मेरे गांडू जीवन की कहानी-15

(Mere Gandu Jiwan Ki Kahani- Part 15)

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अभी तक आपने पढ़ा…
मैं रवि से मिलने उसके गांव पहुंच गया, वो अपनी भैंसों को जोहड़ में नहला रहा था. हम भैंसों को लेकर उनके लिए बनाए बरामदे में चले गए जहां रवि ने मुझे अपनी तरफ खींचकर मेरी निप्पलों को मसलना शुरु कर दिया और उसका लंड उसके ढीले कच्छे में से मेरी गांड से आकर सट गया. अब मैं खुद ही उसका लंड अपनी घायल गांड में लेने के लिए बेचैन होने लगा, मेरी गांड उसके लंड की तरफ दबाव बनाती हुई उसकी जांघों के बीच में जाकर अंदर की तरफ घुसने लगी, वो मेरी गर्दन को चूमने लगा.

दुनिया की दरिंदगी और गाण्डू जिंदगी से सारी शिकायतें भूलकर मैं अपनी गर्दन पर उसके होठों की छुअन से होने वाली गुदगुदी में ऐसा खोया कि मेरी आंखें बंद हो गईं और मेरे होंठ उसके होंठों की छुअन से वासना में सिसकिया लेने लगे. मैंने उसके हाथों को अपनी पतली कमर पर लपेट लिया और उसके हर एक चुम्बन को जी भर के जीने लगा. उसके मजबूत हाथों का मेरे कोमल बदन पर करारा अहसास और उसके नर्म होठों से निकलती गर्म सांसें मेरे दिल और बदन के हर एक जख्म पर मलहम का काम कर रही थीं. उसका लंड तनकर मेरी पैंट को फाड़कर मेरी गांड में घुसने की इजाज़त मांग रहा था. लेकिन मैं तो सारा का सारा ही उसका था. उसका प्यार पाने के लिए मुझे हर जन्म में गाण्डू भी बनना पड़ता तो मैं बनने के लिए तैयार था. पता नहीं ऐसा क्या था उसमें. वो मेरी अंधेरी गाण्डू जिंदगी का रवि था. मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसे बांके जवान का प्यार भरा साथ मुझे नसीब होने वाला है.

वो मेरे निप्पलों को मसल रहा था, मेरी कमर को अपने हाथों में जकड़े हुए गर्दन को चूम रहा था, उसकी हर एक हरकत मुझे पागल कर रही थी. क्या यही प्यार है. या सिर्फ वासना… कहना बहुत मुश्किल है. लेकिन जो भी है बहुत ही खूबसूरत है.
जो अहसास उसकी बाहों में आकर मिला, वो कहीं और नहीं मिला. उसकी छुअन की बात ही अलग थी. शायद यही प्यार था.

उसने मेरी पैंट का हुक खोल दिया वहीं मेरी कोमल गांड को दबाने लगा. इतने में ही बाहर से एक औरत की आवाज़ आई।
“आरे छोरे…(अरे लड़के)।कित मर ग्या रे…(कहां रह गया रे). आज इन डांगरा की गैल्या सोवेगा कै(आज इन भैंसों के साथ ही सोएगा क्या)”
वो मुझे पीछे धकेलता हुआ खुद आगे होकर आवाज़ लगाकर बोला- आया मां!
“भैंसों के आगे सानी(चारा) डाल दूं.”
वो रवि की मां थी.

अपने हसीन सपने से जगकर मैं भी घबरा कर पीछे की तरफ छिपकर नीचे बैठ गया.
उसकी मां ने कहा- ठीक है, तावला आ ज्या(जल्दी आजा)

रवि ने गेट की तरफ देखा और जब उसकी मां चली गई तो मुझे उठने का इशारा किया. मैंने उठकर पैंट पहन ली.
वो बोला- चल मां बुला रही है. यहां कुछ करना ठीक नहीं है.

उसका लंड अभी भी उसके कच्छे में तना हुआ दिख रहा था लेकिन धीरे-धीरे नीचे बैठता जा रहा था. उसने डंडा उठाकर एक तरफ फेंका और भैंसों के लिए लगे बरामदे की छत पर लगे पंखे का बटन दबा दिया और मुझसे बाहर आने का इशारा किया. पहले वो गेट की तरफ बढ़ा. उसने यहां-वहां देखा और फिर मुझे आने का इशारा किया.

हम भैंसों के उस बरामदे से निकलकर बाहर आ गए और लोहे के गजों से बना वो गेट बंद कर दिया. साथ में ही एक मकान था। मैं उसके पीछे-पीछे चल रहा था. उसने गेट खोला और मुझे भी अंदर आने को कहा. मेरे अंदर आने के बाद उसने वो गेट बंद कर दिया.
घर में घुसते ही सामने दो कमरे थे. एक तरफ सीढ़िय़ाँ ऊपर की तरफ जा रही थीं और दूसरी तरफ एक रसोई बनी हुई थी. सामने वाले एक कमरे का दरवाज़ा ढला हुआ था और एक का पूरा खुला हुआ था. जिसमें अंदर बिछी खाट(चारपाई) और उनके बीच में रखा हुआ हुक्का बाहर से साफ नज़र आ रहा था.

