीं …

वह तो आस लगाये बैठा था कि कब मेरी प्यारी कादम्बिनी ऑफिस में अपने कदम पसारे.

टांगों के मध्य लंड तो अलग ही मूड में था.
कल शाम की घटना याद करके कभी भी सिर उठाये जा रहा था.

ख़ैर … आधा दिन बीत गया और कादम्बिनी नहीं आयी.

मुझे समझ आने लगा था कि अब वह दोबारा ऑफिस नहीं आएगी.
पर ठीक लंच के समय के बाद मैंने लॉबी में देखा तो कादम्बिनी को वहां खड़ी पाया.

मैं यूँ ही ऑफिस का चक्कर लगाने को निकला और कादम्बिनी को डाँटा- ये कोई समय है ऑफिस आने का? मुझे मेरे केबिन में आ कर देर से आने का कारण बताओ!

वैसे ये सब तो सिर्फ़ बहाना था, मुद्दा तो उसको आंख भरके देख पाना था.

थोड़ी देर में कादम्बिनी और मैं, मेरे केबिन में अकेले थे.
आज उसकी शर्ट कुछ ज़्यादा टाइट थी और ऊपर के दो बटन हमेशा की तरह खुले थे.

उसके अधनंगे चूचों को देख मेरा लंड बग़ावत करने लगा था.
मेरा मन तो पहले से ही पक्का किए बैठा था कि इसकी चूत में अपनी मलाई ज़रूर टपकानी है.

मैंने थोड़ी देर उसको निहारा और फिर उसके चूचों की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा- इनका दम क्यों घोंट रखा है आज तूने?

कादम्बिनी मेरी बात को सुनकर नजरअंदाज करती हुई बोली- आप कुछ कह रहे थे कि मुझे देर क्यों हुई?
मैं- देर हुई सो हुई, पर तुमने किसी को बताया भी नहीं कि देर से आओगी?

कादम्बिनी- कल निकलने में देर हो गई थी. फिर घर देर से पहुंची … और देर होती चली गई. आज रास्ते में थोड़ा काम था तो सोचा कि सेकंड हाफ़ में ही जॉइन करूँ.

मैं- मैंने तो पहले दिन ही कहा था कि देर हो सकती है और तुमने कहा था मुझे शिकायत का मौक़ा नहीं दोगी.
कादम्बिनी- आपको किसी चीज़ से कोई शिकायत है क्या सर?
मैं- कल रात के बाद … शिकायत तो नहीं पर … अभी ये बताओ कि इन कबूतरों का दम क्यों घोंट रखा है आज तूने?

इतना कहते कहते मैं अपनी कुर्सी से उठकर टेबल की दूसरी तरफ़ कादम्बिनी के पीछे पहुंच गया और उसको मेरा मोबाइल उठा कर देने को कहा जो टेबल पर मेरी कुर्सी के आगे ही रखा था.

कादम्बिनी मोबाइल उठाने के लिए टेबल पर झुकी कि मैंने अपना तना हुआ लंड उसकी गांड से सटाया, एक हाथ से उसकी कमर को पकड़ा और दूसरे हाथ से उसके एक पुट्ठे को हाथ में भरकर दबा दिया.
इससे पहले कि कादम्बिनी सीधी होती, मैंने एक हाथ को उसकी कमर पर रखकर उसको इसी पोजीशन में रहने का इशारा किया और अपने लंड को थोड़ा और उसके अन्दर को पेल दिया.

कादम्बिनी के दोनों हाथ टेबल पर पट थे और हमारी पोजीशन ऐसे थी जैसे मैं उसको घोड़ी बना कर चोद रहा हूँ.

मैंने एक बार फिर से कादम्बिनी के पुट्ठे को हाथ में भरा और उसको बेदर्दी से रगड़ा.
फिर इससे पहले कोई वहां आता, मैं उससे अलग होकर वापस अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया.

