मैं अपने जेठ की पत्नी बन कर चुदी -13

(Main Apne Jeth Ki Patni Ban Kar Chudi- Part 13)

नेहा रानी 2016-02-23 Comments

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पड़ोसी चाचा से छत पर चुदी

अन्तर्वासना के पाठकों को आपकी प्यारी नेहारानी का प्यार और नमस्कार।
अब तक आपने पढ़ा..

तभी मुझे याद आई नाईटी तो मैं सूखने को डाली थी.. वही पहन लेती हूँ।
मैं यहाँ पति का जवाब देना उचित समझ कर बोल पड़ी- हाँ.. मैं यहाँ हूँ.. आई..!

यह कहते हुए मैं नाईटी लेने को लपकी और नाईटी लेकर बगल में होकर पहन कर.. मैं अपने घबराहट पर कंट्रोल कर रही थी कि पति सामने आ गए।

‘तुम यहाँ क्या कर रही हो.. और यह क्या.. तुम्हारे कपड़े तो कमरे में पड़े है.. और तुम यहाँ नाईटी में क्या कर रही हो? कोई तुमको इस हालत में देख लेता तो..?’
‘मैं यहाँ चुदने आई थी.. पर यहाँ तो परिन्दा भी नहीं है, जो मेरी चुदाई कर सके.. शायद मेरी किस्मत में आज चुदाई लिखी ही नहीं है।’
मैं पति से जानबूझ कर थोड़ा गुस्सा होकर बोली।

‘नहीं मेरी जान.. मैं ज्यादा गरम हो गया था.. इसलिए तुम्हारी चूत की गरमी सहन नहीं कर सका और मेरा पानी निकल गया.. पर तुम इस समय यहाँ से नीचे चलो.. कोई तुम्हारी जिस्म को देख लेगा तो मेरे ना रहने पर तुम्हारा देह शोषण कर बैठेगा और फिर मेरी बदनामी होगी सो अलग.. कि मेरी वाईफ नंगी ही छत पर घूमती है.. उसके जिस्म की आग नहीं बुझ रही है।’

अब पति मुझको पकड़ कर मनाते हुए नीचे लेकर चल दिए और मैं भी ज्यादा नखरा ना करते हुए पति के बाँहों में चिपक गई और नीचे आ गई, फिर मैंने रसोई में जाकर चाय बनाई।

चाय पीकर पति तैयार होकर आफिस के लिए निकल गए, जाते हुए मुझे समझाते गए- तुम अपने कपड़े ठीक कर लो और मैं यहाँ से जाते ही संतोष को भेजता हूँ तुम उससे बात करके डिसाईड कर लेना कि क्या करना है और मुझे फोन करके बता देना।

फिर पति मेरी चूचियों को दबाते हुए किस करके बोले- जान आज रात तुम्हारी चूत की सारी गरमी निकाल दूँगा.. वादा है.. अब तो हँस दो।
और मैं भी मुस्कुराते हुए पति के होंठों का किस करने लगी।

पति के जाने के बाद मैं मुख्य दरवाजा बन्द करके बेडरूम में आ गई। मैंने नाईटी को निकाल कर एक दूसरा टू-पीस की नाईटी पहन ली।
नाईटी के अन्दर सिर्फ ब्रा पहनी.. चूत बिना पैन्टी के ही रहने दी। फिर मैं बेड पर बैठ कर कुछ देर पहले बीते हुए पलों को याद करने लगी।
मैं भी क्या बेहया बन गई थी.. अपने पड़ोसी वो भी एक बुड्डे के लण्ड से मैं अपनी चूत लड़ा बैठी.. पर जो भी हो जैसा भी हो.. साले का लण्ड मस्त है.. और मैं तो गई भी नहीं थी.. वही खुद मेरे पास आया है.. इसका मतलब उसे भी एक चूत की आवश्यकता है। आज कुछ देर और पति नहीं जागे होते और ऊपर छत पर नहीं आते तो मैं आज पड़ोसी के लण्ड से चूत चुदवा कर संतुष्ट हो चुकी होती।

