लड़कियाँ नखरा ना करें तो कैसे मज़ा-1

(Ladkiyan Nakhra Na Karen To Kaisa Maza- Part 1)

This story is part of a series:

उसका नाम अंजलि है, जयपुर में रहती है। वो सर्विस करती है.. उसकी उम्र 27 के आस-पास होगी। वो मेरे फ्रेंड की सिस्टर है।

एक बार मैं अपने आफीशियल टूर पर जयपुर जा रहा था तो मेरे फ्रेंड ने कहा- वहाँ मेरी सिस्टर रहती है.. मैं तुमको उसका कुछ सामान दे रहा हूँ.. तुम ले जाओ और उसको दे देना। वो अपनी किसी फ्रेंड के साथ फ्लैट लेकर रहती है।

मैंने कहा- ठीक है.. तुम मुझे स्टेशन पर सामान दे जाना।

दोस्त आया और एक बैग में सामान और अंजलि का एड्रेस और मोबाइल नम्बर आदि मुझे दे गया।

मैं सुबह 6 बजे पहुँच कर सीधे अंजलि के घर गया मैंने सोचा कि पहले अंजलि का सामान दे दूँ.. क्यों कि ऑफिस तो 10 बजे खुलेंगे तब तक उसका सामान देकर आ जाऊँगा।

मैं उसके घर गया और मैंने उसके घर की घंटी बजाई।

‘कौन है?’ अन्दर से एक सुरीली आवाज़ आई और उसने गेट खोला।

मैं बबलू.. आपके भाई प्रेम का फ्रेंड हूँ। दौसा से आया हूँ.. आपके भाई ने बोला कि आप को मिलता आऊँ.. आपका कुछ सामान भी लाया हूँ।
‘ओह नमस्कार.. अन्दर आईए.. बाहर क्यों खड़े हैं।

‘थैंक्स’ कहकर मैं अन्दर आ गया।

अंजलि ने मुझे सोफा पर बैठने का इशारा किया।
‘मैं आपके लिए पानी लाती हूँ।’ कहकर वो किचन में चली गई।

इस वक्त वो नाइट सूट में थी और बहुत मस्त लग रही थी।

उसके संतरे जैसे चूचे बिना ब्रा के मस्ती से हिल रहे थे।

पानी देने के लिए वो नीचे झुकी.. तो उसके दोनों कबूतर संतरे के शेप में मुस्करा रहे थे।

‘और सुनाओ तुम्हारी सर्विस कैसी चल रही है?’ उसके टेबल के पास आते हुए मैंने कहा।

लेकिन मेरी निगाहें उसके मम्मों पर ही टिकी थीं।

‘ठीक चल रही है..’ उसने कहा और मेरी आँखों को अपने मम्मों को घूरते देख शर्मा गई।
उसने अलमारी खोलकर एक दुपट्टा ले लिया और उससे अपने मम्मों को ढक लिया।

इससे मुझे थोड़ी सी झेंप हुई कि उसने मेरी निगाहों की हरकत को न केवल पढ़ लिया बल्कि दुपट्टा ओढ़कर मुझे जवाब भी दे दिया।

‘घर पर मम्मी-पापा.. भाई कैसे हैं, मेरी याद करते हैं? उसने पूछा।
‘हाँ सभी तेरी याद करते है अंजलि..’

‘यहाँ कब आना हुआ?’
‘मैं आज ही अभी एक घंटे पहले आया हूँ.. क्लॉक रूम में सामान छोड़कर सीधा तुम्हें देखने आ गया। प्रेम कह रहा था कि तुम 10 बजे निकल जाती हो और रात में 7 बजे वापस आती हो। मेरा काम अगर जल्द ही निबट गया तो मैं शाम को वापिस जाऊँगा.. इसलिए पहले आप से मिलने आ गया।’

मैंने एक पैकेट उसको देते हुए कहा- ये सामान जो तुम्हारे भाई ने दिया है.. तुम रख लो और मुझे जाने की इज़ाज़त दो।

अंजलि- वाह.. ऐसे कैसे? आप यहीं रुकें.. भाई या मम्मी-पापा जी आते हैं.. तो वो भी यहीं रुकते हैं।

मैंने कहा- नहीं अंजलि आपको परेशानी होगी.. आपकी रूम पार्ट्नर भी तो होगी।
तब वो बोली- वो तो 3 दिन के लिए अपने शहर गई है.. आजकल मैं अकेली हूँ।