कादम्बिनी अब भी टेबल पर वैसे ही अपने हाथ फैलाए पड़ी थी और उसके चूचे आधे से ज़्यादा उसके कपड़ों से बाहर थे.

उसकी सांसें तेज़ चल रही थीं, जैसे मैंने उसको रगड़ा ना हो बल्कि चोद ही दिया हो.
पर कुछ भी कहो, उसको इस स्थिति में देख कर मेरा खून दोगुनी तेज़ी से दौड़ने लगा था.

मैंने उसको कपड़े व्यवस्थित करके बैठने को कहा और जब वह बैठी तो उसका चेहरा पूरा लाल हुआ पड़ा था.

मैंने अपने ग्लास से दो घूँट पानी पहले ख़ुद पिया और फिर ग्लास कादम्बिनी की तरफ़ बढ़ा दिया, जिसको उसने बिना किसी हिचकिचाहट के गटक लिया.

थोड़ी नार्मल होने पर उसने मुझे ग़ुस्से से देखा, फिर एक उंगली मेरी तरफ़ बढ़ाई जैसे मुझे धमकाने वाली है … पर उसके मुँह से एक शब्द नहीं निकला.

उसकी सांसें तेज़ चल रही थीं और उसके चूचे ऊपर नीचे होते मुझे आकर्षित कर रहे थे.

कादम्बिनी मेरी नज़रों को शायद पढ़ चुकी थी और इसलिए उसने अपने बटन बंद करने को हाथ बढ़ाया ही था.
मैंने उसको टोकते हुए कहा- ऐसे ज़्यादा हसीन लगती हो. इन्हें खुला रहने दो.

कादम्बिनी मुझे घूरती हुई बोली- और आपको कुछ भी करने की छूट दे दूँ?
मैं- तुमने कहां कुछ दिया है? ये तो मैंने ख़ुद ले लिया. तुम एक बार देने वाली तो बनो!

कादम्बिनी- आप पता नहीं मुझे क्या समझ रहे हो, पर मैं वैसी लड़की नहीं हूँ?
मैं- लड़की ऐसी हो या वैसी, पेली तो सब जाती हैं … और तुम भी कभी तो पेली जाओगी.

कादम्बिनी अचंभित चेहरे से मुझे घूरती हुई बोली- कैसी बात करते हो आप? अगर कोई कमरे में आ जाता तो मैं कहीं की नहीं रहती!
मैं- देख, यूँ तो मेरे कमरे में कोई भी ऐसे नहीं आता. फिर कोई आता तो तब की तब देखते. अब मेरी बात सुन, शाम को थोड़ा रुक जाना. मैं जाते हुए तुझे छोड़ दूँगा.

कादम्बिनी- मैं ख़ुद चली जाऊंगी. आपकी ज़रूरत नहीं है मुझे. कल देख लिया मैंने आपने कैसे छोड़ा था मुझे.
मैं आंख भींचते हुए बोला- कल तो तू लग ही पटाखा रही थी. चल आज कुछ नहीं करूँगा.

कादम्बिनी- मुझे आप पर रत्ती भर भी यक़ीन नहीं … और आपके साथ तो जाने का अब सवाल ही नहीं उठता. मैं अपने समय से ही निकलूँगी.

मैं- तुम मुझे थोड़ा अंडर-एस्टिमेट कर रही हो बेबी. चलो, शाम का क़िस्मत पर छोड़ते हैं … पर उसके बाद तुम कुछ नहीं कहोगी.

फिर मैंने कादम्बिनी को जाने को कह दिया.

दोस्तो, यह कड़क माल कादम्बिनी मेरे लंड के नीचे कैसे आई, इसका खुलासा आपको अगले भाग में हो जाएगा.

आपको मेरी यह कामबाबा सेक्स कहानी कैसी लग रही है, प्लीज जरूर बताएं.
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कामबाबा सेक्स कहानी का अगला भाग:

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