होली का नया रंग बहना के संग

(Holi Ka Naya Rang Bahna Ke Sang)

क्षत्रपति 2018-10-05 Comments

This story is part of a series:

अगला भाग:
बहना के संग होली

दोस्तों वासना के पंख शृंखला अब समाप्त हो रही है। यह कहानी वो कड़ी है जो इसे मेरी पहले प्रकाशित हो चुकी शृंखला
बहन के संग होली फिर चुदाई
से जोड़ेगी।

अब तक आपने पढ़ा कि कैसे मोहन और प्रमोद ने अपनी वासना की उड़ान भरी और उसमें उनकी पत्नियों और माँ-बाप की क्या भूमिका रही। अब उनकी वासना के लिए आगे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था लेकिन जैसे नदी अपना रास्ता खुद बना लेती है वैसे ही जिंदगी भी।

देखते हैं उनकी अगली पीढ़ी क्या गुल खिलाती है।
अब आगे…

प्रमोद और मोहन वासना के जिन पंखों पर उड़े थे वो तो ज़िम्मेदारी के बोझ तले कमज़ोर पड़ गए थे। रूपा दस साल की हुई तब मोहन की माँ भी गुज़र गईं और मोहन अपने दो बच्चों के साथ बिलकुल अकेला रह गया। तब तक पंकज के भी स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई थी। कुछ ही महीनों में वो कॉलेज की पढ़ाई के लिए शहर चला गया। उसका मेडिकल कॉलेज में सेलेक्शन तो हो गया था लेकिन हॉस्टल मिलने में कुछ समय लग गया तो कुछ महीने वो प्रमोद के घर ही रहा।

एक तरफ पंकज की सोनाली के साथ बचपन वाली दोस्ती अब रोमांस में बदल रही थी तो दूसरी ओर मोहन के सर पर रूपा की पूरी ज़िम्मेदारी आ गई थी। खाना बनाने से लेकर घर की साफ़-सफाई तक सारा काम मोहन खुद करता था। रूपा थोड़ी बहुत मदद कर दिया करती थी लेकिन मोहन उसे पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए ज्यादा जोर देता था।

इधर रूपा हाई-स्कूल में पहुंची और उधर पंकज ने अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर ली थी। जब उसकी इंटर्नशिप चल रही थी तो वो अक्सर सोनाली से मिलने उसके शहर चला जाया करता था। अब उसके पास थोड़ा समय भी था और पैसे भी। ऐसे ही मिलते मिलाते दोनों चुदाई भी करने लगे। पंकज किसी अच्छे से होटल में रूम बुक कर लेता और सोनाली कॉलेज बंक करके आ जाती और फिर पूरा दिन मस्त चुदाई का खेल चलता।

इंटर्नशिप पूरी होते ही पंकज ने अपने पिता मोहन और सोनाली के मम्मी-पापा दोनों को कह दिया कि उसे सोनाली से शादी करनी है।

वो दोनों तो पहले से ही पक्के दोस्त थे उन्हें क्या समस्या होनी थी। सोनाली की माँ थोड़ी नाखुश थी क्योंकि उसके हिसाब से मोहन ठरकी था और उसे लगता था कि कहीं वो सोनाली पर पूरी नज़र ना डाले और क्या पता पंकज भी अपने बाप पर गया हो और सोनाली को अपने दोस्तों से चुदवता फिरे।
लेकिन जब मियाँ, बीवी और बीवी का बाप भी राज़ी तो क्या करेंगी माँजी।
दोनों की शादी धूम-धाम से हुई और फिर सोनाली पंकज के साथ दूसरे शहर में चली गई जहाँ पंकज ने अपना क्लिनिक खोला था।

इधर जब रूपा ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा तो मोहन का मन भी डोलने लगा था। मोहन का मन इसलिए डोला था कि एक तो मोहन को काफी समय हो गया था स्त्री संसर्ग के बिना और उस पर रूपा बिलकुल अपनी माँ जैसी दिखती थी; लेकिन मोहन नहीं चाहता था कि रूपा की पढ़ाई में कोई रुकावट आये इसलिए उसने रूपा को उसके भाई के साथ रहने के लिए शहर ये बहाना बना कर भेज दिया कि वहां पढ़ाई अच्छी हो जाएगी और साथ में कॉलेज की तैयारी भी कर लेगी।

