प्रियतमा से एक और मुलाक़ात- 1

(Ex Sex Girl Reunion Story)

एक्स सेक्स गर्ल से दोबारा मिलने पर पहली प्रतिक्रिया क्या हुई, हमारे बीच कैसी कैसी भावनाएं उमड़ी, हमने कैसे अपने प्यार को एक दूसरे पर उड़ेला. पढ़ें इस कहानी में!

मेरी प्रियतमा, मेरी सखी मीता जो कि गजब के मादक और कातिलाना हुस्न की मालकिन थी, उससे मिले एक अरसा हो गया था.
आप मेरी मीता की कहानी
मेरी प्रेयसी और मैं: दो बदन एक जान
पहले पढ़ चुके हैं.
अबकी बार मेरी उससे मुलाकात अचानक ही हुई थी.

मुझे पता लगा कि जहां मेरी क्लाइंट से मीटिंग थी, उसकी पोस्टिंग भी वहीं कहीं आस-पास के किसी स्कूल में थी.

जी हां, अब मीता एक स्कूल टीचर थी और जहां उसकी पोस्टिंग थी.
मेरा इस वक़्त का नया क्लाइंट भी उसी के आस पास ही रहता था.

मैंने अपने काम को जल्दी निपटाने की पूरी कोशिश की थी ताकि कुछ वक़्त अपनी दोस्त, एक्स सेक्स गर्ल, अपनी प्रेयसी के साथ भी बिता सकूं.
उसे इसकी कोई खबर नहीं थी. मैं उससे मिल कर उसे एक सरप्राइज देना चाहता था.

उसकी याद कभी मेरे ख्यालों से नहीं गयी.
उससे जो मैं प्यार करता था, वह तो अलग था ही … लेकिन उसके मादक हुस्न की छलकती जवानी की गहराइयों और ऊंचाइयों ने जिस कदर मेरे होशोहवास पर काबू कर लिया था, उसकी कोई दूसरी मिसाल मुझे इन सालों में नहीं मिली.

जब तब मीता मुझसे फोन पर बात करती, तब भी उसकी अधूरी प्यास की तड़प भी मुझे साफ समझ आती थी.
किंतु नारी की लज्जा सुलभ आदत कहें या पतिव्रता होने की कोशिश करना कहें, मीता खुलकर कभी भी अपनी यौन इच्छा मेरे सामने खुलकर न कह पाती.

कामवासना की बातें छोड़ कर बाकी हमारे बीच सभी बातें अनवरत चालू थीं.

जैसे वह मुझे अपनी माहवारी के बारे में बता देती या हमारे बीच बीते अंतरंग पलों की बातें हों, तो वह इनमें खुशी खुशी शरीक होती.

मैंने ऊपर बताया कि इस बार मैं मीता को बिना बताए उसके घर पहुंचा और दरवाजे की घंटी बजाई.

जैसा कि मैं जानता था, मीता ने ही दरवाजा खोला.
मुझे अचानक अपने सामने पाकर मीता एकदम से बौखला सी गयी.

‘आप … अचानक इधर कैसे?’ आश्चर्यमिश्रित मुस्कान के साथ मीता हैरत से बोली.

मैंने दरवाजे पर खड़े खड़े ही कहा- बस तुमसे मिलने की चाह खींच लाई मीता!
‘अरे एक बार फोन तो कर देते आप, इतने दिन बाद मिलने आ रहे हो … कम से कम मैं तैयार तो रहती, आपसे अच्छे से मिलने के लिए. अच्छा चलिए अन्दर आइए.’ मीता दरवाजे से हटते हुए बोली.

‘तुम्हें तैयार होने की क्या जरूरत है मीता, तुम तो हो ही इतनी खूबसूरत कि चाहे जिस हालत में रहो … बस कमाल ही होती हो.’ यह कहते हुए मैं अपनी सहेली मीता के मासूम सौन्दर्य में खो सा गया.

