छेद की चाभी

जूजाजी 2013-09-26 Comments

प्रेषक : जूजा जी

यह घटना मेरे जीवन के कामुक दरिया की एक लहर है, परोस रहा हूँ, कैसी लगी, जरूर बताइएगा।

मैं किसी काम से सिलसिले में मुंबई में था, शाम हो गई, काम से फुरसत हो गई थी। सुहाना मौसम था।

मुंबई में मुझे अरब सागर के किनारे नरीमन पॉइंट पर बैठना बहुत ही अच्छा लगता था। समय लगभग 9 बजे का था।

एक पेप्सी की बोतल में रॉयल-स्टैग का एक बड़ा सा पैग बना कर, समुद्र के किनारे की पट्टी पर बैठ गया। गोल्ड-फ्लैक की सिगरेट को ही चखना की जगह इस्तेमाल कर रहा था।

करीब 10.3 बज चुके थे। आती-जाती फँटियों के मटकते कूल्हे, बल खाती कमर, कामुक वक्षोभार और गहरे गले वाले टॉप से झलकती चूचियों की दरार, मेरे नशे को तीव्र कर रहे थे।

कुछ रंडियाँ भी मेरे पास कर मुझे इशारा करती तो मैं भी अपना लौड़ा सहला कर उनको आँख मार देता था। कुल मिला कर मस्ती हो रही थी।

सामने की तरफ कुछ बार और होटल आदि बने थे जिनमें से कुछ जोड़े झूमते हुए निकलते तो उनको देख कर अपने अकेलेपन का अहसास हो रहा था।

मेरा मन चाह रहा था कि लौड़े का कोई इंतजाम हो जाए, पर रण्डीबाजी मुझे पसंद नहीं थी, क्योंकि इलाहबाद का खराब अनुभव मेरे पास है, जिसने मुझे रण्डीबाजी से दूर कर दिया था।

करीब 15 मिनट बाद एक मस्त माल सामने के बार से झूमता हुआ निकला। सड़क के उस तरफ उसकी कार खड़ी थी।

उससे कार का गेट नहीं खुल रहा था। उसने चारों तरफ निगाह दौड़ाई कि किसी से मदद ले सके।

मैं सिगरेट के कश लगाता हुआ उसकी ही तरफ देख रहा था। उसने मेरी तरफ देखा और मुझे बुलाने का इशारा किया।

पहले तो मुझे भ्रम हुआ कि वो किसी और को बुला रही है। मैंने अपने पीछे देखा कि शायद वहाँ कोई हो जिसे वो बुला रही हो, पर पीछे मुड़ कर देखा पर वहाँ तो समुद्र की लहरें थीं, मतलब मुझको ही बुला रही थी।

मैंने अपनी छाती पर अपना हाथ रख कर इशारे से पूछा- क्या मुझे बुला रही हो?

उसने ‘हाँ’ में मुंडी हिलाई। मैं एकदम से रोमांचित हो गया। सिगरेट फेंकी और उसकी तरफ बढ़ा।

मैंने उसके पास जाकर पहले तो उसे नजर भर कर देखा। उसने टाइट जीन्स और टॉप पहना हुआ था।

‘जरा देखना ये लॉक क्यों नहीं खुल रहा है?’ उसकी नशे में लड़खड़ाती हुई आवाज मेरे कानों में पड़ी।

मैंने देखा तो मुझे हँसी आ गई। किसी फ्लैट की चाभी को कार के छेद में घुसेड़ रही थी।

बोली- तू हँसता क्यों है?

उसकी इस तरह की खड़ी और तुड़की भरी आवाज मुझे जरा नागवार गुजरी, मैंने संजीदा होकर कहा- आप जो उसमें घुसेड़ रही हो जरा उसको देख तो लो, वो उस छेद में घुसने लायक है भी या नहीं?

“हा… हा… हा… तुझे बड़ी जानकारी है कि किस छेद में क्या घुसेड़ना चाहिए।” उसकी कामुकता भरी मस्त हँसी ने मेरा मजाक उड़ाया। मेरी बुद्धि को तो जैसे लकवा लग गया था।

मैंने उससे पलट कर कहा- हाँ, आपको भी मैं बता सकता हूँ कि छेद में लगाने के लिए क्या चीज सही होती है? खैर… यह कार की चाभी नहीं है और ये चाभी किसी फ्लैट की लगती है।

“ओह!”

उसने अपने बैग को टटोला और कार की चाभी निकाली। मैंने चाभी ली और उसकी कार को खोला।

उसने मुझसे कहा- बैठो।

मैंने चौंकते हुए कहा- क्यों, मैं क्यों बैठूँ?

