जयपुर की बस यात्रा में मिली अनजानी चूत-2

(Jaipur Bus Yatra Me Mili Anjani Choot- Part 2)

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अब तक आपने पढ़ा..
एक अनजान महिला मेरे साथ बस की यात्रा में मेरे साथ मेरी ही बर्थ पर थी।
अब आगे..

थोड़ी देर में उसने अपना एक पैर थोड़ा सा उठा लिया.. जिस कारण उसकी साड़ी उसके घुटनों तक चढ़ गई। मैं खुद को रोक ना पाया और मैंने उसकी साड़ी के निचले हिस्से को पैर के अंगूठे और उंगलियों से पकड़ कर धीरे-धीरे ऊपर की ओर खींचना शुरू कर दिया।

अब उसकी साड़ी उसकी गुंदाज़ जाँघों तक चढ़ गई थी। मैंने अपना हाथ आहिस्ता से उसकी साड़ी में घुसाना शुरू किया.. तो मेरा हाथ उसकी पैन्टी को छू गया। उसकी पैन्टी गर्म और गीली हो रही थी..

पहले तो मैंने अपना हाथ निकाल कर सूँघा। आह्ह्ह.. इतनी मादक खुश्बू का अहसास महसूस हुआ कि मैंने तुरंत अपना हाथ फिर से उसकी साड़ी में डाल दिया।

इस बार मैंने थोड़ी और हिम्मत दिखाई और उसकी पैन्टी पर हाथ फेरता रहा। उसका शरीर कुछ हरकत कर रहा था। मैंने बड़े गौर से उसके चेहरे को देखा तो पाया मानो वो मन ही मन किसी आनन्द की अनुभूति कर रही हो।

मैंने उसके स्तनों को छुआ तो पाया कि उसकी साँसें तेज-तेज चल रही थीं। उसके ब्लाउज का पहला हुक खुला हुआ था और दूसरा बिल्कुल खुलने की पोज़िशन में था। मैंने आहिस्ता से उसे भी छुआ तो हुक तुरंत खुल गया। अब तो उसके मांसल सफेद कपोत बाहर को छलक पड़े।

मैंने बड़ी आहिस्ता से उसके होंठों को किस कर दिया.. तो उसने मेरी ओर करवट लेकर मेरे पैरों पर अपनी नंगी जांघें रख दीं और अपने हाथ मेरे कंधे पर रख मेरे बहुत ही करीब आ गई। मैं उसकी साँसों की गर्मी महसूस कर सकता था। उसके बदन से बड़ी ही मादक सी महक आ रही थी। मानो वासना की देवी खुद मौज़ूद हो।

तभी बस शायद थोड़ी खराब सड़क से गुजर रही थी.. बस बड़े ज़ोरों से हिचकोले खा रही थी। मैंने महसूस किया कि वो कुछ ज़्यादा ही करीब आ चुकी थी। उसकी साड़ी अब उसकी पैन्टी के भी ऊपर चढ़ चुकी थी और उसकी श्वेत पैन्टी उसके चूतड़ों की दरार में घुस गई थी। मैं अब पूरी तरह आउट ऑफ कंट्रोल हो चुका था।

मैंने उसे अपनी बांहों में भरते हुए उसके चूतड़ों को अपनी हथेलियों में भर लिया और उसकी गीली पैन्टी में हाथ घुसा उसकी चिकनी मक्खन की तरह फूली हुई चूत को दबा दिया।

मेरी हरकत होते ही उसने अपना मुँह मेरे मुँह में दे दिया और मेरे होंठों को चूसने लगी।
वास्तव में वो मेरी ओर से पहल का इंतज़ार कर रही थी।

अब मेरी उंगलियां उसकी चूत के ऊपर बड़ी तेज़ी सी चल रही थीं। उसने अपने एक हाथ से मेरा बरमूडा खोल दिया और मेरे अंडरवियर को नीचे खींचते हुए मेरे उत्तेजित लंड को हाथ में ले कर सहलाने लगी।

उसकी उंगलियों के स्पर्श मात्र से ही मेरा लंड फनफ़ना गया। मैं जितनी तेज़ी से उसकी चूत में उंगली चलाता.. वो उतनी ज़्यादा आवाज़ करने को होती। लेकिन मैं उसके मुँह में अपना मुँह दिए था.. उसे मुँह खोलने ही नहीं दिया।

अचानक उसका बदन कड़क पड़ने लगा.. उसकी चरम अवस्था देखते हुए मैंने तुरंत उसकी पैन्टी भी निकाल दी और उसकी जाँघों की जोड़ में अपना मुँह देकर उसकी बहती चूत की नदी को चाट-चाट कर ठंडा कर दिया। उसकी चूत ने इतना सारा नमकीन रस छोड़ा था.. मानो वो बरसों से प्यासी हो.. या ढेर सारा मूती हो।

