मेरी बड़ी बहन की अन्तर्वासना- 1

(Khet Mein Chudai Didi Ki)

खेत में चुदाई करवा ली मेरी दीदी ने! हम दोनों सुबह सवेरे हगने गए थे तो दीदी गन्ने के खेत में घुस गयी. मैं बाहर बैठ गया. तभी दीदी के चीखने की आवाज आई.

बहुत दिनों से कहानियां पढ़ रहा हूं अन्तर्वासना पर, पढ़ते हुए अपनी जिंदगी के वासना में लिप्त लम्हे भी याद आते हैं और सोचता हूं कि क्या ऐसा भी होता होगा किसी के साथ!!
बिल्कुल शुरू की कहानी है मेरी जब मैं अपने आसपास की चीजों से स्वयं को परिचित कर पा रहा था।

अच्छे से याद है।
पिताजी पुलिस की नौकरी में थे और तब एक गांव में तैनात थे. थाने के बगल में ही हमारा खपरैल का क्वार्टर था।
घर में संडास था लेकिन अक्सर मैं लोटा लेकर खेतों में ही जाता था।

हम दोनों भाई-बहन रात को एक साथ ही सोते थे और कुछ दिनों से दीदी मुझसे बहुत लाड़ जताने लगी थी.
इतना दुलार कि रात को मेरी नींद खुल जाती थी उसकी आगोश में कस जाने से!
यह तो मुझे बाद में समझ आया कि वो अपनी अन्तर्वासना से परेशान थी।

ऐसे कभी-कभी दीदी मुझे साथ लेकर खेतों में घूमने जाती थी.
लेकिन एक दिन शाम को जब मैं लोटा लेकर शौच के लिए जाने लगा तो वो भी मां से पूछकर लोटा लेकर मेरे साथ निकल पड़ी।

घर के पीछे ही खेत थे और मैं ज्यादा दूर नहीं जाता था.
लेकिन उस दिन दीदी मुझे गन्ने के खेतों की ओर लेकर गयी जो थोड़ी दूरी पर था।

दीदी ने कहा- लड़कियां खुले में शौच के लिए नहीं बैठतीं.
और गन्ने के खेत के पास पहुंच कर मुझे शौच करने बोलकर खुद लोटा लेकर गन्ने के खेत के अंदर चली गई।

मैंने शौच से निपटकर दीदी को आवाज लगाई तो उसने मुझे मेड़ पर बैठने को कहा कि वो थोड़ी देर में बस आ ही रही है।
सचमुच थोड़ी ही देर में वो तेजी से चलते हुए आ गई, हांफ रही थी और उसके पसीने छूट रहे थे।

मैंने पूछा- क्या हुआ दीदी? पसीने क्यों आ रहे हैं?

दीदी ने कहा- अरे पागल! गन्ने के बीच में हवा नहीं लगती ना इसीलिए पसीना आ गया है।
मैंने मान ली उसकी बात!

हमने घर आ कर हाथ पैर धोए और लालटेन लेकर पढ़ने बैठ गये।

रात का खाना खाकर हम दोनों भाई-बहन एक ही बिस्तर पर सो गए।

उस दिन बीच रात को मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि मेरी पैंट खुली हुई है और मेरी नूनी को दीदी सहला रही है।

मैं अचकचा कर बैठ गया और पूछा- दीदी, क्या कर रही है?
दीदी ने कहा- कुछ नहीं, आ सो जा!
कहकर मुझे फिर अपने साथ लिटा लिया और मेरे चूतड़ों को पकड़ के अपने साथ सटा लिया।

उसके शरीर में सटते ही मुझे पता चल गया कि उसकी सलवार खुली हुई थी मेरी नूनी उसकी नूनी से टकरा रही है।

मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ कर दीदी ने मुझे अपने उपर खींच लिया और मुझे ऊपर नीचे हिलाने लगी।

दीदी के सहलाने से मेरी नूनी में तनाव तो था ही, वो तनाव दीदी की नूनी से रगड़ने के कारण और भी बढ़ गया था।

तब दीदी ने पूछा- कैसा लग रहा है भाई?
मैंने कहा- मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा, मुझे सोने दो।
“ठीक है, चल दूद्दू पीकर सो जा!” दीदी बोली और अपनी कमीज ऊपर करके अपनी चूची मेरे मुंह में सटा दी।

