चुदाई एक्सप्रेस- 4

(Free Sexy Adult story)

फ्री सेक्सी एडल्ट स्टोरी में अपने दामाद के चाचा से कोई जरूरी कागज हासिल करने की गरज से एक लेडी अपनी बेटी के चचिया ससुर से चुद गयी.

कहानी के तीसरे भाग
गर्लफ्रेंड से शादी और सुहागरात
में आपने पढ़ा कि जवान लड़का अपनी मकान मालकिन की जवान बेटी से शादी करके हनीमून के लिए कश्मीर गए.

अब आगे फ्री सेक्सी एडल्ट स्टोरी:

उधर अब हवेली पर सरिता अकेली थी और ओमी था.

नौकर तो रात को अपने अपने कमरों में चले जाते.

सरिता को ओमी का शिकार करना था.
तो वह बजाय नाम लेने के छोटे ठाकुर कहने लगी.
उसे नौकर भी यही कहते थे.

रात को खाना खाने के बाद सरिता बाहर टहल रही थी कि ओमी आ गया.

उसने मुस्कुराते हुए कहा- भाभी क्या सोच रही हो?
सरिता ने उसे भाव देते हुए कहा- समधी ज़ी, अब बेटी की ससुराल में हूँ, क्या कहूं. आज पीने की तलब लग रही है.

ओमी खींसें निपोरता हुआ बोला- आपने तो मेरे दिल की बात कह दी. आप कमरे में जाइए, अभी लेकर आता हूँ.
सरिता ने बनावटी डर दिखाते हुए कहा- नहीं नहीं, बेटी का ससुराल है. कुछ भूल चूक हो गयी तो अच्छा नहीं होगा. कोई देख लेगा.

ओमी बोला- सब नौकर अपने अपने कमरों में हैं. अब सुबह से पहले कोई नहीं आयेगा अंदर.

सरिता मुस्कुरा कर अपने कमरे की ओर चल दी.

थोड़ी देर में लुकता छिपता ओमी भी आ गया.
उसके हाथ में व्हिस्की की बोतल थी.

सरिता के कमरे में आने पर उसने सरिता की और देखा तो सरिता ने कह दिया- दरवाजा बंद कर लीजिये.

अब तो ओमी ने दरवाजा बंद कर के मेज सजा दी.
सरिता ने अलमारी से नमकीन काजू निकाल दिए.

ओमी ने दो पेग बनाए तो सरिता ने अपना गिलास आधा ओमी के गिलास में कर दिया और बोली- शुरू कीजिये.

गिलास टकरा कर ओमी ने घूँट लगाने शुरू कर दिए.

सरिता सिर्फ पीने का ड्रामा कर रही थी, उसने सिर्फ होंठ भर गीले किये और बाकी गिलास नीचे लुढ़काती रही.

अब मौज मस्ती में ओमी ने दो पेग खींच लिए.
अब उसकी बकवास शुरू हो गयी.
वो बहक रहा था.

सरिता उसके नजदीक आ कर बैठ गयी और फिर इसके कंधे पर हाथ रख कर बोली- सच बताना ठाकुर, तुम्हारा और हमारी समधन के बीच क्या चक्कर था.
ओमी ने खींसें निपोरी और बोला- कछउ चक्कर न थो. बो तो भाभी थी हमारी.

सरिता ने उसके गिलास को फिर से भरा और अपने हाथ से उसे पिलाते हुए बोली- सच बताना कि वो तुम्हें मारती थीं क्या?

अब तो ओमी का मर्द जाग उठा.
उसने लंबा घूँट मारा और बोला- साली मेरे नीचे लेटती थी.
सरिता बोली- तुम्हारा खड़ा भी होता है या ऐसे ही डींग हांक रहे हो.

कहकर सरिता ने उसकी लुंगी के ऊपर से उसका लंड हिला दिया.
फ्री सेक्सी एडल्ट माहौल से ओमी का तो तम्बू बन चुका था.

ओमी ने सरिता को पकड़ लिया.
सरिता ने अपने को छुड़ाया और कहा- वो तो ठकुरानी थी. ऐसे कैसे दब गयी तुमसे?

