साजन का अधूरा प्यार-1

प्रेषक : साजन

आपके बहुत से मेल भी आये और मैंने सभी मेल के जवाब भी दिए और कमेंटस भी बहुत आये जिनमें कुछ लोगों को मेरी पहली कहानी ‘चांदनी रात में’ को बहुत सराहा, और कुछ को वो कहानी झूठी लगी। पर मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरी पहली कहानी का एक-एक शब्द बिलकुल सही और सच्चा था।

यह मेरे जीवन की सबसे पहली घटना है, अगर मेरी कहानी की नायिका सुधा पढ़ रही हो, तो उससे मैं विनती करता हूँ कि एक बार मुझे मिल जरूर ले, मैं बस उसको एक बार देखना चाहता हूँ।

यह बात उस समय की है जब मैं 18 साल का था, हमारे पड़ोस में एक नये किरायेदार आये, उनके परिवार में एक अम्मा जिसकी उम्र 60 से 65 साल की होगी और उनके तीन बेटे और एक लड़की थी। उनके एक लड़के की शादी हो गई थी और वो दूसरी जगह रहता था, वो कभी कभार ही आता था। हमारे घर के पास होने की वजह से मैं भी उनके घर चला जाता था, अम्मा कुछ काम बताती तो मैं कर दिया करता था।

एक दिन अम्मा की पोती उनके घर रहने के लिए आई कुछ दिन के लिए, मैं अम्मा के घर जाता रहता था तो मेरी उससे मुलाकात हो गई, वो दिखने में साधारण सी थी, रंग भी सांवला ही था, कद भी कोई 5 फ़ीट था, उसका नाम सुधा था, मुझे वो लड़की कुछ ख़ास नहीं लगी।

मेरे ऐसे ही दिन कट रहे थे पर हम दोनों अब दोस्त बन चुके थे तो सुधा और मैं दोनों ही लूडो खेला करते थे शाम के समय। मैं अक्सर सुधा से हार ही जाता था क्योंकि मुझे लूडो ज्यादा खेलना नहीं आता था।

एक दिन शाम को हम लूडो खेल रहे थे तो पता नहीं सुधा में मुझे ऐसा क्या लगा कि मैं उसकी तरफ खिंचता चला गया, पर मेरे इस बदलाव का उसको जरा भी पता नहीं चला। हम खेलते रहे और मैं वो बाजी भी हार गया और साथ ही अपना दिल भी, पता नहीं मुझे उसमे ऐसा क्या लगा कि मैं उस पर फ़िदा हो गया।

मैंने उस दिन सुधा को गौर से देखा, क्या मस्त लग रही थी, उसके वक्ष का नाप 26 होगा, बिल्कुल कच्ची कली ! सुधा से कुछ भी कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई कि सुधा मैं तुमसे प्यार करता हूँ।, ऐसे ही कुछ दिन निकल गए पर मैं उसको कुछ भी न कह सका।

मैं रोजाना उसके घर जाता पर सुधा से कहने की हिम्मत नहीं होती। मैं रोज़ना यही सोच कर जाता कि आज तो मैं कह ही दूँगा, पर उसके सामने पहुँचते ही बुत बन जाता था।

अम्मा रोजाना सुबह 10 से 12 बजे और शाम को 4 से 6 बजे तक बाहर काम करने जाती थी। सुधा के दोनों चाचा और बुआ भी जॉब करते थे, मेरे पास दिन में 4 घंटे होते थे, दो घंटे सुबह, दो घंटे शाम को, जब मैं सुधा से अकेले में मिल सकता था और अपनी बात कह सकता था, पर मुझे पूरे 6 दिन हो गए थे मैं सुधा से कुछ नहीं कह पाया।

मुझे याद है, वो शनिवार का दिन था, मैंने अपने हाथ पर ‘आई लव यू’ लिखा और मन में ठान लिया था कि आज तो मैं सुधा को बोल ही दूँगा चाहे कुछ भी हो जाये।

जैसे ही सुबह के 10 बजे तो मैं अपने घर के बाहर आकर बैठ गया और जैसे ही अम्मा घर से बाहर निकली, मैं उसके घर पहुँच गया। सब जा चुके थे, उस समय वो घर पर अकेली थी। वो बर्तन साफ़ कर रही थी तो मैंने सुधा को बोला- सुधा, मैं तुमको कुछ दिखाने आया हूँ !

