आंटी ने सिखाया-5

अमन वर्मा 2014-04-26 Comments

प्रेषक : अमन वर्मा
थोड़ी देर में आंटी हाँफते हुए बोल पड़ीं- मैं गई..!
और वो झड़ गईं, उनकी चूत की दीवारों से पानी झड़ने लगा। उनके रज से मेरा लण्ड पूरी तरह से भीग गया। मैं अभी भी ताबड़-तोड़ धक्के मार रहा था। मेरे हर धक्के पर ‘चॅप-चॅप’ की आवाज़ आ रही थी। कमरे में एसी चल रहा था मगर हम दोनों पसीने से भीग गए थे।
मैं धकापेल चुदाई कर रहा था। मैं तो आज जी भर कर आंटी को चोदना चाहता था। मगर मैं खुद को रोक ना पाया और मैं स्खलन के करीब पहुँच गया। मैं बहुत ज़ोर-ज़ोर से धक्का लगाने लगा।
दस-बारह धक्कों के बाद मेरे लण्ड ने मेरा साथ छोड़ दिया और मेरे लण्ड से वीर्य की बौछार निकाल पड़ी। मैंने अपना लण्ड पूरी ताक़त से उनकी चूत में झोंक दिया और फिर निढाल होकर उनके ऊपर ही गिर पड़ा। आंटी की साँसें बहुत तेज़ी से चल रही थीं और मेरी भी। फिर मैंने करवट ली और आंटी के बगल में ही लेट गया और अपनी उखड़ती साँसों पर काबू करने की कोशिश करने लगा।
हम दोनों 10-15 मिनट तक ऐसे ही पड़े रहे। फिर मेरी साँसें कुछ सामान्य हुई… मैंने आंटी की तरफ देखा उनकी आँखें बंद थीं और उनका सीना बार बार ऊपर-नीचे हो रहा था। उनके स्तन बहुत सुन्दर थे। स्तन ही क्या उनका पूरा जिस्म ही बहुत सुन्दर था। उन्होंने खुद को इस कदर संवारे रखा हुआ था कि अभी भी 20 साल की लौंडिया लगती थीं। मेरे हाथ उनके स्तन पर पहुँच गए और मैं उन्हें धीरे-धीरे सहलाने लगा।
फिर आंटी ने आँखें खोलीं और मेरी ओर देखा। हमारी आँखों ने एक-दूसरे की भाषा पढ़ी और मैंने आंटी को खींच लिया। हमारे होंठ एक-दूसरे से जुड़ गए और और फिर से चूमा-चाटी चालू हो गई। हम फिर से गर्म होने लगे और मैंने आंटी को अपने ऊपर खींच लिया। आंटी अब मेरे ऊपर आ गई थीं। आंटी ने अपनी कमर को ऊपर उठाया और मेरे लण्ड पर अपनी चूत सैट करके धीरे-धीरे बैठने लगीं।
ये मेरे लिए बहुत ही आनन्ददायक पल थे !
आंटी की चूत ने मेरे लण्ड को अन्दर लील लिया। अब आंटी धीरे-धीरे अपनी चूत को मेरे लण्ड पर ऊपर-नीचे करने लगीं। उसके बाद तो तेज़ी से उस पर उछलने लगीं और मैं भी नीचे से धक्का मारने लगा।
दस मिनट तक यह खेल चला, मगर आंटी फिर थक कर मेरे ऊपर ही लेट गईं। अब मैंने आंटी को सीधा किया और मैं उनके ऊपर आ गया। अब मेरी बारी थी। मैं ताबड़-तोड़ धक्का लगाने लगा। आंटी का पूरा बदन मेरे धक्के से हिल रहा था। यहाँ तक कि पूरा बेड हिल रहा था।
आंटी ने मेरी ओर देखा- बहुत भूखे लग रहे हो..!
“हाँ.. आज तो बहुत भूखा हूँ..”
“इतने ख़ूँख़ार हो गए हो..!”
“जब इंसान बहुत भूखा होता है तो वो ख़ूँख़ार हो ही जाता है..!”
“तो खाना पड़ा तो है सामने… खा लो..!”
“आज तो जी भर कर खाना है..!”
“तो आओ ना मेरे राजा… समा जाओ मुझमें..।”
“आज तो आपकी ऐसी चुदाई करूँगा कि याद रखोगी..!”
“मार डालोगे क्या? ऐसे जानवर की तरह चोद रहे हो..!”
