दोपहर में पूजा का मजा-1

(Dopaher Me Pooja Ka maja- Part 1)

राज कौशिक 2011-03-14 Comments

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दोस्तो,
नमस्कार!
मैं राज कौशिक एक बार फिर अपनी कहानी आपके सामने पेश कर रहा हूँ। इससे पहले आप मेरी कई कहानियाँ
अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ चुके हैं। सभी पाठकों को मेल करने के लिए धन्यवाद।

अपने बारे में तो बता ही चुका हूँ। मेरे पिता जी तीन भाई है दोनों पिता जी से बड़े है यानि मेरे ताऊ।

बड़े ताऊ जी के एक लड़का और दो लड़कियाँ है। सविता और निशा! मैं अपने परिवार वालों से खुलकर बात करता हूँ। जिससे उन्हें मेरे बारे मेँ सब पता था कि मेरी किससे चक्कर चल रहा है और ताऊ की लड़कियों को भी पता था। मेरे इस आदत की वजह से दोनों पूरे परिवार में मुझे पसन्द करती थी।

मैं उनसे हर तरह की बात करता था सिर्फ सेक्स की बातें छोड़कर। हम सभी भाइयों में मेरे पास ही मोबाईल था इसलिए उन्होंने मेरा ही नम्बर अपनी सारी सहेलियों को दे रखा था।

उनकी एक सहेली थी पूजा अत्री। पूजा का फोन हर रविवार को आता था। वो मेरी बहनों का नाम लेती और कहती उनसे बात करनी है। अगर में घर होता तो उनकी बात करा देता नहीं तो मना कर देता। लेकिन वो मेरे से ही बात करने लगती।

मैं उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देता क्योंकि उस समय मैं लक्ष्मी से प्यार करता था। पूजा भी यह बात जानती थी क्योंकि वो निशा से मेरे बारे में पूछती रहती थी। निशा मुझे उसकी हर बात आकर बताती। कि आज पूजा तुम्हारे बारे में यह कह रही थी, वो कह रही थी।

निशा उसके बारे में भी मुझे बताती कि पूजा उनकी कक्षा में सबसे सुन्दर है शरीफ है, पढ़ने में आगे है और वो मुझे पसन्द करती है। मैं उसकी बात मजाक में ले जाता। धीरे धीरे हम बातें करने लगे। मैं उससे जब भी लक्ष्मी के बारे में बात करता तो मुझसे उसके बारे में बात करने से मना कर देती। मैं पूछता क्यों तो वो चुप लगा जाती।

समय यूँ ही बीतता गया। जिस दिन लक्ष्मी की शादी थी 9-11-2008, पूजा का फोन आया। मैं अपने दोस्त के साथ बैठकर वाइन पी रहा था। मैंने सुना था कि शराब पीने से दिल का दर्द कम हो जाता है पर यह बिल्कुल झूठ है, शराब पीकर जिसे हम भुलाना चाहते बो और ज्यादा याद आता हैँ। मैंने उस दिन पहली और आखिरी बार शराब पी। मैंने पूजा का फोन उठाया। उसने दुख में साथ दिया। मुझे अच्छा लगा। फिर फोन रख दिया।

एक दिन निशा का फोन आया कि मैं उसे स्कूल से लेने आ जाऊँ। मैं घर पर ही था तो सोचा ले आता हूँ। मैंने बाइक निकाली और स्कूल पहुँच गया। उस स्कूल में मैं भी दसवीं तक पढ़ा था।

मैं लन्च के समय स्कूल पहुँचा। गेट पर मुझे मेरा एक दोस्त मिल गया। मैं उससे बातें करने लगा और जैसे ही स्कूल में अन्दर जाने के लिए मुड़ा तो देखा कि निशा किसी लड़की के साथ मेरी तरफ ही आ रही थी।

शायद उसे मैं दिख गया था। जो लड़की उसके साथ थी क्या गजब थी। उसकी सुन्दरता बताना मुश्किल है, फिर भी कौशिश करता हूँ।

लम्बाई 5 फुट 5 इन्च, चेहरे पर एक भी दाग नहीं और रंग की बात करूँ तो शायद दर्पण भी उसे देखकर टुकड़े हो जाए। आँखें इतनी नशीली जैसे अभी नशा किया हो और उनमें काजल, अगर कोई कवि उसकी आँखों पर कविता लिखे तो उसकी कलम भी नशे में भर जाए, होंट इतने गुलावी जैसे सन्तरे की फांकें, चूचियाँ लगभग 36 और एकदम खड़ी, कमर शायद 28 से भी कम, कूल्हे 34 और उस पड़े उसके बाल जैसे बिन बादल बरसात होने बाली हो।

