एक उपहार ऐसा भी- 14

(Ek Uphar Aisa Bhi- Part 14)

संदीप साहू 2020-06-05 Comments

This story is part of a series:

साथियो, अब तक आपने जाना था कि प्रतिभा ने मेरी जंघा पर हाथ फेरना शुरू कर दिया था, जिसे मैंने पायल की मौजूदगी के चलते रोक दिया था. कुछ देर बाद मैंने अपनी दोस्त के मंगेतर वैभव के पास जाने के लिए कहा, तो पायल ने मुझे हल्दी की रस्म तक वापस होटल आने के लिए कह दिया.

मैंने उससे ओके कह दिया.

अब आगे:

पायल ने ड्राइवर को वैभव वाले होटल पर गाड़ी रोकने को कहा और साथ ही उसने किसी को फोन करके गेट पर बुला लिया.

गाड़ी रुकते ही पायल ने उस आदमी से कहा- ये हमारे स्पेशल गेस्ट हैं, इन्हें दूल्हे जी से मिलवा दीजिए और इनका ख्याल रखिएगा.

मैंने वहां उतरते वक्त सबसे पूछा कि वो वैभव से मिलते हुए जाएंगे क्या? पर सबने पहले खुशी के पास जाने की इच्छा जाहिर की.
मैंने मुस्कुरा कर उन्हें विदा किया और होटल के अन्दर जाने लगा.

यह होटल भी पहले वाले होटल से कम ना था. मुझे एक सभ्य अधेड़ व्यक्ति अपने साथ ले जा रहा था, वो होटल का कर्मचारी नहीं लग रहा था.

मैंने बातों बातों में पूछा, तो उसने अपने परिचय में कहा- मैं इनके पुराने फार्महाउस का मुंशी हूं.
मेरे लिए इससे ज्यादा परिचय और जानकारी का कोई मतलब नहीं था.

वो मुझे वैभव के कमरे तक ले गया.
वैभव मुझे देखते ही ललक कर मुझसे मिला, पहले हाथ मिलाया, फिर गले मिलकर पीठ थपथपाई. फिर सोफे पर मुझे बिठा कर साथ में खुद भी बैठ गया.

उसने मुंशी जी को जाने के लिए कह दिया और हालचाल पूछने लगा. मैं बातचीत करते हुए उसकी सुंदरता के साथ उसके व्यक्तित्व को समझने का प्रयत्न कर रहा था. मुझे वो बहुत ही मिलनसार और खुले विचारों का बिंदास अमीर व्यक्ति लगा. हां लेकिन वो मुझे घमंड से परे लगा. या हो सकता है ये मेरी पहली मुलाकात का भ्रम ही हो.

वैभव ने हालचाल पूछने के बाद मुझे ज्यादा गौर से देखते हुए कहा- वैसे प्रतिभा तुम पर फिदा है, तो कोई गलत नहीं है. तुम इतन हैंडसम जो हो. और तुम्हारे अन्दर जो लेखन की प्रतिभा है, उससे प्रतिभा का आकर्षित हो जाना स्वाभाविक है.
मैंने थोड़ा सकुचा कर धन्यवाद कहते हुए कहा- जी मुझसे तो कहीं ज्यादा तुम हैंडसम हो!

इस पर वैभव ने कहा- हां लेकिन हम दोनों में एक फर्क है. तुम्हारे अन्दर प्रतिभा है और मेरे अन्दर प्रतिभा दास!

उसकी बात पर हम दोनों ही खिलखिला उठे और तभी उसके मोबाइल पर किसी का कॉल आ गया.
वैभव ने उससे कहा- हां रूको, मैं दो मिनट में आता हूँ.

उसने मोबाइल रखा और मेरी जंघा पर थाप देते हुए कहा- चलो, तुम्हें कुछ खास चीज दिखाता हूँ.

हम दोनों वैभव के कमरे से निकल कर ऊपरी मंजिल पर चले गए. वहां एक कमरे में जाकर वैभव ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोलने वाले शख्स ने वैभव और मुझे गुड आफ्टरनून विश किया.

पहले वैभव और उसके पीछे मैं, कमरे में दाखिल हो गए, दरवाजा खोलने वाला शख्स भी दरवाजा बंद करके अन्दर आ गया. ये कमरा बड़ा और लक्जरी था और दो भागों में बंटा था. पहले हॉल था, जहां सोफे लगे थे.

फिर बेडरूम था और वहां बिस्तर और चेयर पर हसिनाओं को बैठे देखकर मेरी तो आंखें चमक उठीं. शायद वैभव को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा.

वैभव ने उस व्यक्ति का नाम लेते हुए कहा- क्यों सुरेश, नंदनी नहीं आई?
सुरेश ने जवाब दिया- सर उसकी महावारी आ गई है. इसलिए उसने आने से मना कर दिया था.