वही सांवला सलोना चांद सा मुखड़ा, सुर्ख लाल और रसभरे होंठ, बड़ी बड़ी आमंत्रण देती बोलती आंखें, वही शानदार दो पर्वत, जो समय के साथ और बड़े और रसभरे दिखाई दे रहे थे.

उनके नीचे पतली खमदार चिकनी कटीली कमर, साड़ी के कोरों से दिखाई दे रही थी … और मुलायम पेट पर हीरे सी जड़ी गोल गहरी नाभिकूप का आधा हिस्सा भी साड़ी के बाहर से झाँकता हुआ दिख रहा था.

आधी नाभिकुण्ड के साड़ी के भीतर छुपे होने की वजह से दिखाई देने वाला हिस्सा किसी गहरे कुएं की मानिंद प्रतीत हो रहा था.

उस मादक नाभिकुण्ड की गहराई इतनी ज्यादा थी कि मेरे लंड का टोपा पूरा का पूरा मीता की नाभि की जवानी में समा जाता.

उसके नीचे पेट का ढलवां ढलान स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी, जिसके नीचे वह शानदार मादक त्रिकोण छिपा था, जिसके भीतर सैकड़ों बार मेरे लंड महाराज ने पनाह ली थी.
न केवल पनाह ली थी, बल्कि उसने जो कहर बरपाने वाली चुदाई की जुगलबंदी की थी कि मेरी प्रियतमा की आहें और कराहें निकल आई थीं.

मेरी प्रेयसी मीता की गहरी मदभरी चुत के साथ हुई चुदाई की याद के साथ ही मेरा लंड उठता चला गया और दरवाजे पर खड़े खड़े ही लंड पैंट में तम्बू का आकार बना लिया.

मेरी नजर ऊपर की ओर बढ़ती गई और मीता के यौवन शिखरों पर जा ठहरी.

तने हुए और नुकीले उभार लिए हुए दोनों यौवन कपोत मेरी मीता के हुस्न को खतरनाक और धारदार बना रहे थे.

मैं खुद कई बार अपनी प्रेयसी के इन शानदार रसभरे शिखरों को बेताबी से चूम चूस चुका था, उन्हें अपनी दोनों हथेलियों से एक साथ, सैकड़ों बार मसल चुका था.

आज ये जो इतने बड़े और मस्ती भरे उभार दिख रहे थे.
इन पर मेरी हथेलियों की भी काफी मेहनत थी और ये गजब का आकार प्रकार … सेक्स के अंतिम पलों में गजब के कठोर गुब्बारों में जब तब्दील होता, तो उस वक़्त इन्हें थामने, मसलने, चूमने और सहलाने का सुख अलौकिक होता.
उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं थी.

उनकी ये मादक अहसास कराने वाली सख्ती, मेरी काम सहचरी के प्रेम के अंतिम शिखर तक पहुंचने का भी आभास होता था.

मेरे ये अहसास मीता की नज़रों से बिल्कुल भी न छुप सके क्योंकि मेरे लंड महाराज अब कंट्रोल के बाहर थे और रह रहकर पैंट के भीतर से ही बहुत बुरी तरह ठुनक रहे थे.

मेरी पैंट का सामने का हिस्सा बार बार लिंग के अग्रभाग के अत्यंत कठोर होकर ठुनकने की वजह से लंड के साथ ही ऊपर नीचे हो रहा था.

तभी मेरी नजर मेरे पैंट के अग्रभाग पर पड़ी और उसे छुपाने के असफल प्रयास करते हुए मुझे मीता ने भी देख लिया.

मीता ने मेरी नजरों का पीछा किया और उसकी नजर मेरे लंड पर जा पड़ी जो पेट पर 360 डिग्री का कोण बना रहा था.
उसने मेरे लंड की हालत देखी और वह शर्माती हुई झेंप गयी.

