दोस्त की सेक्सी दीदी की चुदाई की कहानी- 1

(Dost Ki Didi Sex Kahani)

दोस्त की दीदी सेक्स कहानी में पढ़ें कि मैं अपने पड़ोस में रहने वाले दोस्त की दीदी को पसंद करता था, चोदना चाहता था. लेकिन उनकी शादी हो गयी थी.

नमस्कार दोस्तो, आप सभी को किंग का प्यार भरा नमस्ते. जिस तरह से आपने मेरी पिछली कहानी
दोस्त को दिलवाई सेक्सी लेडी की चूत
को प्यार दिया, उसका मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ.

आज भी मैं अपने जीवन की उसी सच्ची घटना की एक और कड़ी से आपको रूबरू करवाना चाहता हूँ. जिसमें मैंने अनुभव किया कि जो हम सिर्फ सोच पाते हैं, उसे हक़ीक़त में नहीं बदल पाते हैं.

दोस्त की दीदी सेक्स कहानी शुरू करने से पहले जो नए पाठक अन्तर्वासना से अभी जुड़े हैं, मैं उनसे सिर्फ ये ही कहना चाहता हूँ कि आप मेरी पहले की सेक्स कहानियों को पढ़ें. जिससे आप मेरे जीवन के एक पहलू को पहचान सकेंगे और समझ सकेंगे कि कोई आम लड़का भी सुबह शाम कैसे सेक्स कर सकता है.

ये बात तब शुरू हुई थी, जब देश में लॉक डाउन लग गया था और सब अपने घरों में कैद थे.

चूंकि मेरी मीटिंग्स में मेडिकल टीम साथ रहती थी, फिर भी मीटिंग्स में आने वालों की कमी आने लगी थी.
उस वक़्त मेरे पास मम्मी के सिवाये सेक्स करने के लिए कोई नहीं था क्योंकि जब मम्मी से सेक्स करने की बारी आती थी तो मम्मी खुद मुझे चुदाई करने से मना कर देती थीं.

चूंकि पापा भी घर में रहते थे, तो न दिन में और न ही रात में, मुझे अपनी मम्मी को चोदने का मौका मिल ही नहीं पा रहा था.

कभी कभी जब पापा बाथरूम में होते या मम्मी किचन में होतीं, तो वो जरा सा मौका मिलने पर मैं मम्मी की साड़ी उठाकर जल्दी से एक बार उनकी चुत में अपना लंड घुसा देता था.

पर इस जल्दबाजी वाले सेक्स में न ही मम्मी और न मैं, हम दोनों में से कोई संतुष्ट नहीं हो पा रहा था.

मम्मी चुदने से पहले नखरे भी बहुत करती थीं.
वो इसलिए होने लगा था क्योंकि एक बार जल्दी जल्दी में लंड मम्मी की गांड में घुस गया था और वो दर्द से चिल्ला उठी थीं, तो पापा पूछने लगे थे कि क्या हुआ.
उस वक्त मम्मी के पास कोई जवाब नहीं था.

तो मैंने हड़बड़ा कर लंड निकाला और मम्मी को झूठमूट का सहारा देते हुए आवाज दे दी थी कि कुछ नहीं हुआ पापा वो बिल्ली आ गई थी और मम्मी घबरा गई थीं.

उस दिन तो बच गए थे. फिर मैंने छाया (छाया बुआ की चुदाई के बारे में आप मेरी पहले की कहानियों में पढ़ सकते हैं) को फ़ोन किया.

छाया- क्या हुआ मेरे राजा … आज बहुत दिन बाद याद किया?
मैं- हां यार बुआ … तुम्हारे राजा का राजकुमार खड़ा ही रहता है. मम्मी कोरोना की वजह से बाहर जाने नहीं देने रही हैं. किसी से चुदाई न कर पाने से मेरा लंड फटने को तैयार है.

छाया- तो भाभी जी यानि अपनी मम्मी से काम चला लो न! तुम्हें तो इतनी अच्छी और परमानेंट जुगाड़ दे दी हैं … जो सदियों से लंड की प्यासी है. तुम भी उसकी प्यास नहीं बुझा पाओगे, तो और कौन प्यास बुझा पाएगा?

