मेरी सहेली मेरे यार से चुद गयी नदी किनारे- 1

(Gaon Ki Aurat Ki Chudai Kahani)

गाँव की औरत की चुदाई मैंने अपनी आँखों के सामने देखी. नदी किनारे मैं अपनी सहेली संग गयी तो वहां हम दोनों का चोदू यार भी आ गया. उसने मेरी सहेली को चोदा.

मैं आपकी सारिका कंवल एक बार फिर से अपनी सेक्स कहानी में आपका स्वागत कर रही हूँ.

मेरी पिछली कहानी
जंगल में चुद गयी यार से
में अब तक आपने पढ़ा था कि मेरी भाभी के भाई सुरेश ने मुझे झाड़ियों में ले जाकर चोद दिया था और अब हम दोनों वापस आने लगे थे.

अब आगे गाँव की औरत की चुदाई:

हम वापस आकर अपनी गाड़ी में बैठ गए.
सुरेश के मुख पर खुशी के भाव थे, वो ऐसे संतुष्ट दिख रहा था मानो उसका कोई बोझ उतर गया हो.

पर उसका बोझ अब मुझे भारी लगने लगा था.
जल्दबाजी में मैंने योनि ठीक से साफ नहीं की थी और अब उसका वीर्य रिस रिस कर बाहर बहना शुरू हो गया था.

मैंने सुरेश से कहा- टिश्यू पेपर है क्या?
सुरेश- हां शायद होगा देखो कहीं!

ढूंढने के बाद भी नहीं मिला तो मैंने पूछा- गाड़ी में कोई कपड़ा है, जिससे गाड़ी साफ करते होगे.
सुरेश- नहीं, आज ही सुबह फेंक दिया, बहुत गंदा हो गया था. क्यों अब तुम्हें क्या हुआ?

मैं- क्या होगा … खुद हल्के हो गए और मुझे अपना बोझ थमा दिया. अब रस बाहर निकल रहा है. पैंटी में लग गया और जांघों के बीच चिपचिपा सा लग रहा है.
सुरेश हंसता हुआ बोला- अब थोड़ी देर में गांव पहुंच ही जाएंगे. वहां जाकर नहा लेना और साफ कर लेना.

मैं- कितने दिन से नहीं किया था. ऐसा लग रहा है मेरी चूत भर गई है.
सुरेश- तुम्हारे अलावा कहां किसी से किया है. हां करीब 20-25 दिन से मुठ नहीं मार रहा था.

माहवारी के समय जैसा गीलापन लगता है, मुझे ठीक वैसा ही आभास हो रहा था. जैसे जैसे वीर्य बाहर आ रहा था, मेरी पैंटी का हिस्सा भीगता जा रहा था.

मैं बहुत असहज महसूस कर रही थी और ठीक से बैठ नहीं पा रही थी.
मुझे डर था कि पैंटी से होता हुआ पेटीकोट और साड़ी में न लग जाए वरना एक दाग सा लग जाएगा.

मैं किसी तरह खुद को संभाले हुए थी, उधर सुरेश की बकवास फिर शुरू हो गई- तुम सच में बहुत कमाल की हो, तुम्हें तो हर मर्द चोदना चाहता होगा … और जिसने भी एक बार चोद लिया, वो मेरी तरह तुम्हें बार बार चोदना चाहेगा. हा हा हा हा!

मैं मन में सोचने लगी कि उसका कहना सही है.

फिर मैंने कहा- अच्छा ऐसा क्या दिख गया तुम्हें?
सुरेश- तुम्हारी बात ही अलग है … तुम भी मजे लेना चाहती हो. सबसे खास बात ये कि तुम किसी भी हाल में साथ नहीं छोड़ती, जब तक मैं झड़ न जाऊं. पता नहीं तुम्हारा पति को क्या हुआ है. मैं तुम्हारा पति होता तो रोज कितनी बार चोदता, पता नहीं शायद मेरे शरीर में जितनी ताकत थी … खत्म न हो जाती तब तक तुम्हें चोदता. सुषमा को मैं ये बात बताऊंगा कि मैंने तुम्हें बीच जंगल में चोदा. हा हा हा हा!