जब इतना सब हो गया तो अब शरमाना क्या.. मैं यही सोचते हुए नाईटी ऊपर करके बुर सहलाने लगी। मैंने जैसे ही बुर पर हाथ रखा.. मेरी गरम बुर एक बार फिर चुदने के लिए चुलबुला उठी, मेरी बुर से गरम-गरम भाप निकल रही थी।

अपने हाथों से बुर को रगड़ती रही.. पर मेरी बुर चुदने के लिए फूल के कुप्पा हो रही थी। मैं कुछ देर यूँ ही चूत और चूचियों से खेलती रही।
लेकिन मेरा मन शान्त होने के बजाए भड़कता रहा और मैं एक बार फिर से डिसाईड करके बुड्ढे से चुदने के लिए छत पर चली गई।

पर छत पर कोई भी नहीं था.. मैं कुछ देर चाचा का इन्तजार करती हुई.. इस आशा में एक हाथ बुर में डाल कर सहलाती रही कि जैसे हर बार अचानक से आकर मुझे दबोच लेते हैं वैसे ही फिर आकर मुझे दबोच कर फिर से मेरी चूत की भड़कती ज्वाला को शान्त कर देंगे।

काफी देर हो गई और शाम होने को हुई पर चाचा ना आए और ना ही दिखे।
चाचा के ना आने से मेरा मन बेचैन हो गया और मैं वासना के नशे में चाचा को देखने के लिए दीवार के उस पार गई और मैं धीमी गति से चारों तरफ देखते हुए मैं छत पर बने कमरे की तरफ गई।

कमरे के किवाड़ बंद थे, मैं कुछ देर वहाँ रूकी फिर दरवाजे पर जरा जोर दिया.. दरवाजा खुलता चला गया। मैं यह भी भूल गई कि छत और छत पर बना कमरा दूसरे का है। यहाँ कोई हो सकता है.. पर मैं चूत की काम-ज्वाला के नशे में सब कुछ भूल चुकी थी।
मेरी प्यासी चूत को लण्ड चाहिए था.. बस यही याद ऱह गया था।

जैसे ही दरवाजा खुला.. अन्दर कोई नहीं था, एक चौकी थी जिस पर गद्दा लगा था और एक पानी का जग.. गिलास रखा था। सामने हेंगर पर कुछ कपड़े टंगे थे जो चाचा के ही लग रहे थे।
मैं पूरे कमरे का मुआयना करके वहाँ चाचा को ना पाकर मायूस होकर कमरे से बाहर आ गई। फिर ना चाहते हुए मैं भारी कदमों से अपनी छत की तरफ बढ़ी ही थी कि तभी पीछे से चाचा के पुकारने की आवाज आई- बहू यहाँ क्या कर रही हो.. और किस को ढूँढ़ रही हो?

अभी मैं चाचा की तरफ घूमी भी नहीं थी.. चाचा की तरफ पीठ किए खड़ी रही। चाचा की आवाज मेरे नजदीक होती जा रही थी और जैसे-जैसे चाचा नजदीक आते जा रहे थे.. यह सोच कर मेरी चूत पानी-पानी हो रही थी कि अब मैं हुई चाचा की बाँहों में.. अब वह पीछे से मुझे पकड़ कर अपने शरीर से चिपका कर मेरी गुदा में अपना लण्ड गड़ाएंगे।

कुछ ही देर में चाचा ने खुली छत पर मुझे बाँहों में भर कर पूछा- किसी को खोज रही हो क्या जान?
चाचा एक हाथ मेरी गदराई चूची पर आ गया और उन्होंने दूसरा हाथ मेरी चूत पर ले जाकर दबा दिया।
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‘आहह्ह्ह्…सीईईई.. तुम्म म्म्म्म बह्ह्ह्हुत जालिम हो.. एक तो मेरे जिस्म मेरी चूत में आग भड़का दी और ऊपर से पूछते हो कि मैं किसे ढूँढ रही हूँ। छोड़ो मैं आपसे नहीं बात करती.. आपको पता नहीं है कि मेरी प्यासी चूत इतनी रिस्क लेकर किसे खोज रही है। नीचे पति थे.. लेकिन में आपका लण्ड बुर में फंसाकर खड़ी थी और इस समय भी मैं यहाँ आपके लौड़े का और बुर का संगम कराने को खुद ही रिस्क लेकर इन कपड़ों में पड़ोसी के छत पर हूँ। जैसे आपने मुझे एकाएक आवाज दी है.. वैसै ही कोई और होता तो बदनामी मेरी होती.. आपकी नहीं..’