ओमी नशे में था बोला- हमाये पास बड़े ठाकुर का लिखा एक पुर्जा है. बस वाई के डर से वो साली लहंगा उठाय के देती रही हमको.

सरिता ने अब आखिरी दाव मारा- तुमसे खड़ा तो हुआ नहीं जा रहा, मारोगे क्या?
अब ओमी ने सरिता को दबोच लिया और जबरदस्ती चूमते हुए सरिता की साड़ी मय पेटीकोट के ऊपर उठा दी.

सरिता ने भी उसकी लुंगी से उसका लंड टटोल कर बाहर निकाल लिया.
इस उम्र में भी ओमी का लंड पूरा तना हुआ था.

ओमी पूरे नशे में था.
उसने सरिता की चिकनी चूत पर हाथ फेरा.

फिर उसने कोशिश की सरिता के ऊपर चढ़ कर उसे चोदने की.
पर नशे में उससे कुछ हो नहीं पाया.

सरिता उसका हाथ पकड़ कर उसे उसके कमरे तक छोड़ आई.

अगली सुबह सब नौकरों की नजर बचाकर ओमी सरिता के कमरे में आया और रात की नाकामी के लिए माफ़ी मांगी.

सरिता हँसती हुई बोली- कुछ करना हो तो कम पीया करो.
ओमी बोला- आज आपको निराश नहीं करूँगा.

सरिता दिन में जम कर सोयी.
आज उसे अपनी योजना को अंजाम देना था.

रात होते ही ओमी ने नौकर को पुराना तरीका अपनाते हुए देसी दारु की एक बोतल दी ताकि वो जल्दी अपने कमरे में जाकर मस्त हो जाए.

फिर रात को लगभग दस बजे ओमी सरिता के कमरे में दबे पाँव आया.
सरिता ने मुस्कुराते हुए कहा- आज तुम्हारे कमरे में चलते हैं. तुम पीकर टुन्न हो जाते हो, फिर तुम्हें कमरे तक ले जाने में मेरी तो जान निकल जाती है.

ओमी वापिस चला गया.
सरिता चुपचाप ओमी के कमरे में आ गयी.

ओमी ने पेग बनाए.
सरिता ने उसे बातों में लगाया और ओमी को पेग पिला दिया.

दूसरा पेग बनाकर वो अपने हाथों से ओमी को पिलाने लगी तो ओमी ने सरिता के कपड़े उतारने की जिद करी.
सरिता नहीं चाह रही थी, पर मजबूरी थी.

सरिता ने ब्लाउज खोल दिया तो ओमी ने ब्रा खोल कर उसके कबूतर निकाल लिए और लगा चूसने.

सरिता का भी मन बहका तो उसने ओमी की लुंगी से उसका लंड बाहर निकाल लिया.
ओमी का लंड तना हुआ था और सरिता के हाथ में मचल रहा था.

ओमी ने पेग निबटा लिया.

अब वो सरिता की साड़ी उतार कर पेटीकोट का नाड़ा खोल रहा था कि सरिता ने कहा- मैं तुम्हें करने दूँगी पर पहले मुझे वो पुर्जा दिखाओ जो तुम्हारे पास है बड़े ठाकुर का!
ओमी बोला- तू का करेगी वाको देखकर?
सरिता बोली- कुछ नहीं. मुझे यकीन नहीं है कि तू ठकुरानी को चोदता होगा.

अब तो ओमी ठाकुर तैश में आ गये और अलमारी खोल कर कपड़ों के बीच से एक डिब्बा निकाला उसमें से एक लिफाफा निकाल कर सरिता को थमाया- ले देख ले.

सरिता ने लिफाफा खोला तो वो ठाकुर जगदेव के हाथ से लिखा एक पुराना सा कागज था जिसमें ओमी को जिन्दगी भर हवेली में रहने का अधिकार दिया था और साथ में एक दस बीघा का खेत भी उसके नाम लिखा था.
ये खेत वाली बात शायद ओमी को नहीं मालूम थी पर निश्चित रूप से सावित्री को मालूम थी. इसीलिए उसने सारी जायदाद अपने नाम करा कर ओमी की गवाही करा ली थी.