अब तक मैं समझ चुका था कि ये हसीनाएं रंडियां हैं. और वो व्यक्ति उसका दलाल और वैभव की बातचीत से लग रहा था कि वो नियमित ग्राहक है.

मैंने तो पहले हसीनाओं की गिनती की, फिर उनके हुस्न को ताड़ने लगा. सभी ने अच्छे कपड़े पहन रखे थे और ऊंचे घराने या पढ़ी-लिखी लग रही थीं. कुल छह हसीनाएं थीं, सब एक से बढ़कर एक थीं.

सुरेश ने जींस टॉप पहनी परफैक्ट फिगर वाली युवती से परिचय करवाया.

सुरेश- ये 23 साल की भावना है एम.एस.सी फाइनल ईयर में है, ज्यादा पुरानी नहीं है. इसकी अब तक चार पांच बुकिंग ही हुई हैं.
वैभव ने उसे बड़े गौर से देखा फिर अपनी उंगलियों को उसके होंठों पर फिराते हुए कहा- माल देखने में तो अच्छा है, पता नहीं परफार्मेंस कैसा देगी?
सुरेश ने तुरंत कहा- सर एक बार मैंने भी इसकी टेस्ट ड्राइव की है. ये लक्जरी है और पिकअप भी शानदार है.

वैभव ने भावना के गाल को बच्चों जैसा खींच कर उसे शाबासी दे डाली. लड़की की मुस्कुराहट भी और तीखी हो गई.

फिर वैभव ने जैसे ही दूसरी लड़की की ओर अपना रूख किया, जो लैगीज सूट पहन कर आई थी.. तो सुरेश ने फौरन कमान संभाल ली.

सुरेश- सर ये रेशमा है. उम्र सिर्फ बाइस साल है, पर पुरानी खिलाड़ी है. इसे आगे-पीछे ऊपर नीचे चाहे जैसे भी बजा लो. मना नहीं करेगी. सुर भी ऐसा निकलता है कि कोई भी मदहोश हो जाए.
वैभव ने तंज कसते हुए कहा- पर लगता तो नहीं!

इस पर रेशमा ने अपना दुपट्टा उतार फैंका और सीना तानते हुए कहा- नमूना देखना चाहेंगे क्या सर जी?
वैभव ने मेरी ओर देखा और कहा- जरा चैक करो तो! संदीप ये माल भी चोखा है या सिर्फ पैकिंग चमकदार है.

मैंने उसकी बात पर मुस्कुराते हुए एक कदम आगे बढ़ाया और रेशमा के नजदीक जाकर उसकी गर्दन पर हाथ डालकर बाल हटाए और उसकी गर्दन को चूम लिया.

उसके साथ ही मैंने अपना मुँह हटाकर उसके चेहरे पर देखा और रेशमा से नजर मिलाते हुए कहा- हां, रैपर के साथ माल भी चोखा है.
मेरी बात पर सभी हंस पड़े और रेशमा जैसी बेशर्म लड़की भी शरमा गई.

अब अगले क्रम पर पीले रंग के पटियाला सूट पहने हुए बहुत गजब की खूबसूरत गोरी परिपक्व लड़की थी.

सुरेश ने आगे बढ़कर कहा- ये अनीता है इसकी उम्र तीस साल है, पर ये तीस की लगती नहीं. शादीशुदा है.
वैभव ने कहा- इसका पति कहां है?
सुरेश- सर, ये तलाकशुदा है.
वैभव- और बच्चे?
सुरेश- एक है सर, इसकी मां के पास रहता है.

वैभव- कब से धंधे में है?
सुरेश- पति के साथ रहती थी तब से.
वैभव- तो क्या इसका पति नामर्द था?

इस बारे सुरेश से पहले अनीता बोल पड़ी- तुमको मेरे से मजे लेना है या शादी बनानी है?
इतनी पूछताछ तो रेड में पकड़ने पर पुलिस भी नहीं करती.
उसकी बात पर सभी हंसने लगे.

उसकी बात पर वैभव झैंप गया.

मैंने उन लोगों को वैभव पर हावी होता देख कर खुद कमान संभाल ली.

मैं- बेचारी हालात की मारी है वैभव भाई. इस ज्यादा मत छेड़ो, पति ने खुद धंधे पर बिठा दिया होगा और जमकर दलाली खाई होगी.

फिर मैंने अनीता से मुखातिब होकर कहा- क्यों सही कहा ना!
अनीता की आंखें डबडबा गई थीं, शायद मैंने जड़ पर चोट की थी.
माहौल को देखते हुए सुरेश ने बाकी तीन का संक्षिप्त परिचय दिया.

