तीन चुम्बन-3

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रति-द्वार दर्शन :

जब मैं रमेश और सुधा को स्टेशन छोड़ कर वापस आया तो लगभग साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
मिक्की गेस्टरूम में सो चुकी थी।

मैंने उस रात मधु को दो बार कस कस कर चोदा और एक बार उसकी गांड भी मारी।
आज जिस तरीके से मैंने मधु को रगड़ा था मुझे नहीं लगता वो अगले दो दिनों तक ठीक से चल फिर पाएगी।

मेरा उतावलापन और बेकरारी देखकर मधु आखिर बोल ही पड़ी, “आज आपको क्या हो गया है? मुझे मार ही डालोगे क्या? कहीं आप नशा तो नहीं कर आये हो।”
अब मैं उसे क्या बताता कि मैं तो मिक्की के नशे में अन्दर तक डूबा हुआ हूँ।
मैं तो बस इतना ही बोल पाया आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो मेरी जान और तीन चार चुम्बन उसके गालों पर ले लिए तो वो बोली- उन्ह्ह्ह … हटो परे झूठे कहीं के!

हम लोगो को रात को सोने में दो बज गए थे।
रात के घमासान के बाद सुबह उठाने में देर तो होनी ही थी।

मैं कोई आठ बजे उठा। मधु पहले ही उठ चुकी थी।
मधु ने मुझे जगाया और उलाहना देते हुए बोली- रात में तो तुमने मेरी कमर ही तोड़ डाली।

मैंने उसे फिर बाहों में भरने कि कोशिश की तो अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली- सुबह सुबह छेड़खानी नहीं! जाओ मोना को जगा दो! मैं चाय बनाती हूँ!
मैं बाथरूम से फ्रेश होकर गेस्ट रूम में गया जहां मिक्की सोई हुई थी।

मिक्की अभी भी बेसुध पड़ी सो रही थी।
उसने अपना अंगूठा मुंह में ले रखा था और दूसरे हाथ से बेबी डॉल को सीने से चिपका रखा था।
बालों की एक आवारा लट उसके गालों पर बिखरी पड़ी थी।

जिस अंदाज में वो सोई थी मुझे लगा कि वो अभी निरी मासूम बच्ची ही है।
मुझ जैसे पढ़े लिखे आदमी के लिए ऐसी भावनाए रखना कदापि उचित नहीं है।

पर मेरा ये ख़याल अगले ही पल हवा में काफूर हो गया।

उसने फूलों वाली फ़्रॉक और गुलाबी रंग की पेंटी पहन रखी थी।
वो करवट लेकर लेटी हुई थी।
एक टांग थोड़ी सी ऊपर की ओर मुड़ी हुई।

उसकी पुष्ट जाँघों को देखकर तो लगा जैसे वो कोई हॉकी की खिलाड़ी हो।
पेंटी के अन्दर कसी हुई उसकी बुर एकदम फूली हुई थी।

रोम विहीन टाँगे घुटनों से ऊपर उठी उसकी फ़्रॉक से झांकती हुई उसकी जाँघों की रंगत तो शरीर के दूसरे हिस्सों से कहीं ज्यादा गोरी थी।

मैं तो बेसाख्ता आँखें फाड़े उस रूप की देवी को देखता ही रह गया।
मेरा पप्पू तो बेकाबू होने लगा।

मैं सोच रहा था कि उसे जगाने के लिए उसकी संगमरमरी जाँघों पर हाथ फेरूँ या नितम्बों पर जोर की थप्पी लगाऊं या उसके गालों पर एक पप्पी लेकर उसे जगाऊं।
धड़कते दिल से मैंने अपना एक हाथ और मुंह उसकी जाँघों की ओर बढाया ही था कि पीछे से मधु की आवाज आई- अरे मोना अभी उठी नहीं? ऑफ … ये लड़की भी कितना सोती है!

मैं तो इस अप्रत्याशित आवाज से हड़बड़ा ही गया।
मुझे तो ऐसा लगा जैसे मेरा सारा खून रगों में जम ही गया है। आज तो मेरी चोरी पकड़ी गई है।

पता नहीं मेरे मुंह से कैसे निकल गया- हाँ हाँ उठ ही रही है!