मैं ही मन अपनी प्रशंसा सुन कर खुश होती हुई बोली- अभी सुषमा कहां है? मेरी उससे बहुत दिनों तक बात नहीं हुई.
सुरेश- गांव में ही है. हमारा इन्तजार कर रही है. मैंने उसे भी बुला लिया था. पिछली बार बोला था न उसने कि वो हमसे जरूर मिलेगी!

सुरेश ने अपनी वासना की पूर्ति के लिए सब प्रबंध कर लिया था.
खैर … इसमें कोई बुराई नहीं थी. अब उसकी पत्नी उसके साथ नहीं है और मन और तन की शांति के लिए ये जीवन की एक महत्वपूर्ण क्रिया है.
हम दो मित्र उसके काम आ रहे हैं, इससे बड़ी क्या बात हो सकती है.

फिर सुरेश भी कोई मतलबी नहीं था बल्कि वो भी स्त्री को सुख प्रदान करने और चरम सुख की अनुभूति प्रदान करने में भरोसा रखता था.
मैं तो निश्चिंत थी कि हमें भी वासना का सुख मिलेगा ही.

सुरेश दोबारा मुझसे कहने लगा- याद है, जब मैंने तुम्हें पहली बार चोदा था, तुम मुझे रोकना चाहती थी. फिर भी मैंने तुम्हें चोद लिया था!

मैं- हां तुम हो ही कमीने … तुम्हारे जितनी ताकत नहीं मुझमें. इसलिए कर सके थे. तुम्हें उसमें ऐसा क्या मिल गया?
सुरेश- उसी के बाद तो मुझे समझ आया कि तुम्हारे अन्दर कितनी कामुकता है.

अब उसने हमारी उस संभोग क्रिया के बारे में पूरा वर्णन देना शुरू कर दिया.

सुरेश- पहले तो तुम न न करती रही, पर जब मेरा लंड घुस गया तो धीरे धीरे तुम्हें भी मजा आने लगा था न!
मैं- हां, शुरू में मुझे अच्छा नहीं लगा था. मैं नहीं करना चाहती थी, फिर अच्छा लगने लगा.
सुरेश- हां मैं तो तभी ही समझ गया था जब तुमको धक्का मार कर चोद रहा था. फिर थोड़ी देर बाद तुम भी अपनी गांड उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी थीं.

मैं उसकी बातें सुन कर शर्मा सी गयी और मेरी योनि में हलचल सी होने लगी.

सुरेश- उसके बाद भी जब दोबारा चोदा है, तुमने पूरी कोशिश की है कि मुझे मजा आए. तुम्हारी यही बात मुझे बहुत पसंद आई.
मैं- अब बस भी करो.

सुरेश- हा हा हा हा … तुमको मजा आया मेरे साथ या नहीं?
मैं मुँह बनाती हुई- नहीं, बिल्कुल नहीं!
सुरेश- हा हा हा हा … झूठ!

इतना कहते और बातें करते हम गांव पहुंच गए.
उसने मुझे अपने घर पर उतारा और इशारे में रात को मिलने की बात कही.

चार घर छोड़ कर उसकी सहेली सुषमा का घर था.

घर में सबसे मिलकर अच्छा लगा पर मेरी मुसीबत मेरी गीली पैंटी थी.
मैं अपनी पैंटी इस हाल में कहीं उतार कर रख भी नहीं सकती थी.

जल्दी जल्दी भइया, भाभी, भतीजों से मिल मैं पहले पेशाब करने गयी क्योंकि मुझे दोबारा से पेशाब लग आई थी.
इसी वजह से मैंने योनि को पानी से धोया और वही पैंटी दोबारा पहन ली.

बाहर आकर मैं सबसे मिली.