गेट की आवाज़ सुनकर रसोई से एक 40-45 साल की औरत बाहर निकली. उसने मुझे देखा और फिर रवि को देखा. मैंने उनको नमस्ते कर दी. रवि ने पूछने से पहले ही बता दिया- माँ, ये मेरा दोस्त है, मिलने के लिए आया है।
उसकी माँ ने मुझे सरसरी नज़र से देखा और बोली- अच्छा बेटा, आ जा.
रवि से बोली- भीतर बठा ले फेर इसनै (इसको अंदर बैठा ले फिर)
कहकर वो रसोई में वापस चली गई.

हम दोनों हुक्के वाले कमरे में चले गए.

रवि ने कहा- तू बैठ मैं लोअर पहनकर आता हूं, नहीं तो तेरा छोटा भाई (मेरा लंड) बार-बार परेशान करता रहेगा और घर वालों को शक हो जाएगा.
वो साथ वाले कमरे में जाकर दो मिनट में लोअर पहनकर वापस हुक्के वाले कमरे में आ गया. रवि का लंड उसकी लोअर में अभी भी अच्छा खासा उभार बना रहा था. वो आकर मेरे सामने वाली चारपाई पर बैठ गया, मुझसे बोला- हुक्का पीएगा?
मैंने कहा- नहीं, मैं तो तुमसे मिलने आया था.
रवि ने कहा- फिर रो क्यूं रहा था.
मैंने कहा- बस ऐसे ही, तुम्हें देखकर आंखों से आंसूं आ गए.
वो बोला- हट्ट बावला… मैं कोए मर गया था जो रोवे था (मैं कोई मर गया था जो तू रो रहा था)

मेरा दिल फिर भर आया.
वो बोला- यार तू तो कति छोरी आली हरकत करै है (तू तो बिल्कुल लड़कियों वाली हरकतें कर रहा है) लड़का बन कर रहा कर, मैं कहीं नहीं जा रहा.
मैं अपनी भावनाओं को अंदर ही रोकते हुए उसकी हां में हां मिलाता हुआ मुंडी हिलाता रहा.

एक बार दिल कर रहा था कि इसको सारी बात बता दूं, फिर सोचा अगर इसे पता चल गया कि मैं किसी और से चुदकर आया हूं या किसी और का लंड चूसकर आया हूं तो कहीं ये भी मुझे रंडी कहकर दुत्कार न दे, और मैं रवि को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था. मैंने दिल को मजबूत रखा सब कुछ अंदर ही दबा कर रखा.

उसकी मां ने फिर से आवाज़ लगाई- सीटू!
रवि बोला- हां माँ?
“रोटी खा ले.”

मैं सीटू नाम सुनकर हँस पड़ा.
वो बोला- हंस क्या रहा है, मेरा घर का नाम है सीटू.
मैं फिर से हँसने लगा.
मुझे हँसता देखकर वो बोला- हाँ… यही चाहता हूँ मैं… ऐसे ही हँसता रहा कर… और जो फिर कभी रोया तो तुझे इतना चोदूंगा कि तू चलने फिरने लायक नहीं रहेगा.

उसकी बात में सेक्स भी था और डाँट भी. उसकी ये बात मेरे दिल को छू गई. उसे भी मेरी फिक्र थी. वो मुझे दुखी नहीं देख सकता. क्या वो भी मुझसे प्यार करता है? इस बात का जवाब मेरे पास नहीं था लेकिन इतना तो पक्का था कि वो मेरी परवाह करता है.

खैर, वो उठकर दोबारा रसोई में गया और एक बड़ी सी थाली लेकर वापस आ गया. उसने थाली चारपाई पर रखी और हुक्के को हटाकर साइड में रखा स्टूल उठाकर दोनों चारपाई के बीच में रख दिया. स्टूल पर थाली रखते हुए बोला- आ जा, रोटी खा ले.
मैंने कहा- ठीक है, पर पहले मुझे हाथ धोने हैं.
वो बोला- क्यों, हाथों में गोबर लगा हुआ है क्या?
मैं फिर हँस पड़ा।
उसने कहा- दांत मत दिखा, जल्दी बाहर जाकर वॉशबेसिन में हाथ धो ले और आकर रोटी खा ले.

मैं जल्दी से हाथ धोकर आ गया. थाली में देखा तो 8-10 रोटियों का ढेर था. उस पर ढेर सारा मक्खन, एक बड़ा कटोरा सब्जी का और साथ में मट्ठे के दो बड़े-बड़े ग्लास.
मैंने कहा- इतनी सारी रोटियां किसके लिए हैं?
उसने कहा- हमारे लिए हैं और किसके लिए है? तू जाट के घर में है, यहां ऐसे ही खाया जाता है.
मैं उसके मुंह की तरफ देखता रह गया.