मुझे लगा अगर मैंने मधु की ओर देखा तो जरूर वो जान जायेगी और मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगी मैं तो कहीं का नहीं रहूँगा।
पर भगवान् का लाख लाख शुक्र है वो रसोई में चली गई थी। अगर एक दो सेकंड की भी देरी हो जाती तो??
सोच कर मैं तो सूखे पत्ते की तरह काँप गया।

मैं तो तब चौंका जब मिक्की ने आँखे मलते हुए कहा- गुड मोर्निंग फूफाजी!

तो मैं भला क्या कहता।
मिक्की बाथरूम में चली गई।

मेरी हालत तो उस निराश शिकारी की तरह हो रही थी जिसके हाथ में आया हुआ शिकार छूट गया हो।

मैं बाहर लॉन में पड़ी चेयर पर बैठ कर अखबार पढ़ने लगा।

गर्मियों की छुटियाँ चल रही थी इसलिए मधु को तो वैसे ही स्कूल नहीं जाना था.
मधु बच्चों के एक स्कूल में डांस टीचर है.

और मैंने आज बंक मारने का इरादा पहले ही कर लिया था.
वैसे भी आज बुद्ध पूर्णिमा की छुट्टी थी।

मैं चाहता था कि मिक्की और मधु पहले नहा धो लें, मैं तो आराम से नहाना चाहता था।
मुझे आज अपने पप्पू का मुंडन भी करना था।

आप तो जानते ही है मधु को लंड और चूत पर झांटे बिलकुल अच्छी नहीं लगती।
उसने कल रात भी उलाहना दिया था।

पर मैं तो कुछ इससे आगे भी सोच रहा था। क्या पता कब किस्मत मेरे ऊपर निहाल हो जाये और मेरी मोनिका डार्लिंग मेरी बाहों में आये तो मैं एक हैंडसम चिकने आशिक की तरह लगूं।

वैसे एक कारण और भी था।
गुरूजी कहते है झांटों की सफाई करने के बाद लंड और चूत दोनों की सुन्दरता बढ़ जाती है और लंड का आकार बड़ा और चूत का छोटा नजर आने लगता है।
वैसे तो ये नज़र का धोखा ही है पर चलो इस खुशफहमी में बुरा भी क्या है।

खैर कोई बारह-साढ़े बारह बजे मैं नहा धोकर फारिग हुआ।

मिक्की स्टडी रूम से बाहर आ रही थी। उसकी नज़रें झुकी हुई थी और साँसे उखड़ी हुई माथे पर पसीना।
वह मुझसे नज़रें नहीं मिला रही थी।

वो मेरी और देखे बिना मधु के पास रसोई में चली गई।

पहले तो मैं कुछ समझा नहीं पर बाद में मेरी तो बांछें ही खिल गई।

ओह मिक्की डार्लिंग ने जरूर वो ही ‘जंगली छिपकलियों’ वाला फोल्डर और फाइल्स देखी होंगी।
थैंक गॉड! आईला … मेरा दिल किया कि जोर से पुकारूं- मोनिका … ओ माई डार्लिंग।

कोई आधे घंटे बाद मिक्की नाश्ता लेकर आई।
उसकी नज़रें अभी भी झुकी हुई थी; ऊपर से वो सामान्य बनने की कोशिश कर रही थी।

मैंने उसे पूछा,”क्या बात है?”
तो वो बोली “कुछ नहीं आआन्न … वो … । वो हम मंदिर कब चलेंगे?”

मैंने उसके चहरे की और गौर से देखते हुए कहा,” शाम को चलेंगे अभी तो बहुत गरमी है!”

आज कामवाली बाई गुलाबो नहीं उसकी लड़की अनारकली आई थी।
मैं सोफे पर बैठा टीवी देख रहा था।

जब मिक्की रसोई में जा रही थी तो अनारकली उधर देखते हुए मेरे पास आकर फुसफुसाने वाले अंदाज में आँखें मटकते हुए बोली “ये चिकनी लोंडिया कौन है?”

मैंने उसके दोनों संतोरों को जोर से दबाते हुए कहा “क्यों लाल मिर्च से जल गई क्या?”
“जले मेरी जूती!” पैर पटकते हुए वो अपना मुंह फुलाते हुए वो अन्दर चली गई।

आप चौंक गए न? मैं आपको बताना भूल गया कि अनु हमारे यहाँ काम करनेवाली बाई गुलाबो की लड़की है जिसे मैं कई बार चोद चुका हूँ और उसकी गांड भी मार चुका हूँ। वो तो समझती है कि सारी खुदाई छोड़ कर मैं तो बस उस पर ही मोर हूँ। उसे हम भंवरों की कैफियत का क्या गुमान। वैसे भी भगवान् ने औरतों को दूसरी किसी भी सुन्दर औरत के लिए ईर्ष्यालू बनाया ही है तो इसमें बेचारी अनारकली का क्या दोष है।