और मैंने अपना हाथ उसके सामने कर दिया जिस पर मैंने लिखा हुआ था।

सुधा ने उसको देखने की जरा सी भी कोशिश भी नहीं की, शायद उसको पता होगा कि मेरे दिल में क्या चल रहा है। तो उसने नहीं देखा। जब सुधा ने नहीं देखा और वो बर्तन साफ़ ही करती रही तो मैंने उसका हाथ पकड़ा और उससे बोल- एक बार देख तो लो !

पहले तो सुधा ने मेरी तरफ देखा, फिर मेरे हाथ की तरफ देखा और पढ़ कर बोली- अब देख लिया न, अब मेरा हाथ छोड़ो !

मैंने कहा- पहले इसका जवाब तो दो !

पहले तो उसने मना कर दिया- मुझे नहीं देना जवाब !

जब मैंने उसको काफी जोर देकर बोला तो उसने कहा- ठीक है ! मैं शाम हो जवाब दे दूँगी, तुम अभी जाओ मुझे काम करने दो।

मुझे लगा कि इसकी तरफ से भी हाँ है तभी तो शाम को जवाब देने के लिए बोल रही है।

मैं बहुत खुश हुआ और उसको 4:30 बजे आने के लिए बोल कर मैं अपने घर वापस आ गया।

उस दिन मैं बहुत खुश था कि अब सुधा भी हाँ बोल ही देगी। मैं बड़ी ही बेसब्री से शाम होने का इंतजार कर रहा था, एक–एक मिनट भी मुझे घंटों के समान लग रहा था।

जैसे ही 4:30 बजे, मैं उसके घर पहुँच गया। वो बेड पर लेटी हुई थी, मैं भी उसके पास जाकर बैठ गया और उससे पूछा- क्या जवाब है? तो पहले तो उसने कहा- बता दूँ?

मैंने कहा- हाँ बता दो !

मैं तो खुश हो रहा था कि जिस तरह से यह बात कर रही है, पक्का हाँ ही बोलेगी, मैं उसके बोलने का इंतजार कर रहा था पर जब वो बोली तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ, उसने साफ़ साफ़ बोला- ‘नहीं’ मेरे दिल में ऐसी कोई बात आपके के लिए नहीं है।

उस वक्त मेरे दिल पर क्या बीती, वो मुझे ही पता है, मैंने सुधा को कहा- मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, अगर आज तूने हाँ नहीं की तो मैं कुछ कर बैठूँगा।

इस पर सुधा बोली- सब लड़के ऐसा ही कहते हैं।

मैंने कहा- जो मैं कह रहा हूँ, वो मैं करके दिखाऊँगा।

इतना कह कर मैं उसके घर से निकल आया और एक पार्क में जा पहुँचा। सुधा को मैं जोश जोश में कह तो आया पर अब करूँगा क्या मैं, मैं सुधा को वास्तव में ही चाहने लगा था और अपने प्यार को सिद्ध करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ, पर क्या करूँ यही मेरी समझ में नहीं आ रहा था।

तभी अचानक मेरी नजर एक पत्थर पर पड़ी और मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसको उठा कर अपने बायें पैर पर दे मारा, इसी के साथ मेरे मुँह से चीख आईईईईईईइऊऊ निकल गई। मेरे पैर में से खून निकल रहा था और दर्द के मारे जान ही निकली जा रही थी। फिर मैंने अपने आपको किसी तरह संभाला और डाक्टर के पास गया और अपने पैर में पट्टी करा के लंगड़ाते हुए घर पहुँचा।

मेरी मम्मी बाहर ही बैठी थी, मुझे देख कर बोली- यह क्या हो गया तुझे? अभी तो सही सलामत घर से गया था।

मैंने मम्मी को बोला- कुछ नहीं, किसी काम से बाहर गया था, बस से उतरते वक्त लग गई !