वो बोला- खा ले अब, मेरा थोबड़ा ही देखता रहेगा?(मेरा चेहरा ही देखता रहेगा क्या)
मैंने कहा- तुम्हारे चेहरे से नज़र हटती ही नहीं.
वो बोला- नौटंकी मत कर, चुपचाप रोटी खा ले.

मैं उसके साथ बैठकर खाना खाने लगा. उसे मेरी बातें नौटंकी लग रही थीं. लेकिन मेरी नज़र सच में उसके चेहरे से हटती ही नहीं थी। मैं खाते-खाते भी उसे ही देख रहा था. निवाला जब वो मुंह में ले जाता तो उसके मजबूत भारी डोले फूलकर टी-शर्ट में फंस जाते थे। जब वो घी लगी उंगलियां चाटता तो मन करता उसकी उंगलियों को मैं ही चाट लूं.

देखते ही देखते वो 5-6 रोटियाँ खा गया. और मुझसे पूछा- तू खा नहीं रहा?
मैं हंस पड़ा. मन ही मन कह रहा था ‘सारी रोटियां तो खुद ही खा गया और मुझसे कह रहा है कि तू खा ही नहीं रहा.’

मुझे उसके इस चुलबुले अंदाज़ से बहुत प्यार था. मैं सोच रहा था कि काश… मैं लड़की होता तो शायद ये मेरे प्यार को समझ पाता. लेकिन फिर ये भी सोचा कि अगर लड़की होता तो क्या पता इसके साथ होता या नहीं होता.
कहते हैं कि जो होता है पहले से लिखा होता है. अगर मेरी किस्मत में रवि का साथ लिखा है, उसके लंड से चुदने का अहसास लिखा है तो मुझे समलैंगिक होने में कोई परेशानी नहीं है.

मैं इन्हीं ख्यालों में था कि उसने कहा- और खाएगा क्या?
मैंने कहा- नहीं, मेरा पेट भर गया.
वैसे भी जब वो सामने होता था तो मेरा पेट वैसे ही भर जाता था. बस मन नहीं भरता था उसे देखकर. उसके लाल रसीले होंठ, उसकी काली शरारती आँखें और देसी अंदाज़. मैं उसके लिए पागल था.

वो थाली उठाकर ले जाते हुए बोला- आ जा हाथ धो ले.
मैंने उठकर हाथ धो लिए, हाथ धोकर मैं कमरे में वापस आ गया.

वो खाट पर लेटा हुआ था, मुझे देखकर उसने लोअर के ऊपर से अपने लंड पर हाथ फिराते हुए मेरा तरफ मुस्कुराकर देखा. जवाब में मैंने भी उसके लंड पर प्यार से हाथ फिरा दिया. उसकी हल्की सी सिसकी निकल गई- आहहह…
रवि बोला- अंश, तुझे तो लड़की होना चाहिए था. इतना मज़ा तो लड़कियाँ भी नहीं देती, जितना तेरी गांड मारकर आया मुझे!

उसके मुंह से ये बात सुनकर मैं हल्के से मुस्कुरा दिया, मैंने कहा- और आप जितना प्यार मुझे किसी ने नहीं दिया आज तक!
वो बोला- क्या हर वक्त प्यार-प्यार लगा रहता है. मज़े लिया कर जिंदगी के… प्यार व्यार सब 4 दिन के चोंचले हैं. ऐसा कुछ नहीं होता.

उसका जवाब सुनकर मेरा मुंह उतर गया. फिर भी मैं उस पर कोई हक नहीं जताना चाहता था. वो मेरे साथ था, मेरे लिए यही काफी था. लेकिन कमबख्त दिल है न, एक बार जो चीज़ मिल जाती है फिर उसके लिए इसमें घमंड पैदा हो जाता है, सोचता है कि इस पर उसी का हक है.

रवि के दिल में मेरे लिए क्या था, यह तो मैं नहीं जानता था लेकिन मुझे लगने लगा था कि उस पर मेरा ही हक़ है. मैं उसे किसी और के साथ बर्दाश्त नहीं कर सकता था शायद. चाहे वो लड़की हो या कोई लड़का.
प्यार इतना पज़ेसिव क्यूं होता है? लेकिन प्यार कभी भी हक़ नहीं जताता, प्यार तो बस प्यार होता है, जिससे है उसके लिए हर हद पार कर जाने को तैयार और बदले में कुछ नहीं मांगता, प्यार तो बस देने के लिए बना है. ये बात जब मुझे समझ आई तब तक काफी देर हो चुकी थी.

आगे की कहानी जल्द ही लेकर लौटूंगा.
आपका अंश बजाज.
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