दो-तीन घंटे बातें हुईं और उसके बाद मैं नहाने चली गयी।
सब धोकर साफ करने के बाद ही मुझे चैन मिला।
दोपहर का खाना खाकर मैं भाभी के कमरे में ही सो गई।

एकलौती बेटी होने की वजह से मां पिताजी ज्यादा प्राथमिकता दिया करते थे और भैया भी!
इस घर में मेरा एक अलग कमरा था ताकि अगर कभी मैं अपने बच्चों और पति के साथ आऊं तो किसी को परेशानी न हो.

पर बहुत कुछ बदल सा गया था.

नींद खुली तो 4 बज गए थे. मेरा कमरा साफ करवा कर मेरा सामान रखवा दिया गया था.

तभी सुषमा आ गयी.
उसे देख मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा.
कई सालों के बाद मैं उससे मिल रही थी.

हम दोनों कितने बदल से गई थी.
वो भी मोटी और मैं भी मोटी … पर वो मुझसे ज्यादा मोटी थी.
हमने बहुत देर तक बातें की, चाय वगैरह पी.

मेरी भाभी ने कहा- जाओ नदी तरफ थोड़ा टहल आओ.

सूरज डूबने को था. तो मैं और सुषमा नदी की तरफ निकल पड़े.
हम दोनों बहुत खुश थीं.

नदी ज्यादा दूर नहीं थी. करीब 5 किलोमीटर … जैसा पर गांव में ये ज्यादा दूरी नहीं होती.
लोग तो 20-25 किलोमीटर बाजार हाट करने चले जाते हैं.

हम दोनों की नदी तालाब खेत और पहाड़ों से बहुत सी यादें जुड़ी हुई थीं.
बचपन में कभी इन तालाबों नदियों में नंगी होकर डुबकी लगाया करती थी.

गांव में पहले लोग अपने घरों में शौचालय नहीं बनवाते थे बल्कि इन्हीं खेतों, नदियों के किनारे शौच कर लिया करते थे.
मैं और सुषमा भी किसी जमाने में ऐसे ही सुबह शाम नदी किनारे शौच के लिए आया करती थी.

पर अब गांव में बहुत कुछ बदल गया था.
बिजली आ गयी है, शौचालय है, सड़क है, पर ये नदी तालाब पेड़ पहाड़ आज भी अपने उसी रूप में सुंदर हैं.

किसी जमाने में कई नए प्रेमी जोड़े हमारे गांव के या बगल गांव के इन नदियों और पहाड़ों और जंगलों में छिप कर मिलते थे या संभोग करते थे.
मैंने और सुषमा और एक और सहेली ने एक बार संभोग होते देखा था.

वह मर्द हमारे गांव का एक आदमी था. वह रिश्ते में सुषमा का दूर का दादा लगता था. वह बगल के गांव की एक महिला के साथ संभोग कर रहा था.
हम उस समय बहुत छोटी थीं इसलिए कुछ समझ नहीं आया कि आख़िर क्यों दादा जी उस औरत की टांगें फैला उसे कमर से धक्का मार रहे थे.

पर हम उन्हें छिप कर तब तक देखटी रही थी जब तक वो दोनों एक दूसरे से अलग नहीं हुए थे.

आज फिर से हम दोनों के बीच वही बात छिड़ गई.

दादाजी झड़ते ही उठ कर अपना लुंगी ठीक करके जाने लगे और उधर औरत भी उठ कर चली गयी.
न उन दोनों ने एक दूसरे को कुछ बोला, न पलट कर देखा.

उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे ये दोनों राह चलते मिल गए थे और अनजान लोगों की तरह नजर झुका कर आगे बढ़ गए हों.

वापस आते वक्त दादाजी ने हमें देख लिया था.

सुषमा ने दादा जी से पूछ लिया- आप इधर क्या कर रहे थे?
दादाजी ने कह दिया कि ये खेत से सब्जी चुरा कर भाग रही थी, वही उससे छीन लिया था. पर तुम किसी को बताना नहीं वरना दोनों गांवों में झगड़ा होगा.

हम बच्चे थे, उन्होंने जो कहा … हमने मान लिया.

अब गांव में आबादी बढ़ गयी है … शायद ही ऐसा कुछ होता होगा.