वह अपनी साड़ी के पल्लू से अपनी कमर और गहरी नाभिकुण्ड को छुपाते हुए मुझे बनावटी गुस्से से देखने लगी क्योंकि वह जानती थी कि उसकी गहरी नाभिकुण्ड मुझे कितना ज्यादा पसंद है.

‘अन्दर आइए और पुरानी बातें दोहराने और सोचने की कोशिश भी मत कीजिएगा.’ मीता दरवाजे से हटते हुए मुझे अन्दर आने को बोली.
‘नहीं मीता! तुम गलत समझ रही हो मुझे … वह तो तुम्हें इतने दिनों बाद देखा तो देखता ही रह गया बस!’

मेरी एक्स सेक्स गर्ल बस मुस्कुरा दी.

‘अब तुम हो ही गई हो इतनी खूबसूरत कि मन ही नहीं मानता, लेकिन मेरा यकीन करो मीता. मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं थे.’
‘अच्छा जी! गलत विचार नहीं थे और वह जो तुम्हारी पैंट पर अचानक अन्दर कोई जहरीला साँप घुस गया था क्या … फन उठाकर अपनी हनक दिखा रहा था … बड़े आए शरीफ!’ मीता ने पानी का गिलास मुझे थमाकर सोफे पर बैठते हुए कहा.

‘मुझे माफ़ कर दो मीता, मगर मैं भी क्या करूँ. तुम हो ही इतनी खूबसूरत और तुम्हारे अंगों के नशीले कटाव और गहराइयां … मुझे तो छोड़ो, किसी मुर्दे को जिंदा कर दें. फिर मेरे महाराज तो अभी जवान ही हैं और अपनी सखी को इतने सालों बाद सामने पाकर उनका उछलना तो बनता ही है. मेरे मना करने के बावजूद … सुर तो देखो, अभी से गीले भी होने लगे हैं वो!’
मैंने मीता की नशीली पतली कमर और पेट पर अधखुली नाभिकुण्ड पर नजर गड़ाए हुए उससे कहा.

मीता मेरे होंठों से अपनी और अपने हुस्न की तारीफ सुनकर शर्मा गयी.
वह मेरे मुँह से बेधड़क लंड महाराज का जिक्र सुनकर शर्मा गई और उसके गोरे गाल रक्तिम हो उठे, पलकें बोझिल हो चली थीं.

उसका एक मात्र कारण था कि हमारी बातों में महाराज का यानि मेरे लंड का जिक्र हो रहा था. मेरा लम्बा धारदार मूसल लंड, हमारे प्रेम प्रसंग के दिनों में मेरी प्रेयसी मीता की कमजोरी हुआ करता था.

मीता रानी मेरे लिंग को महाराज कहकर ही प्यार से सम्बोधित करती थी और जब तक महाराज के पोर पोर के अंतिम छोर तक चूम-चूम कर उसे लाल और लोखण्ड का न बना देती, उसका जी ही नहीं भरता था.
फिर उसी लोखण्ड की दशा में महाराज जब मीता की कामुक और पनियायी कसी हुई योनि गुफा की अनन्त गहराइयों में अपनी सखी से भेंट हेतु प्रवेश करते, तो वह प्रवेश हर बार एक कुँवारा प्रवेश होता और हम दोनों के लिए आनन्द की चरमसीमा भी होता था.

मीता उन्हीं पलों को याद कर, शर्माकर लाल और रक्तिम हो चली थी- छोड़िए भी आप इन बातों को, अब कुछ नहीं होना इन बातों से … तो फिर चर्चा ही क्यों कर रहे हैं?
इन अंतिम शब्दों को कहते हुए मीता की आवाज हल्की और कमजोर सी हो चली थी.

‘सच मीता … क्या हम उन पलों को दोबारा जीवित नहीं कर सकते? मेरी प्रेयसी मेरी प्रियतमा … दिल से कहो, क्या तुम नहीं चाहती कि अब हमारा मिलन हो?’
मैंने मीता की कमजोरी पर चोट करते हुए कहा.