सुरेश- ये काव्या है, उन्नीस साल की ये बंगाली लड़की कलकत्ता से है. पहली बारे ही धंधे पर आई है. पर साली ने अपने यार से सील तुड़वा रखी है.. और ये दोनों नेपाली हैं. रूपा और सोहा. इन्हें रंडी नहीं कहा जा सकता. ये मसाज का काम करती हैं, पर ग्राहक को सभी तरह से संतुष्ट करने में माहिर हैं. ये दोनों अब तक फुल सर्विस के लिए कम ही जगहों पर गई हैं. उम्र भी 23 और 26 ही है.

अपनी बात खत्म करते हुए सुरेश ने कुछ मेडिकल पेपर वैभव को दिखाए, जो कि उन लड़कियों के थे. हाइप्रोफाइल धंधे में मेडिकल चेकअप के बाद ही सर्विस ली जाती है.

वैभव ने कहा- ठीक है सुरेश तुमने मेरी शादी की पार्टी के लिए अच्छे कलेक्शन की व्यवस्था की है, तुम्हें इनाम भी वैसा ही मिलेगा.

पता नहीं वैभव जो कहना चाह रहा था, उसे आप लोग समझे या नहीं, पर मैं जरूर समझ चुका था. वैभव बैचलर पार्टी की बात कर रहा था, जो आजकल अमीर घरानों में यार दोस्तों के लिए कवाब शराब और शवाब की व्यवस्था के साथ रखी जाती हैं. ये रंडियां भी वैभव के करीबियों को खुश करने के लिए बुलाई गई थीं.

वैभव ने मेरी ओर देखकर कहा- तुम्हें कौन सी पसंद आई संदीप?
मैंने भी मुस्कुरा कर कहा- जब अंगूर की बात हो, तब पूरा गुच्छा ही भाता है. ऐसे भी किसी खूबसूरत बगीचे में किसी एक फूल की प्रशंसा अच्छी बात नहीं, सारे फूलों की महक एक साथ मिलकर ही वादियों मदहोश कर रही है.

वैभव ने कहा- ओ महाशय. मैं आपको इनकी प्रशंसा में कसीदे गढ़ने के लिए नहीं कह रहा हूँ. मैं तो ये कह रहा हूँ कि तुम्हें कुछ चखना हो, तो अपनी मर्जी से चख लो. फिर तुम्हें वहां भी तो जाना है, जहां तुम्हें मेरी प्रतिभा की प्रतिभा को जांचने का अवसर मिलेगा.

मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर गई, वैसे तो मैं किसी के साथ कुछ नहीं करना चाहता था क्योंकि मेरे लिए तो पहले ही बहुतों की लाइन लगी हुई थी. पर लंड बहुत देर से इस माहौल में परेशान कर रहा था.

मैंने वैभव से कहा- तुम जाओगे तो मैं अपनी पसंद की छांट लूंगा.
वैभव ने हंस कर कहा- जैसी तुम्हारी मर्जी!

उसने किसी को फोन लगाकर बुलाया और उसके आ जाने पर उसे अपनी जेब से निकाल कर एक लिस्ट थमाई. शायद वो उनके दोस्तों की थी.

वैभव ने उससे कहा कि उनकी मर्जी के मुताबिक उन्हें खुश किया जाए. वैभव उसे काम बताकर चला गया.

अब कमरे में रंडियां, दलाल और मैं ही रह गए थे.

मैंने कहा- सच तो ये है कि मैं तुम सबको रगड़ कर चोदना चाहता हूँ, पर अभी मेरे पास समय कम है, इसलिए तुम में से किसी एक या दो का चयन करना ठीक होगा. लेकिन मैं भ्रमित हूं कि किसको पकडूं.. और किसको छोडूं. इसलिए मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है, मैं अपने आंखों पर पट्टी बांध लेता हूँ और सभी मुझे बारी-बारी लिप किस करोगी. जो भी मुझ कम समय में ज्यादा गर्म करेगी, मैं उसी की ही चुदाई करूंगा.

वहां बैठी शादीशुदा अनीता बोल उठी- तुम तो काफी अनुभवी लगते हो, चलो तुम्हारा और मेरा मुकाबला हो जाए, क्यों इन बच्चियों पर जोर आजमाते हो.

मैंने कहा- बात तो तुम्हारी ठीक है, पर बाद में मुझे मलाल होगा कि मैंने हसीनाओं की टोली छोड़ दी. दूसरी तरफ पट्टी बांध कर छांटने में यदि तुम मुझे मिलीं, तो मैं इसे अपनी किस्मत समझ कर स्वीकार कर लूंगा.
अनीता ने लंबी सांस ली और कहा- जैसी तुम्हारी मर्जी.

फिर मैंने अपना रूमाल निकालकर आंखों पर पट्टी बांध ली, मुझे सच में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. अब मैं उन हसीनाओं के आकर चुंबन करने का इंतजार करने लगा.

वैभव की बैचलर पार्टी और उसके लिए बुलाई गई रंडियों की चुदाई के साथ ही प्रतिभा दास से मिलने का समय भी नजदीक आता जा रहा था.

चुदाई की कहानी जारी रहेगी.
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