मम्मी ने मुझे सहारा देकर घर में लाकर बेड पर लिटा दिया, इतनी ही देर में हमारी पूरी गली को यह पता चल चुका था कि साजन का एक्सीडेंट हो गया है, सभी लोग मुझे देखने आये, सुधा के घर से सभी लोग मुझे देखने आये पर सुधा ही नहीं आई मुझे देखने !

मुझे बहुत दु:ख हुआ, जिसके लिए मैंने ये सब किया वो ही मुझे देखने नहीं आई।

मैं पूरी रात में दर्द से तड़पता रहा और सुधा को याद करता रहा, सारी रात मैं सो भी नहीं सका।

अगले दिन मेरा पैर बहुत ही ज्यादा सूज गया था, अब तो मुझे पैर भी हिलाने से मुझे दर्द होता था, अगर मुझे सुसु भी आती तो मुझे किसी न किसी का इंतजार करना पड़ता कि वो मुझे लेकर बाथरूम तक छोड़ दे।

इसी तरह दस दिन निकल गए, इन दस दिनों में सुधा मुझे एक भी दिन मुझे देखने नहीं आई, पर उसकी याद मुझे पल पल आती रही, अब मेरा पैर कुछ हद तक सही हो गया था, अब मैं चलने भी लगा था बिना सहारे के।

जिधर सुधा रहती थी, ठीक उसी के सामने सुनीता दीदी रहती थी, मैं उनके घर के बाहर सीढ़ियों पर बैठ जाता था, मैं न तो किसी से बात करता था बस चुपचाप बैठा रहता।

दीदी ने मुझसे पूछा भी- क्या बात है? तू क्यों इतना उदास रहने लगा है? अगर कोई बात है तो मुझे बता !

पर मैं अपने दिल की बात जिसको बताना चाहता हूँ, वो सुनती ही नहीं और जिसको मैं बताना नहीं चाहता वो मुझसे पूछते रहते हैं।

मैंने कहा- कोई बात नहीं है दीदी, आप बेकार ही परेशान हो रही हो !

पर दीदी को मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ।

मैं इतना कह कर अपने घर चला गया। कुछ देर बाद मेरा भाई सुनीता दीदी से बात कर रहा था और मैं उनको खिड़की से देख रहा था।

मुझे यह तो आभास हो गया कि वो मेरे ही बारे में बात कर रहे हैं पर यह पता नहीं चल पाया कि क्या बात कर रहे हैं।

कुछ देर बाद मेरा भाई आया जो मुझसे बड़ा है पर ज्यादा नहीं, बस दो साल ही बड़ा है, और हम दोनों आपस में हर टोपिक पर बात कर लेते हैं। मैंने भाई से पूछा- क्या बात कर रहे थे?

तो भाई ने बताया- वो तेरे बारे में ही मुझसे पूछ रही थी कि क्या हुआ है साजन को जो इतना उदास रहने लगा है। जब मुझे कुछ पता ही नहीं था तो क्या बताता उसको ! वो कह रही थी अगर कोई लड़की का चक्कर है तो शायद मैं उसकी कुछ मदद कर दूँ। इतना कह कर वो अपने काम से बाहर चला गया और मैं कुछ देर बाद ही फिर दीदी के पास जा पहुँचा, वो मुझसे बात करने लगी।

मैंने बातों बातों में पूछा- आप भाई से क्या कह रही थी?

दीदी बोली- कुछ नहीं कहा मैंने !

“आप झूठ बोल रही हो ! आपने यह नहीं कहा था कि अगर मेरा किसी लड़की से कोई चक्कर है तो आप मदद कर दोगी?”

दीदी बोली- पर तुझे यह सब कैसे पता? तू तो उस टाइम यहाँ पर नहीं था।

मैंने दीदी को बोला- जब आप और भाई बात कर रहे थे तो मैं खिड़की में से आपको देख रहा था, आपको शायद पता नहीं कि मैं होंठों की भाषा पढ़ सकता हूँ, जब आप बात कर रहे थे तो में आपके होंठ पढ़ रहा था, इसलिए मुझे पता है कि आप क्या बात कर रही थी। बोलो न दीदी मेरी मदद करोगी?

