कामुक भाभी ने देवर को उकसा कर चुदवाया- 1

(Bouncy Intimate bhabhi)

स्टालियन 2025-05-11 Comments

बाउंसी इंटिमेट भाभी मेरे घर तब आई जब मेरे भाई की शादी हुई. भाभी की गोरी-मखमल त्वचा और उनके नितंबों की मनमोहक बनावट मुझे बार-बार खींचती थी.

सभी पाठकों को एक गहरा और प्यार की भावनाओं से भरा नमस्कार.

इच्छाओं और कामनाओं के इस रंगीन संसार में यह मेरा पहला कदम है, मेरी पहली सेक्स कहानी.

या यूँ कहूँ कि यह हमारी बाउंसी इंटिमेट भाभी की कहानी है जो कुछ इस तरह से शुरू होती है.

हम लोग कर्नाटक के उत्तरी हिस्से से ताल्लुक रखते हैं जहां की मिट्टी में मेहनत और संस्कारों की खुशबू बसी है.
घर में भैया की शादी की बातें जोर-शोर से चल रही थीं.

इस बीच पुराना घर छोटा पड़ने लगा, तो नए घर के निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ.
नए घर की पहली मंजिल पर मेरा और भैया का कमरा एक-दूसरे के बगल में ऐसे बनाया गया, मानो दोनों की दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी हो.

शादी के बाद जब भाभी घर आईं, तब पता चला कि वे मुझसे तीन साल बड़ी हैं.
उनका व्यक्तित्व और सौंदर्य ऐसा था, मानो कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो.

उनकी कद-काठी 5 फुट 4 इंच की थी और उनका मादक शरीर 36-30-38 के आकार में ढला हुआ था, जो हर किसी का ध्यान खींच ले.

मैं भी कम न था.
मेरी साढ़े पांच फीट की सुगठित देह और 7 इंच का आत्मविश्वास से भरा हुआ मूसल लंड, जो भैया से कुछ ज्यादा ही मोटा था, जैसा कि भाभी ने एक बार हंसते हुए बताया.

भाभी की बात करूँ तो उनकी गोरी-मखमल सी त्वचा और उनके नितंबों की वह मनमोहक बनावट मुझे बार-बार अपनी दुनिया से बाहर खींच लाती थी.

जब वे रसोई में खाना बनातीं, फ्रिज से कुछ निकालतीं या झुककर कोई काम करतीं, तो समय ठहर सा जाता था.
उनकी हर अदा में एक जादू था, जो मेरे होश उड़ा देता था.

घर में भाभी की साड़ी उनके जिस्म पर ऐसे लिपटी रहती थी, जैसे हवा का कोई हल्का सा स्पर्श.

वे ज्यादातर साड़ी ही पहनती थीं शायद इसलिए कि उन्हें पता था कि साड़ी में उनकी खूबसूरती और भी निखरती है और यह मर्दों को कितना ज्यादा तड़पाता है.

उनकी साड़ी हमेशा कमर से नीचे बँधी होती, जिससे उनकी नाजुक कमर और नाभि का वह हिस्सा नजर आता, जहां से उनकी देह की और भी रहस्यमयी दुनिया शुरू होती थी.

जब सिर्फ हम दोनों ही आसपास होते, तब वे अपने पल्लू को हल्का सा सरकने देतीं और उनकी चूचियां व कमर की झलक मेरे दिल को धड़कने पर मजबूर कर देती.
बाकी समय में वे पूरी शालीनता से खुद को ढकी रहती थीं.

जब वे मेरे सामने चलतीं और मैं उनकी हर अदा को मंत्रमुग्ध होकर निहारता.
तो तब उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तैर जाती, जैसे उन्हें मेरी बेचैनी का मजा आता हो.

उनके संस्कारी और सभ्य परिवार की पृष्ठभूमि को देखकर मैं हैरान था कि वे इतनी बिंदास कैसे हो सकती हैं.

मैं अपनी बात करूँ तो मैं घर में ज्यादातर सिर्फ बॉक्सर में ही रहता, वह भी बिना किसी अंडरवियर के.

मेरा बॉक्सर न ज्यादा लंबा था, न ज्यादा टाइट … बस इतना ढीला कि मेरे शरीर को खुली हवा का आनन्द मिले.

यह मेरी अपनी आदत थी, जिसे मैं बखूबी जीता था.

भाभी के संस्कारी परिवार की वजह से शुरू में मैं उनके साथ कोई शरारत या मजाक करने से हिचकता था.

लेकिन भाभी ने मुझे पूरी छूट दी थी कि मैं उनके साथ एक देवर की तरह शैतानी करूँ, उनकी खिंचाई करूँ.

