चूत जवां जब होती है- 5

(Chut Jwan Jab hoti hai-5)

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मैं उसकी जींस के ऊपर से ही उसकी चूत मसलने लगा साथ में उसका निचला होंठ अपने होठों में भर के चूसने लगा, फिर अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी वो भी मेरी जीभ चूसने लगी।
हमारा चुम्बन गहरा होता चला गया, उसने भी अपनी जीभ बाहर निकाल दी जिसे मैंने अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगा।

वो सिहर उठी!
किसी पुरुष का प्रथम स्पर्श था यह उसके लिए!

अब मैं टॉप के ऊपर से ही उसके स्तनों का मर्दन करने लगा और उसके कान की लौ, गर्दन, गाल सब जगह चूमने लगा… उधर मेरा हाथ उसकी चूत के ऊपर चल ही रहा था, जल्दी ही वत्सला का बदन ढीला पड़ने लगा और उसकी साँसें भारी हो गईं।

‘छोड़ो न बेचारी को, क्यों परेशान कर रहे हो?’ आरती बोल पड़ी और वत्सला को मुझसे छुड़ा लिया।
‘लो, जो करना हो मेरे साथ कर लो!’ आरती मुझे आँख मार कर बोली।

मैंने जल्दी से आरती की साड़ी उतार डाली और उसके ब्लाउज के हुक खोल कर उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया और उसके भरे पूरे मम्मे थाम लिए।
वत्सला ने यह देख अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और फर्श की तरफ देखने लगी।

आरती ने अपना ब्लाउज और ब्रा उतार कर दूर फेंक दिया और वत्सला के हाथ पकड़ कर अपने मम्मों पर रख लिए ‘अब दबा न इन्हें… शर्मा क्यों रही है; जैसे रोज करती है वैसे ही कर!’ आरती उसके दूध पकड़ कर बोली।
लेकिन वत्सला ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की।

‘बड़े पापा… अब आप को ही इसकी शर्म दूर करनी पड़ेगी!’ आरती बोली।

फिर मैंने वत्सला का टॉप पकड़ कर उतारना चाहा तो उसने अपने हाथ कसकर सामने बांध लिए, लेकिन मेरे सामने उसकी एक न चली और मैंने उसका टॉप उतार कर आरती की ब्रा के ऊपर फेंक दिया. नीचे उसने फॉन कलर की डिजाइनर ब्रा पहनी हुई थी जिससे उसके दूध किसी पाषाण प्रतिमा के जैसे मनोहर लग रहे थे।
जल्दी ही उसकी ब्रा मेरे हाथों में थी और उसके अनावृत उरोजों का जोड़ा मेरे सामने था।

मित्रो, मैंने बहुत से मम्मे देखे हैं जिंदगी में… लेकिन वत्सला के जैसे स्तन मैंने पहले कभी नहीं देखे थे, दूर से देखने में दोनों दूध ठोस आकार लिए दोनों एक सामान गोलाई लिए हुए, परस्पर सटे हुए थे।
ऐसे ही स्तन सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं जिनके मध्य कोई दूरी न हो।

उसके स्तनों की रंगत गुलाबी थी जिन पर हल्के कत्थई रंग का जैकेट के बटन जितना गोल घेरा था और उन पर पर किशमिश जैसे चूचुक थे। दूधों का साइज़ भी मस्त था न बहुत बड़े न बहुत छोटे… उसके शेष बदन की बनावट से मेल खाते हुए मम्मे थे उसके!
ब्रा के सहारे की तो जरूरत थी ही नहीं उन अमृत कलशों को!

मुझसे रहा नहीं गया और मैंने धीरे से उसके दोनों नंगे पयोधर थाम लिए… बड़े आराम से… एहतियात से… बहुत ही मृदुता से… कि कहीं कसकर पकड़ने से उनका आकार न बिगड़ जाये… उन्हें कुछ हो न जाये… और फिर मैं वो किशमिश जैसे चूचुक चुटकी में भर के हौले हौले मसलने लगा।

वत्सला की आँखें स्वतः ही मुंद गईं और मैं उन अमृत कलशों में से अमृत पान करने लगा… मैं बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को व्याकुलता से चूसने लगा।
वत्सला का हाथ कब मेरे सिर पर आ कर कब सहलाने लगा, मुझे पता ही नहीं चला।

‘अब छोड़ो भी उसे बड़े पापा… सब कुछ एक बार में ही थोड़े न मिलेगा!’ आरती बोली और उसने वत्सला के हाथ पकड़ कर अपने मम्मों पर रख लिए और दबाने लगी।
वत्सला ने मुझे असहाय दृष्टि से देखा जैसे उसे मुझसे दूर होना पसन्द न आया हो।

मैंने आरती के पेटीकोट के नाड़े की गाँठ खोल दी और वो उसके पैरों पर जा गिरा… पैंटी तो उसने पहनी ही नहीं थी तो अब वो पूरी नंगी हो चुकी थी। मैंने भी झट से अपनी टी शर्ट और लुंगी निकाल फेंकी और आरती के पीछे चिपक गया और वत्सला के हाथों को हटा कर आरती के बूब्स खुद ताकत से दबाने मसलने लगा।
इधर मेरा खड़ा लण्ड आरती की गांड में दस्तक दे रहा था।

