किरायदार बनकर भाभी को यौन तृप्ति दी- 1

(Wet Pussy Lick Story)

वेट पुसी लिक स्टोरी में मैंने कमरा किराए पर लिया तो वहां एक नई नवेली भाभी थी. उसने मेरा लंड देख लिया. वह तो दीवानी हो गयी और खुद ही मेरे कमरे में आ गयी.

नमस्कार दोस्तो, मैं आयुष बिंदल अपनी कहानी लेकर आपके सामने हाजिर हूँ।

मैं भिलाई में रहता हूँ और मेरी बीवी तथा दो बच्चे हैं।

पर ये कहानी मेरे कॉलेज के वक्त की है।

तो आइए, सीधे वेट पुसी लिक स्टोरी पर आते हैं।

उस वक्त मैंने बी.कॉम की परीक्षा पास की थी और आगे की पढ़ाई, यानी एमबीए के लिए, मुझे इंदौर जाना पड़ा।
ऐसा नहीं कि मेरे नंबर कम आए थे या मुझे अपने शहर में एडमिशन नहीं मिल रहा था।

बल्कि मेरा मानना था कि स्कूल लाइफ तो इसी शहर में निकली, और आगे नौकरी या बिजनेस कहाँ करना पड़ेगा, इसका कोई पता नहीं।

तो कम से कम 2-3 साल तो सबसे दूर रहकर थोड़ा जिंदगी का मजा लिया जाए।

इंदौर में मैंने अपने एक मित्र की मदद से एक अच्छे कॉलेज में प्रवेश ले लिया और वहाँ हॉस्टल में रहने लगा।

लेकिन हॉस्टल का खाना और छोटे कमरे, साथ ही अच्छा कॉलेज होने की वजह से कई बंदिशें थीं—समय से आओ, जाओ, खाओ-पियो, बाहर ज्यादा मत रहो।
इन सब की वजह से मैंने हॉस्टल छोड़ने का मन बना लिया।

मैंने अपने दूसरे मित्र की सहायता से किराए का घर ढूँढना शुरू किया।

एक रविवार को, जब छुट्टी थी, हम मकान खोजते-खोजते एक घर पर पहुँचे।

वहाँ एक बुजुर्ग दंपत्ति थे।
उन्होंने हमें कमरा देखने को कहा क्योंकि वे सीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकते थे, जो पहली मंजिल पर थी।

वहाँ कुल तीन कमरे थे, जिनमें दो खाली थे।
उनमें बेड, पंखा, टीवी जैसी सामान्य चीजें थीं।
तीसरा कमरा उनका स्टोर रूम सा था।

एक तरफ बाथरूम और टॉयलेट बना हुआ था।
हमने कमरा देखा और किराए की बात करके कुछ एडवांस दे दिया।

ये कमरा मेरे कॉलेज से ज्यादा दूर भी नहीं था, और दूसरी दिशा में एक चौपाटी थी, जहाँ शाम को कई प्रकार के स्ट्रीट फूड मिलते थे।

उसी दिन शाम को मैंने अपना सामान वहाँ शिफ्ट कर लिया और आराम से रहने लगा।

वहाँ रहने के बाद पता चला कि कमरे में कूलर नहीं है, जिसके कारण गर्मी बहुत लगती थी।

यह बात मैंने उसी दिन, जब रहने आया था, उन्हें बताई।

उन्होंने कहा, “एक कूलर स्टोर में रखा है, पर कुछ खराब है। क्योंकि ऊपर कोई रहता नहीं था, इसलिए बनवाया नहीं। मेरा बेटा 2-3 दिन में आएगा, तो बनवा के फिट करवा देगा!”