तो दीदी बोली- ये बात है ! कौन है वो लड़की?

“दीदी, वो सुधा है !” और फिर मैंने दीदी को अब तक की सारी बात बता दी।

दीदी ने बोला- बात करके देखती हूँ, शायद मेरी बात मान जाये।

मैंने कहा- दीदी, आज ही बात कर लेना !

तो दीदी बोली- बहुत उतावला हो रहा है सुधा के लिए?

तब मैं क्या बोलता, मैं नजर नीचे करके चुप हो गया, मेरी तरफ हंसकर देखते हुई बोली- ठीक है, मैं आज ही उससे बात कर लूँगी, तू उदास मत हो, अब तू आराम कर, मैं तुझे बता दूँगी।

दीदी की बात सुनकर मुझे कुछ राहत मिली और मैं अपने घर में वापस आकर लेट गया, जाने कब मुझे नींद आ गई, पता नहीं चला शायद दवाई का असर था जो मैं अब तक ले रहा था।

जब मेरी आँख खुली तो शाम के 6 बज चुके थे, मैं जल्दी से उठा और दीदी के पास जाने के लिए तैयार होने लगा, मैं तैयार होकर दीदी के घर जा पहुँचा, पर वहाँ तो दीदी के घर का दरवाजा ही बंद था पर बाहर से नहीं, मैंने हल्का सा अन्दर को धक्का दिया तो वो थोड़ा सा खुल गया।

मैंने खुले हुए दरवाजे में से अन्दर देखा तो अन्दर मुझे कोई भी नजर नहीं आया, शायद दीदी अन्दर वाले कमरे में थी, पर एक बात मुझे अजीब सी लगी कि बाहर वाले दरवाजे के साथ ही एक पानी का जग रखा था उलटा करके और उसके ऊपर एक गिलास रखा था, अगर मैं दरवाजे को हल्का सा भी और खोलता, तो जग और गिलास दोनों गिर जाते, वो स्टील के थे तो आवाज भी होनी ही थी। इसलिए मैंने दरवाजे में अपना एक हाथ अन्दर डाल कर जग और गिलास को धीरे से बिना आवाज किये एक तरफ कर दिया और दरवाजा खोल कर अन्दर जा पहुँचा।

बाहर वाला कमरा खाली था, उसमें कोई नहीं था पर अन्दर वाले कमरे में कुछ धीमी आवाज आ रही थी।

मैं चुपचाप बिना आवाज किये दूसरे कमरे तक पहुँच गया पर उस कमरे का दरवाजा भी अन्दर से बंद था, दरवाजे के साथ ही एक खिड़की थी पर वो भी अन्दर से बंद थी। मैंने उस खिड़की को खोलने की कोशिश की तो वो आसानी से खुल गई, खिड़की बस इतनी ही खुल पाई थी कि मैं अन्दर देख सकूँ।

खिड़की खुलते ही जो मैंने देखा तो मैं देखता ही रह गया, मेरी आँखें फटी की फटी रह गई, अन्दर सुनीता दीदी पलंग पर आँखें बंद करके नंगी लेटी हुई थी।

क्या मस्त नजारा था ! मैंने दीदी को आज से पहले कभी नंगा नहीं देखा था, सुनीता दीदी की चूची 30 से 32 की होंगी भरी हुई चूचियों को देख कर मुझे भी कुछ कुछ होने लगा था और उन्हीं के पड़ोस का एक लड़का जिसका नाम रवि था, वो भी पूरा नंगा था और वो सुनीता दीदी की जांघों में घुसा हुआ था, सुनीता दीदी बार बार अपने होंठों पर जीभ फिरा रही थी।

कुछ देर बाद रवि ने सुनीता दीदी की जांघों से अपना चेहरा बाहर निकाला, मैं यह सब खड़ा होकर खिड़की से देख रहा था, मैंने खिड़की उतनी ही खोली थी कि मुझे सब आसानी से दिखाई दे जाये।