हम नदी के पास पहुंच गई. मैं एक चट्टान पर बैठ गयी और सुषमा शौच करने चली गयी, जैसा कि उसका हमेशा से था.

लगभग अंधेरा होने को था, सूरज डूब चुका था.
पता नहीं मुझे भी क्यों शौच की हाजत सी लगने लगी.

मुझे ऐसे खुले में शौच किए काफी समय हो चुका था.
पेशाब करना होता तो बड़ी बात नहीं थी.

मैं सोच रही थी कि सुषमा जल्दी से आ जाए तो घर वापस चलेंगे ताकि मैं भी शौच कर सकूं.

पर पता नहीं वो क्यों इतना देर लगा रही थी.
मैंने उसे जोर से आवाज दी और पूछा- अगर हो गया तो घर चलें?

मैंने उसे 2-3 बार और आवाज दी, कोई जवाब नहीं मिला.
मुझे और जोर से आ रही थी तो मैंने सोचा कि उसी की तरफ जाती हूँ … अगर उसका हो गया होगा, तो वहीं से चले चलेंगे.

हल्का अंधेरा हो चला था साफ दिख नहीं रहा था.

खैर … सुषमा ने साथ में टॉर्च ले रखा था.
मैंने अपने मोबाइल की लाइट जला ली थी.

थोड़ी दूर पत्थरों को पार करके गयी, तो मेरे सामने अजीब सा दृश्य था.
सुषमा दो छोटे पत्थरों के ऊपर पानी से करीब 1-2 फिट दूर बैठी शौच कर रही थी. उसके ठीक आगे पीछे लंबे लंबे घास के झुरमुट थे, जिससे कुछ हद तक उसकी कमर तक का हिस्सा छिप गया था. पर फिर भी ये तो दिख ही रहा था कि वो अपनी साड़ी कमर तक उठा शौच के लिए बैठी है.

उससे ठीक 10 -12 गज की दूरी पर एक पत्थर पर सुरेश बैठा उससे बातें कर रहा था.

मुझे आती देख सुषमा बोली- देखो हम लोगों के पीछे पीछे यहां तक आ गया है ये?
मैं- सुरेश तुमको कोई शर्म नहीं है क्या? ऊपर से सुषमा तू भी बेशर्म है, इसके सामने ऐसे खोल कर बैठी है?

सुरेश- इसमें शर्म की क्या बात? पहली बार थोड़े नंगी देख रहा हूँ इसे … या फिर जैसे तुम्हें कभी नंगा देखा ही नहीं हो?
मैं- अरे जल्दी कर, तू घर चल मुझे भी जोर से लगी है.

सुषमा- तो इधर ही बैठ जा न कहीं … इतनी दूर वापस क्यों जाना?
मैं- नहीं रे, मुझसे खुले में ये नहीं होता. बहुत गन्दा लगता है, बहुत बीमारी होने का डर होता है. तू भी ऐसे मत किया कर!

सुषमा- अरे कोई नहीं करता अब खुले में … मुझे लगी थी तो क्या करती, वापस जाने में समय लग जाता. तू भी बैठ जा कहीं, डर मत, साबुन वगैरह है मेरे पास!
सुरेश- हां, बैठ जाओ कहीं इधर … आजकल कोई नहीं आता.

मैं- वैसे तुम यहां क्यों आए हमारे पीछे?
सुषमा- चोदने आया है फिर से तुझे … ही ही ही ही.

मैं- तो सब बता दिया तुमने इसे?
सुषमा- तो क्या हुआ मेरे बारे में भी तो तुझे पता है!

मैं- वहां जंगल में तो ठीक हो गया, पर यहां बिल्कुल मत सोचना. कोई ने देख लिया तो जान के लाले पड़ जाएंगे.
सुरेश- अरे हम कोई जवान लड़के लड़की थोड़े हैं कि कोई हम पर शक करेगा. हम छिप कर करेंगे, सुषमा नजर रखेगी कि कोई आ तो नहीं रहा.

मैं- वाह … तुम तो मतलबी हो ही अपने मजे कर लिए और हमें मुसीबत में डाल दिया. सुषमा तेरा हो गया तो चल, मुझे और जोर से लग रही है. और अगर तुझे इसको देनी है, तो दे. मैं चली.