मैंने मां का दूध पिया था तो बस वैसे ही दीदी की चूची को चूसने लगा।
फिर दीदी ने मेरा हाथ अपनी दूसरी चूची पर रखा और उसे मसलवाने लगी।

थोड़ी देर बाद मेरे मुंह में दूसरी चूची डाल दी और पहले को मसलवाने लगी।
मैं भी मज़े से दीदी की चूचियों को बारी-बारी से चूसने लगा और मसलने लगा।

अब दीदी ने अपना एक हाथ मेरे चूतड़ों पर रखा हुआ था और दूसरे हाथ से मेरी नूनी को सहला रही थी।

सचमुच अब मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और जब दीदी ने दुबारा पूछा- अब कैसा लग रहा है भाई?
तब मैंने ज़बाब देने की बजाय उसकी चूची को थोड़ा जोर से मसल दिया।

तब दीदी ने अपने पैरों को फैला लिया और मुझे अपने ऊपर इस तरह लिटा लिया कि मेरी नूनी दीदी की नूनी के ऊपर टकरा रही थी।
मेरी नूनी पूरे तनाव में थी।

दीदी बोली- भाई, मेरी नूनी में अपनी नूनी डाल दे।
और मेरी नूनी को पकड़ कर अपनी नूनी में डाल लिया।

मुझे अचानक अपनी नूनी गर्म लगने लगी और अच्छा भी महसूस होने लगा।

दीदी ने मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ कर थोड़ी देर हिलाया जिससे मेरी नूनी दीदी की नूनी के अंदर बाहर होती रही।
फिर दीदी ने अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा पकड़ कर मेरे गाल पर कसकर चूम लिया और हांफने लगी।

मेरी नूनी गीली हो गई थी।
दीदी ने अपनी सलवार से मेरी नूनी पोंछ दी और पैंट पहनने को कहा।
फिर मुझे अपनी बाहों में भर लिया और किसी को भी ये बताने के लिए मना किया।

अगली सुबह जब नींद खुली तो देखा दीदी सामने ही बैठी थी और मुझे बड़े प्यार से निहार रही थी।

मैं भी उठकर सीधे उसके गोद में सर रखकर लेट गया और आंखें बंद कर ली।
लग रहा था जैसे रात को जो भी हुआ था, एक सपना था।

मां की आवाज़ ने आंख खोल दी- आज स्कूल नहीं जाएगा क्या? प्रभा, इसे तैयार कर दे और खुद भी तैयार हो जा।

प्रभा मेरी दीदी का नाम है।

दीदी ने मुझे तुरंत उठा दिया और मां से बोली- मैं बाबू को शौच करवा के लाती हूं, उधर से ही दातुन करते आएंगे और नहाकर तैयार हो जाएंगे।
मां बोली- जल्दी जल्दी करो, मैं नाश्ता और टिफिन तैयार करती हूं।

दीदी और मैं लोटा लेकर फिर वहीं गन्ने के खेत के पास गये।

कल रात में दीदी के साथ नूनी नूनी खेलकर मैंने स्त्री-पुरूष संबंध की प्रथम जानकारी पा ली थी.
और सुबह सुबह दोनों भाई बहन फिर लोटा लेकर गन्ने के खेत पर थे।

दीदी ने मुझे गन्ने के किनारे पर ही शौच करने को कहा और खुद खेत के अंदर चली गई।

मैं शौच के लिए बैठा ही था कि अंदर खेत में गन्ने की डंडों के टूटने जैसी आवाज आई।

मैंने जोर से कहा- दीदी, गन्ना मत तोड़ो … खेत वाला आ जाएगा।
अंदर से दीदी की आवाज़ आई- तू देखता रह, कोई आएगा तो बताना!
मैं शौच पर बैठे बैठे इधर उधर देखता रहा।

थोड़ी देर बाद दीदी के रोने की धीमी आवाज आई और वो बोल रही थी- छोड़ दो … छोड़ दो … निकाल लो … निकाल लो … मैं मर जाऊंगी।
मैं घबरा गया, अपनी पैंट पकड़े पकड़े खेत के अंदर चला गया।

