आपदा में अवसर: मम्मी की सहेली की चुदाई

(Rajasthani Desi Sex Kahani)

राजस्थानी देसी सेक्स कहानी में पढ़ें कि गांव में बाढ़ आई हुई थी, सब बेघर हुए पड़े थे, ऐसे में मैंने अपनी पड़ोसन, मम्मी की सहेली की चूत मार ली।

दोस्तो, मैं आपको अपनी सेक्स स्टोरी बताने जा रहा हूं कि कैसे गांव में आई बाढ़ का फायदा उठाकर मैंने काकी की चुदाई की।

बरसात के दिनों में भारी वृष्टि के कारण गांव में पानी भरने लगा और सभी वासियों में भागादौड़ी मच गई।

धीरे-धीरे बढ़ते जलस्तर को देखकर गांव वालों ने गांव खाली कर देने में ही भलाई समझी।

सभी गांव वाले ट्रैक्टर ट्रॉली में अपने कीमती सामान और खाने पीने का सामान रखने लगे।
जिनके पास खुद के ट्रैक्टर ट्रॉली नहीं थे वे अपने पड़ोसियों के साथ साझा करने लगे।

तकरीबन एक घंटे के भीतर ही सब तैयार होकर गांव खाली करके ऊंचाई पर बने टीले की तरफ निकल पड़े।

मैं अपने मम्मी-पापा और छोटी बहन के साथ था।
हमारी ट्रॉली में हमारे अलावा हमारे पड़ोसी सोहन काका अपने पूरे परिवार सहित थे।

उनका बेटा रिंकू मेरे ही साथ 11वीं जमात में पढ़ता था, बेटी डिंपल मेरी बहन संगीता की ही हमउम्र थी, और काकी सीमा मेरी मां की ही हमउम्र थी।

गांव खाली करके हम टीले पर पहुंचे ही थे कि उधर पूरा गांव जलमग्न हो गया था।
जलस्तर इतना बढ़ गया था कि गांव में आने जाने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे।

अभी रात के महज 11 ही बजे थे।

आठ-दस मर्दों के मिलाकर दो-तीन झुंड बने हुए थे और वे अपनी बातचीत में मशगूल थे।

इधर दो-चार दो-चार औरतें भी झुंड बनाकर अपनी बातें करने लगीं।
हम लड़के कभी पानी का बढ़ता स्तर देख रहे थे तो कभी वापस आकर बुजुर्गों की बातें सुन रहे थे।

इसी उहापोह में रात के 1 बज गए।
मां और काकी बेटियों को लेकर ट्रॉली में सो गईं।

मुझे भी अब नींद आने लगी थी तो मैंने भी ट्रॉली की तरफ मुंह किया।
ट्रॉली के ऊपर तिरपाल लगा होने से उसमें घुप्प अंधेरा था।

मैं अंदाजे से ही जगह बनाते हुए अंदर गया।

“इस्यो पाणी तो में म्हारा जनम में कोणी देखी बेण!।” काकी मम्मी को बोल रही थी। (इतना पानी तो मैंने पूरे जन्म में कभी नहीं देखा बहन)
“ईस्या प्रलय सु राम बचावे बेण!”मम्मी ने काकी को उत्तर दिया।

मुझे अंदर आता देख काकी ने अंदाजे से ही कहा- सूरज बिटवा! इठे ही सो जा!

ट्रॉली के एक छोर पर मम्मी सो रही थी, उनके बगल में मेरी बहन सोनिया थी।
उसके पास डिंपल, और डिंपल के पास काकी सीमा सो रही थी।
रिंकू शायद अभी भी बाहर ही था।

मैं काकी के ही बगल में लेट गया।

काकी और मम्मी अपनी बातों में मशगूल थीं, इधर मैं आंखें बंद करके लेटा हुआ था।

अचानक काकी ने जैसे ही करवट बदली उनका ब्लाउज और घाघरे के बीच नंगा पेट मेरे हाथ से छू गया।
मुझे जैसे करंट सा लग गया।

गदराई सीमा काकी तकरीबन 38-40 साल की थी।
उनका बदन गोरा और एकदम भरा हुआ था।

चूचे यही कोई 36-38 के रहे होंगे और मांसल मोटा पेट था।
जिस पर वह नाभि से 8-10 उंगली नीचे साड़ी पहनती थी।

उनकी गांड फैले हुए घाघरे में भी उभार लिए दिखती थी।

मेरा मन कई बार उनके बदन के लिए डोला था.
लेकिन दोस्त की मां होने के नाते मैंने खुद को और अपने लंड को संभाला हुआ था।

न कभी मैं उनके लिए मन में गलत ख्याल लाया था, न कभी अपने लंड को उनके नाम से हिलाया था।