शाम को कोई चार बजे मैं और मिक्की लिंग महादेव मंदिर पर जाने के लिए तैयार हो गए। मधु ने वो ही कमर दर्द का बहाना बनाया और साथ नहीं गई। मैं इस कमर दर्द का मतलब अच्छी तरह जानता था। मिक्की को जब ये पता चला कि बुआजी साथ नहीं जा रही तो वो बहुत खुश हुई पता नहीं क्यों। दो जनो के लिए तो कार की जगह बाइक ही ठीक थी।

मिक्की ने सफ़ेद पैन्ट और गहरे बादामी रंग और फूलों वाला एक ओर से झूलता हुआ कुर्ता पहन रखा था। सिर पर वोही नाइके वाली टोपी, कलाई में रिस्ट वॉच । मैं तो अभी ये सोच ही रहा था कि मिक्की ने जरूर वोही पेंटी और पैडेड ब्रा भी पहनी होगी जो कल शाम हमने खरीदी थी। पैडेड ब्रा के कारण उसके बूब्स की साइज़ ३४ तो जरूर लग रही थी। होंठों पर हलकी सी लाल लिपस्टिक। आज मैंने भी अपनी काली जीन और पसंदीदा टी-शर्ट पहनी थी। इम्पोर्टेड परफ्यूम स्पोर्ट्स शूज और नाइके की टोपी।

“बिल्लो रानी कहो तो अभी जान दे दूँ … ” मैं मस्ती से गुनगुनाता जब बाहर आया तो मिक्की ने मुझे घूर कर ऊपर से नीचे तक देखा। फिर एक आँख मारते हुए बोली “ओये होए! क्या बात है! आज तो बड़े जच रहे हो? किसी को कत्ल करना है क्या?” मैं क्या बोलता।

“अच्छा बताओ मैं कैसी लग रही हूँ?” मिक्की ने आँखे नचाते हुए कहा।

“बिलकुल बंदरिया लग रही हो.” मैंने उसे चिढ़ाने के अंदाज में कहा तो उसने अपना मुंह फुला लिया।
मेरा इरादा उसे नाराज़ करने का कतई नहीं था। मैं तो उसे सपने में भी नाराज करने की नहीं सोच सकता।
मैंने उसके गालो पर थप्पी लगाते हुए कहा- बिलकुल हंसिका मोटवानी और करीना कपूर लग रही हो! सच में!”

“परे हटो।। हुंह झूठे कहीं के ” जिस अदा से उसने ये कहा था मुझे मधु का रात वाला डायलॉग याद आ गया। इसी लिए तो कहते है कई चीजें वंशानुगत भी होती हैं।

मिक्की मोटर साइकल पर मेरे पीछे चिपक कर बैठी हुई थी उसका एक हाथ मेरी कमर को नाभि के थोड़ा नीचे कस कर पकड़े हुए था। उसने अपना सिर मेरे कंधे पर रखा था और एक हाथ गले में डाल रखा था। जिस तरीके से वो मेरे साथ चिपक कर बैठी थी मुझे नहीं लगता मिक्की अब छोटी बच्ची रह गई है। उसकी गोलाइयां मेरी पीठ पर आसानी से महसूस हो रही थी। आज उसने भी शायद अपनी बुआजी की ड्रेसिंग टेबिल का पूरा फायदा उठाया था। पिछले जन्मदिन पर जो इम्पोर्टेड परफ्यूम मैंने मधु को गिफ्ट दिया था उसकी महक भला मैं कैसे नहीं पहचानता। मैं तो इतना मदहोश हो रहा था कि मुझे लगने लगा कहीं मैं कोई एक्सीडेंट ही कर बैठूंगा।

जहां से पहाड़ी पर मंदिर के लिए रास्ता शुरू होता है श्रद्धालु नंगे पैर ही ऊपर पैदल जाते है। मोटरसाइकल स्टैंड पर खड़ी करने और जूते उतारने के बाद मैंने मिक्की को बताया ऊपर पीने का साफ़ पानी नहीं मिलेगा अगर पीना है तो यही पी लो। मिक्की पानी की पूरी एक बोतल डकार गई और मैंने जानबूझ कर उसे बाद मैं फ़्रूटी के २-३ पाउच और पिला दिए। आप इतने भी कम अक्ल नहीं है कि मेरी इस चाल को न समझ रहे हो। पर मिक्की इन सब बातों से परे कुछ और खाने पीने की फिराक में थी। हमने प्रसाद के साथ कुछ स्नेक्स, मिठाइयां और बंदरों के लिए भुने हुए चने लेने के बाद मंदिर के लिए चढ़ाई शुरू कर दी। मंदिर की दूरी यहाँ से कोई दो किलोमीटर है।