अंदर जाने के बाद मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा.
दीदी के ऊपर एक काला लड़का अपनी बड़ी सी नूनी दीदी की खून से सनी नूनी से सटाये हुए था।
मेरी दीदी रो रही थी और वो काला लड़का दीदी की नंगी चूचियों को दोनों हाथों से मसल रहा था।

मैंने उस लड़के को उसके बालों से पकड़ लिया और पीछे अपनी तरफ खींच लिया.
जब मैंने उसका चेहरा देखा तो दंग रह गया.
यह तो दीदी का सहपाठी उमेश था और कभी कभी क़िताब कापी देने लेने हमारे घर भी आता था; मुझे चाकलेट, खिलौने भी खूब देते रहता था।

“ये क्या कर दिया उमेश तूने दीदी की नूनी को!” मैं चिल्ला पड़ा.
उमेश ने मेरा मुंह अपनी हथेली से बंद कर दिया और हंसते हुए बोला- अरे साले, ये नूनी नहीं चूत है तेरी दीदी की और तेरी दीदी ने ही मुझे इस खेत में बुलाया था चूत चुदवाने के लिए मेरे लंड से! देखो ये मेरा लंड है, जब नूनी बड़ी हो जाती है तो लंड या लौड़ा हो जाता है।
उमेश ने अपने लंड को दिखाते हुए मुझे समझाया।

दीदी के फैले पैरों के नीचे से उमेश के पैर दीदी के कंधों को छू रहे थे.
अपनी चूत से बहते हुए खून को दीदी ने हाथ से पौंछ दिया और अब उसकी दोनों हथेलियों पर खून लगा था.
दीदी की आंखों में आंसू थे.

तब दीदी ने कहा- मैं चोदने बोली थी कि फाड़ने को? इतना बड़ा लंड है तेरा! जानती तो नहीं चुदाती तेरे लंड से उमेश!
उमेश बोला- पहली चुदाई में तो खून निकलता ही है, फिर मज़ा ही मज़ा।

दीदी लोटे की तरफ इशारा करती मुझसे बोली- बाबू, गांड तो धो ले और मेरे हाथ धुला दे. कुछ नहीं हुआ है मुझे, आ तू भी खेल ले! उमेश का लंड बहुत बड़ा है, इसने मेरी चूत फाड़ दी आज! अब चूत फट गई तो चुदवाने दे मुझे! तुम भी चोद लेना … लेकिन देर होने पर मां बोलेगी, तुम रात को चोदना।

मैंने दीदी के लोटे से गांड धोई, पैंट पहनी और उन दोनों को खेत में चुदाई करते देखने लगा।

उमेश अपना लंड दीदी की चूत में धीरे धीरे अंदर बाहर कर रहा था.
दीदी ने दोनों हाथों से उमेश की गर्दन पकड़ ली थी.
उमेश के दोनों हाथों में दीदी की चूचियां थी जिन्हें कभी कभी उमेश चूस लेता था, कभी रुककर दीदी के होठों को चूसने लगता था.

दीदी भी अपनी गर्दन ऊपर कर उमेश के गाल पर, होंठ पर खूब चूस रही थी।

तब दीदी ने हाथ के इशारे से मुझे पास बुलाया और उमेश से बोली- देखो मेरा बाबू कितना अच्छा है, मुझे तेरे लंड से चुदाने को अपने साथ लेकर आया। इसे हम हमेशा साथ रखेंगे।

मैं उनके बिल्कुल पास चला गया, दीदी अब अपनी गांड उठा उठा कर उमेश के लंड को अपनी चूत में पूरा अन्दर ले रही थी।
दीदी ने अब मेरा हाथ पकड़ रखा था और उमेश से बोली- जल्दी करो, देर हो रही है। मां समझ गई तो फिर दिक्कत हो जाएगी। शाम को देर तक चोद लेना लेकिन अंधेरे के पहले ही। आह आह, ऊंह ऊंह, और जोर से करो ना … मज़ा आ रहा है।

उमेश जल्दी जल्दी अपने लंड को दीदी की चूत में पूरा जड़ तक पेलने लगा और मुझे दीदी की चूची पकड़ा दी।
दीदी ने मेरा मुंह अपनी चूची से सटा दिया, मैं चूची चूसने लगा.