सुरेश हम दोनों से विनती करता हुआ बोला- अरे प्लीज रूको न … दोनों में से कोई तो चोदने दो न!
सुषमा- ठीक है, मैं देती हूं मगर तुझे सारिका को रोकना पड़ेगा वरना अकेले कैसे जाऊंगी. अंधेरा हो गया है और तुम्हारे साथ जा नहीं सकती हूँ.

मैं- मैं तो जा रही हूं. मुझे जोर से लगी है.
सुषमा- ठीक है, जा कमीनी … अंधेरे में डर तो नहीं लगेगा?

अंधेरा तो काफी हो गया था मगर हम सब पास में होने की वजह से एक दूसरे को दिखाई दे रहे थे.
सुषमा ने टॉर्च जला कर सुरेश को पास बुलाया और उसे दिखाने को कहा ताकि वो खुद को धो ले.

मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था इसलिए जहां खड़ी थी, वहीं जगह देख कर मैं भी शौच के लिए बैठ गयी.
मुझे बैठती देख कर सुरेश बोला- पैंटी मुझे दे दो, मैं रख देता हूं.

वो मेरे पास आया तो मैंने उसे अपनी पैंटी पकड़ा दी.

उधर टॉर्च की रोशनी में सुषमा ने खुद को धो धा कर साफ कर लिया.

मैं भी बैठ कर मल त्यागने लगी, वैसे मुझे ऐसी आदत नहीं थी अब पर परिस्थिति ही ऐसी थी कि हो गया.

सुषमा और सुरेश मुझसे कुछ दूर खड़े होकर मुझसे कहा- हम लोग उधर जा रहे हैं. दो चट्टानों के बीच. तुम ध्यान देना कोई आए तो फ़ोन का टॉर्च जला देना.

मैं- ठीक है, पर मैं अंधेरे में धोऊंगी कैसे?
सुषमा- कर लो तो आवाज दे देना, मैं आ जाऊंगी.

इतना कहकर दोनों चट्टानों के पीछे चले गए.
जगह ऐसी थी कि सामने से या ऊपर से ही दिख सकता था कि वहां क्या हो रहा, पर अंधेरा था तो जब तक 5-7 कदम नजदीक न हों, नहीं दिख सकता था.

मुझे लगभग 10 मिनट हो गए थे. मेरा पेट खाली हो चुका था.

पर मुझे पता नहीं वो दोनों क्या कर रहे थे.

मैंने आवाज दी, सुषमा टॉर्च लेकर आई.
मैंने नदी में खुद को धोया, साबुन वगैरह से अच्छे से हाथ साफ किए.

फिर हम दोनों उस चट्टान के पास चले गए.
सुषमा ने मुझे बताया कि सुरेश उसकी योनि चाट रहा था और उसे अपना लिंग चूसने को कह रहा था.

मैं- तूने चूसा उसका लंड?
सुषमा- नहीं रे … मुझे नहीं आता बाद में फुर्सत से कभी करेंगे. अभी जल्दी से उसे झाड़ देती हूं. अभी तो हम लोग 3-4 दिन रहेंगे ही यहां!

मैं- तुम गीली हुई क्या?
सुषमा- हां, हल्का हल्का पानी आना शुरू हुआ था कि तूने आवाज दे दी. अच्छा तू इधर ही रूक और देखती रहना कि कोई आ तो नहीं रहा.

मैं करीब 10 गज की दूरी में रूक गयी, हम सब बहुत धीमी आवाज में बातें कर रहे थे.
उन दोनों की चुदाई की योजना बन गई थी शायद.
अब वो सब कैसे हुआ, ये सेक्स कहानी के अगले भाग में लिखूँगी.

आपको गाँव की औरत की चुदाई कैसी लग रही है, प्लीज़ मुझे मेल करके जरूर बताएं.
[email protected]

गाँव की औरत की चुदाई कहानी का अगला भाग: मेरी सहेली मेरे यार से चुद गयी नदी किनारे- 2

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