मैं- पापा घर पर हैं यार और मम्मी भी आजकल कुछ करने नहीं दे रही हैं.

छाया- क्या बताऊं मनोज, अभी पीहू (छाया की बेटी, उसके बारे में मैं आपको अगली कहानी में बताऊंगा) घर पर आयी हुई है और लॉक डाउन भी है, तो बाहर भी नहीं आ सकती. मन तो मेरा भी बहुत कर रहा है … पर अभी तो संभव नहीं है.

इस तरह छाया बुआ ने भी दिल तोड़ दिया था.

फिर किसी तरह मम्मी को समझा कर दो बार चुदाई कर ली, पर उसके बाद पूरे लॉक डाउन में मम्मी ने एक भी बार चुदाई करने ही नहीं दी.

धीरे धीरे लॉक डाउन खत्म हो गया और रक्षा बंधन का त्योहार आ गया.
ज़िन्दगी पहले की तरह आसान हो गयी थी.

पर सच बताऊ दोस्तो, तुम कितनी भी चूत चोद लो … पर कुछ चूत ऐसी होती हैं, जिनका नाम सुनते ही मेरा लंड खुद ब खुद खड़ा हो जाता है.

आज मैं उसी चूत के बारे में बताना चाहता हूँ.

मेरे पड़ोस में एक दीदी रहती थीं, उनका नाम वैशाली था.

सुना था कि दीदी एक नंबर की चुदक्कड़ हैं, पर कभी उन्हें उस मूड में देखा नहीं था. अट्ठारह साल की उम्र में ही उनके निम्बू खरबूज़ का आकार ले चुके थे. सूट सलवार के नीचे भी गांड ऐसी उठी हुई दिखाई देती थी कि मुँह और लंड दोनों जगह पानी आ जाता था.

जब मैं कॉलेज जाता था, तभी उनकी शादी हो गयी थी.

वैसे तो उम्र में मुझसे वो 6 साल बड़ी थीं, पर मैंने उनके नाम पर बहुत मुठ मारी थी. मैंने ही क्या हर इंसान ने जिसने भी वैशाली दीदी को देखा होगा, उन्हें दिमाग में रख कर एक न एक बार मुठ ज़रूर मारी होगी.

तो रक्षा बंधन की बात है. उस समय वो घर आई हुई थीं.
उस दिन मैं भी ऐसे ही बाहर टहल रहा था.

सामने से जब पीली साड़ी भी मैंने उन्हें देखा तो मैं देखता ही रह गया.
दीदी ने बिल्कुल टाइट ब्लाउज पहना हुआ था, जो उनके मोटे चुचों का दम घोंट रहा था. दीदी की पतली कमर पर जालीदार साड़ी की एक परत के नीचे गांड, जो अब पहले से कुछ और थोड़ी चौड़ी हो गयी थी, बड़ी ही दिलकश लग रही थी.

मेरे घर पर उनकी बात होती रहती थी, तो मुझे इतना तो पता ही था कि उनके मायके वाले और ससुराल वाले दोनों ही घरों की स्थिति ठीक नहीं है.
पर धनाभाव से भी उनकी खूबसूरती में रत्ती भर की कमी नहीं आई थी.

“दीदी नमस्ते ..”
उनके बराबर से निकलते हुए मेरे बोले हुए शब्दों ने उनका ध्यान मेरी तरफ आकर्षित किया.

“नमस्ते … कैसे हो?”
उनके शब्द और हाव-भाव उनका साथ नहीं दे रहे थे.

“अपने हाल तब बताऊंगा, जब आप मेरा नाम बताओगी. पहचान तो पा नहीं रही हो और हाल पूछ रही हो दीदी.”
मैंने ताना मारा.

तो उनके पतले होंठों ने एक हल्की सी मुस्कान बिखेरी, जो इतनी प्यारी थी कि मैं समझ गया था कि अगली चुदाई में लड़की को कितना रुलाऊंगा.
दीदी के चेहरे पर मुस्कान के साथ साथ एक अफ़सोस का भाव भी था, जो साफ़ बता रहा था कि उन्हें मेरा नाम नहीं मालूम.

“दीदी मैं मनोज हूँ … पूनम जी का लड़का.” मैंने उनकी ऊहापोह को खत्म करते हुए उन्हें बताया.