एक बार ठंडी होने का बाद दो-चार पलट वह रुकी और उसने अपना ब्लाउज खोलकर अपनी ब्रा में से अपने दोनों दूधों को निकाल कर बारी-बारी से मेरे मुँह में देना शुरू कर दिया। उसके निप्पल पिंक कलर के बड़े-बड़े थे.. जिन्हें मैं अपने मुँह में लेकर जोरों से चूस रहा था।

थोड़ी देर बाद उसने अपनी साड़ी पूरी तरह से अपने चूतड़ों पर खींच ली और मेरे ऊपर चढ़ कर 69 की पोज़िशन में आ गई।

उसकी गुलाबी चूत किसी फल की कटी हुए फांकों की तरह मेरे मुँह और होंठों से रगड़ रही थी। मैं उसकी फूली हुए चूत में अपनी पूरी जीभ घुसा-घुसा कर उसे मज़े दे रहा था और दूसरी ओर वो भी मेरे लंड को पूरी तरह से अपने गले तक घुसा घुसा कर उसे कुल्फी की तरह चूस रही थी।

हमें ज़्यादा मेहनत नहीं करना पड़ रही थी.. क्योंकि बस के एक जैसे धक्कों की वज़ह से हमे बड़ा मज़ा आ रहा था। रात अधिक हो जाने की वज़ह से माहौल नम था.. अब ठंडक भी हो गई थी और एसी की ठंडक भरपूर लग रही थी।

अब मैं उसे चोदने के मूड में था.. लेकिन वो फुसफुसाई- नहीं.. केवल परदा लगा है.. यदि किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा?
मैं बोला- कह देंगे कि हज़्बेंड वाइफ हैं।
लेकिन वो बोली- प्राब्लम दूसरी है।

मैंने कहा- क्या?
तो वो बोली- मैं कई दिनों की प्यासी हूँ और मैं चुदाई के समय खुद पर कंट्रोल नहीं रख पाती हूँ.. और खूब जोरों से चिल्लाती हूँ। अब अगर यहाँ कंट्रोल नहीं हुआ.. तो सब मज़ा बिगड़ जाएगा।
लेकिन मैंने कहा- मुझसे अब रहा भी नहीं जाएगा।
तो वो बोली- मैं तुम्हें मुँह से खाली कर देती हूँ।

लेकिन मैं नहीं माना.. तब वो ज़बरदस्ती मेरे मुँह में अपनी चूत देकर मेरे लंड को मुँह में लेकर किसी एक्सपर्ट की तरह चूसने लगी। उसकी स्टाइल ही कुछ ऐसी थी कि मैं मना भी नहीं कर पा रहा था।

इधर मैंने जीवन में पहली बार इतनी देर तक किसी रसीली चूत को चाटा था। उसका मादक रस खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
उसकी चूत में से मुझे ज़न्नत का मज़ा मिल रहा था।

तभी बस धीमी होने लगी। शायद कहीं पर फिर से चाय-नाश्ते के लिए रुकने वाली थी।

वो और मैं दोनों रुकना नहीं चाहते थे। इसलिए.. हमने और जोरों से एक-दूसरे को चूसना-चाटना शुरू कर दिया और बस कुछ ही पलों में हम दोनों का चरम एक साथ आ गया।

मैंने ना चाहते हुए भी उसके मुँह में अपने वीर्य का फव्वारा छोड़ दिया और उसी पल उसने मेरे मुँह में अपनी चूत के मादक रस की बारिश कर दी, वो मेरा सारा रस चाट-चाट कर पी गई, वहीं मैंने भी उसकी चूत को चाट-चाट करके सूखा कर दिया।

तब तक बस भी रुक चुकी थी, हम दोनों ने अपने कपड़े वापस ठीक किए और बाहर निकल आए।

एक साथ पेशाब किया

इस बार टॉयलेट की बढ़िया सुविधा होने के बावजूद हम दोनों एक साथ होटल के पिछवाड़े झाड़ियों में गए और एक-दूसरे के पीछे बैठ गए। मेरा लंड उसकी गान्ड के पीछे से निकल कर उसकी चूत के बराबर में था और हम दोनों एक साथ मूतने लगे।

उसकी वही मूतने के समय की सीटी की ‘सीई’ आवाज़ ने मुझे फिर मज़ा दिला दिया।
इस बार भी वो बोली- हम दोनों ने दो नदियों का संगम करके बाढ़ ला दी।

जब हम दोनों मूतकर लौटे तो मैंने उसे कहा- असली मज़ा तो बाकी ही रह गया।
तो वो बोली- तुम जयपुर में कब तक हो?
मैंने कहा- यदि कल दिन में काम निपट गया.. तो कल ही रिटर्न होना है।
वो बोली- मैं अपना अड्रेस दे दूँगी.. तुम मेरे फ्लैट पर आ जाना.. हम सारी रात मज़े करेंगे।

मैंने कहा- यह भी ठीक है.. लेकिन कोई प्राब्लम तो नहीं आएगी?
तो वो बोली- कह दूँगी मेरे रिलेटिव्स आए हैं।