उमेश मेरे चूतड़ों को पैंट के उपर से ही मसलने लगा और बोला- शाम में बाबू ही चुदाई करवा देगा प्रभा, इसके साथ ही आना। इसके लिये गुड़ का रावा लाऊंगा कल घर पर!
मुझे रावा बहुत पसंद था, मैं चूची छोड़ कर बोला- मुझे रावा ढेर सारा देना. और अब जाने दो हमें, मां डांटेगी।

“हो गया बाबू, देखो!” कहकर उमेश ने अपना लंड दीदी की चूत से निकाला और दीदी की चूत के ऊपर अपने लंड से उजला गाढ़ा पानी निकालने लगा।

दीदी बोली- बाबू, अपना लोटा ला … उमेश ने गंदा कर दिया. और देर हो रही हैं।

मैं तेजी से खेत के बाहर आया, अपने लोटे का पानी लेकर लौटा तो देखा दीदी उमेश के लंड को चाट चाट कर साफ़ कर रही थी और उमेश खड़ा था।

दीदी ने अपने हाथ धोए, अपनी चूत को धोया फिर अपना चेहरा भीगे हाथ से पौंछ लिया।
वो पूरी नंगी थी, उसने ब्रा पहनी और उमेश से हुक लगवाया, सलवार पहनी, फ्राक पहनी फिर बोली- उमेश, आज और नहीं चुदा सकती, बहुत जलन हो रही है।

“ठीक है, आना तो बाबू के साथ … चूत नहीं चोदूंगा, पहले की तरह सिर्फ गांड में रगड़ने देना. बाबू भी ये काम कर सकता है।”
“हां, बाबू की गांड भी रगड़ सकते हो!” बोलकर दीदी हंसने लगी.

उमेश ने फिर दीदी को अपनी बाहों में ले लिया और दीदी के होठों को चूमने लगा।
जब छोड़ दिया तब मैं और दीदी अपना अपना लोटा पकड़कर घर चल दिए।

रास्ते में दीदी थोड़ा-सा लंगड़ा कर चल रही थी।
मैंने दीदी से पूछा- दीदी, चूत फटने से लंगड़ा रही हो ना? क्या जरूरत थी उमेश से चुदाने की?

“बहुत मजा आया बाबू, शाम को फिर आया जाएगा। मां पूछेगी तो बोलना कि मैं मेड़ से फिसल गई थी। मैं भी यही कहूंगी। आज तो तुमने सब कुछ साथ में कर लिया, शाम को तेरी नूनी ही घुसाऊंगी। किसी को कुछ बताना नहीं, नहीं तो दोनों को मार पड़ेगी।”

“मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा लेकिन तुम पढ़ाने में मारोगी तो मां को बता दूंगा।” मैंने अपनी पहली शर्त दीदी को बताई।
“नहीं मारूंगी रे, और तुझे अपनी चूची पीने दूंगी और चूत भी चोदने दूंगी। तुमसे हमेशा प्यार करती रहूंगी।” दीदी मेरे सर पर अपनी हथेली से सहलाते हुए बोली।

हम घर में आए तो आंगन में चूल्हे पर पतीले में पानी गर्म हो रहा था और मां चूल्हे के पास नहीं थी।

दीदी ने चिल्ला कर मां से पूछा- मम्मी, चूल्हे पर से पानी ले लूं नहाने के लिए?
“तुम दोनों का पानी रखा है बाथरूम में, जल्दी नहाओ दोनों! स्कूल जाना है ना! चूल्हे पर तो तुम्हारे पापा का पानी रखा है। मां ने कमरे के अंदर से कहा.