आरती ने वत्सला का हाथ पकड़ कर अपनी नंगी चूत पे रख दिया और उसे दबाने लगी। वत्सला को भी अब मज़ा आने लगा था और उसकी शर्म और झिझक धीरे धीरे दूर होती जा रही थी और वो भी अब कामाग्नि में सुलगने लगी थी… और उसने आरती के गले में बाहें डाल के मेरे सिर के बाल पकड़ के जोर से खींच लिए।

मैंने भी वत्सला के दोनों हाथ पकड़ कर नीचे की तरफ ला के अपने लण्ड पर रख दिये।
वत्सला की मुट्ठी एक क्षण के लिए मेरे लण्ड पर कसी फिर तुरंत उसने अपने हाथ हटा लिए।

अब आरती हम दोनों के बीच से निकल गई और बेड पर बैठ गई।
मैं और आरती पूरे नंगे हो चुके थे, वत्सला भी ऊपर से नंगी ही थी लेकिन अभी कमर के नीचे से वो ढकी छुपी हुई ही थी। आरती के बेड पर बैठते ही मैं और वत्सला आमने सामने हो गए… मेरा खड़ा लण्ड वत्सला की तरफ मुंह उठाये खड़ा उसे तक रहा था।

वत्सला ने शरमा कर झट से अपने नंगे उरोजों को हाथों से छिपा लिया और सिर झुका कर फर्श पर बैठ गई मगर आरती ने वत्सला को पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया और उसके स्तन दबाने लगी।
मैंने भी मौका देखकर उसकी जींस खोल दी और उसे खींच कर निकाल दिया।
उसने विरोध किया, अपने पैर फड़फड़ाये लेकिन उसकी चिकनी जांघों से जींस फिसलती हुई मेरे हाथों में आ गई।

अब वत्सला के बदन पर मात्र उसकी नारंगी रंग की पैंटी ही शेष थी।

मैंने अपना लण्ड वत्सला के मुंह के सामने कर दिया मगर उसने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा लिया और मैं अपने लण्ड से उसके हाथों पर ही दस्तक देने लगा।

‘बन्नो, चूस ले न अंकल जी का लण्ड!’ आरती वत्सला से बोली।
‘छिः… भाभी, यह मुझसे नहीं होगा! अंकल जी इसी से तो सू सू करते हैं! इसे कैसे मुंह में ले लूं मैं?’ वत्सला मुंह छिपाए हुए ही बोली।

‘पगली, हम लोग भी तो एक दूसरी की सू सू करने वाली चूत चाटते हैं की नहीं?’
‘हमारी आपस की बात अलग है भाभी… लेकिन आदमी का नहीं…’ वत्सला ने इंकार किया।

‘बन्नो रानी, समझने की कोशिश कर… जैसे मुझे और तुझे अपनी चूत चटवाने में मज़ा आता है, वैसा ही मज़ा हमें आदमी को भी देने का फ़र्ज़ बनता है या नहीं? हमें इतना खुदगर्ज नहीं होना चाहिये न? अरे जब मज़ा लेना जानती हो तो मज़ा देना भी चाहिये न… तभी तो दोनों को अच्छा लगेगा न… और तू फिल्मों में भी तो देखती है कि कैसे लड़की लण्ड चूस कर शुरू करती है खेल को…’ आरती ने उसे समझाया।

‘वो तो ठीक है भाभी पर… मुझसे नहीं होगा बस!’ वत्सला बोली।
‘अच्छा रुक.. मुझे देख पहले!’ आरती बोली और वत्सला को गोद से उतार दिया और मुझे बेड पर बैठा दिया और खुद फर्श पर उकड़ूं बैठ गई और साथ में वत्सला को भी अपने साथ बैठा लिया।

अब आरती ने मेरा लण्ड पकड़ कर मुठियाया… चार छह बार चमड़ी को ऊपर नीचे किया और फिर वत्सला को दिखाते हुए मेरे सुपारे पर अपनी जीभ फिराने लगी, फिर सुपारा गप्प से मुंह में लेकर धीरे धीरे चूसते हुए अधिक से अधिक भीतर तक लेने लगी।
कुछ देर बाद उसने मुंह हटा लिया और उसकी लार से चुपड़ा हुआ मेरा लण्ड लहराने लगा; उसके मुखरस का एक गाढ़ा सा तार अभी भी मेरे लण्ड और उसके होठों के बीच झूल रहा था।

वत्सला ये सब बड़े गौर से देख रही थी, सीखने समझने का प्रयास कर रही थी, जैसे कोई विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करता है।

‘अब मुंह खोल और चूस इसे अपने मुंह में भर के!’ आरती ने वत्सला से कहा और उसकी गर्दन पकड़ के उसका मुंह मेरे लण्ड के सामने कर दिया…

‘नहीं भाभी… मुझसे नहीं चूसा जायेगा उल्टी हो जायेगी मुझे!’ वत्सला मरी सी आवाज में बोली।

‘अच्छा रुक अभी!’ आरती बोली और कमरे से बाहर चली गई।
लौटकर आई तो उसके हाथ में एक कटोरी थी जिसमें शहद भरा हुआ था। उसने अपनी एक ऊँगली शहद में डुबोई और ऊँगली वत्सला के मुंह में घुसा दी। वत्सला ने झट से उसे चाट लिया।
फिर आरती ने खूब सारा शहद मेरे सुपारे पर चुपड़ दिया और सुपारा चमड़ी से ढक कर सारे लण्ड पर शहद लगा दिया। फिर लण्ड के अगले सिरे को शहद की कटोरी में डुबा कर वत्सला से चाटने को बोला।
कहानी जारी है!
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