उसकी चाल को देखकर तो हिरणी और नागिन को भी शर्म आ जाये। सभी लड़कियोँ के बीच ऐसे लग रही थी जैसे और सब कलियाँ हो और वो उनकी मलिका और जहाँ से भी निकले हर लड़के की नजर उस पर और मुँह से आहें निकल रही थी।

बदन की खुशबू ऐसी कि चन्दन की खुशबू भी कम पड़ जाए। इन सबसे उपर उसके काले कपड़े टीशर्ट और जीन्स। जैसे कोयला की खान में हीरा और ऊँची ऐड़ी के सेन्डल। मतलब जितनी तारीफ करूँ वो कम है। बस उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि यह मिल जाए तो दुनिया की किसी चीज की जरूरत ना हो, बस उसकी चुदाई करता रहूँ।

निशा बोली- राज भईया, क्या हुआ?
मैं जैसे सोकर उठा- हाँ, कुछ नहीं!
‘यह है पूजा।’
‘पूजा?’
‘हाँ!’

मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। क्यूँकि उसे चोदना अब मुश्किल नहीं था।
पूजा ने हाथ आगे बढ़ाया और बोली- हाय राज!
मैंने हाथ पकड़ा और बोला- हाय ए!

‘क्या हुआ?’
‘पूजा जी, आपको देखकर तो अच्छे अच्छे की आह निकल जाए तो मैं तो चीज क्या!’
और हाँ, हाथ इतना मुलायम की गुलाब का फूल पकड़ लिया हो।
पूजा- आप भी कम नहीं हो!
और तिरछी सी मुस्कराई।

उसकी मुस्कान ने तो मेरी जान ही ले ली।
निशा बोली- भईया, पहले हम पूजा के घर चलेंगे फिर घर।
मैं बोला- क्यूँ?
‘पूजा से ही पूछ लो।’
पूजा बोली- क्यूँ राज जी, आप हमारे घर नहीं चल सकते?
‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं पर!’
‘पर क्या?’

शायद निशा और पूजा ने पहले ही योजना बना रखी थी।
‘चलो, ठीक है।’ मैं बोला।
पूजा बीच में और निशा पीछे बैठ गई।

अब पूजा की एक चूची मेरी कमर से लग रही थी। थोड़ी देर मेँ हम पूजा के घर पहुँच गये।

उसके घर कोई और नहीं था, उसने ताला खोला और हम अन्दर आकर सोफ़े पर बैठ गये। पूजा चाय बनाकर ले आई और हमारे साथ बैठ गई। वो दोनों आपस में कुछ बात कर रही थी और मेरी तरफ इशारा कर रही थी जैसे उन्हें मुझसे कुछ कहना हो पर वो कह नहीं पा रही थी।
मैं चुप बैठा था।
निशा बोली- भईया, पूजा तुमसे कुछ कहना चाहती है।
‘हाँ कहो।’

पूजा ने शर्माकर मुँह नीचे कर लिया।
शर्म से उसका मुँह बिल्कुल लाल था जो उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा रहा था।
मैं बैठा बैठा बस पूजा को देख रहा था।
मैं बोला- बोलो पूजा, क्या कहना है?
बिना नजर उठाये बोली- कुछ नहीं।
‘कुछ परेशानी है?’
पूजा- नहीं!

बीच में निशा बोली- हाँ है! बहुत बड़ी!
और कहकर हँसने लगी।
‘पर क्या?’ मैं बोला।
पूजा- कुछ नहीं, यह तो पागल है।
हमने चाय पी ली, मैं बोला- चलो, फिर चलते हैं।
पूजा बोली- राज, चले जाना इतनी जल्दी क्या है?
मैं बोला- नहीं, मुझे थोड़ा काम है।
‘चलो ठीक है, पहले हमें यमुना नदी पर घुमा लाओ।’

यमुना उनके गाँव से एक किलोमीटर दूर थी।
निशा बोली- हाँ भईया मैंने यमुना नहीं देखी, दिखा लाओ प्लीज!’
मैं बोला- ठीक है।

हम बाइक पर बैठे और यमुना पर पहुँच गये। वो दोनों यमुना के पुल के नीचे पत्थरों पर बैठ गई। मैं किनारे पर पानी में घूम रहा था। तभी पीछे से धीरे से आवाज आई-
‘राज! आई लव यू!’ पूजा बोली।

एक बार तो दिल किया साली को जाकर लिपट जाऊँ और चोद डालूँ! पर यह मुमकिन नहीं था। क्यूँकि वहाँ निशा भी थी।
मैं उसकी बात अनसुनी करके बोला- हाँ, क्या बात है?