रूपा ने भी इस बात को गंभीरता से लिया और पढ़ाई में अपना दिल लगाया। स्कूल की पढ़ाई के साथ साथ अच्छे कॉलेज में एडमिशन के लिए एंट्रेंस एग्जाम की भी तैयारी की। उधर एक बेडरूम में पंकज और सोनाली की चुदाई चलती थी और दूसरे बेडरूम में रूपा की पढ़ाई। दिन में भी कभी उसका ध्यान उसके भैया-भाभी की चुहुलबाज़ी पर नहीं जाता था।

आखिर उसकी मेहनत रंग लाई और शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में उसका सेलेक्शन हो गया। पहले सेमिस्टर के रिजल्ट्स भी अच्छे आये तब जा कर रूपा को थोड़ा सुकून मिला और उसने पढ़ाई के अलावा भी दूसरी बातों की तरफ ध्यान देना शुरू किया। ज़ाहिर है सेक्स उन बातों में से एक था। अब उसका ध्यान अपने भैया कि उन सब हरकतों पर जाने लगा था जो वो हर कभी नज़रें बचा कर सोनाली भाभी के साथ साथ करते थे। कभी किचन में भाभी के उरोजों को मसलते हुए दिख जाते तो कभी बाथरूम से नहा कर आती हुई भाभी के टॉवेल के नीचे हाथ डाल कर उनकी चूत के साथ छेड़खानी करते हुए।

इन सब बातों को सोच सोच कर रूपा रोज़ रात को अपनी चूत सहलाते हुए सो जाती। सब कुछ ऐसे ही चलता रहता अगर होली के एक दिन पहले सोनाली की नज़र, रंग खरीदते समय एक भांग की दूकान पर ना पड़ी होती। उसने सोचा क्यों ना थोड़ी मस्ती की जाए तो वो थोड़ी ताज़ी घुटी हुई भांग खरीद कर ले आई। अगले दिन सुबह वो भांग नाश्ते में मिला दी गई।

रूपा ने नाश्ता किया और चुपके से जा कर अपने सोते हुए भैया के चेहरे पर रंग से कलाकारी करके आ गई। सोनाली अभी किचन में ही थी कि पंकज उठ कर बाथरूम गया तो देखा किसी ने उसे पहले ही कार्टून बना दिया है। उसने भी जोश में आ कर किचन में काम कर रही सोनाली को पीछे से पकड़ कर रंग दिया। उसका चेहरा ही नहीं बल्कि कुर्ती में हाथ डाल कर उसके स्तनों पर भी अपने हाथों के छापे लगा दिए।

सोनाली- अरे ये क्या तरीका है… अभी तो मैं काम कर रही हूँ। नाश्ता करने तक तो इंतज़ार कर लिया होता।
पंकज- नाश्ते तक? तुमने तो मेरे जागने तक का इंतज़ार नहीं किया।

पंकज ने अपनी शक्ल दिखाई तो सोनाली हँसी रोक नहीं पाई।

सोनाली- अरे बाबा, मैं तो नाश्ता बनाने में बिजी थी। ये देखो मेरे हाथ … यह ज़रूर रूपा का काम होगा।
पंकज- इस रूपा की बच्ची को तो मैं नहीं छोडूंगा आज।

इतना कह कर पंकज रूपा के कमरे की तरफ भागा। लेकिन रूपा रंग लगवाने के लिए तैयार नहीं थी वो भी इधर उधर भागने लगी। आखिर रूपा को किसी भी तरह पकड़ कर रंगने के चक्कर में पंकज का एक हाथ उसकी छाती पर पड़ गया और उसने अपनी बहन के स्तन को दबाते हुए अपनी ओर खींचा। इससे रूपा शर्मा गई और जैसे ही पंकज को अहसास हुआ कि क्या हो गया है तो वो भी थोड़ा सकुचा गया। यह पहली बार था जब उसने अपनी पत्नी के अलावा किसी और के उरोजों को छुआ था वो भी अपनी सगी बहन के।