“अरे मेरी प्यारी आंटी, आपको मार दूँगा तो फिर मेरा क्या होगा? आपको तो संभाल कर रखूँगा..।”
“बस एक बार और जी भर कर चोद लेने दो। बहुत दिनों से बेकरार हूँ…!”
“तो आ जाओ मेरे बेटे, मेरे प्यारे बच्चे… अपनी आंटी की चूत का मज़ा ले लो..!”
“आ जा मेरी चुड़क्कड़ चाची.. अपने बेटे के लण्ड से अपनी प्यास बुझा ले..!”
“आ जा मेरे लाल… मुझे ज़ोर-ज़ोर से चोदो… जी भर कर चोदो…मेरी चूत की प्यास बुझा दो..!”
“आज तो तुम्हें ऐसा चोदूँगा कि कम से कम एक हफ्ते तक चुदाई नहीं माँगोगी।”
“मैं तो बहुत प्यासी हूँ मेरे लाल… आज जी भर कर चोद दे मुझे..!”
“ये ले आज तो तेरी चूत की बैंड बजा दूँगा…!”
मैं ताबड़-तोड़ धक्के लगा रहा था। आंटी भी खुल कर मेरा साथ दे रही थीं। वो साथ ही साथ ज़ोर-ज़ोर की आवाज़ निकाल रही थीं..उनकी आवाज़ सुन कर तो मैं और ज़्यादा उत्तेजित हो रहा था। मैं ज़ोर-ज़ोर के धक्के लगा रहा था।
“कम ऑन… अमन..! फाड़ दे… मेरी चूत को आज… ज़ोर-ज़ोर से…! ज़ोर ज़ोर से मेरे लाल..!”
“ये ले जानेमन…! ये ले… और ज़ोर-ज़ोर से मारूँ क्या…!”
मैंने अपनी रफ़्तार और बढ़ा दी और ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगा रहा था। हम दोनों दो बार झड़ चुके थे इसलिए अभी हम दोनों में से कोई भी झड़ने की हालत में नहीं था। दोनों पसीने से लथपथ मगर कोई भी झड़ने का नाम नहीं ले रहा था। आज बहुत ही कड़ा मुकाबला था। दोनों थक गए थे मगर चरम सुख पाने के लिए व्याकुल थे।
थोड़ी देर बाद आंटी की चूत ने पानी छोड़ दिया… उनके मुँह से एक चीख निकली, “आह.. मैं तो गई रे…!”
मैंने अपनी रफ़्तार और तेज कर दी। उनकी चूत के पानी से मेरा लण्ड नहा गया और मैं भी खुद को ज़्यादा देर तक रोक नहीं पाया और मेरे लण्ड ने भी पानी उगल दिया। मैं आंटी पर निढाल हो कर गिर पड़ा।
आज हमने इतनी चुदाई की कि हमारे बदन में अब खड़े होने की भी ताक़त नहीं रही। काफ़ी देर तक हम यूँ ही पड़े रहे। पता नहीं कब मेरी आँख लग गई और मैं सो गया। मेरा लण्ड अभी भी उनकी चूत के अन्दर था। जब मैं जगा तो आंटी मेरे बगल में बैठी थीं और मुझे ही निहार रही थीं।
फिर मैं उठा और आंटी को सहारा दे करउठाया। फिर हम दोनों बाथरूम गए। वहाँ हमने साथ-साथ नहाया और नहाते हुए एक बार फिर से चुदाई हुई।
फिर हम दोनों बाहर आए। दोनों बुरी तरह से थक गए थे। फिर हमने थोड़ा खाया और आराम करने लगे। शाम को हम दोनों तैयार हो कर बाहर घूमने गए। हमने कुछ शॉपिंग की, आंटी ने अपने लिए कुछ कपड़े खरीदे और मैंने आंटी के लिए कुछ सेक्सी ब्रा और पैंटी पसंद कीं, आंटी ने उन सबको खरीद लिया।
मैंने आंटी के लिए कुछ शहर के हिसाब से कपड़े खरीदे जैसे कि जीन्स, टॉप, स्कर्ट्स, शर्ट्स, लंबी हील वाली शूज और सेंडल्स। हमने उस रात बाहर ही खाना खाया और घर वापस आ गए।
रात को हम दोनों इतने थके हुए थे कि बस ऐसे ही सो गए।
सुबह आंटी ने मुझे जगाया और बेड-टी दी। मैंने आंटी को बेड पर खींच लिया और चुम्बन करने लगा। एक बार फिर से हम दोनों गरम हो गए और फिर वही खेल शुरू हो गया। एक दौर पूरा होने के बाद मेरा मन दूसरा राउन्ड शुरू करने का था, तभी दरवाज़े की घण्टी बज गई।
“लगता है कि काम-वाली आ गई।”
“उफ़ओह्ह.. इसको भी अभी ही आना था..!”