वैसे तो कई बार मैंने सीमा काकी को हाथ पर छुआ था, लेकिन ये गद्देदार मांसल पेट की क्षण भर की छुअन मुझे पागल कर गई।

इस क्षण भर की छुअन ने मुझमें इतना करंट दौड़ा दिया कि गांव पर आई विपदा और इन विपरीत हालातों के बीच भी मेरे पजामे में तम्बू बन गया।

घुप्प अंधेरे ने मेरा बखूबी साथ दिया और मेरे तंबू पर पर्दा डाला, वरना तो उजाले में कोई भी देख कर पकड़ लेता कि मेरा लंड चूत मांग रहा है।

उधर मेरी सब परेशानियों से अनजान सीमा काकी वापस मम्मी से बातें करने में मशगूल हो गई।
वे दोनों कभी इस आपदा के लिए भगवान को कोस रही थीं.
कभी पुराने जमाने में कितना पानी आता था … वे ये बातें कर रही थी।

अब इस विपदा के समय किसको नींद आने वाली थी, जिसमें घर-बार दांव पर लगे हों।

मैंने सोने का नाटक करते हुए करवट काकी की तरफ ली और अपना हाथ हल्का सा उनकी नंगी कमर पर छू दिया।
उफ्फ … क्या रोमांच था।

काकी सीधी लेटी हुई थी और मैं उनकी तरफ करवट लिए आंखे बंद किए लेटा था।

अभी महज मेरी उंगलियां ही काकी को छुई थीं जिसका एहसास शायद उनको हुआ भी नहीं था.
लेकिन मेरे अंदर तो वासना दौड़ रही थी।

अब थोड़ी हिम्मत करके मैंने उंगलियां आगे बढ़ाईं और कुछ ही देर में पूरा हाथ काकी के पेट पर रख दिया।

शायद अब तक मेरी हरकत से अनजान काकी को अब पता चल गया था कि मेरा हाथ किस मंशा से उनके पेट पर पहुंचा है।

वह बातें करते करते ठिठक कर चुप हो गई लेकिन अगले ही पल वे वापस अनवरत बोलने लगीं।

उनकी तरफ से कोई विपरीत प्रतिक्रिया न पाकर मेरी हिम्मत बढ़ गई और जो हाथ उनकी गहरी नाभि के ऊपर रखा था, वो अब धीरे धीरे उनके गद्देदार गोरे पेट पर इधर उधर फिरने लगा जैसे कि पेट की मालिश कर रहा हो।

पूरे पेट की मालिश करते-करते जब भी मेरा हाथ ब्लाउज की तरफ बढ़ता तो काकी ठिठक कर असहज हो जाती।
हाथ की हलचल से ओढ़ा हुआ हल्का सा कंबल इधर उधर होने लगता तो काकी उसे भी संभाल लेती।

मेरी आंखें बंद थीं.
लेकिन आज हाथों से मैं काकी के बदन को जिस कदर महसूस कर रहा था वो शायद मैंने कभी खुली आंखों से भी नहीं किया था।

हिम्मत करके मैं हल्का सा ही खिसका था कि मेरा पूरा शरीर काकी के गदराए गर्म बदन से चिपक गया।
मेरा खड़ा लंड काकी की जांघ पर घाघरे के ऊपर से छू गया।
यह बिल्कुल वैसी ही स्थिति थी जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका का आलिंगन करता है।

चाची ठिठक गई लेकिन अगले ही पल खुद को और कंबल को संभालते हुए वो सामान्य हो गई।
मेरा सिर्फ हाथ कंबल के अंदर था। काकी और मेरे शरीर के बीच हमारे कपड़ों के अलावा कंबल भी था।

अब तक मैं जैसे काकी को अपनी आज रात की लुगाई समझ चुका था।
पेट पर घूमता मेरा हाथ मैंने सीधे काकी के मोटे बोबे पर रख दिया।

उफ्फ … इतना आनंद सिर्फ एक अंग की छुअन से कैसे मिल सकता है!
उस पल दुनिया की सारी खुशियां मुझे अपने हाथों में लगीं।

काकी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
यानि जो आग मेरे अंदर थी, वही आग काकी के बदन में भी जल रही थी।

ढीले पड़ चुके पर मोटे मोटे रूई से मुलायम स्तनों से खेलने में जो मजा आ रहा था वो शायद मुझे कभी किसी खेल में नहीं आया था।

काकी और मम्मी की बातचीत अब बंद हो चुकी थी।
मेरी किसी भी हरकत का काकी कोई विरोध नहीं कर रही थी।

उनकी इस प्रतिक्रिया से मुझे लगने लगा था जैसे मुझसे ज्यादा जरूरत उन्हें मेरी है।

कुछ देर तक मसलम मसलाई करके मैंने अपनी चड्डी में से अपना लंड निकाल कर काकी की जांघ पर बगल से घाघरे के ऊपर से रख दिया।