अब हम होटल में आ चुके थे.. बाहर चाय पीते समय टीवी पर देख पता चला कि जयपुर सिटी में किसी को भी जाने नहीं दिया जा रहा है और सभी गाड़ियों को कोई 60-70 किमी. पहले ही रोका जा रहा था.. क्योंकि आग और बढ़ने का ख़तरा था।

अब सभी यात्रियों का दिमाग़ खराब हो चला.. किसी तरह वहाँ से रवाना हुए तो देखा कि आगे हाइवे पर ट्रैफिक ज़्यादा ही था।

सुबह के चार भी बज चुके थे.. रात भर से हम दोनों जागे हुए थे, मैं उसे अपनी बांहों में लेकर उसके होंठों को चूसता रहा, वो थोड़ी नींद में थी।
सुबह करीब 5.30 पर बस हाइवे के एक सर्कल पर रुक गई, पूछने पर पता चला कि आगे पुलिस ने ट्रैफिक रोक दिया है।
सभी यात्री वहीं उतर गए, किसी ने अपने वालों को फोन लगा कर वहाँ बुलवा लिया.. तो कोई किसी और व्यवस्था में लगा था।

हम दोनों भी वहीं उतर गए। हम दोनों के पास लगेज ज़्यादा तो था नहीं.. चाय वगैरह पी कर आगे जाने का सोच ही रहे थे कि कविता बोली- मुझे टॉयलेट का मूड बन रहा है.. कोई अच्छी सी जगह ढूँढो।

मैंने तुरंत पूछताछ की.. पता चला वहाँ से थोड़ी दूरी पर ही एक रेस्ट-हाउस है.. जहाँ हम रुक सकते थे।
हम वहाँ तुरंत पहुँचे, वह फुल था.. लेकिन किस्मत से केवल एक लग्ज़री रूम खाली था.. जो कि किसी वी.आइ.पी. के लिए हमेशा रिज़र्व रहता है।

होटल रूम में नंगे नहाए और चूत चुदाई की

हमारी मजबूरी और रुपयों का लालच देने पर वह हमें रूम देने को राज़ी हो गया। लेकिन बोला- ना तो आपको रूम सर्विस दूँगा और ना ही आप बाहर आना-जाना, यदि कोई वी.आई.पी. आ गया तो तुरंत रूम खाली कर देना।

हम उसकी सभी शर्तों को मान गए। गेस्ट हाउस के पीछे कोने में ये रूम बड़ा ही आलीशान था। एक बार एंट्री होने के बाद कविता तुरंत टॉयलेट की ओर भागी।
तब तक मैंने रूम को अच्छी तरह से बंद कर दिया.. सारी खिड़कियों पर पर्दे डाल दिए और खुद भी फ्रेश होने का मूड बनाने लगा।

कविता के बाहर आते ही मैं भी फ्रेश होने चला गया। बाथरूम भी बड़ा लग्ज़री था.. जिसमें बड़ा सा टब भी लगा था। मैं फ्रेश होकर आया.. तो कविता केवल तौलिया लपेटकर वहाँ आ गई और फिर हम दोनों ही मादरजात नंगे होकर नहाए।
इसके बाद तो मानो जन्म-जन्म के प्यासों की तरह हम दोनों एक-दूसरे पर टूट पड़े।

फोरप्ले तो हम पहले ही काफ़ी कर चुके थे.. अब तो केवल चूत चुदाई का मज़ा लेना था।
एक बात थी कविता चूत चुदवाने की बड़ी एक्सपर्ट थी.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… उसकी कामुक हरकतों का कोई अंत ही नहीं था। उसने मुझे जीवन का वो आनन्द दिया.. जो कि शायद ही में कभी पाता।

चुदवाते समय वह इतनी ज़्यादा चिल्लाई कि यदि रूम किसी और रूम से जुड़ा होता.. तो बाहर भीड़ लग जाती।
उसने चुदवाते समय मुझे गर्दन और कंधों के पास कान पर इतना काटा कि बस खून ही नहीं आया।

लेकिन मैंने भी चुदाई में उसे सारे संसार के मज़े दिलवा दिए.. बाद में उसने खुद स्वीकार किया कि अपने पति से पहले वो एक फ्रेंड की हमबिस्तर हो चुकी थी और उन दोनों ने उसे इतना संतुष्ट नहीं किया था.. जितना मैंने उसे किया।

दोपहर तक हम तीन बार चूत चुदाई कर चुके थे। फिर हमने एक गाड़ी की व्यस्था कर ली और जयपुर पहुँचे। वह अपने घर का पता देकर चली गई।

मैंने शाम तक किसी तरह अपना कम निपटाया और फिर उसे फोन लगाया, वो डिनर पर मेरा इंतजार कर रही थी।
मैं तुरंत ऑटो पकड़कर उसके फ्लैट पर पहुँचा, वहाँ भी वही सब अभिसार और अभिसार चलता रहा।

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