बस के सफर में कमसिन चूत मसलने की कहानी

(Bus Sex Story)

बस सेक्स स्टोरी में मैंने अपने आगे वाली सीट पर बैठी एक जवान सेक्सी लड़की और उसके साथ आकर बैठे लड़के की आपस की कामुक शरारतों को बताया है.

नमस्ते दोस्तो, मैं आपका मोहित.

मेरी पिछली कहानी
ट्रेनी आईपीएस के साथ लिव-इन संबंध
पर आप सभी से मिले प्यार के लिए हृदय से आभार.

एक बार फिर से मैं एक रोमांचक बस सेक्स स्टोरी के साथ हाज़िर हूँ.
यह सेक्स कहानी नहीं है, बल्कि एक सफर के दौरान एक लड़के और लड़की के बीच हुई कामुक और कश्मकश भरी दास्तान है.

मेरे उन साथियों से, जो महिलाओं की निजी जानकारियां मांगते हैं, मैं माफी मांगता हूँ और कहना चाहता हूँ कि कहानियों का आनन्द लें, किसी के निजी जीवन में दखल न करें.

यह बस सेक्स स्टोरी मेरी या मेरी किसी महिला मित्र की नहीं है बल्कि मेरे सफर के दौरान घटित घटनाओं पर आधारित है.
पात्रों के नाम कहानी को पढ़ने में मज़ा आए, इसलिए लिख दिए गए हैं … बाकी नाम बदले हुए हैं.

कुछ दिन पहले मैं ज़रूरी काम से रोडवेज की बस से लखनऊ जा रहा था.
मैं अकेला था, तो सोचा कि आज का सफर बहुत बोरिंग होगा.

लेकिन तभी बस में एक परिवार चढ़ा, जिसमें पति-पत्नी और उनकी बेटी थी.
बेटी की उम्र लगभग 19 साल रही होगी.

बस चलने में अभी वक्त था और लगभग खाली बस में उन्होंने मेरे बगल वाली तीन सीटों पर अपनी तशरीफ जमा ली.

कुछ ही देर में वह आदमी उन्हें छोड़कर चला गया.
अब मैंने उस लड़की को तसल्ली से देखा, तो मैं जैसे खो ही गया.

उसका दूध-जैसा गोरा रंग, तीखे नैन, पतली सुराहीदार गर्दन, होंठ ऐसे जैसे गुलाब की नाजुक पंखुड़ियां.

उस लड़की ने क्रॉप टॉप और घुटनों तक की स्कर्ट पहनी थी.
उसके शरीर की बनावट एक कमसिन कली-सी थी, शायद 30-26-32 की फिगर रही होगी.
वह न ज्यादा मोटी, न पतली … औसत देह की कामुक लड़की.

कुछ देर बाद बस चलने को हुई.

उस लड़की का नाम श्रद्धा था जो उसकी मां के पुकारने पर मालूम हुआ था.
मां ने उसे पुकारा और खुद खिड़की की तरफ चली गई.

इससे अब उस हुस्न परी का दीदार मेरे लिए और सुलभ हो गया.

बस अभी कुछ ही दूर चली थी कि कुछ लोग बस में चढ़े, जिनमें हमारी कहानी का हीरो नीरज भी था.

सभी लोग अपनी-अपनी जगह देखकर बैठ चुके थे.
नीरज भी श्रद्धा के बगल में आकर बैठ गया, जिससे मेरी नज़र मेरी हीरोइन पर नहीं जा पा रही थी.

बस अब शहर से बाहर निकलकर अपनी रफ्तार पर थी.
मेरी नज़र, न चाहते हुए भी बार-बार श्रद्धा की तरफ जा रही थी.

बस को चले हुए लगभग 25-30 मिनट हो चुके थे और वे आंटी भी अब तक सो चुकी थीं.
मैंने जैसे ही उस तरफ नज़र डाली, मुझे उन दोनों की हरकतों में कुछ गड़बड़-सी महसूस हुई.