वो मुझे धकेलते हुए बिंदास बोली- चल तेरा टेस्ट लेना है।

मैंने पूछा- कैसा टेस्ट लेना है?

“तेरे को छेद का बड़ा ज्ञान है न ! चल उसी का टेस्ट लेना है।”

मेरी खोपड़ी उलट गई !! मैं सोचने लगा, “साली अजीब चीज है? अब छेद का टेस्ट वो भी नशे की हालत में कैसे लेगी?”

मुझे क्या फर्क पड़ना था, फ़ालतू तो थे ही, कोई काम भी नहीं था। समय बिताने के लिए ये आइटम भी सही लग रहा था।

उसकी कार में बैठने लगा तो बोली- इधर नहीं, उधर ड्राइविंग सीट पर बैठो।

मैंने सोचा, “सही है साली नशे में है, कहीं कार टिका दी तो ! इससे अच्छा है कि मैं ही इसकी कार को चलाऊँ।”

मैं ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। बगल में मैडम जी ने अपन आसन ग्रहण किया। मैंने उसकी तरफ देखा कि उससे पूछूँ कि चलना किधर है?

मैं उससे कुछ कहता वो मुझसे बोली- सिगरेट है?

मैंने अपनी सिगरेट की डिब्बी निकाली और उसकी तरफ बढ़ा दी। उसने एक सिगरेट निकाली, एक मैंने भी निकाल ली। जेब से लाइटर निकाल कर उसकी सिगरेट को सुलगाया और अपनी भी सुलगाई।

एक लंबा कश खींच कर उसकी सुन्दरता को निहारा। मस्त दूद्दू थे साली के, टॉप भी डीप गले वाला था। दुद्दुओं की मादक छटा मेरे लौड़े को उठाने पर तुली थी। टॉप के छोटे होने के कारण नाभि भी दिख रही थी।

उसने भी सिगरेट का कश खींच कर मेरी तरफ देखा, “छेद देखना है?”

उसके बिंदास बोल ने मेरी खुपड़िया ‘भक्क’ से खोल दी। मैंने उसकी आँखों में झाँका और कहा- दिखा !!

बोली- चल फ्लैट पर चल कर दिखाती हूँ। तेरी चाभी भी देखती हूँ कि फिट होती है कि नहीं !

बात साफ़ हो चली थी। वो नशा करने के बाद चुदने के मूड में थी। इतना भी तय था कि फ्लैट पर अकेली ही रहती होगी, तभी फ्लैट पर चलने की कह रही है।

मैंने भी कह दिया, “मेरे पास मास्टर चाभी है, बहुत छेद खोले हैं, मेरी चाभी ने।

“छेद तो खुला-खुलाया है यार, उसकी चाभी मैं फेंक देती हूँ, हर बार नई चाभी से छेद खोलती हूँ, हा… हा… हा…”

मुझे समझ में आ गया कि ये बिंदास बाला किसी रईस बाप की बिगड़ैल औलाद है, और या फिर किसी की रखैल है। मैंने मन में फिर सोचा, “माँ-चुदाए, अपने को क्या करना है किसी की हिस्ट्री जान कर।”

मैंने उससे पूछा- चलना किधर है?

“सांताक्रूज !”

मैंने गाड़ी आगे बढ़ा दी। कनखियों से उसको भी देख रहा था। मस्त माल था। उम्र होगी 23-24 की। दूद्दू कमाल के थे। रँग एकदम गोरा था।

उसने मेरी तरफ देखा और पूछा- कितना बड़ा है तेरा?

मैंने कह दिया, “घर चल कर देख लेना।”

उसने कहा- अभी क्या दिक्कत है?

उसने मेरे लौड़े पर हाथ रख कर टटोला। लौड़ा तो पहले ही तन्नाया हुआ था। उसने हाथ लगाया तो और फुंफकारने लगा।

उसने एक किलकारी मारी, “अरे वाह आज तो मेरी मस्त ठुकाई होने वाली है।”

मेरे होंठों पर एक मुस्कान आ गई। जल्द ही उसके फ्लैट पर पहुँच गए। टू-रूम सैट था, गजब का डेकोरेट था। उसने बेडरूम में पहुँच कर अपने सैंडिल उतारे और पलंग पर ढेर हो गई।

मुझसे बोली- दारु पिएगा?

मैंने कहा- किधर है?

बोली- रुक मैं लाती हूँ। वो उठी और अन्दर के रूम में से गिलास और ब्लैकडॉग की बोतल ले आई। उसने गिलास भरे और हमने चियर्स बोल कर अपने गिलास खाली किये। सिगरिटें सुलगीं, सुट्टा मार कर बोली- अब दिखा।

मैंने- रुक अभी दिखाता हूँ। तू पहले उसको खड़ा करने का इंतजाम कर।

बोली- मतलब?? क्या बैठ गया?