तब मुझे पता चला कि उनका एक बेटा (आदर्श), एक बहू (रचना), और एक बेटी (मीनाक्षी) है।
बुजुर्ग दंपत्ति का नाम अशोक और राधा था।

बेटे और बहू की शादी को अभी तीन महीने हुए थे।
बेटी 12वीं में पढ़ रही थी।

वे तीनों किसी की शादी में गए थे और 2-3 दिन में लौटने वाले थे।

मैंने कहा, “ठीक है!”
और अपने कमरे में आ गया।

गर्मी लग रही थी, तो मैं जल्दी से नहाकर सिर्फ टॉवेल लपेटकर अपने कमरे में आ गया।
टीवी चालू करके खाना खाया और सो गया।

मैंने सोचा, दोनों बुजुर्ग तो ऊपर आने से रहे और बाकी लोग भी 2-3 दिन बाद आएँगे इसलिए नंगा ही सो गया।

इस तरह दो दिन निकल गए।

तीसरे दिन सुबह जब मेरी अलसाई आँखें खुलीं तो मैंने देखा कि एक 22 साल की गोरी-सी लड़की, पीली साड़ी और ब्लाउस पहने, मेरे खड़े लंड को, जो अच्छा-खासा बड़ा और मोटा है, आँखें फाड़कर देख रही थी।
उसकी आँखें वासना से लाल होने लगी थीं।

दो मिनट तक मैं उसे देखता रहा.
लेकिन उसकी नजर सिर्फ मेरे लंड पर थी।

उसे पता ही नहीं चला कि मैं उठ गया हूँ।
ना जाने वो कितनी देर से मेरे लंड को देख रही थी।

तब उसका एक हाथ अपने स्तन की तरफ बढ़ा, और वो उसे धीरे से सहलाने और हल्के से ब्लाउस के ऊपर से मसलने लगी।

ये देखकर मेरा मन भी डोल गया।
मैंने भी एक हाथ अपने लंड की तरफ बढ़ाया और धीरे-धीरे सहलाने लगा।

ये देखकर उसे अचानक होश आया।
उसने गीले कपड़े, जो सुखाने ऊपर लाई थी, वहीं बाल्टी में छोड़ दिए और जल्दी से नीचे भाग गई।

मैं भी धम्म से बिस्तर पर लेट गया और उस मासूम चेहरे को याद करने लगा—फूल-सा चेहरा, काली आँखें, सुराही-सी गर्दन, और गोरा रंग।

ये सब याद करते-करते मेरा हाथ नीचे की ओर चला गया और लंड सहलाने लगा।

फिर मुझे एहसास हुआ कि अगर तीनों—बेटा, बहू, और बेटी—वापस आ गए हैं और मूठ मारते देख लिया, तो इज्जत का फालूदा हो जाएगा।

ये सोचकर मैं टॉवेल लपेटकर बाथरूम गया और उस लड़की के चेहरे, उसके गदराए बदन को याद करके मुठ मारी।
फिर आराम से नहा-धोकर कॉलेज के लिए तैयार होकर नीचे उतरा।

साथ में उस बाल्टी को भी ले आया, ये सोचकर कि शायद उससे दोबारा मुलाकात हो जाए।

नीचे आदर्श और अशोक जी दोनों कुर्सी पर बैठकर चाय पी रहे थे।

अशोक जी ने मेरा और आदर्श का परिचय कराया और जबरदस्ती मेरे लिए भी चाय लाने रचना को आवाज लगाई।

मैं भी वहाँ एक कुर्सी पर बैठ गया और उनसे इधर-उधर की बातें करने लगा।

मैंने बताया, “ये बाल्टी ऊपर ऐसे ही रखी थी, तो मैं ले आया!”

तब आदर्श ने बताया, “ये मेरी बीवी रचना ने कपड़े सुखाने के लिए रखे थे, पर किचन में कुछ जलने की वजह से उसे नीचे आना पड़ा!”

तभी रचना मेरे लिए चाय लेकर आई।

उसे उम्मीद नहीं थी कि ये चाय मेरे लिए मंगाई गई है।
मुझसे नजर मिलते ही वो हड़बड़ा गई।
उसका गला सूखने लगा और हाथ काँपने लगे।
जैसे-तैसे उसने मुझे चाय दी।

आदर्श ने बताया, “ये मेरी वाइफ रचना है!”
मैंने मुस्कुराकर उसे नमस्ते कहा, पर वो घबराहट में सिर्फ हाथ जोड़कर अंदर भाग गई।
मैंने भी चाय पीकर उनसे विदा ली और कॉलेज चला गया।

शाम को, आराम से घूमते-फिरते, जब 6:30 बजे मैं घर पहुँचा, तो वो पाँचों लोग—अशोक, राधा, आदर्श, रचना, और मीनाक्षी—बाहर बैठकर हल्की-फुल्की बातें कर रहे थे।

मुझे देखकर आदर्श ने साथ बैठने को कहा।
मैं भी कुछ देर वहाँ रुक गया.