जब वे मेरे साथ हंसती-खिलखिलातीं, तो मैं उन्हें पूरी आजादी दे देता.
पर मेरे मन में कभी हिम्मत न हुई कि मैं उन्हें छेड़ूँ.

उनकी मुस्कान में इतनी मासूमियत और शरारत थी कि मैं बस पिघल जाता.
उनके रसीले होंठों को देखकर मन करता कि बस उसी पल उन्हें अपने करीब खींच लूँ और उनकी हर सांस को महसूस करूँ.

वक्त बीतता गया और भाभी मेरे साथ और ज्यादा घुल-मिल गईं.
हमारा रिश्ता हंसी-मजाक और हल्की-फुल्की बातों से और गहरा हो गया.

वे मेरे खाने-पीने का पूरा ध्यान रखतीं और शरारत भरे लहजे में कहतीं- अच्छे से नहीं खाओगे, तो ये सुडौल शरीर कैसे बनाए रखोगे, देवर जी?
यह कहकर वे एक चुलबुली मुस्कान बिखेर देतीं और अपनी आंखों से मेरी आंखों में कुछ कह जातीं.
जिसे मैं समझने की कोशिश में खो जाता.

बात गर्मियों के उन तपते दिनों की है जब मैं बाहर से खेलकर पसीने से तरबतर लौटा.

मैंने कपड़े बदले और सिर्फ बॉक्सर पहनकर रसोई में पानी पीने चला गया.

भाभी चूल्हे के पास नीचे बैठकर रोटियां सेंक रही थीं.
उनकी साड़ी का पल्लू हल्का सा सरका हुआ था और उनकी चूचियों की वह दूधिया झलक मेरे दिल को बेकाबू कर रही थी.

मैं खड़ा होकर पानी पी रहा था और मेरी नजरें बार-बार उनकी ओर चली जाती थीं.

पानी पीने के बाद जब मैं जाने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया.
उनकी उंगलियों का स्पर्श ऐसा था, मानो बिजली सी दौड़ गई हो.

उन्होंने मुझे अपने पास बिठा लिया, इतने करीब कि उनकी सांसों की गर्मी मेरे चेहरे को छू रही थी.

मैंने उनकी तरफ देखा तो वे बोलीं- यहीं बैठ कर खाना खा लो.
मैंने हां में मुंडी हिला दी और उनके चूचों को देखने लगा.

वे भी मेरी नजरों को भांप गई थीं लेकिन उन्होंने अपनी दूध घाटी को नहीं ढका.

फिर खाना परोसते वक्त उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी और उनकी मुस्कान में वह शरारत थी, जो मेरे दिल को और बेचैन कर रही थी.

भाभी थाली को सजा कर मेरी तरफ सरकाती हुई बोलीं- अच्छे से खाना, इसे और भी सुडौल बनाना है!
यह कह कर वे गहरी सी मुस्कान देने लगीं.

उनकी इस बात का मुझे कुछ मतलब समझ में नहीं आया कि भाभी ऐसा क्यों कह रही हैं.

जैसे ही मेरा ध्यान निवाला लेने के लिए नीचे गया तो देखा कि मेरा लंड बाक्सर से बाहर निकला हुआ है.

मैंने तुरंत भाभी की तरफ देखा तो वे जोर जोर से हंसने लगीं और बोलीं- शैतान हो गया है मेरा बदमाश देवर!

हड़बड़ी में मैंने एक हाथ अपने लंड पर रखा और दूसरे हाथ से खाना खा रहा था तो वह सना हुआ था.

भाभी के बिल्कुल नजदीक होने के कारण उनके मादक जिस्म के सुगंध से मैं पागल हो रहा था.

शायद भाभी को भी कोई आपत्ति नहीं थी.
उनकी भी एक आंख चूल्हे पर तो दूसरी मेरे लंड पर थी.

इस दिन के बाद से तो भाभी मेरे साथ पहले से ज्यादा घुल-मिल गईं.

जब कभी भी मेरे बगल में सोफा या बेड पर बैठतीं तो उनके हाथ मेरी जांघों पर लंड के नज़दीक ही होते थे … जो बातों बातों में उसे छू भी लेते थे.

वे जब भी मेरे साथ बात या मजाक करतीं तो उनके रसभरे होंठों पर एक मस्ती भरी मुस्कान होती जो उनके चेहरे को और भी निखार देती थी.

हम दोनों जब भी अकेले होते तो लगभग अधनंगे ही रहते थे.
उनका साड़ी पहनने का तरीका और मेरा बॉक्सर को अस्त व्यस्त रखना एक दूसरे को आँखों से चोदने का सुख देने लगते.

