मकान मालकिन की रण्डी बनने की चाहत-2

(Makaan Malkin Ki Randi Banne Ki Chahat- Part 2)

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कहानी के पहले भाग
मकान मालकिन की रण्डी बनने की चाहत-1
में मैंने आपको बताया था कि मेरे मकान मालिक की दूसरी बीवी अपने पति की बेरुखी से खुश नहीं थी. उसकी जवानी जल रही थी. वह एक मर्द के स्पर्श के लिए जैसे तड़प रही थी. उसकी इस तड़प का अहसास मुझे भी था लेकिन मेरी बीवी के डर से मैं कुछ कर नहीं पा रहा था.

कुछ दिनों के बाद दुर्गा पूजा की छुट्टी होने वाली थी स्कूल में। घर से फ़ोन आया कि मैं वाइफ और अपने बेटे को घर पहुँचा दूँ। मैं स्कूल से एक दिन की छुट्टी लेकर वाइफ और बेटे को घर पहुँचाकर वापस आ गया।

चूंकि अब अकेला था मैं तो अब बीवी की कमी खलने लगी। बसंती के बारे में भी सोचता था लेकिन आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं होती थी। फिर एक दिन की बात है कि मैं स्कूल से आकर दोपहर में कपड़े धो रहा था।

मकान मालिक उस टाइम घर में नहीं था और इसी का फायदा उठाकर बसंती भाभी ब्लाउज और पेटीकोट पहने मेरे पास पहुँच गई और बोली- क्या हो रहा है सर, कपड़े धो रहे हैं क्या?

मैं पहले तो कुछ नहीं बोला और ना ही मैंने उसकी तरफ आँख उठाकर देखा।
उसने फिर से वही बात दोहराई. लेकिन मैं फिर भी चुप रहा। तब वो मेरे सामने आकर बैठ गई और बोली- गुस्सा हैं क्या सर जी? नहीं देखना है मेरी तरफ?

मैंने अपनी नज़र को थोड़ा सा ऊपर उठाकर देखा तो अवाक् रह गया। साली के आधे से ज्यादा स्तन उसके ब्लाउज से बाहर की ओर दिख रहे थे. आप यू समझें कि उसके ब्लाउज से केवल उसके स्तनों के निप्पल ही ढके हुए थे.

वो मेरे सामने अपने स्तनों को खुला रख कर मुझे आमंत्रण दे रही थी कि आ जाओ और अपनी इस बसंती के स्तनों को अपने हाथों से आटे की तरह गूंथ दो।
“कहां ध्यान है सर आपका? मैं आपसे कुछ बोल रही हूँ। थोड़ा ध्यान मेरी बात पर भी दीजिये।”

तब मैंने उसकी तरफ देखा और उसका हाथ पकड़ कर बोला- भाभी, उस दिन के लिए सॉरी। न जाने उस दिन मैंने आपको क्या क्या बोल दिया था।

भाभी बोली- माफ तो हम आपको कर देंगे लेकिन एक शर्त पर ही करेंगे। अगर आप चाहते हैं कि मैं आपको माफ कर दूं तो आज आप फिर से वही सब बोलिये जो उस दिन बोल रहे थे।

उसकी बात सुनकर मेरे अंदर कुछ हिम्मत आई और अब मैं समझ चुका था कि ये आज मेरे लंड के तले जरूर चुदेगी. साथ ही एक डर भी था कि अगर इसने मेरी बीवी को बता दिया तो लेने के देने न पड़ जायें.

फिर भी मैंने थोड़ा साहस किया और बोला- भाभी उस दिन के लिए सॉरी। मुझे नहीं पता क्या हो गया था उस दिन मुझे. मैंने आपके साथ गलत व्यवहार कर दिया। एक्चुअली आप इतनी कमसिन हो कि पता ही नहीं चलता है कि आप तीन बच्चों की माँ हो। इसी कारण मेरे से वो हरकत हो गयी। बुरा तो उस दिन आपको बहुत लगा होगा लेकिन इसमें मेरा क्या दोष भाभी… आप ही बताओ? आपकी सुंदरता और मस्त हुस्न मेरे होश उड़ा दिए थे जिस कारण ऐसा हो गया था और मैंने आपको पकड़ लिया था। प्लीज भाभी उस दिन वाली बात किसी को नहीं बताइयेगा और खासकर मेरी वाइफ को तो बिल्कुल नहीं बताना वरना मैं कहीं का नहीं रहूंगा।

बसंती मेरी बातों को सुनकर मुस्कराते हुए बोली- बड़े डरपोक हैं जी आप तो? और मैं आपके बारे में कुछ और ही सोच रही थी। खैर जाने दीजिए। आपकी वाइफ यहां नहीं है क्या?
मैंने कहा- नहीं भाभी, वो तो घर गई हुई है, क्यों? मैंने पूछा।