आज सोमवार का दिन था पर भीड़ कोई ज्यादा नहीं थी कोई इक्के दुक्के ही श्रद्धालु थे क्योंकि लोग सुबह सुबह दर्शन करके चले जाते है। हमारे जैसे प्यार के परवाने अपनी शमा के साथ शाम को ही आते है। दर्शन करने और कच्चा दूध-जल चढाने के बाद जब हम मुख्य मंदिर से बाहर आये तो मैंने मिक्की से पुछा तुमने क्या मन्नत माँगी तो वो कुछ सोचने लगी और फिर बोली,”नहीं! पहले आप बताओ!”

मेरे जी में आया साफ़ कह दूं कि मैंने तो बस तुझे ही माँगा है पर ये कहना इतना आसान भी नहीं था मेरे दोस्तों और दोस्तानियो! मैंने घुमा फिरा कर कहा,”जो तुमने माँगा, वो ही मैंने मांग लिया!”

“क्या …? आपने भी? मतलब … याने …? ओह!!?” वो आश्चर्य से मेरा मुंह देख रही थी जैसे मैंने उसकी कोई शरारत या चोरी पकड़ ली हो। जब उसे अपनी बात समझ आई तो शर्म से दोहरी गई। मैं तो निहाल ही हो गया।

मंदिर के पीछे थोड़ा खुला आँगन सा है जहां पर तीन तरफ दो दो फ़ुट की दीवार बनी है नीचे गहरी खाई और झाड़ झंखाड़ है। यहाँ काले मुंह वाले लंगूर बहुत है जो पेड़ों पर उछल कूद मचाते रहते हैं, आने वाले श्रद्धालु उन्हें भुने हुए चने, केले आदि डाल देते हैं। बच्चो का तो ये मनपसंद खेल होता है। फिर मिक्की भी तो अभी बच्ची ही थी ऐसा मौका वो भला क्यों छोड़ती। उसने भी बंदरों को चने डालने शुरू कर दिए। हम लोग एक कोने में खड़े थे। थोड़ी दूर दूसरे कोने में एक नवविवाहित जोड़ा अपनी गुटरगूं में व्यस्त था। लड़का शायद उसका चुम्बन लेना चाहता था पर लड़की शर्म के मारे उसे मना कर रही थी। मैंने देखा मिक्की बड़े गौर से उनको देख रही है। मैं चुप रहा। थोड़ी देर बाद वो दोनों उठकर चले गए तब मिक्की को शायद मेरी याद आई।

“जिज्जू! थोड़ी देर बैठें?”
“हाँ, यहीं दीवार के पास बैठ जाते हैं।”

हम दोनों पास पास बैठ गए। एक हलका सा हवा का झोंका आया तो मिक्की के बदन की कुंवारी खुश्बू मेरे तन मन को अन्दर तक सराबोर करती चली गई। मिक्की बंदरों को दाने डाल रही थी। कभी ऊपर उछालती कभी दूर फेंक देती बंदरों की इस उछल कूद से उसे बहुत मज़ा आ रहा था। मैंने उसे समझाया कि इनको ज्यादा मत सताओ नहीं तो ये काट खाएँगे पर मिक्की तो अपनी ही धुन में थी।

पेड़ की एक डाली पर एक बन्दर अपनी लुल्ली निकाले उसे छेड़ रहा था। मिक्की उसे बड़े ध्यान से देख रही थी। इतने में एक बंदरिया आई और बन्दर उसके ऊपर चढ़ कर आगे पीछे धक्का लगाने लगा। मिक्की ने बिना अपनी नज़रें हटाये मुझ से बोली “देखो जिज्जू! ये बन्दर क्या कर रहे हैं।”

उसे क्या पता, वो बेख्याली में क्या बोल गई!

मेरे लिए भी ये अप्रत्याशित था। अब आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकते है मैंने अपने पप्पू को किस तरह से रोक रखा था। अगर ये घर या कोई सूनी जगह होती तो निश्चित ही मैं कुछ कर बैठता। पर मैंने उसे कहा, “ये आपस में प्यार कर रहे हैं, इनका भी शुक्र पर्वत तुम्हारी तरह बहुत ऊंचा है।”

अचानक वो बोली, “वो कैसे क्या आपको …? क्या आपको हाथ देखना आता है?”

