पर पुरुष समर्पण-4

(Par-Purush Samarpan-4)

मधुरेखा 2015-03-14 Comments

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ठीक 6:30 पर मेन-गेट खुलने की आवाज आई, मैंने खिड़की से देखा कि शचित आ गये हैं।

उनके चेहरे से लग रहा था कि जैसे वे बहुत थके हुये थे।

उन्होंने घण्टी बजाई, मैंने जानबूझ कर दरवाजा नहीं खोला, उन्होंने एक बार फ़िर घण्टी बजाई, मैंने धीमे से जाकर दरवाजे की कुण्डी खोल दी और हट कर खड़ी हो गई।

उन्होंने दरवाजा धकेला तो मैं दरवाजे के पीछे छिप गई, वो सीधे अन्दर चले गये, उन्होंने मुझे आवाज दी, मैं चुप रही।

वो परेशान हो गये, अन्दर गये, वहाँ मान्या सो रही थी, उन्होंने उसे हल्के से थपथपाया और दरवाजा बन्द कर दिया ताकि बाहर का शोर उस तक ना जाये।

फ़िर वो सामने हाल में आये तो उन्होंने मुझे उनकी ओर पीठ किये खड़े पाया।
बस वो मुझे पीछे से देखते ही रहे… धीरे से उन्होंने मुझे पीछे से ही अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरी नग्न पीठ पर एक चुम्बन लिया।
मेरे बदन में जैसे बिजली दौड़ गई… मैंने अपने हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया, उन्होंने पीछे से मेरे वक्ष हाथ से पकड़ कर निप्प्लों को मसल दिया।

मैं एकदम से सिहर उठी… उन्होंने मुझे सीधा किया और बस मुझे देखने लगे…

काफ़ी दिनों के बाद मैं उनकी कामना पूरी करने जा रही थी।

उन्हें लाल रंग ही पसन्द है… बस मेरे डार्क रेड लिप्स देख कर वो रुक नहीं पाए, बस मेरे होंठ चूमने लगे… ऐसे लगा कि ये अब नहीं छोड़ेंगे.. चूमते चूमते उन्होंने मेरी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और पीछे से ब्लाउज़ के हुक खोल दिए।

धीरे धीरे कन्धों के ऊपर से ब्रा की पट्टियाँ भी सरका के निकाल दी… चुम्बन करते करते ही उन्होंने मुझे ऊपर से पूरी नंगी कर दिया।
साथ ही नीचे की साड़ी और पेटीकोट भी खोल दिया, उंगलियाँ डाल कर मेरी पैंटी नीचे सरकाने लगे…

उन्हें नीचे सब साफ़ होने का अहसास हुआ तो उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई…

मेरे कपड़े सारे हाल में बिखर गये… वो तो अच्छा था कि मैंने पहले ही सब दरवाजे और विंडोज़ बंद कर दी थी और परदे डाल दिए थे।

उन्होंने मेरे नीचे छुआ और बस छूते ही मुझे नीचे गीला लगने लगा। मैं समझ गई कि मेरे नीचे से पानी आने लगा है…

वो नीचे बढ़ने लगे, मैंने उन्हें रोक दिया… मैंने कहा- आप पहले फ़्रेश हो जाएँ, मैं आपके लिए चाय बनाती हूँ।

वो बोले- एक शर्त है, ऐसे ही चाय बनाओ… साड़ी मत पहनना…

मैं मान गई.. उनका क्या परदा है, मैं भी यही चाहती थी…

दो मिनट में ही वे फ्रेश होकर आ गये, मैंने गैस पर चाय का बर्तन रखा, उसमें तोड़ा पानी डाल दिया और साथ में शक्कर और चाय डाल दी।
आम तौर पर हम सिर्फ़ दूध में बनी चाय ही पीते हैं, पानी में बनी नहीं…

शचित को कुछ अलग लगा, मैंने गैस नहीं जलाई, वो पीछे से मुझे पकड़ कर बोले- क्या आज बिना दूध की चाय पलाओगी?

मैंने हम्म किया।

उन्होंने कहा- क्यूँ दूध खत्म हो गया है?

मैंने फिर से कहा- हम्म…

उन्होंने कहा- दूध तो है ना?

मैंने कहा- नहीं है…

और गैस जलाने लगी…

उन्होंने मुझे रोक दिया और कहा- रूको, मैं दूध का इंतज़ाम करता हूँ..

मैं नहीं चाहती थी कि शचित जी दूध लाने कहीं जाए, मैंने उन्हें कहा- दूध घर में ही है, पर थोड़ा सा है, आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी दूध वाली चाय पीनी है तो…

वो एकदम से जान गये कि मैं क्या कहना चाहती हूँ… उन्होंने कहा- यह मेहनत करना मुझे भी अच्छा लगेगा… पर उसके बदले मुझे दूध निकालने की फीस भी देनी पड़ेगी.. आज मेरी इच्छा पूरी करनी पड़ेगी?