वो बोली- बस यूँ ही। बात एक्चुअली में यह है कि मेरे हस्बैंड भी बाहर गए हैं और मुझे चिकन खाने का मन कर रहा था तो सोचा आपको भी इन्वाइट कर लूं। आप क्यों अकेले खाना बनाएंगे? अगर आप मार्किट से चिकन लेते आइयेगा तो मुझे जाने की जरूरत नहीं पड़ती।

मैनें कहा- ठीक है भाभी, लेकिन शाम में लाना है ना?
उसका हां में जवाब आया। इस बातचीत के दौरान मेरी नज़र उसके स्तनों पर ही थी जिस कारण मेरा लंड अपने पूरे जोश में टनक रहा था मेरी पैंट के अंदर और जिसे शायद बसंती भी समझ चुकी थी।

वो मेरे अन्दर की आग को और भड़काने के लिए मेरे सामने ही झुक कर बैठ गई जिससे उसके गोरे और जवानी के जाम से भरे स्तन मेरी आंखों के सामने चोटियों की तरह खड़े होकर मुझे आमंत्रण दे रहे थे, दबोचने के लिए… मसलने के लिए!

मेरी नज़र बसंती के रसभरे गुदाज और गोरे स्तनों से हट नहीं रही थी।
वो बोली- कहां नज़र है आपकी? मैं यहाँ हूँ सर। मुझे ऐसा लग रहा है कि आप कहीं और घुसने की सोच रहे हैं। क्यों सही बोल रही हूं ना?

तब मैं बोला- भाभी जी, आप प्लीज यहां से जाइये नहीं तो मेरे से कुछ गलत हरकत हो जाएगी, अगर ऐसा हुआ तो फिर आप बुरा मान जाओगी। इसलिए आप अभी जाओ भाभी। प्लीज… बाद में मिलते हैं, ठीक है।

मेरे इतना बोलने से उसका चेहरा थोड़ा उतर सा गया लेकिन वो वहां से चली गई ये बोलते हुए कि शाम को चिकन लेते आइयेगा, मेरे से पैसे लेकर। किसी तरह से शाम हुई और मैं भाभी के पास गया पैसे लाने। दरवाज़े पर जब मैंने दस्तक दी तो भाभी उस वक्त शायद सोई हुई थी और दरवाज़ा खुला हुआ था। बच्चे नीचे खेल रहे थे।

अंदर से कोई आवाज नहीं आने पर मैं दरवाजा खोल कर अंदर चला गया कि देखें भाभी क्या कर रही है। आवाज लगाते लगाते मैं सीधा उसके बेडरूम में घुस गया। बेडरूम का नज़ारा देखकर तो मेरे होश ही उड़ गए।

भाभी जी मस्त होकर सो रही थी और उसकी चिकनी टांगों से उसका पेटीकोट जांघ तक चढ़ा हुआ था और उसके ब्लाउज का बटन खुले होने के कारण उसके गोरे व पुष्ट स्तन ब्लाउज के अंदर से ही कयामत ढहा रहे थे।

मेरा लंड उस नज़ारे को देखकर बहकने लगा और लोहे के सरिये के जैसा कड़क हो गया। मेरा मन उसे दबोच कर एक ही झटके में अपना 8 इंच लंबा लंड उसकी चूत में पेल देने का कर रहा था. किंतु साथ ही फिर डर भी लगा कि कहीं ये चिल्ला न दे और यह सोच कर अपने लंड को अपने हाथ से सहलाते हुए मैं भाभी को उठाने लगा।

एक बार उसने अंगड़ाई ली और कुछ बुदबुदाई। जब मुझे लगा कि ये ऐसे नहीं उठेगी तो हिम्मत करके मैंने उसकी गोरी व चिकनी बांहों पर हाथ रखकर जोर से हिलाया।

तब जाकर वो नींद से उठी और उठते ही बोली- काहे परेशान कर रहे हैं? सोने दीजिये न कम से कम चैन से। आपसे तो कुछ होता नहीं है। थोड़ी देर उछल कूद कर लिए और पलट कर सो गए। भगवान जाने कैसे ये बच्चे हो गए आपसे। न रात में चैन, न दिन में आराम।

वो नींद में शायद ये सोच रही थी कि उसका पति उसे उठा रहा है. तब मैं बोला- भाभी, ये मैं हूँ सर।
तब वह हड़बड़ा कर उठकर अंगड़ाई लेते हुए बोली- आप कब आये सर?
मैंने कहा- हो गयी लगभग 15 मिनट यहां आए हुए और तब से मैं आपको उठा रहा हूं।