आपको बता दूँ मैं थोड़ा बहुत हस्त रेखाएं देख लेता हूँ। पूरा तो नहीं जानता पर जीवन रेखा, हृदय रेखा आदि तो थोड़ा बहुत बता ही देता हूँ। बाकी तो गप्प लगाने वाली बात है। किसी को भी प्रभावित कर लेना मेरे बाएँ हाथ का खेल है। मैं जानता हूँ कि ये सब उसे उसकी मम्मी ने बताया होगा। क्यों कि मैं सुधा को भी एक दो बार पपलू बना चूका हूँ। उसे भविष्य और हाथ की रेखाओं को जानने की बड़ी इच्छा रहती है।

“हाँ! हाँ!! आओ” मैंने उसे अपने पास खींचते हुए कहा।

मैंने उसका बायाँ हाथ अपने हाथ में ले लिया। हाथ के नाखून थोड़े बढ़े हुए थे। उन पर नेल-पेंट किया हुआ था। बाएँ हाथ का अंगूठा थोड़ा सा पतला लग रहा था और उस पर नेल-पेंट भी नहीं लगा था।

मैंने उससे पूछा,”मिक्की क्या तुम अभी भी अंगूठा चूसती हो?”

“हाँ कभी कभी” उसने नज़रें झुकाते हुए कहा।

“तुम्हारी मम्मी तुम्हें मना नहीं करती क्या?”
“वो तो बहुत गुस्सा होती हैं।”

“तो फिर तुम ऐसा क्यों करती हो?”
“असल में मुझ से अनजाने में ऐसा हो जाता है।”

“अनजाने में हो जाता है या तुम्हे इसमें मज़ा भी आता है?”

“हाँ सच कहूँ तो जब मैं अकेली होती हूँ तो मुझे अंगूठा चूसने में बहुत मज़ा आता है” उसने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया।

“अब तुम्हारी अंगूठा चूसने की उम्र नहीं रही है कुछ और भी चूसना सीखो!”

“और क्या चूसने की चीज होती है जीजाजी?” उसने आँखें मटकाते हुए कहा।

“जैसे कि … ! जैसे कि … !!” मैं गड़बड़ा गया लेकिन फिर संभालते हुए कहा “जैसे कि आइस कैंडी लोलीपोप और … और … । कुल्फी … बहुत सी चीजें हैं जिन्हें तुम प्यार से चूस सकती हो!”

एक बार तो मेरे जी में तो आया की कह दूँ अब तो तुम्हे लंड चूसना सीखना चाहिए पर मैं अभी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। शुरू शुरू में थोड़ा संयम बरतना होगा नहीं तो ये चिड़िया मेरे हाथों से फुर्र हो जायेगी। वैसे तो मैं भी यही चाहता था कि वो अंगूठा चूसना जारी रखे। इसका एक कारण है? हमारे गुरूजी कहते हैं जो लड़की बचपन में अंगूठा चूसती है वो अपने प्रेमी या पति की अच्छी प्रेमिका और पत्नी साबित होती है और उनका दाम्पत्य जीवन बहुत ही अच्छा और सुखी बीतता है। मतलब आप बिलकुल अच्छी तरह समझ गए होंगे।

मैं बातों का सिलसिला रोमांटिक करना चाहता था, मैंने पूछा “अच्छा मिक्की एक बात बताओ!”
“क्या?”

“तुम फिल्म देखती हो?”
“उम्म्म … हाँ”

“अच्छा बताओ तुम्हारा मनपसंद हीरो कौन है?”
“मेरा उम्म्म … हाँ मुझे तो अनिल कपूर अच्छा लगता है!”

मैं तो सोच रहा था कि वो शाहिद कपूर, रणबीर कपूर, ऋतिक रोशन जैसे किसी चिकने चॉकलेटी हीरो का नाम लेगी। मैंने उस से कहा “अनिल कपूर!? अरे वो मुच्छड़?”

“पता है उसने मिस्टर इंडिया में कितना अच्छा काम किया है। उसके पास एक जादू का रिस्ट बैंड होता है जिसको कलाई में पहन कर वो गायब हो जाता है।” मिक्की ने ऑंखें नचाते हुए कहा फिर ठंडी सांस लेते हुए बोली “काश ऐसा ही बैंड मेरे पास भी होता!!”