श्रद्धा बाहर की तरफ नज़र करके बैठी थी लेकिन नीरज के शरीर में कुछ हलचल मुझे दिख रही थी.
क्योंकि मेरी सीट बगल में थी इसलिए मैं वह सब देख पा रहा था.

कुछ ही देर में मैंने देखा कि नीरज अपनी कोहनी से श्रद्धा के वक्षस्थल को छूने की कोशिश कर रहा था.
लेकिन श्रद्धा की तरफ से अभी तक कोई विरोध नहीं दिखा.

अब मेरी भी दिलचस्पी इस खेल को देखने में बढ़ने लगी.
मैंने खुद को सीट पर अच्छे से एडजस्ट किया और इस खेल का मज़ा लेने लगा.

कुछ देर बाद श्रद्धा भी इस छेड़छाड़ के मज़े लेने लगी थी.
जैसे ही नीरज ने यह महसूस किया, उसकी हरकतें श्रद्धा के जिस्म पर बढ़ती जा रही थीं.
अब नीरज का एक हाथ श्रद्धा की कोमल जांघों पर आ गया.

उसका हाथ अभी फिलहाल उसकी स्कर्ट के ऊपर चल रहा था और दूसरा हाथ श्रद्धा की नाजुक चूचियों को महसूस करने में व्यस्त था.

श्रद्धा भी आंखें बंद करके इस मादक पल को महसूस करने में डूब गई थी.
उसके चेहरे पर आते मादक भाव बता रहे थे कि उसकी कमसिन जवानी को यह खेल बहुत पसंद आ रहा था.

बस में भीड़ होने की वजह से कोई उनकी हरकतें देख नहीं पा रहा था.
लेकिन मैं बगल में था, तो मेरे लिए सब देखना आसान था.

तभी नीरज ने अपना एक जूता उतार कर अपना पैर श्रद्धा की चिकनी पिंडलियों पर छू दिया.
अचानक श्रद्धा को जैसे करंट-सा लगा; उसके शरीर में कंपन हो गई, उसके होंठ थरथराने लगे.

अनजाने में ही उसका हाथ नीरज के हाथ पर आ गया.
वह उसे रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन नीरज उसे तड़पाने में मज़ा ले रहा था.

श्रद्धा कातर भाव से नीरज को देखने लगी, जैसे कह रही हो कि बस अब और नहीं, वरना मैं खुद को काबू में नहीं रख पाऊंगी!

नीरज की हरकतें उस कमसिन कली के जिस्म पर बढ़ती जा रही थीं.
अब उसका हाथ श्रद्धा की चूची से सरक कर उसके पेट पर आ चुका था, जहां से वह उसके टॉप के अन्दर हाथ डालने का प्रयास कर रहा था.
शायद इस बीच उन दोनों ने एक दूसरे के नाम भी जान लिए थे.

नीरज का दूसरा हाथ श्रद्धा की जांघों पर कोहराम मचा रहा था, साथ ही नीरज का पैर श्रद्धा की पिंडलियों पर अपना कमाल दिखा रहा था.

श्रद्धा के चेहरे पर काम की रेखाएं उभर आई थीं.
उसका चेहरा सफेद से गुलाबी हो चुका था, होंठ थरथरा रहे थे और उसकी आंखों में वासना के लाल डोरे स्पष्ट दिख रहे थे.

नीरज लगातार अपनी हदें पार कर रहा था.
उसका हाथ जांघों से उठकर श्रद्धा की स्कर्ट के नीचे उसके घुटनों तक पहुंच चुका था.
श्रद्धा के नंगे, कच्चे जिस्म पर एक मर्द के हाथों का अहसास उसकी कामवासना को जगा रहा था.

नीरज का हाथ अब धीरे-धीरे स्कर्ट को उसकी जांघों तक ले आया था.
‘श्रद्धा, तुम्हारी त्वचा कितनी मुलायम है!’ नीरज ने धीमी आवाज़ में कहा.