इतने में रूपा भाग कर घर से बाहर निकली लेकिन उसकी किस्मत में रंगना ही लिखा था। उसके कॉलेज की कुछ सहेलियाँ और उनके बॉय-फ्रेंड्स इनके घर की तरफ ही आ रहे थे उन्होंने झटपट उसे पकड़ लिया और फिर तो रूपा की वो रंगाई हुई है कि समझो अंग अंग रंग में सरोबार हो गया। भीड़ में किसने उसके स्तनों का मर्दन किया और किसने नितम्बों का ये तो उसे भी नहीं पता चला।

लेकिन उसे मज़ा भी बहुत आया क्योंकि कई दिनों से वो खुद ही के स्पर्श से कामुकता का अनुभव कर रही थी। आज पहले अपने ही भैया के हाथों उसके उरोजों का उद्घाटन हुआ था और अब इतने लोगों ने उसे छुआ था कि उसके लिए इस सुख की अनुभूति का वर्णन करना संभव नहीं था। ऊपर से भजियों में मिली भांग ने भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था।

इधर सोनाली ने अपने हाथों से अपने पति को भांग वाले भजिये खिलाने शुरू किये। लेकिन पंकज आज कुछ ज्यादा ही रोमाँटिक हो रहा था उसने भी अपने होंठों में दबा दबा कर वही भजिये सोनाली को खिलने शुरू किये। सोनाली भी मन नहीं कर पाई क्योंकि उनका पहला चुम्बन ऐसे भी पंकज ने उसे चॉकलेट खिलने के बहाने किया था। इधर पंकज और सोनाली को भांग का नशा चढ़ना शुरू हुआ उधर नशे में चूर और रंग में सराबोर रूपा ने दरवाज़े पर दस्तक दी।

पंकज ने दरवाज़ा खोला तो उसके तो होश ही उड़ गए। उस भीगे बदन के साथ जिस नशीली अदा से वो खड़ी थी उसे देख कर पंकज का लण्ड झटके मारने लगा। वो अन्दर आई तो उसके ठण्ड के मारे कड़क हुए चूचुक जो टी-शर्ट के बाहर से ही साफ़ दिख रहे थे और उसके पुन्दों के बीच की घांटी में फंसी उसकी गीली स्कर्ट जो उसके नितम्बों की गोलाई स्पष्ट कर रही थी उसे देख कर तो पंकज का ईमान अपनी सगी बहन पर भी डोल गया। तभी सोनाली भी आ गई।

सोनाली- ननद रानी, बाहर ही पूरा डलवा चुकी हो या घर में भी कुछ डलवाओगी?
रूपा नशे में खुद पर काबू नहीं कर पाई और नशीले अंदाज़ में खिलखिला दी। सोनाली को रूपा की वजह से ही सुबह सुबह रंग दिया गया था उसका बदला तो उसे लेना ही था।

सोनाली- तुम्हारी वजह से मैं रंगी गई थी। बदला लिए बिना कैसे छोड़ दूं। अब बाहर तो कोई कोरी जगह दिख नहीं रही है तो अन्दर ही लगाना पड़ेगा।

इतना कह कर सोनाली ने रूपा के टॉप में हाथ डाल कर उसके मम्में रंग दिए। इस बात पर रूपा भी बिदक गई।
रूपा- भैया, भाभी को पकड़ो, मैं भी रंग लगाऊँगी।

पंकज ने सोनाली को पीछे से ऐसे पकड़ लिया कि उसके दोनों हाथ भी पीछे ही बंध गए। रूपा कुर्ती के गले में हाथ डाल कर सोनाली के जोबन को रंगने जा ही रही थी कि उसने देखा वहां पहले ही रंग लगा हुआ है।

रूपा- क्या यार भैया! आपने तो इनके खरबूजे पहले ही रंग दिए हैं।
पंकज- तो तू सलवार निकाल के तरबूजे रंग दे!