सरिता पुर्जे को पढ़कर मन ही मन मुस्कुराई कि इस कागज की कोई वैधता नहीं है. बेकार ही सावित्री इससे चुदती रही.

फिर उसके दिमाग में आया कि सावित्री तो इस पुर्जे का बहाना बनाकर सिर्फ अपनी चुदास मिटा रही थी.
क्योंकि जगदेव सिंह के जाने के बाद लंड की भूखी सावित्री को ओमी के लावा किसी और का लंड मिलता भी कैसे.
उसने तो मरते वक्त सिर्फ अपना दामन साफ़ करने के लिए धीरज को इस जाल में फंसा दिया.

अब जब सारिता ये पढ़ रही थी, ओमी ने उसकी साड़ी और पेटीकोट खोल दिया.
पैंटी उसने पहनी नहीं थी और चूत आज दिन में ही चिकनी की थी.

ओमी ने उसकी चूत में जीभ घुसा दी.
सरिता का मन हुआ की ओमी को झिड़क दे.
पर उसकी चूत को भी बिना लंड लिए काफी समय हो गया था तो उसने सोचा कि क्यों न इस नए लंड की सवारी भी कर ली जाए.

सावित्री ने ओमी से कहा कि वो अपना लंड धोकर आये ताकि वो उसे चूस सके.

जब तक ओमी वापिस आया, सरिता ने वो असली कागज तो अपनी ब्रा में लपेट कर रख दिया और उस लिफ़ाफ़े में ऐसे ही कोई और कागज रखकर वापिस डिब्बे में रख दिया.

ओमी आ गया था.
उसके कदम बहक रहे थे पर वो पूरे मूड में था.

सरिता ने उससे डिब्बे को वापिस अलमारी में रखने को कहा.

जब तक ओमी ने डिब्बे को रखा, सरिता बेड पर टांगें फैलाकर लेट गयी और ओमी से बोली- चूसो मेरी!

ओमी ने थूक लगाकर सरिता की चूत चूसनी शुरू की.
उसे भी चिकनी चूत सालों बाद मिली थी.

सरिता की आहें निकलने लगीं.
सरिता ने ओमी से ऊपर आने को कहा.

ओमी ने दो बार कोशिश की पर उसका लंड बार बार चूत के ऊपर से फिसल जाता.

अब सरिता ने उसे नीचे लिटाया और खुद उसके ऊपर चढ़कर अपने हाथ से उसका लंड अपनी चूत के मुहाने पर रखा और अंदर कर लिया और फिर लगी उछलने.

ओमी भले ही नशे में हो पर लंड पूरा मुस्तैद था … सरिता की चूत में घिस कर जा रहा था.
सरिता को चुदाई में पूरा मजा आ रहा था.

अब ओमी का नशा कुछ उतरा तो उसने सरिता के मम्मे पकड़ कर मसलने शुरू किये.
सरिता भी उछल कूद से थक गयी थी.

ओमी का लंड तना हुआ था, खाली होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

ओमी ने सरिता को नीचे किया और उसकी टांगें चौड़ा कर पेल दिया और बड़ी बेरहमी से चोदने लगा.
सरिता को मजा आ रहा था.

ओमी उसे गाली दे रहा था- साली पक्की रांड है, आज तेरी चूत का भोसड़ा बना कर ही छोडूंगा.
दोनों हांफ रहे थे.

ओमी ने एक झटका लगाते हुए सरिता की चूत में माल निकाल दिया.
वीर्य की मात्रा ज्यादा नहीं थी और पतला भी था.
ये सब शराब का नतीजा था.

सरिता ने उसकी लुंगी से ही अपनी चूत को पौंछा और फटाफट कपड़े पहन कर बाहर आ गयी.
वो कागज उसने अपनी ब्रा में ही छुपा लिया था.

दिन में सरिता ने उस कागज को पानी छींटें मारकर खराब कर दिया, अब कुछ पढ़ने में नहीं आ रहा था.
फिर उस कागज को कड़ी धूप में सुखा लिया.
अब वो बिलकुल बेकार था.

