जरा सोचिये
आइये, थोड़ी देर के लिए अपने विचारों के वायुयान को धरती के धरातल पर उतारें… ज़रा सोचें कि हमारे एक भारत देश में क्या हो रहा है, हम क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं, इसका क्या असर हो रहा है, गलती कौन कर रहा है, इसका भविष्य क्या है!
*आंकड़े बताते हैं कि बच्चियों से दुर्व्यवहार के 85 से 90% मामले घर की चार दीवारों में होते हैं जहाँ दुनिया की कोई सरकार 24 घंटे पुलिस या मिलट्री की सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती।
*आमिर खान जैसे ‘सत्यमेव जयते’ के पुजारी भी डी के बोस जैसे गीत फिल्माते हैं। बाकी निर्माताओं की सोच के बारे में सोच ही सकते हैं।
*वस्त्र उतारने वाली अभिनेत्रियाँ अब सेलिब्रेटी हैं।
*माँ-बाप अपने बच्चों को ‘शीला की जवानी’ और ‘मुन्नी बदनाम हुई’ जैसे गानों पर नचा कर खुश होते हैं और दाद चाहते हैं।
*विवाह समारोह में चालू गानों पर जेठ-बहू और सास ससुर का नाचना अब आम बात है।
*इस देश में महिला आयोग की मुखिया चाहती हैं कि सुन्दर महिलाओं को ‘सेक्सी’ कहो।
*धर्मिक आयोजनों में भी भजन नहीं बजता, फ़िल्मी गीतों की भरमार रहती है।
*युवा पीढ़ी हनी सिंह के अश्लील गीतों को गन्दा नहीं मानती।
*लड़की का दुपट्टा एक बार फिसलता है और मीडिया उसे एक सौ एक बार दिखाता है।
*सार्वजनिक स्थानों पर बिकनी पहनकर सम्मान चाहने वाली लड़कियों की तादाद बढ़ती जा रही है।
*50+ की मेरी पीढ़ी बच्चों को हर कीमत पर कार देना चाहती है, संस्कार बहुत पीछे छूट रहे हैं।
*विकृति verses संस्कृति की जंग को बिना वजह पुरुष verses महिला की जंग का रूप दिया जा रहा है।
*क्या हम सबको आइना देखने की जरुरत नहीं है? या केवल व्यवस्था को कोसने से काम चल जायेगा?
*जब ज्यादातर चैनल TRP और विज्ञापनों का सुख जुटाने में जुट जाएँ तब लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ लड़खड़ाता नजर आता है।
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