क्योंकि वे लोग शादी से 4-5 दिन बाद आए थे, और थकान की वजह से आदर्श आज ऑफिस नहीं गया था।

मैंने सबको अभिनंदन किया।
तब मैंने देखा कि रचना ने भी मुस्कुराकर मेरा अभिनंदन किया।

उसके चेहरे पर कोई घबराहट या परेशानी के भाव नहीं थे।

तब मैंने पहली बार मीनाक्षी को देखा।
वो भी काफी सुंदर थी — लंबा चेहरा, करीने से बँधे बाल, नाजुक-सा बदन।
हालाँकि, मीनाक्षी रचना के मुकाबले काफी पतली थी।

रचना, नई-नवेली दुल्हन, का वजन लगभग 55-57 किलो था.
जबकि मीनाक्षी, स्कूल की लड़की, का वजन लगभग 45-46 किलो रहा होगा।

बात करते-करते मैंने गौर किया कि रचना न सिर्फ सामान्य बर्ताव कर रही थी, बल्कि मुझे देखकर बीच-बीच में मुस्कुरा रही थी और बातें भी कर रही थी।
तब मुझे एहसास हुआ कि ये भाभी मुझसे सेट हो सकती है।

थोड़ी देर बाद, जब मैं उठने को हुआ तो रचना ने खुद कहा, “खाना हमारे साथ खा लेना!”
वो भी बिना किसी से पूछे!

तब अशोक जी, राधा, और आदर्श ने भी हाँ में हाँ मिलाई और जिद करने लगे।

रचना की आँखों और चेहरे से उसके किसी शरारत का अंदाजा हो गया।
मैंने भी हाँ कह दिया।
उन्होंने 8:30 बजे आने को कहा।

मैं ऊपर जाकर फ्रेश हुआ और थोड़ी पढ़ाई करने लगा।
लगभग 8:40 पर रचना ऊपर आई और सीधे धड़धड़ाते हुए कमरे में घुस गई।

मैं हैरानी से उसे देखने लगा। वो मेरी स्टडी टेबल के पास आई और इठलाते हुए बोली, “चलो, खाना खा लो!”
मैं हाँ बोलकर उठने लगा।

तब वो इठलाते हुए बोली, “मुझे लगा, अभी भी वैसे ही होगे!”
मैंने कहा, “मैं समझा नहीं!”
वो हँसते हुए बोली, “सुबह जैसे!”

मैं उसके चेहरे को देख रहा था कि जो लड़की सुबह इतनी घबराई थी, वो अब इतनी बिंदास कैसे बात कर रही थी।

मैंने भी ठान लिया कि जब वो खुद मेरे नीचे आना चाह रही है, तो मैं क्यों पीछे हटूँ?

मैं टेबल से खड़ा हुआ।
रचना थोड़ा भी पीछे नहीं हटी, वो वहीं खड़ी रही.
जिससे हम दोनों इतने पास आ गए कि हमारी तेज गर्म साँसें महसूस हो रही थीं।

मैंने अपने एक हाथ से उसके हाथ को छुआ।
रचना ने कोई विरोध नहीं किया।

उसने कहा, “आप बोलो, तो अभी हो जाता हूँ सुबह जैसा! पर करना आपको पड़ेगा!”