मैंने- नहीं बे ! तू जरा अपने बुब्बू तो दिखा, जब तेरे हुस्न को देखूँगा तो मेरा लौड़ा फनफना उठेगा। तब तुमको भी देखने में मजा आएगा।

मादरचोदी को लंड की इतनी ललक थी कि एक झटके में अपने टॉप और ब्रा को एक साथ उतार दिया। उसके मस्त कबूतर उछल कर बाहर आ गए। मेरे श्री बाबूलाल जी भी फुल मस्ती में खड़ा हो गए।

मैंने खड़े होकर अपनी शर्ट और पैंट उतार दी। सिर्फ एक फ्रेंची में श्री बाबूलाल जी कुंडली मारे बैठे थे। सो फ्रेंची को भी तिलांजलि दे दी। उसको अब साक्षात् श्री बाबूलाल जी के दर्शन सुलभ हो गए थे।

सिगरेट का कश खींच कर एक तरफ रख दी और आगे बढ़ कर मेरा लौड़ा थाम लिया। कुछ पल सहलाती रही। फिर ब्लैकडॉग की बोतल उठाई और उसकी धार मेरे लौड़े पर डालने लगी।

मुझे उसकी इस हरकत पर पहले तो हँसी आई। फिर इतने नशे में होने के बाद भी उसकी समझदारी मेरी समझ में आई, जब उसने मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया।

दरअसल उसने मेरे लौड़े को दारु से धोकर उसे चचोरने लायक बनाया था। मस्त चचोरती थी साली।

मैंने भी कुछ पलों के बाद उसको उठा कर उसके होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और उसकी जीभ में मेरे लौड़े के प्री-कम के स्वाद को चखा।

उसकी जीन्स उतारी और एक जरा सी पैन्टी जोकि पैन्टी के नाम पर कलंक थी उतार कर फेंक दी।

मैं अपनी बाँहों में उसको उठा कर, पलंग पर लाया। फूल सा भार था। उसके संतरे से गोल दूद्दू चचोरे, गुलाबी निप्पल चुभलाए, उसकी सीत्कार निकली, “उऊ ईई… धीरे कर न।”

उसको चुदाई की जल्दी मची थी। मैंने भी देर नहीं लगाई। उसकी चूत पर हाथ फेरा, सफाचट चिकनी चमेली थी।

मैंने भी शराफत दिखाई और बाबूलाल की धर्मशाला (उसकी चूत) को अपनी जीभ से टुनयाया। चूत के कौआ को अपने होंठों से पकड़ कर खींचा, तो ससुरी मचल गई।

“ओओई अब पेल न मादरचोद, क्यूँ सता रहा है कुत्ते।”

मैंने भी देर न की और उसकी चूत पर लौड़ा टिका कर सवार हो गया। एक ही झटके में, मेरा सुपाड़ा अन्दर और उसकी चीख बाहर।

“ओई धीरे रे रे कर हरामी साले फाड़ेगा क्या?”

मैंने भी नशे की झोंक में था, “पूरे संसार में आज तक किसी की नहीं फटी, तेरी क्या फटेगी साली कुतिया।”

मैंने हचक कर अपना लौड़ा पेल दिया, और श्री बाबूलाल जी अपनी धर्मशाला की नाली की खुदाई के काम पर लग गए।

उसके चेहरे पर असीम तृप्ति के भाव थे। इतने नशे में होने के बाद भी उसकी दोनों टाँगें हवा में उठी हुई थीं।

जब भी किसी औरत या लौंडिया की चुदाई के समय टाँगें हवा में उठ जाएँ तो ये बात तय समझिये कि उसको चुदाई का भरपूर सुख मिल रहा है।

15-20 मिनट की धकापेल चुदाई के बाद हैप्पी-एंडिंग का टाइम आ गया।

मैंने उसकी तरफ देखा। उसने कहा- जाने दे कुछ नहीं होगा।

मैंने लावा छोड़ दिया, उसकी चूत के दरिया में। कुछ देर के बाद हम उठे एक-एक पैग और लगाया उसने कुछ खाने को कुकीज भी रखीं।

हम दोनों ने सिगरेट सुलगाईं, मैंने अपने कपड़े पहने, उसने एक बेबी-डॉल जैसी फ्रॉक पहन ली।

मैंने जाने के लिए अपने कदम बढ़ाए उसने कहा- जरा रुको।

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