‘आप बैठिए, मैं चाय लाती हूं.’ मीता ने मेरी बात का बिना कोई जवाब दिए कहा और किचन में जाने के लिए सोफे से खड़ी हो गयी.

जाने से पहले मीता ने मेरे सामने ही साड़ी पल्लू निकाला, जिससे उसने अपना मादक पेट और नाभिकुण्ड छिपा लिया था और पल्लू को अपने नाभिप्रदेश से हटाते हुए पेटीकोट में खौंस लिया.
साथ ही साथ अपना पेटीकोट भी साड़ी सहित नाभिकुण्ड से और नीचे तक सरका दिया, जिससे मीता के पेट का करीब करीब पूरा हिस्सा पेट की ढलान तक अनावृत हो गया था.

उफ्फ … गजब का मादक हसीन नजारा था.
लम्बा गोरा चिकना मुलायम पेट, उस पर हीरे सी जड़ी नाभि … और नाभि के नीचे ढलवां पेट … उसके नीचे पेटीकोट और पैंटी में छिपा जन्नत का दरवाजा.

आह … मुझे मीता ने इस यौन आमंत्रण के साथ अपना मूक जवाब दे दिया था.
वह कमर लचकाती हुई किचन की ओर चली गई.

मीता के इस मूक आमंत्रण का अर्थ समझते हुए मैं भी धीरे धीरे उसके पीछे ही किचन की ओर चल पड़ा.

मीता चाय का पानी चढ़ाने के बाद उसमें चाय पत्ती डाल रही थी.
उसकी पतली कमर पर खम बने हुए थे और कुछ पसीने की बूंदें कमर के खमों पर पड़ने की वजह से, चिकनी कमर एकदम सुनहरी और अत्यंत कामुक दिखाई पड़ रही थी.

मेरा लंड इस मादक कॉम्बिनेशन को देखकर कड़ा और खड़ा होता जा रहा था.

धीरे से मैं मीता के बाजू जाकर खड़ा हुआ तो कमर के बाद पेट का खुला हुआ हिस्सा नाभिकुण्ड से ढलवां पेट तक दृष्टिगोचर हुआ.

साइड से मीता की गोल नाभि इतनी गहरी लग रही थी मानो कोई गहरा कुंआ हो … और उस गहरे कुएं में दोनों उरोजों के बीच से एक पतली सी धार से धीमे धीमे बहती हुई एक पसीने की बूंद मादक पेट के बीचों बीच से आती हुई ऐसे समाने ही वाली थी मानो नाभिकुण्ड में अमृत की बूंद गिरने को आतुर हो.

मैं इस अमृत कुंड और अमृत की बूंद के रस को चखने का अवसर कैसे जाने देता.

मीता की गहरी नाभिकुण्ड में समाने को आतुर उस बूंद को मैंने नाभिकुण्ड में समाने से पहले ही अपनी उंगली में रोक लिया और ठीक नाभिकूप के ऊपर मीता के चिकने पेट पर अपनी तर्जनी से उस बूंद को रोककर अपने होंठों से लगा लिया.

जैसे ही मैंने उस बूंद को चखा, मीता के अधरों से मादक सिसकी उबल पड़ी.

‘बस मीता, एक बार तेरी इस नाभिकूप को चूम लेने दे.’ मैंने उसके रक्तिम हो चले कपोलों को देखकर कहा और साथ ही अपनी जान की नाजुक कमर के कटावों को थाम कर उसको अपने करीब ले लिया.

मेरे हाथ मीता के पूरे पेट पर थे … और एक उंगली गहरी नाभिकुण्ड में घूम रही थी.

‘आआआह … इस्स ईई … नहीं मत करो न यार … आप सिर्फ नाभि ही नहीं चूमोगे, उसके बाद चूत भी चाटने को बोलोगे और मैं मना नहीं कर पाऊंगी. वह आपको पता ही है.’

मैं कुछ नहीं बोला और ना ही खुद को रोक पाया.