वो खिलखिलाकर हँस पड़ी और मेरे गालों पर एक किस दे दिया।
फिर बोली, “सब इंतजार कर रहे हैं!”
और नीचे भाग गई।

मैं भी मुस्कुराकर उसके पीछे-पीछे नीचे उतर आया।
वहाँ सबने अच्छे से खाना खाया।

बाकी सब तो अच्छे से खा और बात कर रहे थे पर मीनाक्षी काफी कम बोलती थी।

रचना ने बहुत अच्छे से मुझे खाना खिलाया और मुस्कुराकर बातें भी की।

खाना सचमुच बहुत स्वादिष्ट था।
कई दिनों बाद घर का खाना खाने को मिला तो उसका स्वाद और बढ़ गया।

मैंने बेबाकी से रचना के खाने की तारीफ की और कहा, “ऐसा खाना तो मैंने अपने घर में भी नहीं खाया!”
रचना शर्माकर लाल हो गई और बोली, “इतना ही पसंद आया है, तो रोज यहीं खा लिया करो!”

मैंने हँसकर मना कर दिया क्योंकि वहाँ सब लोग बैठे थे।

तब राधा जी ने कहा, “हाँ बेटा, अकेले के लिए क्यों खाना बनाओगे? हम पाँच लोगों का तो बनता ही है, तुम्हारा भी बन जाएगा!”

मैं शालीनता से मना करने लगा।
रचना मुझे गुस्से से देखने लगी।

तब अशोक जी ने कहा, “बाहर से टिफिन मँगाओगे, इससे अच्छा यहाँ से टिफिन ले लेना!”

ये सुनकर रचना खुशी से चमक उठी शायद टिफिन के बहाने मुझसे मिलने का मौका मिलेगा।
मैंने भी काफी सोचकर कहा, “टिफिन के पैसे आप लोगे, तो ही टिफिन लूँगा!”

अशोक जी बोले, “भाई, खाना बनाना और देने की जिम्मेदारी रचना की है, तो पैसे भी रचना को दे देना!”
हम सब हँस पड़े।

रचना ने सिर हिलाकर इशारे से कहा, “अब देखना आगे!”

फिर मैं और आदर्श सबके लिए पान लेने चौपाटी तक पैदल टहलते हुए चले गए।
हम इधर-उधर की बात करने लगे।

मैंने जान लिया कि उनकी अरेंज मैरिज हुई है, और वो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में मार्केटिंग हेड है।

वहाँ जाकर उसने एक सिगरेट पी और हमने सबके लिए मीठा पान लिया।

वापसी में आदर्श मुझसे मेरे परिवार और गर्लफ्रेंड के बारे में पूछने लगा।
मैंने उसे बताया कि मैं कहाँ से हूँ और अब तक दो गर्लफ्रेंड रह चुकी हैं। उनके पिताजी के ट्रांसफर की वजह से ब्रेकअप करना पड़ा।

उसने धीरे से सकुचाकर मेरी सेक्स लाइफ के बारे में पूछा, “क्या वो लड़कियाँ तुमसे खुश थीं?”

मुझे थोड़ी हैरानी हुई, पर मैं भी जानना चाहता था कि रचना इतनी आसानी से मुझसे क्यों सेट हो गई।

मैंने सच बताया, “वो दोनों इतनी खुश रहती थीं कि शुरू-शुरू में एक बार करने के बाद दो दिन तक उनका बदन और चूत दुखती रहती थी! लेकिन जैसे ही दर्द खत्म होता, हम फिर से चुदाई के लिए बेताब हो उठते थे! आज भी वो लड़कियाँ अपने बॉयफ्रेंड्स से सेक्स में मेरे जितना खुश नहीं हैं!”

ये सुनकर आदर्श थोड़ा उदास हो गया।
मेरे पूछने पर उसने कुछ नहीं बताया।
उतने में हम घर भी पहुँच गए।

रचना नाइट गाउन पहने बाहर हमारा इंतजार कर रही थी ताकि मैं बिना मिले अपने कमरे में ना चला जाऊँ।

वहाँ हमने पाँच मिनट बात की।
फिर मैं उनसे विदा लेकर अपने कमरे में जाने लगा।

आदर्श मेन गेट का ताला लगाने लगा।

मैंने अंधेरे का फायदा उठाकर रचना की गांड दबा दी।
आह दोस्तो, क्या नर्म एहसास था वो!

रचना ने घूरकर बनावटी गुस्सा दिखाया और हथेली से इशारा किया, “मार खाओगे!”