उसकी ज़िद करने पर मैं वहीं रुक गया उसका सिंगल रूम फ्लैट था.. जिसमें लेट-बाथ भी रूम में ही जुड़ा था.. छोटा सा किचन था।

उसके काफ़ी जिद करने पर मैं उसकी स्कूटी पर उसके साथ स्टेशन गया और अपना सामान क्लॉक रूम से उठा लाया।

घर आकर मैं उसके बाथरूम में जाकर फ्रेश हुआ, जहाँ उसकी कई ब्रा और पैन्टी पड़ी थीं.. जिन्हें देखकर मेरा लंड खड़ा हो गया।

मैं फ्रेश होकर बरमूडा और टी-शर्ट में बाहर आ गया।

थोड़ी देर बाद वो भी फ्रेश होकर जीन्स और टी-शर्ट में आ गई।

टिफिन सेंटर से खाना आ चुका था, हम लोग खाना खाकर लगभग 10 बजे अपने-अपने काम पर निकल गए।

उसने मुझे अपने कमरे की एक डुप्लीकेट चाभी दे दी और कहा- अगर आप जल्दी आ जाओ तो कमरे पर आ कर रेस्ट कर सकते हो।

लगभग 3 बजे मैं अपना काम निबटा कर वापस आया। मुझे उस ऑफिस में कल शाम 4 बजे आने को बोला गया। वापस आकर मैंने अंजलि का कंप्यूटर खोला।

सबसे पहले मेरी चुल्ल उसके कम्प्यूटर की टेंपरेरी इंटरनेट फाइल्स को देखने का था।

नेट चालू करके जब मैंने टेंपरेरी इंटरनेट फाइल्स देखीं, तो मैं दंग रह गया। उसका कंप्यूटर पोर्न वेबसाइट से भरा पड़ा था। मैंने उसका याहू मैसेंजर खोला..
तो उसके मैसेंजर में आईडी और पासवर्ड सेव होने से मैं उसके नाम से लॉग इन हो गया।
उसके मैसेंजर में सुरक्षित करने वाले संदेशों की तरफ जाने पर पता चला कि वो रात-रात भर नेट पर इमॅजिनेशन और ‘रोल-प्ले’ का गेम खेलती रहती है।
उसके कंप्यूटर में मुझे 4 ब्लू फिल्म भी मिलीं.. जिससे मुझे उसकी रुचियों की पूरी जानकारी हो गई।

मैंने मन ही मन सोचा कि इसे चोदना तो बहुत आसान होगा।

शाम 6 बजे वो ऑफिस से वापस आई।

चाय पीते हुए हम लोग गप-शप करते रहे।
इस दौरान मेरी आँखें उसके मम्मों और चूतड़ों पर ही लगी रहीं।
वो भी मेरी आखों का पीछा करती हुई अपनी आँखों से मेरी दशा समझकर मानसिक रूप से उत्तेजित होने लगी।

उसकी आँखों में भी काम से भरा आमंत्रण था.. लेकिन हम लोग अभी खुले नहीं थे।

हम लोग रात 8 बजे उसकी स्कूटी से ही घूमने चले गए।
रास्ते में स्कूटी के झटकों से उसके चूचे मेरी पीठ से टकराने लगे।

कुछ देर बाद वो खुद भी अपने मम्मों को मेरी पीठ से टकराने लगी।

वो भी अब तक काफ़ी उत्तेजित हो चुकी थी। बस अब ये था कि पहल कौन करे।

हम लोग रात 10 बजे एक होटल में खाना खाने गए।
होटल की मद्धिम रोशनी में आमने-सामने बैठकर हम लोग खाना सर्व होने का इंतज़ार कर रहे थे।

मैंने धीरे-धीरे अपनी टाँगें उसकी टाँगों से टकराईं.. पहले तो उसने अपनी टाँगों को वापस खींच लिया।

थोड़ी देर बाद मैंने एक बार और प्रयास किया.. इस बार उसने कोई विरोध नहीं किया। अब मैंने धीरे-धीरे उसकी टाँगों से अपनी टाँगों को रगड़ना शुरू कर दिया।

उसने भी प्रॉपर रेस्पॉन्स दिया, थोड़ी देर बाद वो खुद भी अपनी टाँगों को मेरे टाँगों से रगड़ने लगी।

अब दोनों तरफ बराबर उत्तेजना थी।

खाना खाकर हम 11 बजे वापिसी के लिए चले तो वो स्कूटी पर दोनों तरफ टाँगें डालकर बैठ गई और उसके चूचे अब पूरी तरह मेरी पीठ से टकरा रहे थे।