मेरी नज़र उसके संतरों पर ही अटकी हुई थी जिसे बसंती भी भांप गई थी और इसी कारण उसने एक बार फिर से अपने दोनों हांथों को उठा कर जोरदार अंगड़ाई ली जिससे उसके स्तन एकदम तनकर खड़े हो गए थे।

उसके गुदाज स्तनों को देखते हुए मैं बोला- भाभी, बिस्तर छोड़ कर उठिये अन्यथा हम से कुछ हो जाएगा।
वो बोली- क्यों, क्या कीजियेगा? इरादा नेक है ना आपका?
तब मैं उसके बेड पर उसके बगल में बैठते हुए बोला- भाभी, आपके बच्चे नीचे खेल रहे हैं जिसके कारण हम अपने आप को कंट्रोल किये हुए हैं वरना अभी तक आप बोल्ड हो चुके होते।

मेरी ओर हैरानी से देख कर उसने कहा- सच्ची में क्या सर? है आपके अंदर इतना दम?
इतना बोल कर वह मेरी जांघ पर हाथ रखते हुए बिस्तर से नीचे उतरी और हंसते हुए बोली- आप क्या कीजियेगा। आप तो अपनी बीवी से डरते हैं।

उसकी इस तीखी बात ने मुझे अंदर तक जला दिया और मैंने बिस्तर से उठकर उसका दाहिना हाथ पकड़ा और उसे अपनी बांहों में दबोचा और बोला- भाभी, दम तो इतना है कि सारा रस निचोड़ लेंगे आपका एक जोरदार झटके में। मगर मुझे अभी चिकन लाना है, उसके पैसे लेने आया हूँ।

तब बसंती बोली- रुकिए देती हूं।
यह बोल कर वह उसी तरह पेटीकोट और ब्लाउज में ही उसी कमरे में रखी गोदरेज की अलमारी की तरफ गई और पैसे निकाल कर उसे अपने ब्लाउज के अंदर ठूसकर मेरी तरफ घूम कर बोली- ले लीजिए पैसे और जाकर चिकन लेते आइये।

मैंने पूछा- कहां है पैसे भाभी? जल्दी कीजिये न… देर हो जाएगी फिर। कल सुबह स्कूल भी जाना है मुझे।
बसंती ने अपने गुदाज स्तनों की तरफ अपनी उंगलियों से इशारे करते हुए कहा- पैसे यहाँ हैं। अपना दम दिखाइए और पैसे ले लीजिए।

मैंने कहा- क्या भाभी! आप भी ना हद करते हैं। मजाक मत कीजिये. दीजिये न पैसे। प्लीज़!
मुझे चिढ़ाते हुए वो बोली- बस यही दम है आपमें? बड़ा चले हैं मेरा रस निकालने!

यह बोल कर बसंती हँसने लगी। मुझे बड़ी चिढ़ लगी यह सुनकर और मैंने एक बार फिर उससे रिक्वेस्ट की पैसे देने के लिए लेकिन उस पर कोई फर्क नही पड़ा।

तब मैंने उसे धकेलते हुए उसकी छातियों को दीवार से सटाकर उसके बायें हाथ को मरोड़कर उसकी पीठ से चिपकाया और अपना दूसरा हाथ उसके ब्लाउज के अंदर घुसाकर उसके निप्पल को पकड़ कर जोर से मसल दिया और अपना लंड उसके चूतड़ों में सटा दिया।

मेरा लौड़ा जो पहले से ही टनटना रहा था उसके चूतड़ों की दरार में सट कर जैसे उसको खोलना चाह रहा था. ऐसा मन किया कि उसकी गांड में लंड पेल दूं यहीं पर, इतनी मस्त मुलायम और उठी हुई गांड थी उसकी. मगर मैंने किसी तरह से खुद को रोका.

उसकी गांड में लंड लगाए हुए ही मैंने उसकी चूचियों को दबाते हुए उसके ब्लाउज में से पैसे निकाल लिये और उसके उरोजों को हाथों से जोर से दबोचकर बोला- और दम देखना है या अहसास हो गया कि मेरे अंदर कितना दम है?

अब मैं उत्तेजित हो चुका था और अपने जलते हुए होंठों को मैंने बसंती की सुराही जैसी गर्दन पर रख दिया. उसकी गर्दन पर मैंने एक गर्म चुम्बन कर दिया. उधर बसंती के अंदर आग लग गयी थी. वह मादक सिसकारियां भरने लगी थी.

मैंने उसको वहीं पर छोड़ दिया और मुड़कर दरवाजे की ओर चला. बसंती ने पीछे से आकर मुझे पकड़ लिया.

कहानी जारी रहेगी. मेरी सेक्स कहानी पर अपनी राय आप नीचे दी गयी ईमेल आईडी पर मेल करें. अपनी प्रतिक्रयाएं आप कमेंट बॉक्स में भी दे सकते हैं.
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