मैं मुस्कुराकर अपने कमरे में आ गया।

वहाँ देखा तो कमरे की खिड़की में कूलर लगा हुआ था।
पता चला कि सुबह मिस्त्री आया था और कूलर फिट कर गया।

मैंने राहत की साँस ली।

बिना गेट बंद किए मैं कपड़े उतारकर नंगा होकर, रचना को याद करते हुए लंड सहलाते-सहलाते सो गया।

सुबह लगभग 5 बजे रचना ने धीरे से दरवाजा खोला, कुंडी लगाई, और मेरे पास आई।

उसने चादर के ऊपर से मेरे उफान मारते लंड को महसूस किया और चादर हटाकर लंड मसलना शुरू कर दिया।

मेरी आँख खुली तो रचना को लंड मसलते देखकर आश्चर्य हुआ, “ये इस वक्त यहाँ कैसे आ गई!”

मुझे देखकर वो मुस्कुराई और बिना कुछ कहे हमारे होंठ आपस में भिड़ गए।
उसका एक हाथ मेरे कंधे पर था और दूसरे से मेरे लंड का मर्दन चल रहा था।

मैंने भी दोनों हाथों से पहले तो उसके गाउन की चेन, जो सामने थी, खोली।

एक हाथ कमर में फंसाकर उसे करीब खींचा और दूसरे हाथ से उसके नर्म स्तन मसलने लगा।

दोस्तों, क्या मस्त स्तन थे रचना के! साइज लगभग 34 के आसपास रहा होगा और निप्पल मटर के दाने जितना बड़ा और मोटा।

10 मिनट तक हमारा चुंबन चलता रहा। फिर हम अलग हुए तो दोनों के चेहरों पर शरारती मुस्कान डोल रही थी।

मैंने पूछा, “इतनी सुबह यहाँ कैसे?”
वो बोली, “थोड़ी देर में सास-ससुर के उठने का टाइम हो जाएगा। उससे पहले मिलकर मुझे नीचे जाना था, इसलिए इतनी जल्दी आई!”

ये सुनकर मैं खुश हुआ और तुरंत उसका गाउन ऊपर उठाकर उसके शरीर से अलग कर दिया।
मैंने उसे खींचकर अपनी गोद में बैठा लिया।

पहली बार मैंने उसके नंगे बदन को बड़े प्यार से देखा—दूध-सा गोरा बदन, जैसे मक्खन में थोड़ा सा सिंदूर मिला हो।
पूरा बदन साँचे में ढला हुआ, कहीं अतिरिक्त चर्बी नहीं।
ना हाथ, ना पैर, ना आर्मपिट में एक भी बाल। चूत भी बिल्कुल चिकनी।

हालाँकि, गोद में बैठने की वजह से मैं उसकी चूत को अभी तक नहीं देख पाया था।
रचना पूरी तैयारी के साथ आई थी।

अब हमारे होंठ फिर से आपस में भिड़ गए।
उसके स्तन मेरी चौड़ी छाती में धंसे हुए थे।
उसकी गोरी बाहें मेरे गले में लिपटी थीं।

मेरे दोनों हाथ उसके नर्म, गद्देदार चूतड़ निचोड़ने में लगे थे।

हमारे होंठ एक-दूसरे को खा जाना चाहते थे।

मेरा लंड रचना की चूत को ऊपर से रगड़ता हुआ, हमारे पेट के बीच ऊपर-नीचे हो रहा था।

मैंने रचना के बाल पीछे खींचे, जिससे वो धनुष की तरह मुड़ गई।
मैंने उसकी गर्दन और स्तनों पर चुंबनों की बौछार कर दी।

रचना के रसीले होंठों से मादक सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आआहह… आआहह!”