रूपा ने सलवार का नाड़ा खींचा और सोनाली की पेंटी में अपने दोनों हाथ डालकर उसके दोनों कूल्हों पर रंग लगाने लगी। इधर पंकज ने सोनाली की कुर्ती निकालने की कोशिश की तो उसकी पकड़ कमज़ोर पड़ गई। उसने सोचा था कि कुर्ती तो पकड़ में रहेगी लेकिन सोनाली खुद उसमें से निकल भागी और तुरंत पंकज के पीछे जा कर उसे धक्का मार दिया। अब सोनाली केवल ब्रा और पेंटी में थी।

पंकज अभी ठीक से समझ भी नहीं पाया था कि क्या हुआ है, वो लड़खड़ा गया और रूपा के ऊपर जा गिरा। उसके हाथ में जो सोनाली की कुर्ती थी उसमें रूपा का सर फंस गया। पंकज अभी रूपा का सहारा ले कर अभी थोड़ा सम्हला ही था कि, सोनाली ने पंकज की अंडरवेयर नीचे खसका दी, और रूपा के हाथ उसके भाई के नंगे नितम्बों पर रख दिए। पंकज का लण्ड भी फनफना के उछल पड़ा।

सोनाली- मेरी सलवार निकलवाओगे। ये लो अब अपनी तशरीफ़ रंगवाओ!

तीनों भांग के नशे में ज्यादा सोच नहीं पा रहे थे। सबसे कम सोनाली को ही चढ़ी थी क्योंकि उसे पता था इसलिए उसने बस उतने ही भजिये खाए थे जितने पंकज ने उसे जबरन खिला दिए थे। पंकज को अब चढ़ने लगी थी लेकिन रूपा पूरी तरह से भंग के नशे में गुम थी। नशा अपनी जगह था लेकिन सर पर कुर्ती फंसे होने की वजह से अब रूपा को कुछ दिख नहीं रहा था। वो मस्त अपने भाई के पुन्दों पर रंग मले जा रही थी और हँसे जा रही थी।

पंकज को भले ही ज्यादा नशा नहीं था लेकिन आज सुबह ही उसने पहली बार अपनी बहन के स्तनों को कपड़ों के ऊपर से ही सही लेकिन महसूस तो किया था और उसके मन को कुछ वर्जित कल्पनाएँ जैसे छू कर निकल गईं थीं। अब जब उसकी बहन के कोमल हाथ उसके नग्न नितम्बों को सहला रहे थे तो वो कल्पनाएँ फिर वापस आ गईं और वो किम्कर्तव्यविमूढ़ हुआ वहीं खड़ा रह गया। इतने समय का फायदा उठाते हुए सोनाली रूपा के पीछे पहुँच चुकी थी और उसकी स्कर्ट भी खसकाना चाहती थी।

सोनाली- और तुमने मेरी सलवार खिसकाई थी… ये लो गई तुम्हारी स्कर्ट!

लेकिन जल्दीबाज़ी में और शायद कुछ नशे की वजह से सोनाली ने स्कर्ट के साथ साथ रूपा की पेंटी भी खिसका दी। पंकज का लण्ड सीधे अपनी बहन की चूत से जा टकराया लेकिन तब तक पंकज और रूपा भी अपनी हड़बड़ाहट से बाहर आ गए थे। रूपा गुस्से में पलटी और सोनाली के ऊपर टूट पड़ी।

रूपा- तुमने मुझे नंगी किया? मैं तुमको नहीं छोडूंगी भाभी!