हालांकि दोनों बस में थे लेकिन भीड़ अधिक होने और रोडवेज की बस में सीटें छोटी होने की वजह से किसी के देखने की गुंजाइश कम थी.

फिर भी, मेरी गिद्ध-सी दृष्टि इस युगल की लीलाओं का आनन्द ले रही थी.
वे अपनी मस्ती में मस्त थे और मेरी नज़रों से पूरी तरह अनजान.

जैसे ही नीरज के हाथ ने श्रद्धा की नंगी जांघों को छुआ, अचानक श्रद्धा का हाथ नीरज की जांघों पर उसके नागराज के पास आ गया.
इतनी देर में यह पहली बार था, जब श्रद्धा ने इस तरह से नीरज को छुआ था.

वह अपने हाथों का दबाव नीरज के पैर पर बढ़ा रही थी.

‘नीरज, ये क्या कर रहे हो!’ श्रद्धा ने कांपती आवाज़ में कहा.
पर उसकी आंखें कुछ और ही कह रही थीं.

अचानक श्रद्धा ने एक गहरी सांस लेते हुए आंखें बंद कर लीं. उसका शरीर बुरी तरह कांप रहा था और हल्के झटके महसूस हो रहे थे.

शायद वह कमसिन कली अपनी जवानी का रस बहा चुकी थी.

बस में लगने वाले झटकों की वजह से श्रद्धा के शरीर की यह कंपन किसी ने ज्यादा महसूस नहीं की लेकिन नीरज और श्रद्धा को पता था कि यह सब क्या और कैसे था.

अचानक नीरज ने अपना हाथ श्रद्धा की स्कर्ट से बाहर निकाला और उसकी आंखों में देखते हुए अपनी उंगलियों को मुँह में डालकर चाट लिया.
शायद उसे उस कमसिन जवान का स्वाद मिल चुका था.

यह देखकर श्रद्धा शर्म से लाल हो गई और उसने मुँह फेर लिया.
‘नीरज, तुम्हें शर्म नहीं आती!’ उसने धीरे से कहा.

तभी बस एक शहर में दाखिल हुई.
कंडक्टर ने आवाज़ दी- अगले स्टॉप पर उतरने वाले तैयार हो जाओ!

श्रद्धा ने खुद को ठीक किया और अपनी मां को जगाया.
शायद यही शहर उनका ठिकाना था.
बस के रुकते ही दोनों मां-बेटी उतर गईं.

मेरी नज़र अचानक नीरज की सीट पर गई.

वह अपने मोबाइल में कुछ कर रहा था. मैंने थोड़ा गौर किया तो देखा कि वह किसी का नंबर सेव कर रहा था. थोड़ा और उचक कर देखने पर पता चला कि वह नंबर श्रद्धा का ही था.

मेरा दिमाग घूम गया. मेरी नज़रें हर वक्त इन पर थीं, फिर भी यह सब कब हुआ, पता ही नहीं चला.
अभी लखनऊ पहुंचने में कुछ वक्त बाकी था.

मैंने अपने फोन में गाने लगाए और निश्चिंत भाव से श्रद्धा के बारे में सोचते हुए बैठ गया.
जानता हूँ कि इस बार कहानी में कोई समागम का भाग नहीं है लेकिन सफर के दौरान कभी-कभी कुछ ऐसा कामुक देखने को मिल जाता है कि लिखने पर विवश होना पड़ता है.

आशा है मेरे मित्रों को मेरी यह कोशिश, यह बस सेक्स स्टोरी पसंद आएगी.

मेरी लेखनी में छुपी कमियों और हमेशा मिलने वाले आप सभी के प्यार का इंतजार रहेगा.
मेरा पता वही पुराना
[email protected]
जिस पर आपकी शिकायतों और प्यार को मैं हमेशा शिरोधार्य करता हूं.
जल्द मिलेंगे कुछ नयी कामुक आपबीती के साथ.

What did you think of this story

Comments

Scroll To Top