और मैं चाचा जी से छिटक कर दूर हो गई.. पर चाचा मेरे करीब आकर बोले- मैं मजाक कर रहा था.. मुझे पता है कि तुम मुझे अपनी चूत को चुदवाकर अपनी प्यास बुझावाने के लिए खोज रही थी.. चलो कमरे में चलते हैं।
फिर चाचा मुझे खींचते हुए कमरे में लेकर चले गए और मुझे लेकर चौकी पर बैठ गए।

‘यहाँ कोई और भी आ सकता है ना?’
‘नहीं आज कोई नहीं है.. सब एक शादी में गए है और दो दिन अभी कोई नहीं आएगा.. इसलिए मैं तुमको यहाँ लाया.. नहीं तो मैं पागल नहीं हूँ कि तेरी और अपनी बदनामी करवाऊँ।’

‘लेकिन आप पागल हो और आप दूसरों को भी पागल कर देते हो।’
‘वो कैसे बहू..?’
‘आप चूत के लिए पागल हो कि नहीं?’
‘हाँ बहू.. तुम सही कह रही हो.. पर मैं दूसरों को कैसे पागल करता हूँ?’
‘अपना लण्ड दिखाकर.. जैसे मैं आपके लण्ड देख कर उसे अपनी चूत में लेने के लिए पागल हो गई हूँ।’

चाचा हँसने लगे और मुझे वहीं चौकी पर लिटा कर मेरी नाईटी को ऊपर कर दी।
मेरी फूली हुई चूत को देख कर बोले- बहुत प्यासी है क्या बहू?
‘हाँ चाचा..’

मेरे ‘हाँ’ करते चाचा ने मेरी बुर पर मुँह लगा कर मेरी जाँघों को सहलाते हुए मेरी बुर को किस कर लिया।
मैं अपनी बुर पर चुम्मी पाकर सीत्कार कर उठी ‘ओह्ह्फ्फ ऊफ्फ्फ आई ईईसीई.. आहह्ह्ह्..’

पर चाचा मेरी चूत के चारों तरफ अपनी जीभ घुमा कर मेरी प्यास को भड़काने में लगे हुए थे। चाचा अपनी जीभ को लपलपाते हुए चूत के छेद में जीभ डाल कर मुँह से मेरी चूत मारने लगे।
मेरी गरम चूत पर चाचा की जीभ चटाई से मैं अपनी सुधबुध खोकर सिसकारी लेने लगी ‘आहह्ह आहह मेरे राजा.. यसस्स्स स्स्सस्स.. चूसो मेरी चूत को अहह.. चाचा अपने मोटे लण्ड से मेरी चूत चोदो.. मैं प्यासी हूँ.. मेरी प्यास बुझा दे.. आहह्ह्ह्.. चाटो मेरी चूत को.. आहह्ह्ह् सीईईई..’
मैं सीत्कार करती हुई चूत उछाल कर चुसवाए जा रही थी।

तभी चाचा चूत पीना छोड़कर खड़े हो गए और अपनी लुंगी को निकाल कर फेंक दिया। उन्होंने मुझे इशारे से अपने लण्ड को चूसने को कहा और मैं चाचा के बम पिलाट लण्ड को मुँह में लेकर सुपारे पर जीभ फिरा कर पूरा लण्ड गले तक लील गई। चाचा भी मस्ती में मेरे मुँह में ही लण्ड पेलने लगे ‘ओह्ह बेबी.. आह.. चूस बेबी.. मेरे लण्ड को.. आहसीईई.. मैं भी प्यासा हूँ बेबी.. चूत के लिए.. एक तुम्हारी जैसी प्यासी औरत की जरूरत है.. आहह्ह सीईईई.. बेबी.. मैं तुम्हारी गरम चूत का गुलाम हूँ.. बेबी ले.. मेरे लण्ड को.. अपने मुँह में..’