मैंने उसी हालत में रचना को नीचे चित लेटा दिया और उसके बदन को भोगने के लिए उसके ऊपर चढ़ गया।
उसके होंठ, गर्दन, स्तनों को चूमते हुए मैं धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ने लगा।

पहले उसके पतले से पेट, फिर मांसल जाँघों को चूमने और चाटने के बाद, मैंने उसकी गुलाबी चूत को देखा, जो वासना के कारण काँप रही थी और पूरी गीली हो चुकी थी।

उसे सूँघा तो एक अजीब-सी महक मेरे नथुनों में भर गई।
उसकी गुलाबी चूत देखकर साफ पता चल रहा था कि रचना ज्यादा चुदी नहीं है।

मैंने अपनी लपलपाती जीभ उसकी गुलाबी चूत पर रखी और बिल्ली जैसे मलाई चाटती है, वैसे उसकी चूत चाटने लगा।
अपने दोनों हाथों से मैं उसके स्तनों को मसलने लगा।

रचना अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत में दबाए जा रही थी।
उसके मुँह से कामोत्तेजक सिसकारियाँ निकल रही थीं, “आआहह… आआहह!”

मुश्किल से पाँच मिनट में रचना जोर से चीखती हुई निढाल पड़ गई।
उसकी चूत ने ढेर सारा कामरस छोड़ दिया जिसे मैंने चाट-चाटकर साफ कर दिया।

रचना की साँसें किसी धौंकनी की तरह हो रही थीं।
उसका पूरा नंगा बदन पसीने से लथपथ था।
वो अपनी आँखें बंद करके साँसों को संयमित कर रही थी।

दो मिनट बाद उसने आँखें खोलीं।
हमारी नजरें मिलीं तो उसने थोड़ा ऊपर उठकर मेरे होंठ चूमना शुरू कर दिया।
मेरे मुँह पर उसका कामरस लगा था जिससे उसे एक अलग स्वाद मिल रहा था।

जैसे मैंने उसकी चूत चाटकर साफ की थी, वैसे ही उसने मेरे मुँह को चाटकर साफ कर दिया।

मैंने कहा, “तुम्हारा तो हो गया, अब मेरी बारी!”
वो मुझे धकेलते हुए मेरे ऊपर आ गई और अपने स्तनों को मेरे सीने पर दबाते हुए बोली, “जान, आज देर हो गई है! ससुर के उठने का टाइम हो गया है। उन्हें शक हो गया, तो मजा सजा में बदल जाएगा, दोनों के लिए!”

वो बोली, “कल सुबह और जल्दी आऊँगी, या फिर हिसाब जमा तो रात को देर से आऊँगी!”

मैंने उसकी बात समझते हुए हाँ कह दी।
पर लंड महाराज तो फन फैलाए खड़े थे।

रचना ने कहा, “हो सकता है कि अगली बार जब हमारे बीच सेक्स होगा, तो शायद पहला और आखिरी भी हो! या फिर पूरी जिंदगी ये रिश्ता चल सकता है!”

मैं उसकी बातों का मतलब नहीं समझा।

उसने कहा, “मेरा पति, यानी आदर्श, मुझे बिस्तर पर संतुष्ट नहीं कर पाता! उसका लंड मेरे मुकाबले आधे से भी छोटा है!”

रचना ने बताया कि उसने शादी से पहले कभी सेक्स नहीं किया था, पर अपनी सहेलियों से सेक्स के बारे में बहुत बातें की थीं और ब्लू फिल्में भी देखी थीं। उन फिल्मों को देखकर उसे लगा था कि सबके लंड इतने बड़े और मोटे होते हैं और बिस्तर पर अपने पार्टनर को निचोड़कर रख देते हैं। उसने सोचा था कि ये सारे अरमान अपने पति से पूरे करूँगी। लेकिन आदर्श का लंड न सिर्फ छोटा था, बल्कि वो बिस्तर पर ज्यादा देर टिक भी नहीं पाता था।

वो बोली, “हालाँकि वो मुझसे बहुत प्यार करता है, पर चूत की गर्मी प्यार से नहीं, लंड से बुझती है!”