मैंने हाँ में सिर हिलाया…

उन्होंने कहा- एक बाऊल ले आओ…

मैं वैसे ही उठी, चाय के बर्तन पर प्लेट रख दी और एक ग्लास बाऊल शेल्फ़ से निकाला।

उन्होंने कहा- डाइनिंग की चेयर पर बैठ जाओ…

मैं वैसे ही बैठ गई, मेरे वक्ष नीचे लटक रहे थे, उनके स्पर्श से निप्प्ल खड़े हो गये थे और धीरे धीरे ऊपर उठ रहे थे।

उन्होंने कहा- शायद दर्द होगा ना तुम्हें?

मैंने कहा- आपके लिए कुछ भी चलेगा…

फिर उन्होंने धीरे धीरे मेरे दायें स्तन की मालिश करते हुए धीरे से दबाया, थोड़ा सा सफेद पतला सा दूध उन्होंने बौउल में टपका लिया, पर कम मात्रा में था… काफ़ी पतला दूध लग रहा था..
फिर उन्होंने धीरे धीरे मुझे नीचे से बाऊल के ऊपर झुकाया और जैसे गाय का दूध निकालते हैं, वैसे ही किया और निप्पल को दबा दिया।

मेरे मुख से धीमी आवाज़ निकली पर इस बार ज़्यादा दूध निकला.. लेकिन फिर भी चाय के लिए ज्यादा दूध की ज़रूरत थी।

उन्हें अहसास हो गया था कि शायद मुझे दर्द हो रहा है और निप्पल भी थोड़ा लाल हो गयाथा, वैसे मेरे निप्पल गुलाबी हैं।
अब वो बायें स्तन की तरफ बढ़े पर इस बार उन्होंने हल्के हल्के मालिश की और अपने मुँह से चूसने लगे, चूस चूस कर उन्होंने मुंह में दूध भर लिया और बाऊल में डालने लगे।

मुझे इस बार दर्द नहीं हुआ बल्कि अलग ही मज़ा आ रहा था…
अब धीरे धीरे वो बाऊल में दूध इकट्ठा कर रहे थे… लगभग आधा बाऊल भर गया, मेरे निप्पल थोड़े से लाल हो गये पर मुझे अच्छा लग रहा था ये सब…

उन्होंने कहा- गैस जलाओ और चाय बनाओ.. मुझे चाय पीनी है…
हम दोनों एकदम से हंस पड़े।

अब गैस जला कर उबलने दी.. दो कप में आधी आधी चाय डाल दी और उसमें कटोरी में से आधा आधा दूध भी डाल दिया।

काली रेड चाय एकदम से सफेद हो गई.. हम फिर से हंस दिए… साथ में कप उठाए और पीने लगे कुछ अजीब सा स्वाद था..
पर उन्हें बहुत अच्छा लगा… पूरी चाय पी गये, नीचे थोड़ी भी नहीं छोड़ी.. उन्हें बहुर अच्छी लगी।

अब शचित बोले- मुझे अपनी काम की फीस चाहिये।

मैंने कहा- ओके, हम बेडरूम में नहीं कर सकते थे, वहाँ मान्या थी, वो जाग जाती, इसलिए पास वाले कमरे में नीचे ही चटाई बिछाई मैंने!

उन्होंने शुरुआत कर दी… धीरे धीरे ऊपर से नीचे… अपने कपड़े तो वो उतार ही चुके थे…

काफ़ी दिनों के बाद मैंने उनका अपने मुँह में लिया, उन्हें भी काफ़ी आनन्द मिला मुझे भी…
मैंने कहा- बस अब जल्दी कर दो, अब मैं नहीं रुक सकती…

पर बीच में मान्या के रोने की आवाज़ आ गई, शायद उसे भूख लगी होगी…
मैं उन्हें टाल देती पर वे रूकने वाले नहीं थे, अब उन्हें रोकना संभव ही नहीं था, मैंने कहा- सिर्फ़ एक मिनट…

मैं मान्या के पास गई और अपने उपर ले लिया और उसे दूध पिलाने लगी।

दायें वाले बूब में दूध था, पर बायें वाला दर्द कर रहा था।

वो आकर साइड में बैठ गये… 5-7 मिनट में मान्या का पेट भर गया, वो शांत हो गई।

अब मैंने मान्या को बेड पर लिटा दिया और वहीं बेडरूम में हम भी नीचे कम्बल बिछा कर शुरु हो गये।
उन्होंने मुझे अपने गोदी मे लेकर शुरु किया। कितने दिनों के बाद अन्दर लेते वक़्त मुझे थोड़ा दर्द हुआ लेकिन आज का मौका मैं नहीं खोना चाहती थी, मेरी पूरी संतुष्टि तक शचित करते रहे।
इतने दिनों बाद… आखिर उन्होंने अंत में मेरे अंदर ही अपना माल निकाल दिया।

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