सोनाली इस अचानक हमले से अपना संतुलन खो बैठी और फर्श पर तिरछी पड़ गई। रूपा ने इसका फायदा उठाते हुए उसकी पेंटी खींच ली। जब रूपा अपनी भाभी को नंगी करने की कोशिश में झुकी हुई थी तो उसके भैया उसके चूतड़ों के बीच उसकी चूत के दीदार कर रहे थे। पंकज का लण्ड जैसे फटने को था उससे रहा नहीं गया और उसने अपना टी-शर्ट खुद निकाल फेंका और पूरा नंगा हो गया।

पंकज ने तुरंत अपना लण्ड अपनी बहन के मुस्कुराते हुए भगोष्ठों (चूत के होंठ) के बीच घुसा दिया। रूपा चिहुंक उठी, और तुरंत सीधी होकर पलटी। तब तक उसके हाथ में उसकी भाभी की पेंटी आ गई थी, लेकिन अपने सामने अपने भाई को पूरा नंगा देख कर वो ठिठक कर वहीं खड़ी रह गई। उसके आँखें उसके तनतनाए हुए लण्ड पर जमी हुए थी और इसी का फ़ायदा उठा कर सोनाली ने पाछे से उसका टी-शर्ट खींच लिया। अब दोनों ननद-भाभी केवल एक-एक ब्रा में थी और पंकज बिलकुल नंगा उनको देख कर अपना लण्ड मुठिया रहा था।

रूपा भी कैसे चुप रहती वो भी सोनाली से गुत्थम-गुत्था हो गई। दोनों करीब-करीब नंगी लड़कियों में एक दूसरे को पूरी नंगी करने के लिए कुश्ती चल रही थी। पहले रूपा ने सोनाली की ब्रा निकाल ली लेकिन खुद को सोनाली के चुंगल से नहीं निकाल पाई। आखिर जब रूपा की ब्रा सोनाली के हाथ आई तब तक रूपा पलट चुकी थी लेकिन तब भी सोनाली ने उसे नहीं छोड़ा था। अब सोनाली फर्श पर पीठ के बल लेटी थी और उसने पीछे से रूपा को उसके बाजुओं के नीचे से अपने हाथ फंसा कर उसके कन्धों को पकड़ा हुआ था। दोनों पूरी नंगी थीं और दोनों की नज़रों के सामने पंकज नंगा खड़ा मुठ मार रहा था।

सोनाली- चला अपनी पिचकारी पंकज! रंग डे अपनी बहन को अपने सफ़ेद रंग से।
रूपा- नहीं भाभी छोड़ो मुझे… ही ही ही… नहीं भैया प्लीज़… सू-सू मत करना प्लीज़!!!
सोनाली- अरे तुम चलाओ पिचकारी… ही ही ही।

रूपा शायद सोनाली की बात का मतलब नहीं समझी थी। दोनों भाँग की मस्ती में मस्त होकर हँसे जा रहीं थीं। पंकज ने पहली बार अपनी बहन को नंगी देखा था और जिस तरह की नंगी लड़कियों की कुश्ती उसे देखने को मिल रही थी उसके बाद किसी भी आदमी को झड़ने में ज्यादा समय नहीं लग सकता खासकर जब उनमें से एक लड़की उसकी बहन हो।
पंकज के लण्ड से वीर्य की फुहार छूट पड़ी और पहली बूँद रूपा के स्तन पर जा गिरी। सोनाली ने उसे रूपा के चूचुक पर मॉल दिया। इस से रूपा का भी मज़ा आ गया और उसका छटपटाना बंद हो गया।

पंकज आगे बढ़ा और अगली 1-2 धार उसने रूपा और सोनाली के चेहरे पर भी छोड़ दीं। रूपा को अब तक ये तो समझ आ गया था कि ये पेशाब नहीं था। सोनाली ने वीर्य की कुछ बूँदें रूपा के चेहरे से चाट लीं और फिर रूपा को फ्रेंच-किस करके उसे भी भाई उसके भाई के वीर्य का स्वाद चखा दिया। फिर सबसे पहले सोनाली उठ खड़ी हुई और धीमी आवाज़ में मस्ती वाली अदा से पंकज को छेड़ने लगी।