अब सरिता को वापिस रात का इन्तजार था.

शाम को ओमी जल्दी घर आ गया.
दिन में वो शहर गया था. वो सरिता के लिए एक साड़ी लाया था, बिल्कुल बेकार, जैसी उसकी अक्ल थी.

सरिता को उस पर दया आई.

रात को जब सब नौकर चले गये, ओमी सरिता को अपने रूम में ले गया.
सरिता चुदासी हो रही थी.

ओमी ने बोतल खोली.
सरिता बोली- आज पहले चोदो, फिर पीना.

कहकर सरिता ने ओमी की लुंगी खोल दी.
ओमी से बदबू आ रही थी.

सरिता ने नाक सिकोड़ कर कहा- जाओ पहले अच्छे से नहाकर आओ और इसे अच्छे से धोना और मंजन करना.

ओमी खींसें निपोरता हुआ नहाने चला गया.

इस बीच सरिता ने चुपके से अलमारी खोल कर वो कागज बदल दिया और असल कागज रख दिया.

ओमी नहाकर आ गया.

अब वो पाउडर की खुशबू से महक रहा था.

सरिता ने उसकी लुंगी खोल कर उसका लंड बाहर निकाला और नीचे बैठ कर लपर लपर चूसने लगी.

आज ओमी होश में था तो लंड भी तना हुआ था.
उसे तो पीने की हुड़क लगी थी तो उसने सरिता को बेड पर लिटाया और चुदाई शुरू कर दी.

आज उसके धक्के दमदार थे.
पर वो जल्दी ही खलास हो गया.

उसने फिर सरिता की चूत में ही छींटें मार दिए.

सरिता की चुदास बुझी नहीं थी.
उसने ओमी के लंड को दोबारा खडा करने की नाकाम कोशिश भी की, फिर भुनभुनाते हुए अपने को साफ़ किया.

इधर ओमी ने पेग बना लिया.
सरिता ने पीने को मना कर दिया और अपने रूम में आ गयी.

उसका काम पूरा हो चुका था.

अब बाक़ी दिन ओमी ने सरिता के बहुत हाथ पैर जोड़े पर सरिता चुदने को तैयार नहीं ही.
उसने ओमी से कह दिया कि अगर उसे चोदने का बहुत मन हो तो वो किसी औरत को हवेली पर बुला कर चोद ले, वो किसी से नहीं कहेगी.

अब तो ओमी की लाटरी खुल गयी.
खेत की औरतें चुदाई के नाम पर बस पैसे चाहती थीं.
उन्हें साफ़ सफाई और चुदाई से कोई मतलब नहीं था. उन्हें तो चुदाई के साथ दारु भी मिल जाती थी जो उनके लिए बहुत था.

अब ओमी अगले दिन एक औरत को ले आया अपने साथ.
सरिता ने अनदेखा कर दिया.

ओमी ने खुद भी दारु पी और उस औरत को भी पिला दी फिर दोनों नंगे होकर खूब उधम काटे.
सरिता जानबूझकर चुप रही.

एक दो दिन बाद धीरज और कनिका आ गये.

ओमी से उनका आमना सामना नहीं हुआ तो ओमी को पता नहीं चला कि वे लोग आ गये हैं.

रात को ओमी एक नयी औरत को ले आया.
आज भी वही ड्रामा.
औरत खेली खायी थी. ओमी पहले भी चुदाई कर चुका था उसकी.

ओमी ने खुद भी शराब पी और औरत को भी पिला दी.
अब ओमी ने अपने कपड़े तो उतार ही फेंके और उस औरत को भी नंगी कर दिया और लगा करने उससे.

कुछ जंगलीपन ज्यादा ही कर दिया तो औरत नंगी ही कपड़े उठा कर भागने लगी.
ओमी ने उसे पकड़ लिया और कमरे में खींचने लगा.

औरत ने शोर मचा दिया.
शोर सुन कर धीरज बाहर आया और यहाँ का नजारा देख कर गुस्से से लाल हो गया.