रवि की पीठ मेरे सामने थी इसलिए मुझे सुनीता दीदी की चूत नजर नहीं आ रही थी। फिर रवि सुनीता दीदी के चेहरे के ऊपर घुटनों के बल बैठ गया, जैसे ही रवि ने अपनी पोजीशन बदली तो मुझे सुनीता दीदी की चूत और रवि का लंड साफ़ साफ़ दिखाई दिया, सुनीता दीदी की चूत रवि के थूक से गीली हो कर और भी मस्त लग रही थी, चूत से कुछ पानी भी रिस रहा था, बहुत ही मनमोहक लग रही थी, सुनीता की चूत ऊपर से फूली हुई थी, रवि का लंड करीब सात इंच का होगा, शायद खड़ा हुआ लंड ऐसा ही लगता है।

मैंने सेक्सी मूवी देखी थी पर आज तो मैं यह सब सच में देख रहा था, मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। रवि ने अपना सात इंच लंड सुनीता दीदी के होठों पर जैसे ही रखा तो उन्होंने अपने होंठ खोल कर लंड का सुपारा मुँह में ले लिया।

फिर सुनीता दीदी रवि का लंड चूस रही थी पच्च पुच्च पच्च की आवाज कमरे में गूंज रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

ये सब देख कर मेरा तो बुरा हाल हुआ जा रहा था, मेरा लंड भी पैन्ट के अन्दर खड़ा हो गया था तो मैंने अपना लंड पैन्ट से बाहर निकाला, अपने ही हाथ से मसलने लगा और अपनी आँख खिड़की से लगा कर देखने लगा।

अन्दर रवि ने सुनीता दीदी को कुछ इशारे से कहा तो दीदी तुरंत उठी और घोड़ी बन गई। रवि ने एक हाथ से अपना लंड पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से दीदी की चूत की पत्तियों को अलग कर रहा था। फिर रवि ने अपना लंड दीदी की चूत पर रखकर दोनों हाथों से दीदी की कमर को पकड़कर एक जोरदार धक्का मारा।

“ऊऊऊईईईईइमा !” दीदी के मुँह से हल्की सी चीख निकल गई, रवि के ऊपर उन चीखों का कुछ भी असर नहीं हुआ था शायद, तभी तो उसने दूसरा धक्का भी मार दिया।

“आआअऊऊऊओयीईईए !” फिर से दीदी की चीख निकल गई।

मुझे ये सब देख कर मज़ा आ रहा था और मन तो कर रहा था कि रवि को हटा कर दीदी की चूत में अपना लंड डाल दूँ पर नहीं कर सकता था, मैं अपने लंड को अपने हाथ से हिलाने लगा। अन्दर रवि दीदी की चूत पर अपने लंड का प्रहार निरंतर रूप से किये जा रहा था और दीदी भी अपनी गांड आगे पीछे कर हिला कर के चुदाई के मजे ले रही थी।

दीदी के मुँह से सेक्सी आवाजें निकल रही थी। अचानक दीदी ने रवि को बोला- जरा जोर–जोर से करो, लगता है मेरा होने वाला है !

तो रवि में अपनी स्पीड बढ़ा दी, अब तो रवि का लंड जिस गति से बाहर आ रहा था उसी गति से अन्दर भी जा रहा रहा था। मैं तो कमरे के बाहर खड़ा था पर मुझे चुदाई का मधुर संगीत बाहर महसूस कर रहा था। मेरे भी हाथ की गति भी तेज हो गई थी, मेरे लंड का सुपारा और भी मोटा हो गया था।

तभी अन्दर से दीदी की आवाज मेरे कानो में पड़ी- वि.. .अम्म्म.. म्म्म्ह.. आआ आआआ.. आआअऊऊ..ऊऊऊओयीईई.. मेरा हो रहा है !

और फिर दीदी ने अपने चूतड़ हिलाने बंद कर दिए पर रवि अभी भी निरंतर अपने लंड से दीदी की चूत चोदे जा रहा था और इधर मेरे लंड से भी माल निकलने वाला था तो मैं भी अपने लंड को जोर–जोर से हिलाने लगा।

कहानी जारी रहेगी।

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