रचना ने इसे अपनी नियति मान लिया था।
उसने सोचा कि ब्लू फिल्मों में सब दिखावटी होता है, और सच्चाई में आम आदमी का लंड इतना ही छोटा होता है।

वो बोली, “पर सुबह जब तुम्हारा पूरा खड़ा लंड देखा, तो मेरी दबी हुई कामवासना फिर से जाग गई! मेरे अधूरे ख्वाब पूरे होते नजर आए।”

वो बोली, “पर क्या ऐसा करना सही होगा या नहीं, ये सोचकर मैं परेशान थी। इसलिए सुबह तुम्हें चाय देकर अंदर भाग गई थी। तब से यही सोच रही थी कि आगे बढ़ूँ या नहीं। इस मामले में किसी से सलाह भी नहीं ले सकती थी।”

वो बोली, “लेकिन मेरी परेशानी देखकर दोपहर को मीनाक्षी मेरे पास आई। हम दोनों सहेलियों जैसे रहती हैं। मैंने थोड़ा टालने के बाद मीनाक्षी को सब सच-सच बता दिया।”

मीनाक्षी भी जवान हो चुकी थी और शरीर की भूख को समझती थी।
काफी देर विचार-विमर्श के बाद मीनाक्षी ने कहा, “भाभी, ये भूख ऐसी है कि इसे मिटाना जरूरी है! वरना हम बाहर इसे मिटाने के लिए लोगों को खोजते रहेंगे। जरूरी नहीं कि जिसे हम पसंद करें, वो हमें पूरी तरह संतुष्ट कर सके। बाहर बदनामी का डर भी है। इसलिए तुम आयुष के साथ मजा ले सकती हो! पर पहले कन्फर्म कर लेना कि वो तुम्हें संतुष्ट कर सकता है या नहीं!”

मैंने कहा, “बात तो बिल्कुल सही है! अगर कहीं घूमने जाओ और गाड़ी रास्ते में खराब हो जाए, तो कितना बुरा लगता है! उसी तरह शादीशुदा स्त्री भी अपनी कामुकता को पूरा करने के लिए हर किसी की तरफ नहीं देख सकती!”

ये सोचकर हम दोनों ने एक-दूसरे को जोरदार चूमा।

मैंने कहा, “घबराने की बात नहीं है! अगर तुम आगे बढ़ने को तैयार हो, तो ये राज मेरे सीने में रहेगा! अगर विचार बदल जाता है और तुम मेरे साथ सेक्स नहीं करना चाहती, तो ये बात मैं हसीन सपना समझकर भूल जाऊँगा!”

मैंने कहा, “और रही बात संतुष्ट करने की, तो ऐसा खुश करूँगा कि अगर पहली और आखिरी बार भी हमारे बीच होगा, तो भी जिंदगी भर ऐसा सुख तुम्हें कभी नहीं मिलेगा!”

ये कहकर हमारे होंठ फिर से आपस में भिड़ गए।
रचना अपने एक हाथ से मेरे तंबू जैसे खड़े लंड को मसल रही थी और मैं अपने दोनों हाथों से उसके नर्म चूतड़ दबा रहा था।

मेरा मन तो कर रहा था कि फटाफट एक राउंड चुदाई हो जाए ताकि मेरा पानी निकल जाए और लंड महाराज को थोड़ी शांति मिले।

पर दूसरे ही पल ख्याल आया कि जल्दबाजी की चुदाई में रचना को मजा नहीं आएगा इसलिए अगली बार धमाकेदार चुदाई करेंगे।

इन्हीं सब बातों में लगभग 6 बजने वाले थे।
रचना बोली, “अगर सास-ससुर उठ गए, तो परेशानी हो जाएगी!”

मैंने मौके को समझते हुए ज्यादा जिद नहीं की।
रचना ने अपना गाउन पहना और जाते-जाते एक जोरदार चुंबन दिया।
उसने लंड जोर से मसल दिया।

क्योंकि उसने पायल पहनी थी, वो चोरों की तरह धीरे से नीचे चली गई।

इतना सब होने के बाद लंड तो बैठने से रहा।
मैंने बाथरूम में जाकर रचना के नंगे बदन को याद करके मूठ मारी, ताकि थोड़ा आराम मिले।

सुबह हो गई थी, तो दोबारा सोने की बजाय फ्रेश होकर कॉलेज की तैयारी करने लगा।

यह वेट पुसी लिक स्टोरी आपको कैसी लगी?
[email protected]

वेट पुसी लिक स्टोरी का अगला भाग:

What did you think of this story

Comments

Scroll To Top