जवाब में काकी ने मेरे लंड समेत मेरे पैरों को अपनी चादर में लेकर एक दीवार और गिरा दी।
अब मेरे लंड और उनके जिस्म के बीच महज उनका घाघरा था।

“मम्मी मैं किधर सो जाऊं, मुझे तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा!” रिंकू की आवाज थी.
जिसे सुनते ही मानो काकी में करंट दौड़ गया हो।
वह तुरंत मेरे ऊपर से चादर हटा कर मुझसे दूर हट गई।

मैंने एक हाथ से अपना लंड वापस चड्डी के भीतर डाला और दूसरा काकी के मुलायम थनों पर से हटाया।

अब कोई उजाले में भी हमें देखे तो शक न कर पाए कि कुछ पल पहले तक हम दोनों एक दूसरे के बदन को घिस कर कितने आनंदित हो रहे थे।

किसी से कोई जवाब न पाकर रिंकू हमारे पैरों की तरफ थोड़ी जगह बनाते हुए सो गया।

उसके सोने के कुछ ही देर बाद काकी की गदराई गांड मुझसे आकर टकराई।
मैंने भी करवट काकी की तरफ ली और थोड़ा सा चादर के अंदर जाकर बिना समय गंवाए सीधे कोरा नंगा लंड काकी की गांड पर सटा दिया और उनको अपनी लुगाई की तरह बांहों के भरकर लेट गया।

घाघरे के भीतर जलती भट्टी की आग को मेरा लंड ज्यादा देर सह नहीं पाया और पिघल कर काकी के घाघरे ऊपर ही बह गया।
मैंने लंड वापस अंदर डाला और इसी तरह अठखेलियां करते हुए कब आंख लगी पता ही नहीं चला।

सुबह आंख खुली तो अंदर मैं अकेला सोया हुआ था।
बाहर निकला तो देखा कि कुछ लोग आपस में पानी के बढ़ते जल स्तर की बातें कर रहे थे।

अब मुझे बाढ़ से ज्यादा चिंता अपने अंदर उमड़ रही बाढ़ की थी।
रात को जो कुछ भी हुआ वो मुझे सुबह महज एक ख्वाब लग रहा था।

यही सब सोचते सोचते मैं लोटा लेकर हल्का होने पीछे मैदान की तरफ चल निकला जहां झाड़ियां और पेड़ होने से थोड़ा जंगल जैसा लग रहा था।

बाढ़ से पहले इस ऊंचे टीले पर मैं तो कभी नहीं आया था इसलिए ये मेरे लिए पूरा अनजान था।

थोड़ी ही दूर जाकर एक झाड़ी की आड़ लेकर में बैठ गया।
बैठे-बैठे मैं अपना लंड मसल रहा था।

तभी मेरी नजर बगल वाली झाड़ी पर पड़ी।
झरहरी झाड़ी के पीछे मुझे किसी औरत के होने का अहसास हुआ लेकिन मैं उसकी पहचान करने में असफल रहा।

किसी औरत की चूत दिखाई का यह मौका मैं नही छोड़ना चाहता था।
लेकिन सीधे जाकर देख भी नहीं सकता था।

मैंने चूतड़ धोए और बैठे-बैठे ही खिसक कर झाड़ी के दूसरी ओर चला गया।

वो कहते हैं ना कि ऊपर वाला जब देता है तो सब कुछ फाड़ कर ही देता है।
सीमा काकी वहीं बैठी हुई अपनी चूत मसल रही थी।

मैं झाड़ी के पीछे दुबके हुए ही उनको देखता रहा।
मेरा एक हाथ चड्डी के अंदर जाकर मेरा लंड मसलने लगा।

जिस फटे हुए कोमल भोसड़े को मैं रात में चोद नहीं पाया था, उसे देखकर मैं लंड मसल रहा था और शायद काकी भी मेरे लंड की याद में चूत सहला रही थी।

अचानक मैंने काकी से कुछ ही दूर एक सांप देखा।

काकी चूत मसलाई में इतनी मशगूल थी कि उनकी नजर सांप पर नहीं पड़ी।

मैंने कुछ ही क्षणों में एक लकड़ी उठाकर सांप के ऊपर धावा बोल दिया।

काकी चौंक गई, मुझे और सांप दोनों को देख कर!