फिर हम अलग हुए। काम वाली अन्दर आई और रसोई में चली गई। मैं भी नहाने धोने के लिए उठ गया। फिर मैं तैयार होकर कॉलेज चला गया। लंच-ब्रेक में ही घर वापस आ गया और आते ही आंटी को बाँहों में भर लिया।
हमारी जिनदगी बहुत ही मज़े में चल रही थी।
मैं चुदाई का एक महारथी बन चुका था। हम दोनों हर रोज एक-दूसरे से लगे रहते थे। यहाँ तक कि आंटी के पीरियड्स के दिनों में भी मैं चुदाई से बाज नहीं आता था। नतीजा यह हुआ कि आंटी को गर्भ ठहर गया, प्रेग्नेंट हो गईं।
आंटी को यह बात बाद में पता चली जब अगले महीने उनका पीरियड नहीं हुआ।
हम दोनों डॉक्टर के पास गए फिर डॉक्टर ने चेकअप करके बताया कि वो प्रेग्नेंट हो गई हैं। मैं तो बहुत खुश हुआ, मगर आंटी के चेहरे पर सन्नाटा सा छा गया और हम दोनों घर आए।
रात को आंटी मुझसे बोलीं- मुझे यह बच्चा नहीं चाहिए..!
“आंटी, यह बच्चा हमारे प्यार की निशानी है।”
“तुम समझ नहीं रहे अमन, मैं किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहूँगी।”
“क्यूँ आंटी? आपका भी तो मन था कि आप माँ बनती।”
“मगर यह बच्चा नाजायज़ है, मैं किसी से क्या कहूँगी..?”
“किसी से कहने की क्या ज़रूरत है आंटी..!”
“फिर क्या करूँगी? यह बच्चा कहाँ से आया? इसका बाप कौन होगा?”
“मैं हूँ इसका बाप।”
“क्या तुम इस बच्चे को अपना नाम दे सकते हो?”
“हाँ आंटी, मैं इस बच्चे को अपना नाम दूँगा।”
“तुम पागल हो गए हो अमन ! यह पाप है, मैं तुम्हारी आंटी हूँ… तुम्हारी माँ जैसी? दुनिया थूकेगी हम दोनों पर.. यह बच्चा नाजायज़ है, मैं इसे पैदा नहीं कर सकती।”
“मैं आपसे शादी करने को तैयार हूँ आंटी… मगर मुझे यह बच्चा चाहिए।”
“होश में आओ अमन… चुदाई और शादी दोनों अलग चीजें हैं। माना कि हम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं। हमारे संबंध भी हैं मगर हमारी शादी नहीं हो सकती… समझने की कोशिश करो।”
“मैं समझता हूँ आंटी… मगर आपको इस बच्चे को पैदा करना होगा। मेरी खातिर..! मैं हमारे प्यार की निशानी को दुनिया में लाना चाहता हूँ।”
“मगर मैं उसे पाल नहीं सकती। तुम मेरे बदन को जितना चाहे भोग लो मगर बच्चे की ज़िद ना करो।”
“यह बच्चा मुझे चाहिए… चाहे पैदा करके आप उसे ना रखो।”
“फिर मैं उस बच्चे का क्या करूँगी?”
“कुछ भी करो। अनाथ आश्रम में डाल देना।”
“हाँ.. यह कर सकती हूँ मैं तुम्हारे लिए। तुम्हें पता है कि एक माँ के लिए उसके बच्चे को अलग कर पाना कितना मुश्किल है।”
“और उस बच्चे को कोख में मारना भी पाप है। आप उसे धरती में आने दो। उसे अनाथ आश्रम में डाल देंगे। फिर थोड़े समय बाद उसे गोद ले लेना आप..!”
अभी आगे बहुत कुछ है लिखने के लिए।
कहानी बहुत लम्बी है और मैं आप लोगों को यकीन दिलाता हूँ कि आपको बहुत मज़ा आएगा।आपके विचारों का स्वागत है।
कहानी जारी रहेगी।

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