उन्हें जब भी मौका मिलता तो वे मेरे सीने पर उभरी हुई मेरी घुंडी को अपनी दो उंगलियों में पकड़ कर मींजती हुई उसकी चिमटी ले लेतीं और मेरे मुँह से दर्द भरी आह को सुनकर जोर जोर से हंसने लगती थीं.

इतना सब होने के बाद भी मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई कि मैं भी अपनी भाभी के साथ ऐसा कुछ कर सकूँ!

गांव में होली खेलने का मजा कुछ अलग ही होता है.
उस वक्त फागुन की मस्ती और बसंती मादक हवाएं नवजवान दिलों में एक मस्ती भर देती थीं.

उस दिन होली की मस्ती सभी को चढ़ी थी.

कुछ देर तक भैया ने भाभी के साथ होली खेली और बाहर दोस्तों से मिलने चले गए.

माँ और पिताजी पड़ोस में होली खेल रहे थे और पिताजी को भांग पिला दी थी, जिस वजह से माँ को उन्हें संभालने में दिक्कत हो रही थी.

होली खेलने के बाद मैं घर आया और पता चला कि भाभी घर में बिल्कुल अकेली हैं और सोफे पर बैठी टीवी देख रही हैं.
जैसे ही मैं उन्हें रंग लगाने के लिए आगे बढ़ा तो वे भागती हुई बेडरूम में चली गईं.

मैं भी उनके पीछे पीछे भागा लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ.

कुछ देर बाद अपने बेडरूम में आराम करने के बाद मैं छत पर चला गया.
मैं नहाने के लिए गया और पानी की टंकी वाले नल के नीचे बैठ गया.

जब साबुन के लिए हाथ बढ़ाया तो पाया की वहां साबुन नहीं है.
मैं पीछे मुड़ा तो देखा कि भाभी के हाथ में था.

भाभी ने कहा- मैं नहलाऊंगी!
मैंने कहा- मैं थक गया हूं भाभी और मजाक में मूड में तो बिल्कुल भी नहीं हूं!

भाभी ने कहा- थक गए हो इसी लिए तो सोचा कि तुम्हारी मदद कर दूं और अब चुपचाप बैठ जाओ.

मैं एक छोटे बच्चे की तरह बैठ गया और भाभी मेरे सर और पीठ पर साबुन मलने लगीं.
बाद में भाभी ने मुझे खड़े होने के लिए कहा.

मैंने कहा- बाकी का मैं खुद कर लूंगा.
लेकिन भाभी ने नहीं सुनी और मैं खड़ा हो गया.

भाभी के छूने के कारण मेरा लंड लोहे की तरह खड़ा हो गया था.
जिसे देख भाभी के चेहरे पर मस्ती भरी मुस्कान छा गई.

उन्होंने मेरी छाती पर साबुन मलते हुए कहा- अब बस या कहीं और भी साबुन लगाना है?
मैंने कहा- मैं कर लूंगा आप रहने दो.

लेकिन भाभी ने मेरी बात अनसुनी कर दी.
मैं खड़ा हो गया और उनके नाजुक हाथों का स्पर्श मेरे शरीर को और बेकाबू कर रहा था.

मेरा लंड अब लोहे की तरह तन चुका था.
जिसे देखकर भाभी के चेहरे पर वह मस्ती भरी मुस्कान और गहरी हो गई.

मेरी छाती पर साबुन मलते हुए उन्होंने शरारत भरे लहजे में वापस पूछा- बस, अब और कहीं साबुन लगाना है देवर जी?
मैंने झेंपते हुए कहा- भाभी, मैं कर लूँगा, आप रहने दें.

लेकिन उनकी आंखों में वह चमक थी जो मुझे बता रही थी कि यह पल इतनी आसानी से खत्म नहीं होने वाला.

‘ठीक है!’ कहकर भाभी ने साबुन नीचे रखने का बहाना बनाया और एक पल में ही मेरे बॉक्सर को खींच लिया.

अगले ही पल मैं उनके सामने बिल्कुल नंगा खड़ा था, मेरा तना हुआ लंड उनकी आंखों के सामने था.

लाचारी में मैंने दोनों हाथों से लौड़े को छिपाने की कोशिश की लेकिन मेरी बेचैनी देख भाभी की हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी.

उनकी खिलखिलाहट में एक शरारती मासूमियत थी.

अचानक उन्होंने मग में पानी भरा और मेरे लंड पर जोर से मारा.

फिर चुलबुले अंदाज में बोलीं- बुरा न मानो देवर जी, होली है!