ओमी की तो हवा खराब हो गयी.
औरत को तो किवाड़ खोल कर सरिता ने भगा दिया पर ओमी की लट्ठ, लात, घूसों से धीरज ने अच्छी खातिर की और रात को ही घर से निकाल दिया.

अगले दिन नशा उतरने पर ओमी ने धीरज से बहुत माफ़ी मांगी.
पर धीरज ने उससे कह दिया कि वो उसकी नजरों से दूर हो जाए.

ओमी ने अब अपना रंग बदला.
वो गुर्राते हुए बोला- इस हवेली में उसका हिस्सा है, उसे कोई बाहर नहीं निकाल सकता.

पंचायत बैठी.
पंचों ने ओमी से कहा कि वो साबित करे कि उसका हिस्सा कैसे है.

ओमी तुरंत हवेली में जाकर अपने कमरे से वही डिब्बा निकाल लाया और सबके सामने वो कागज निकाला और पंचों के हाथ में दे दिया.

पंचों ने कागज को ध्यान से देखा, पढ़ने की कोशिश की फिर वो कागज ओमी को लौटा दिया- इस पर तो कुछ लिखा हुआ पढ़ने में नहीं आ रहा.

ओमी के पैरों तले जमीन निकल गयी.
वो हवेली की और भागा और सरिता को ढूँढने लगा.
वो उसे गंदी गंदी गालियाँ बक रहा था.

कनिका ने धीरज के पिता की रायफल उठा ली और ओमी से बोली- यहाँ से चला जा. वरना तेरा खून कर दूँगी.

ओमी ने वहां से जाने में ही भलाई समझी.
उसने अपना सामान बांधा और वो कस्बा छोड़ कर जाने लगा.

धीरज ने उसे बुलाया और एक लाख रूपये देते हुए कहा कि वो उसे आगे से हर महीने पांच हजार रुपया देता रहेगा. पर ओमी उसके लिए कोई परेशानी न खड़ी करे.

सरिता भी अब शहर आ गयी.
उससे मिलने पुराने अस्पताल वाले डॉक्टर साहब आये और उसे दोबारा अस्पताल ज्वाइन करने को कहा.
सरिता ने टालना चाहा तो डॉक्टर साहब ने पैसे का लालच दिया.

सरिता को भी एक बंधी आमदनी और चुदाई के लिए लंड चाहिए था.
तो उसने हाँ कह दिया.

पर यह शर्त लगा दी कि वो रात को नहीं रुका करेगी. उसे भी मालूम था कि अगर डॉक्टर साहब को चुदाई करनी है तो वो उसे अपनी कोठी पर बुलायेंगे या उसके घर आयेंगे.

अब सबकी जिन्दगी सेट हो गयी.
सरिता को भी चुदने के साथ पैसे मिलने लगे.

कभी धीरज अकेला शहर आता तो सरिता उस दिन छुट्टी ले लेती और धीरज से जीभर कर चुदाई करवाती.

पता नहीं क्या बात थी सरिता में जो धीरज उसे चुदाई के लिए मना नहीं कर पाता.
धीरज कभी यह\ नहीं जान पाया कि सरिता ने किस तरकीब से ओमी का वो कागज बदल लिया.

सरिता उसे हमेशा ये कहती कि असल कागज आज भी उसके पास है.
धीरज उसे माँगता तो वो कहती की धीरज निश्चिन्त रहे. जब वो मरेगी तो वो असल कागज उसकी चिता में ही जल जाएगा.

इस बात से धीरज हमेशा सरिता की हर बात मानता रहा.

धीरज ने हँसते हुए एक बार सरिता से कहा- आप की बेटी आपसे भी बड़ी चुदक्कड़ है. बिना चुदे उसे रात को नींद ही नहीं आती!
सरिता बोली- हमारी तुम्हारी कहानी तो एक चुदाई एक्सप्रेस है, जिसमें हर पैसेंजर चुदाई का भरपूर मजा लेता है.

तो दोस्तो, कैसी लगी आपको ‘चुदाई एक्सप्रेस’ की रफ़्तार?
फ्री सेक्सी एडल्ट स्टोरी पर कमेंट्स में बताइयेगा.
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