सोनाली- याद है… हमारी पहली होली पर तुमने मुझे ऐसे ही रंगा था… लेकिन तब इतना रंग नहीं निकला था तुम्हारी पिचकारी से।
पंकज (शरमाते हुए)- अब क्या बोलूं… तब तुम अकेली थीं, अभी दो के हिसाब से…
सोनाली- हाँ हाँ पता है मुझे… आज दूसरी में कुछ ज्यादा ही इंटरेस्टेड हो रहे हो।
सोनाली (जोर से)- चलो सब चल के नहा लेते हैं। बहुत हो गई होली… (धीरे से) अब कुछ ठुकाई हो जाए।

पंकज डॉक्टर था तो उसने पहले ही सोनाली को समझा रखा था कि होली पर कौन सा रंग इस्तेमाल करना चाहिए। ये सूखा वाला आर्गेनिक रंग था जिसे छूटने में ज्यादा देर नहीं लगती। जल्दी ही सबका रंग तो उतर गया लेकिन भंग का रंग थोड़ा बाकी था या शायद भांग तो उतर गई थी पर मस्ती अभी भी चढ़ी हुई थी। पंकज और सोनाली शॉवर के नीचे बांहों में बाहें डाले एक दूसरे के नंगे बदन को सहला रहे थे और चुम्बन का आनन्द ले रहे थे।

रूपा उनकी तरफ ना देखने का नाटक करते हुए दूसरी तरफ मुँह करके खड़ी थी लेकिन झुक कर पैरों को साफ़ करने के बहाने से अपने पैरों के बीच से अपने भाई के लण्ड का दीदार कर रही थी जो अब वापस से सख्त लौड़ा बन चुका था। उधर चुम्बन टूटा तो पंकज, सोनाली के उरोजों पर टूट पड़ा। तभी सोनाली की नज़र रूपा पर गई जो कनखियों से उनकी ही तरफ देख रही थी।

सोनाली ने पंकज का कड़क लण्ड किसी हैंडल की तरह पकड़ा और उसे खीचते हुए पंकज को रूपा के पीछे खड़ा कर दिया। रूपा उठने को हुई तो सोनाली ने अपने एक हाथ से उसकी पीठ को दबाते हुए दूसरे से पंकज का लण्ड उसकी बहन की चूत के मुहाने पर रख दिया और फिर उसी हाथ से पंकज का चूतड़ पर एक चपत जमा दी, ठीक वैसे जैसे घोड़े को दौड़ाने के लिए उसके पिछवाड़े पर मारी जाती है।

रूपा- आह! आऊ!! आऽऽऽ

बस इतना, और अपने भाई घोड़े जैसे लण्ड के तीन धक्कों से रूपा ने अपना कुँवारापन हमेशा के लिए खो दिया। लेकिन कुँवारेपन के बोझ तले अपनी जवानी को सड़ाना चाहता भी कौन है। रूपा तो खुद कब से अपनी चूत की चटनी बनाने के लिए एक मूसल ढूँढ रही थी, जो आज उसकी भाभी ने खुद अपने हाथों से लाकर उसकी चूत पर रख दिया था। दर्द ख़त्म हो चुका था और अब जो अनुभव रूपा को हो रहा था उससे उसे ऐसा लग रहा था कि बस ये चुदाई यूँ ही चलती रहे; कभी ख़त्म ही ना हो।

सोनाली इन दोनों की उत्तेजना बढाने के लिए गन्दी गन्दी बातें बोल रही थी और कभी रूपा के स्तनों को सहला रही थी तो कभी उसे चूम रही थी। काश रूपा की कामना सच हो पाती और ये भाई बहन की चुदाई कभी ख़त्म ही ना होती।

यह कहानी यहीं समाप्त होती है लेकिन इसको पढ़ने के बाद आप पहले ही प्रकाशित हो चुकी शृंखला
होली के बाद की रंगोली
को पूरी पढ़ सकते हैं।
“होली के बाद की रंगोली” के उत्तरार्ध (Sequel) में कहानी को आगे बढ़ाया जाएगा लेकिन वो काफी बाद की बात है उसे भविष्य के लिए छोड़ देते हैं।

दोस्तो, मेरी रंगीली सेक्स कहानी आपको कैसी लगी? बताने के लिए मुझे यहाँ मेल कर सकते हैं [email protected]. आपके प्रोत्साहन से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है।

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