“कुछ ज़्यादा जल्दी बड़ा नहीं हो गया!” उन्होंने मेरे लोअर में फूले हुए तंबू की तरफ नज़र रखते हुए कहा.

ये मुझे ध्यान भी नहीं था कि उन्हें देख कर कब मेरा लंड खड़ा हो गया था.

“और कोई ऑप्शन भी तो नहीं था न दीदी.” ये बोल कर मैं और वो दोनों हंसने लगे.

ऐसे ही बात करते करते उनका भी घर आ गया और मेरा भी.
जाने का मन तो नहीं था. मेरा दिल कर रहा था कि अभी यहीं पटक कर इन्हें चोद दूं.
पर ऐसा नहीं किया जा सकता था और मुझे घर जाना पड़ गया.

उसके बारे में सोचते हुए सुबह से शाम हो गयी, पर समझ नहीं पा रहा था कि किस बहाने से उनके घर जाऊं और उनके साथ वक़्त बिताऊं.

दोस्तो, ये बात बिल्कुल तय है कि जो किस्मत में होता है, उसे कोई नहीं बदल सकता.

शाम को 6 बजे के आस-पास दीदी के भाई संजू की मुझे कॉल आयी.

“हैलो.” मैंने जल्दी से फ़ोन उठाकर बोला.

मेरे दिमाग को वैसे भी उसके घर जाने का कोई भी आईडिया नहीं आ रहा था, तो सोचा शायद इस फोन से काम बन जाए.

“यार मनोज तू कश्मीरी गेट तक चला जाएगा … थोड़ा ज़रूरी है, मेरी कार रास्ते में खराब हो गयी है.”

जब उधर से ये आवाज़ आयी, तो मेरे मन से उस समय ये ही आवाज़ आयी कि अपनी बहन की चुत दिलवा दे, फिर तू जहां जाने की बोलेगा, वहां चला जाऊंगा. पर ये भी तो नहीं बोल सकता था. इससे दोस्ती बना कर रखूंगा, तो हो सकता है किसी दिन बात करने का मौका मिल जाए … और शायद बात आगे बढ़ जाए.

मैंने सामने से पूछ लिया- वहां पर क्या काम है?

वो एक सांस में बोलता चला गया- यार, दीदी को छोड़ कर आना है, पता नहीं कार में क्या प्रॉब्लम हो गयी है. स्टार्ट ही नहीं हो रही है. मैं रिपेयरिंग वाले के पास हूँ, तू जल्दी से यहां आ जा. अच्छा नहीं लग रहा है यार, इधर बहुत से लोग है और दीदी साथ में हैं.

मैं समझ गया कि लोग इसकी दीदी की जवानी को ताड़ रहे होंगे इसलिए भैन के लौड़े को कुछ समझ नहीं आ रहा है.
खैर … दीदी की बात सुनकर अभी तक जिसके लिए मेरे दिल से गाली निकल रही थी, उसमें मुझे भगवान के दर्शन होने लगे.

मैं पांच मिनट में अपनी कार लेकर उसकी बताई हुई जगह पर पहुंच गया और जेब में 22,000 रुपए भी डाल लिए कि इम्प्रेस करने के लिए उसकी दीदी के सामने उसे दे दूंगा ताकि उसके बिना मांगे ही उस वजन हल्का कर दूं.

मुझे मालूम था कि इसके घर पर कड़की रहती है और ये कार को टैक्सी में चला कर काम चलाता है.

वहां पहुँच कर उसे मैंने 2000 रुपये दिए और बोला- तू गाड़ी ठीक करवाके घर चला जाना, मैं दीदी को छोड़ कर आ जाऊंगा.
वो काम बनता देख कर खुश हो गया और मेरे सामने सर हिलाने लगा.

मैंने उससे निपट कर उसकी बहन वैशाली दीदी को देखने लगा.
सच में दीदी इस समय बड़ी मस्त माल लग रही थीं.

मैंने उनकी तरफ इशारा किया कि मेरी कार में बैठ जाओ.
वो गांड मटकाती हुई मेरी कार में बैठ गईं और हम दोनों चल दिए.

मैं आज दिल से तो बहुत खुश था पर पता नहीं बोलने की हिम्मत क्यों नहीं हो रही थी.