मुँह चोदते हुए चाचा घपाघप लण्ड मेरी मुँह में पेलते रहे और मैं भी काफी देर चाचा के लण्ड से खेलती रही। फिर समय का ख्याल करके मैं चाचा का लण्ड मुँह से निकाल कर चौकी पर लेट कर चूत फैला कर चाचा के मोटे लण्ड को लेने के लिए अपनी छाती मींजने लगी।
चाचा मेरी चूत को जल्द से जल्द पेलना चाह रहे थे, चाचा मेरे पैरों के पास बैठकर मेरी जाँघ पर हाथ फेरकर मेरे ऊपर छा गए।
चाचा ने मेरी चूत अपना लण्ड लगा कर एक ही करारे धक्के में अन्दर धकेल दिया। मैं चाचा के लण्ड के इस अचानक से हुए हमले को सहन नहीं कर सकी ‘आआआ आअहह.. ओह.. चाआआआचाजी.. मेरी बुर.. आह.. थोथ्थ्थ्थ्थोड़ा.. धीमे पेलो.. आह..’

फिर चाचा मेरी चूची को मुँह में भर कर दूसरा शॉट लगा कर अपने बचे-खुचे लण्ड को पूरा अन्दर करके मेरी बुर की चुदाई शुरू कर दी। मैं भी चाचा के लण्ड को बुर उठा अन्दर ले रही थी।
चाचा मेरी चिकनी चूत में लण्ड फिसला रहे थे और मेरी चूचियों को मसकते हुए शॉट लगाते जा रहे थे।
चाचा के हर धक्के से मेरी चूत में नशा छा जाता। चाचा का लंबा, मोटा लण्ड एक ही बार में दनदनाता हुआ मेरी फूली गद्देदार चूत में घुसता चला जाता।

इस तरह से तो आज तक मेरे पति से भी मुझे ऐसी चुदाई का सुख नहीं मिल पाया था। इसलिए आज मैं इस मजे को जी भरकर लेना चाहती थी। मैं हर धक्के के साथ अपनी कमर उचका कर चाचा के लण्ड की हर चोट चूत पर ले रही थी। मेरी चुदाई के हर ठप्पे से मैं चुदने के लिए बेकरार होती जा रही थी।

तभी मेरे मोबाईल पर रिंग बज उठी।
मैं चाचा को रुकने का इशारा करके फोन उठाकर बोली- हैलो?
‘कहाँ हो तुम.. आधे घण्टे से संतोष गेट और बेल बजा रहा है..’
‘मैं तो यही हूँ.. शायद सो गई थी.. आप फोन रखो.. मैं देख रही हूँ।’

यह कह कर मैंने फोन कट कर दिया।
मुझे तो संतोष के आने का ध्यान ही नहीं रहा।
मेरे फोन रखते चाचा ने चूत चोदना चालू कर दिया।
मैं चाचा से बोली- हटो.. मैं बाद में आती हूँ..

पर चाचा ताबड़तोड़ मेरी चूत मारते हुए मेरी चूत में झड़ने लगे। चाचा को मेरी बातों का एहसास हो चुका था।
मैं किसी तरह चाचा को ढकेल कर प्यासी और वीर्य से भरी चूत को अनमने से ना चाहते मैं अपनी छत पर जाकर सीढ़ी से नीचे उतर गई।
मैंने जाकर गेट खोला.. सामने एक नाटे कद का काला सा लड़का खड़ा था। मैं चुदाई के कारण कुछ हांफ सी रही थी और मेरी जाँघ से वीर्य गिर रहा था।

कहानी कैसी लग रही है.. जरूर बताना और हाँ.. आप लोग मुझे बहुत प्यार करते हो.. मुझे पता है.. पर आप लोग अंतर्वासना पर आकर मेरी कहानी प्लीज लाईक और कमेन्ट जरूर करें ताकि मुझे प्रोत्साहन मिले और मैं आपका अधिकाधिक मनोरंजन कर सकूँ।
आपकी नेहा रानी..
कहानी जारी है।
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