सांप भाग गया लेकिन मेरा काला नाग खड़ा हो गया।

काकी झटपट चूतड़ धोकर घाघरा नीचे करके खड़ी हो गई।

“तू कीठे सु आ टपक्यो सूरज?” काकी ने झुकी नजरों से सवाल किया।
“मैं भी हल्का होने आया था काकी, इधर से निकल रहा था तो सांप पर नजर पड़ गई! सांप भाग गियो!” मैंने कहा।

“हां भाग तो गियो।” काकी ने मेरे चड्डे के उभार को देखते हुए कहा।

काकी को वहां से नहीं जाते हुए देख कर मैंने मौके पर चौका मारा और सीधे काकी का हाथ पकड़ लिया।

“यो कई करें सुरज्या … में थारी माई समान हूं।” काकी बोली।

“तू म्हारी माई भी होती तो भी थारी चूत चोदतो काकी!” मैंने हवस भरे लहजे में कहा।
मेरे मुंह से ये शब्द सुनकर काकी अवाक् रह गई।

उससे कुछ बोलते न बना तो सिर्फ इतना बोली- कोई देख लेवेगो!

काकी के गदराए बदन को बांहों में भरते हुए मैंने कहा- इधर कोई नहीं आ रहा काकी।
इतना कह कर मैंने काकी को चूमना शुरू कर दिया।
कभी उनके होंठ तो कभी उनका गदराया पेट मैं चूमने लगा।

किसी के आने के डर से काकी ने जल्दी सब निपटाना उचित समझा.
शायद इसीलिए वह लेट गई और घाघरा उठा कर मेरे सामने भोसड़ी फैला दी।

जिस चूत को थोड़ी देर पहले मैं सिर्फ घूर रहा था वो अब मेरे लंड के नीचे चुदने को बिछी पड़ी थी।

हाथ ब्लाउज के ऊपर थनों पर, और लंड लसलसी चूत पर रखकर एक ही झटका मारा था कि मेरा आधा लंड काकी के भोसड़े में समा गया।

“उई ईईई म्हारी मां फाड़ दियो म्हारो, इस्यों मोटो खूंटो गाड़ दियो म्हारा भोसड़ा मै!” आधा लंड खाते ही काकी संस्कारी से सरकारी हो चुकी थी।

काकी के इन शब्दों ने मेरी उत्तेजना और बढ़ा दी।
एक झटका और दिया कि मेरा लंड जड़ तक काकी के अंदर था।

उनकी गर्म भोसड़ी में 8-10 धक्के ही पेल पाया था कि मैं पूरा का पूरा उनकी चूत के अंदर पिघल गया।
मेरा पानी अपनी चूत में लिए काकी घाघरा नीचे करके सरपट डेरे की तरफ चली गई।

2 मिनट भी मैं काकी को नहीं पेल पाया।
मैं भी खुद को व्यवस्थित करके डेरे की तरफ दूसरे रास्ते से आने लगा तो मुझे लगा जैसे कोई झाड़ी के पीछे है।
जब मैंने जाकर देखा तो कोई नहीं था।

इसके बाद पूरा दिन काकी मुझसे ऐसे बर्ताव करती रही जैसे हमारे बीच कुछ न हुआ हो।
अब मुझे रात का इंतजार था ताकि मैं दोबारा राजस्थानी देसी सेक्स का मजा ले सकूँ.

रात में फिर से मैं काकी के बगल में सो गया।

उस रात मुझे काकी को पटाने या गर्म करने की जरूरत नहीं थी।

रात को मैंने सीधे घागरा उठा कर अपना लौड़ा काकी की चूत में ठोक दिया।
काकी ने मम्मी से बतियाते-बतियाते मेरा लंड ले लिया।

कभी वो हिल डुल कर धक्के ले रही थी, तो कभी मैं आगे पीछे हो रहा था।

झड़ने के बाद भी मैं काकी की चूत के अंदर अपना लंड फंसाए हुए था।
कुछ ही देर में फंसे फंसे ही मेरा दोबारा खड़ा हो गया।

कल की ही तरह आज भी रिंकू देर से सोने आया लेकिन आज वो बिना बोले चुपचाप हमारे पैरों की तरफ जाकर सो गया।
काकी ने उसकी आहट सुनते ही मुझे फंसे लौड़े के साथ ही चादर के अंदर ले लिया।

मेरा दोस्त वहीं सो रहा था और मैं उसकी मां की भोसड़ी फाड़ रहा था।

इधर मेरी मां भी पास में ही सो रही थी और मैं उनके बगल में सो रही उनकी सहेली की ठुकाई कर रहा था।

अगले दिन बाढ़ का पानी उतर गया और हम अपने अपने घरों को आ गए।

मगर इस बाढ़ ने मुझे एक नया रिश्ता दिया जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था।

तो दोस्तो, इस तरह से मैंने अपनी मम्मी की सहेली की चुदाई की।
आपको ये राजस्थानी देसी सेक्स कहानी कैसी लगी, मुझे जरूर बताना।
मेरा ईमेल आईडी है
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top