“तुम अभी भी पढ़ाई करते हो या जॉब करते हो?”
बातचीत की शुरुआत दीदी ने की, पर खत्म मुझे करना था.

किस्मत ने मौका दिया था, तो आज कुछ भी करके मुझे वैशाली दीदी की चुत का गेम बजाना ही था.

“मैं क्रिकेट खेलता हूँ और उसमें ही फ्यूचर बनाना चाहता हूँ.”

मैंने भी दीदी से बातचीत करना शुरू की, पर उनके साथ हुई पूरी बात सुना कर आप लोगों को भी ज़्यादा बोर नहीं करूंगा.
मैं सीधे उन बातों पर आता हूँ, जो आपको सेक्स कहानी में मजा देंगी.

दीदी के साथ बातों बातों में मुझे पता चला था कि कार में 5000 का खर्च आना था और दीदी, संजू को 4000 रुपये देकर आई थीं.

ये जानकर मैंने अपने पर्स से 2000 के 2 नोट निकाल कर दे दिए जो उन्होंने लेने से मना कर दिया.

“संजू ने आपसे पैसे लिए थे न … तो आप ये रख लीजिए. मैं संजू से बाद में ले लूंगा.”
“संजू तो मेरा भाई है इसीलिए उसे दिए थे. तुम यदि मुझे अपनी बहन बना लो, तो तुमसे पैसे ले लूंगी.”

“रहने दो फिर … दोस्त समझ कर लेने हों, तो ले लो … नहीं तो रहने दो.”
“मैं क्यों किसी का अहसान लूंगी? सब मतलबी होते हैं. तब भी चलो मैं तुमसे ले भी लेती हूँ. मगर तुम सिर्फ ये बता दो कि तुम मुझे पैसे दे क्यों रहे हो, जबकि संजू मुझे वापिस कर देगा?”

“आई लव यू.”
ये कहते हुए मेरी गांड तो बहुत फट रही थी … पर मां की चूत दुनिया की, सोच लिया था कि जो होगा सो देखा जाएगा.

“जब तुम छोटे से थे, तब से जानती हूँ … बस ये नहीं सोचा था कि तुम्हें अपनी बात बोलने के लिए पैसों का सहारा लेना पड़ेगा … और वैसे भी तुम मुझसे बहुत छोटे हो.”

दीदी मेरी बात से गुस्सा नहीं हुईं, तो मेरी हिम्मत बढ़ गयी.
मुझे उन्हें रोहतक वाली बस में बैठाना था पर क्योंकि अभी अंतर्राज्यीय बस सेवा शुरू नहीं हुई थी, तो मैं दीदी को रोहतक तक छोड़ने जाने वाला था.

“उम्र में ज़रूर छोटा हूँ, पर दिल तो मेरा भी बहुत बड़ा है.” इस बार मैंने अपने खड़े लंड को जींस में एडजस्ट करते हुए बोला.

“चलो ठीक है … आई लव यू टू. अब बताओ आगे क्या करना है?”

पता तो हम दोनों को था कि क्या करना है … पर उनकी इस बात का मेरे पास अभी कोई जवाब नहीं था.

“कुछ नहीं … बस प्यार करता हूँ. कॉल पर बात करेंगे, साथ घूमेंगे, मस्ती करेंगे.” मैंने मासूम बनते हुए जवाब दिया.

“मुझे एक रात के दस हज़ार रुपए चाहिए … जो तुम्हें चाहिए, मैं दे दूंगी.” उन्होंने सीधे शब्दों में बात करना बेहतर समझा.

“पंद्रह हजार दूंगा.”

लाखों की चीज़ हज़ारों में मिल रही थी. तो मैंने भी बिना वक़्त गंवाए बोल दिया और उन चार हज़ार के अलावा दस हज़ार और दीदी के हाथ में रख दिए.

अब दीदी की चुत मेरे लंड की हो गई थी. दोस्त की दीदी सेक्स कहानी के अगले हिस्से में बताऊंगा कि दीदी की चुत चुदाई की कहानी में क्या क्या हुआ. आप मेल जरूर कीजिएगा.

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दोस्त की दीदी सेक्स कहानी का अगला भाग: दोस्त की सेक्सी दीदी की चुदाई की कहानी- 2

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