‘फिर मेरे मना करने के बावजूद भी अपने महाराज को उसकी सखी से मिलवा कर ही मानोगे आआआह इस्स उफ़्फ़ आह निलेश उफ़्फ़ … अब इतनी बार मेरी नाभि को अपनी उंगली से चोद चुके हो, तो चूम भी लो इस बावली को … वह भी तड़पने लगी है … आआह मेरे रसीले बलम!’ ये कहते हुए मीता ने अपनी साड़ी का पल्लू खुद ही नीचे गिरा दिया.

‘आआआह इस्सई.’ अब मेरे होंठों से भी एक गहरी सिसकारी फूट पड़ी थी.

मेरी मीता की गहरी गोल नाभि अब एकदम अनावृत और खुली हुई थी.
उसका पेटीकोट भी एकदम नीचे, उसके ढलवां पेट की ढलान के पास से चूत के आरंभिक कटाव के पास से बंधा हुआ था, तो गहरी नाभि और भी ज्यादा गहरी मादक और नशीली लगने लगी थी.

नाभि के साथ साथ पूरा लम्बा मादक पेट भी शिल्पा शेट्टी के गहरे नाभिकुण्ड और मादक कमनीय पेट से भी ज्यादा हसीन लग रहा था.

मीता की इजाजत मिलते ही मैं घुटनों के बल बैठ गया.
मेरे ठीक सामने उसका पूरा लम्बा चिकना पेट, नाजुक कमर के खम, पेट की सुतवां ढलान और नाभिकुण्ड … एकदम मेरे होंठों की पहुंच में थे.

हाथ कमर के खमों को सहलाते हुए ऊपर बढ़े और मीता के उरोजों को दोनों हथेलियों से थाम लिया.

होंठों ने सबसे पहले नाभिकूप पर गहरी सांस ली और मीता की नाजुक कमर के कातिल खमों को चूम लिया.

‘आआआह …’

फिर से मीता के लंबे पूरे चिकने पेट की पोर पोर को चूमते हुए उसके उरोजों को सहलाते सहलाते, इस बार जोरों से दबा भी दिया था.
साथ ही साथ अपने होंठों को अपनी प्रेयसी के गहरी नाभिकूप पर लॉक कर दिया था.

‘आआआह नीलू … उफ़्फ़फ़ मेरी जान … क्या जादू कर दिया है तुमने … आआह.’ ये लगातार सिसकारियां मीता के होंठों से फूट रही थीं क्योंकि नाभिकुण्ड के एकदम भीतर मेरी जीभ दाखिल हो गयी थी … और ठीक इसी वक्त दो उंगलियों ने उसके पेटीकोट की गांठ भी खोल दी थी.

उसका पेटीकोट भरभराकर नीचे गिर पड़ा.

आह … गोरी सुडौल लम्बी टांगें और लाल पैंटी के साथ मेरी मीता नीचे से अनावृत हो चुकी थी.

‘उई माँ … ये क्या कर रहे हो आप! आपने सिर्फ नाभिकूप चूमने को कहा था, फिर मेरा साया क्यों खींच दिया? आपका इरादा ठीक नहीं लग रहा है. चलिए जा रही हूँ मैं … जाने दीजिये मुझे!’

मीता बनावटी रोष से बोली और अपना पेटीकोट ऊपर उठाकर उसने अपनी टांगों को फिर से ढक लिया.

दोस्तो, मेरी प्रियतमा मीता अपनी वासना को छिपाती हुई मुझ पर ही दोषारोपण कर रही थी. उसका ये रूप मुझे समझ आ रहा था.

इस एक्स सेक्स गर्ल कहानी के अगले भाग में मैं आपको मीता की चुत चुदाई का पूरा वृतांत लिखूँगा.
आपको सेक्स कहानी पर क्या कहना है, प्लीज मुझे मेल से बताएं.
[email protected]

एक्स सेक्स गर्ल कहानी का अगला भाग: प्रियतमा से एक और मुलाक़ात- 2

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top