वो फिर चुप हो गई। मैं बहुत खुश था कि पूजा खुद मुझसे चुदना चाहती है। फिर मैंने मोबाइल से उनके फोटो खींचे और घर आ गये।

अब हम दोनों की ज्यादा बात होने लगी। मैं मनीषा और पूजा दोनों से बात करने लगा। फर्क इतना था मनीषा को चोद चुका था और पूजा को चोदने की तैयारी कर रहा था।

8-2-2010 को पूजा का फोन रात को 8 बजे आया। हम जब भी बात करते गुडमॉरनिंग करते चाहे सुबह, दोपहर या रात हो। मैं फोन उठाया- गुडमॉरनिंग।

‘कैसे हो?’
‘ठीक हूँ!’
‘आप कैसी हो?’
‘मैं भी ठीक हूँ पर मैंने कितनी बार बोला है मुझे आप मत बोला करो।’
‘और क्या बोलूँ?’
‘कुछ भी!’

‘यह कौन सा नाम हुआ?’
‘अरे मैं यह कह रही हूँ कि कुछ भी नाम लेकर बुलाया करो।’
‘अरे मैं भी तो यही कह रहा हूँ कि कुछ भी कौन सा नाम है।’
‘अरे छोड़ो, तुम कहकर बोला करो।’
‘ठीक है।’
‘अब बोलो!’
‘तुम’

मैं उसके साथ मजाक कर रहा था।
‘अरे तुम नहीं, कुछ और बोलो! मुझे आपकी आवाज सुननी है।’
‘क्युँ?’
‘बस दिल कर रहा है।’
‘ठीक है! एक बात बोलूँ! नाराज तो नहीं होगी?’

मुझे पता था वो कुछ नहीं बोलेगी पर मैं नाटक कर रहा था।
‘नहीं, बोलो!’
‘रहने दो! तुम नाराज हो जाओगी।’
‘नहीं, अब बोलो!’
‘बोलो ना!’
‘आई लव यू!’
पूजा चुप हो गई।

मैं बोला- यार मजाक कर रहा था, नाराज क्युँ होते हो।
‘क्या मजाक कर रहे हो?’
‘नहीं!’
‘सही बताओ मजाक तो नहीं कर रहे?’
‘नहीं पूजा! आई लव यू!’
‘लव यू टू! मैं कब से यह सुनने को बेचैन थी।’
‘फिर तुमने क्यूँ नहीं बोला?’

‘मैं कब बोलती? पहले तो तुम लक्ष्मी से प्यार करते थे और उस दिन यमुना पर बोला था तो तुमने सुना नहीं। फिर मुझे डर लगता था कि कहीं यह सुनकर तुम मुझसे बात करना न छोड़ दो।’ उसकी आबाज शिकायत से भरी थी।

मैं बोला- अब मैंने तो बोल दिया। एक ही बात है मैं बोलूँ या तुम! क्यूँ जान?’
‘हाँ जानू, मुझे आज सबसे बड़ी खुशी मिल गई।’
मैं बोला- जानू, इस बात पर एक चुम्मी दो।
‘कैसे? तुम तो दूर हो!’

मैं बोला- कौन कहता है जान कि मैं तुमसे दूर हूँ! आँखें बन्द करो और सोचो कि मैं तुम्हारे पास खड़ा हूँ और मुझे चूमो!
‘नहीं! मुझे शर्म आती है!’
‘अच्छा मैं तुमसे दूर हूँ इसलिए नखरे कर रही हो पास होता तो तुम्हें बताता कितनी शर्म आती है।’
‘पास होते तो क्या करते?’
‘क्या करता? ये बोलो क्या नहीं करता।’
‘अच्छा बताओ तो सही?’

‘सबसे पहले तो तुम्हारे सेब जैसे गालों पर किस करता। फिर तुम्हारे रसीले होंटों को होंटों में लेकर खूब रस पिता और फिर तुम्हारी मौसमी को खूब मसलता।’
‘मौसमी क्या?’
‘मौसमी!! तुम्हारी मोटी 2 चूचियाँ।’
‘धत्!! तुम्हें शर्म नहीं आती?’
‘शर्म क्यूँ? मौसमी का रस पीना कोई गलत है?’

‘मुझे नहीं पता! अब बस करो, मुझे शर्म आ रही है।’
‘आ रही है या जा रही है?’
‘कुछ और बात करो।’
‘पहले किस दो।’
‘ठीक है।’

‘कहाँ चाहिए?’
‘जहाँ आपकी इच्छा हो।’
‘चलो होंटों पर देती हूँ। होंटों को फोन से लगाओ।’
‘लगा लिए!’
‘लो! पुच्च! बस?’
‘नहीं!’

‘तुम नहीं मानोगे! लो पुच्च पुच्च! अब खुश?’
‘हाँ!’
अब सो जाओ, 11 बज गये, कल बात करेंगे।’
‘ठीक है गुड नाइट अन्ड लव यू!’
‘लव यू टू!’
‘बाय!’
कहानी जारी रहेगी।
राज कौशिक
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