थोड़ी देर तक वो अपने मम्मों को मुझसे सटाती रही..
उसके बाद मैंने हिम्मत करके अपना एक हाथ उसकी जांघ पर रख दिया..
जिससे उसकी उत्तेजना बढ़ गई।

इस तरह हम दोनों घर आ गए।

मैंने कहा- अंजलि तुम बिस्तर पर सो जाओ मैं सोफा पर सो जाता हूँ।
उसने हँसकर कहा- सोफा 2 सीटर है.. और आप 6 फुट के हो। सुबह तक जनाब की कमर अकड़ जाएगी। मेरा बिस्तर बहुत बड़ा है.. हम लोग इसी बेड पर सो जाते हैं।

मैं मन ही मन यही चाह रहा था।
मैंने कहा- ठीक है, जैसा तुम चाहो।

मैं बाथरूम में जाकर बरमूडा और टी-शर्ट पहन आया और सोने का बहाना करके लेट गया।

वो भी बाथरूम में जाकर नाइटी पहन आई.. नाइटी के नीचे उसने ब्रा नहीं पहनी थी, नाइट लैंप की रोशनी में उसके कबूतर साफ़ झूलते दिख रहे थे।

उसके आने पर मैं सोने का बहाना करके पड़ा रहा और अधखुली आँखों से उसकी प्रतिक्रिया देखने लगा।

वो मुझे सोता देख कर मुस्कराई और थोड़ी देर बाद बिस्तर के दूसरे किनारे पर आकर लेट गई।

नींद ना उसकी आँखों में थी.. ना मेरी आँखों में थी।

हम दोनों ही सोने का बहाना करके लेटे हुए थे।

मेरी चादर में एक छोटा होल था.. जिसे मैंने अपनी आँखों पर सैट कर लिया और उससे उसकी हरकतों को देखने लगा।
वो बार-बार आँखों को खोलकर मुझे देख रही थी।

उसकी निगाहें बार-बार मेरे तने हुए लंड पर जाती थीं। कोई एक घंटे बाद वो मेरी तरफ अपनी गांड करके लेट गई।
थोड़ा तिरछा हो जाने से उसकी गांड मुझे आमंत्रित कर रही थी।

मैं भी थोड़ा सरक कर उसके पास पहुँच गया और अपने एक हाथ को लंबा कर उसकी बॉडी से टच करा दिया।
हम दोनों के जिस्मों में ही करेंट सा दौड़ गया।

उसका कोई विरोध ना करने से मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने धीरे से उसकी ओर करवट लेकर उसकी गांड पर टच किया।

पहले वो थोड़ा सा उचकी.. तो मैंने हाथ हटा लिया।
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थोड़ी देर बाद उसने सोने का बहाना करते हुए अपने चूतड़ों को और पीछे को धकेला और मेरे पास सट गई।
इससे मेरी हिम्मत और बढ़ गई और मैंने अपने लंड का दबाव उसकी गांड पर देना शुरू कर दिया।

उसने कोई विरोध नहीं किया तो मेरी हिम्मत बढ़ती गई और मैंने एक हाथ उसके मम्मों पर धीरे से टच किया।

मम्मों पर हाथ रखते ही उसकी पूरी बॉडी में सिहरन सी हुई लेकिन वो सोने का बहाना करके पड़ी रही।

हम लोग अपनी-अपनी चादर के बाहर आ चुके थे। मैंने अपना हाथ धीरे-धीरे दोबारा उसकी गांड पर पहुँचा दिया और उसकी गांड पर पूरा हाथ फेरकर उसका मिजाज चैक किया।

उसके विरोध नहीं करने पर मैंने धीरे-धीरे उसकी नाइटी को ऊपर उठाना शुरू कर दिया।

उसने पैन्टी भी नहीं पहनी थी।

मैंने धीरे से अपना लंड निकाल कर उसकी गांड की दरार से धीरे से चिपका दिया और हाथ नाइटी के अन्दर डालकर मम्मों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया।

मम्मों पर दबाव बनने से वो थोड़ा सा कसमसाई।
मेरे लंड का दबाव भी उसे पूरा उत्तेजित कर रहा था।
अब उसके भी सब्र का बाँध टूट गया और वो मेरी साइड घूमकर मुझसे चिपक गई।

उसके चिपकते ही सब खेल खुल गया और वो तूफानी खेल कैसा था ये सब आपको अगले भाग में विस्तार से लिखूंगा।

आप मुझे अपने कमेंट्स जरूर भेजिएगा।
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कहानी जारी है।

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