उनकी आंखों में वह शरारत थी, जो मेरे दिल को और बेकरार कर रही थी.
मैं बिल्कुल असहाय-सा खड़ा था.

मग को वापस बाल्टी में फेंकते हुए भाभी ने कहा- अब तुम नहा लो, मैं खाने का इंतजाम करती हूँ.

जाते-जाते उन्होंने मेरे लंड पर रखे मेरे हाथों को जोर से चिमटी काटी और उनकी हंसी की गूँज के साथ वे नीचे किचन में चली गईं.

होली की मस्ती और थकान के बाद भाभी की इस शरारत से मैं थोड़ा खीझ भी गया था.

नहाकर मैं अपने बेडरूम में आया और थकान ऐसी थी कि कब नींद ने मुझे अपनी आगोश में ले लिया, पता ही नहीं चला.

लगभग एक घंटे बाद भाभी मेरे कमरे में आईं.

मेरा टॉवल खिसक चुका था और मैं पूरी तरह नंगा था.

भाभी की छत वाली हरकत की वजह से नींद में भी मेरा लंड तनाव में था.

भाभी ने मुझे पहली बार इस तरह देखा. उनकी नजरों में एक गहरा सुकून और स्नेह था, जैसे वह अपने लाड़ले देवर को प्यार भरी नजरों से जी भरकर निहार रही हों.
उनकी आंखों में वह चमक थी, जो बिना शब्दों के बहुत कुछ कह रही थी.

काफी देर तक मुझे प्यार और शरारत भरी नजरों से देखने के बाद, भाभी धीरे से मेरे पास झुकीं, जैसे कोई प्रियजन अपने सबसे करीबी को जगाने के लिए झुकता है.

उन्होंने मुझे हल्के से उठाया और नर्म स्वर में कहा- उठो देवर जी, खाना तैयार है.
लेकिन जाते-जाते उन्होंने मेरे तने हुए लंड के सुपाड़े को हल्का-सा दबोच लिया.

उस स्पर्श से मैं एकदम से जाग उठा, जैसे बिजली-सी दौड़ गई हो.
मैंने जल्दी से वही टॉवल लपेटा और सीधे किचन में चला गया.

भाभी चूल्हे पर खाना गर्म कर रही थीं, उनकी साड़ी रंगों से सनी थी और कमर से नीचे बँधी साड़ी उनकी देह की हर वक्र को और उभार रही थी.

मैं दबे पांव उनके पीछे गया और शरारत में उनकी गोल-मटोल नितंबों को पकड़कर जोर से भींच दिया.

भाभी की चीख निकल गई, लेकिन वह अपनी जगह से जरा भी नहीं हिलीं, न ही मुझसे छूटने की कोशिश की.

मैं खड़ा हुआ और हंसते हुए बोला- बुरा न मानो भाभी, होली है!
लेकिन उनकी आंखों में ऐसे भाव थे मानो संतुष्टि और समर्पण का एक अनकहा मिश्रण हो, जो मेरी समझ से परे था.

घर में सिर्फ हम दोनों ही थे और उस पल में मानो दुनिया रुक सी गई थी.
मैं जमीन पर बैठ गया और भाभी खाना परोसने लगीं.

अब टॉवल हो या न हो, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता था.

भाभी मेरे सामने नीचे बैठीं और मेरे लंड को देखती हुई बोलीं- हाय, कितनी गर्मी है!
उन्होंने ‘गर्मी’ शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया और उनकी आंखों में वह शरारत थी जो दोहरे मतलब को साफ बयान कर रही थी.

फिर वे अपने पल्लू से पंखा झलने लगीं, जिससे उनकी साड़ी हल्की-सी सरक गई.

मैंने गौर किया कि उनका ब्लाउज का गला आज कुछ ज्यादा ही गहरा था, जिससे उनकी छाती की गहरी खाई साफ दिख रही थी.

भाभी ने अन्दर कोई ब्रा नहीं पहनी थी और जब मेरी नजर उनकी जांघों पर गई, तो पाया कि पेटीकोट भी गायब था.
मैं बिल्कुल नंगा था और वे भी अपनी साड़ी के नीचे उतनी ही आजाद थीं.

दोस्तो, आज मैं अपनी भाभी को चोदने की नजर से देख रहा था और डर भी रहा था कि कहीं कुछ उल्टा न हो जाए.

आपको मेरी इस बाउंसी इंटिमेट भाभीकी कहानी में कितना मजा आ रहा है, प्लीज जरूर बताएं.
[email protected]

बाउंसी इंटिमेट भाभी की कहानी का अगला भाग: कामुक भाभी ने देवर को उकसा कर चुदवाया- 2

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