और माँ पापा को उठाने लगी- उठिए न जी, साढ़े आठ बजने वाले हैं। दोनों नहाने जा रहे हैं, आप भी नहा लीजिए। दोनों को स्कूल छोड़ दीजिएगा। प्रभा का स्कूल दूर है, बाबू का भी दूर ही है … डर लगा रहता है। आज शनिवार को तो दोपहर में ही छुट्टी हो जाएगी, उधर से प्रभा बाबू को लेकर आ जाएगी।

पापा बोले- आज दोनों पैदल चले जाएंगे, मुझे कहीं जरूरी जाना है, देर हो जायेगी। थोड़ा-सा बदन दबाओ, फिर उठ कर तैयार हो जाएंगे।

हम दोनों भाई-बहन एक दूसरे को देखते हुए मुस्कुराने लगे क्योंकि पापा का बदन दबाने में मां ही कराहती थी।
पापा हम दोनों को भगाकर बदन दबवाते थे।

एक बार मां से पूछा था मैंने- मम्मी, तुम ही बदन दबाती हो और तुम ही चिल्लाती हो। ऐसा तो मेरी मालिश करने से नहीं होता!
तब मां ने कहा था- तेरे पापा को बहुत जोर से दबाना पड़ता है इसलिए दम लगाना पड़ता है तो आवाज निकल जाती है।
मैंने मान लिया था.

लेकिन आज तो मैं खेत से प्रकांड विद्वान बनकर लौटा था तो हंसी आ गई। मैं आज जान गया था कि पापा अपने लंड से मम्मी की चूत चोदते हैं तभी मम्मी कराहती है जैसे प्रभा दीदी आज गन्ने के खेत में कराह रही थी।
और दीदी तो जानती थी, आज मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी कि अब बाबू भी समझ गया है।

दोनों भाई-बहन बाथरूम में आ गए और अपने अपने कपड़े उतार दिए।
आज दीदी ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए थे, कल तक पहले मुझे नहला कर भगा देती थी।
दीदी आज एकदम नंगी हो गई थी।

मुझे सिर्फ पानी से नहलाया और ख़ुद साबुन से अपने को खूब रगड़ कर नहाई।

हम दोनों नहाकर नंगे ही निकले, मम्मी के कराहने की आवाज़ आ रही थी।
दीदी ने अपने होंठों पर उंगली रखकर चुप रहने को कहा और पैर दबाकर अपने कमरे की तरफ चलने लगी।

आंगन पार करने के बाद दीदी नंगी ही झुक कर चलने लगी और पापा मम्मी के रूम की खिड़की बरामदे से पार कर गयी।

हालांकि खिड़की बंद थी लेकिन थोड़ी सी झिर्री थी और मुझे दिखाई पड़ गया कि पापा मम्मी की साड़ी उतारे बिना ठीक वैसे ही चोद रहे थे जैसे उमेश दीदी को चोद रहा था।
मैं देखने के बाद तुरंत दौड़ पड़ा और दीदी के पास रूम में पहुंच गया।

दीदी ने अपनी सलवार उठा ली थी पहनने के लिए, मुस्कुराते हुए बोली- देखा क्या?
मैंने अपनी मुंडी सहमति में हिलाई और अपने कपड़े पहनने लगा।

हम दोनों भाई-बहन एक ही रूम में रहते थे, पापा मम्मी का एक कमरा था और एक कमरा घर से बाहर जाने के बीच था जिसमें दो दरवाजे थे – एक बाहर का दरवाजा और एक बरामदे का। छोटा-सा आंगन और आंगन के दूसरे तरफ संडास और बाथरूम था.

मम्मी बरामदे में या आंगन में खाना बनाती थी, कोयले का चूल्हा था जिसे उठाकर इधर उधर ले जाया जा सकता था।

हम दोनों भाई-बहन स्कूल ड्रेस पहन चुके थे, दीदी मेरे बाल बना रही थी.

तभी मम्मी एक ही थाली में दोनों के लिए रोटी सब्जी ले आई।
हम खाने लगे.

तभी पापा भी आ गये ब्रश करते करते और दीदी से बोले- बाबू को स्कूल छोड़ देना और लेते भी आना। मैं आज जरूरी काम से जा रहा हूं, कल शाम को लौटूंगा. बाबू को पढ़ाना और मम्मी का भी कुछ काम करना।

प्रिय पाठको, मेरी यह कहानी कुछ लम्बी है. कई भागों में आयेगी. पढ़कर मजा लेते रहें और कमेंट्स मेल करते रहे कि खेत में चुदाई की कहानी कैसी लग रही है.
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खेत में चुदाई की कहानी का अगला भाग: मेरी बड़ी बहन की अन्तर्वासना- 2

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