“अच्छा आप बताओ आप को कौन पसंद है?” मिक्की बोली।

“आ … न!! मुझे? मुझे तो अजय देवगन अच्छा लगता है”
“अरे! वो अकडू … ओह नो! आप झूठ बोल रहे हैं!”

“इसमें झूठ बोलने वाली क्या बात है?” मैंने कहा।

“पर लड़कों और आदमियों को तो फ़िल्मी हिरोइन पसंद होती है ना? और अजय देवगन कोई लड़की थोड़े ही है?” मिक्की मेरा मखौल उड़ाते हुए हंसने लगी।

“ओह … !!” मेरी भी हंसी निकल गई। मैंने बात संवारते हुए कहा “भई मुझे तो सबसे ज्यादा मिक्की ही अच्छी लगती है और कोई नहीं!” मैंने उसकी नाक पकड़ते हुए कहा। मुझे तो बस उसके गाल, होंठ, नाक या नितम्ब कुछ भी छूने का बस बहाना ही चाहिए होता था। इस मौके पर मैं चाहता तो मिक्की को जोर से अपनी बाहों में भर कर चुम्बन भी ले सकता था पर थोड़ी दूर पर २-३ लौंडे लपाड़े खड़े हमारी ओर ही देख रहे थे, मैंने अपने आप को बड़ी मुश्किल से रोका।

“हूँ … ह … ” मिक्की ने मुंह सा बनाया।

“अरे भई सच …! बाय गोड मैं तुमसे बहुत प्यार … अररर मेरा मतलब है प्रेम … वो! वो! बहुत चाहता हूँ मैं तुम्हें … !” मेरी जबान साथ नहीं दे रही थी।

मिक्की खिलखिला कर हंस रही थी “वो तो मुझे पता है कि आप मेरे पीछे पागल हैं और मेरे ऊपर लट्टू हैं पर मैं तो फ़िल्मी हिरोइन की बात कर रही थी।” मिक्की ने अपने हाथों से अपनी हंसी रोकने की कोशिश करते हुए कहा।

मैं इस फिकरे का मतलब अगले दो दिनों तक सोचता ही रहा था। मैंने फिर बात संवारते हुए कहा “उम्म्म … हाँ … चलो मुझे जिया खान सबसे सुन्दर लगती है”

“जिऽऽइऽऽअआ … जिया खान अरे वो!! एक नंबर की चीट … धोखेबाज!”

“क्यों उस बेचारी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”

“अरे आप उसे बेचारी कहते हैं आप नहीं जानते उसने निःशब्द में अमित अन्कल से पहले तो प्यार का नाटक किया और बाद में छोड़ कर चली गई! च!!! च … बेचारे अमित अंकल उसकी याद में कितना रोये थे! मैं होती तो कभी छोड़ कर न जाती!” मिक्की ने जिस अंदाज में कहा था मैं तो उसकी इस अदा पर दिलो-जान से कुर्बान ही हो गया। साला रामगोपाल वर्मा भी एक नंबर का गधा है अगर निःशब्द बनानी ही थी तो मिक्की और मुझे लेकर बनाता तो बात ही कुछ और होती। मेरा दावा है गोल्डन जुबली तो जरूर हो जाती।

खैर मैंने बातों का रुख बदलते हुए पूछा “अच्छा बताओ तुम्हारी उम्र क्या हुई है?”

“तीस अप्रैल को में मैं पूरी अट्ठारह साल की हो गई हूँ, क्यों?”

“लेकिन … जिज्जू आप क्यों पूछ रहे हैं? … छोड़ो इन बातों को! मेरा हाथ देखो ना!” मिक्की थोड़ा सा झुंझलाते हुए बोली।

मैंने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया। नाज़ुक मुलायम चिकनी हथेली और पतली पतली अंगुलियाँ। इन नाजुक हाथों से अगर ये मेरा पप्पू पकड़ ले तो मैं सारी कायनात न्योछावर कर दूँ।

उसके हाथ को थोड़ा सीधा करते हुए और धीरे धीरे मसलते हुए मैंने कहा,”देखो यह तुम्हारी जीवन-रेखा है!”

मैंने ध्यान से देखा उन्नीसवें साल में उसे बहुत बड़ा शारीरिक कष्ट आने वाला है। मैं इस कष्ट को अच्छी तरह जानता था पर मैंने उसे नहीं बताया।

“हाँ आगे बताइये!”

“अच्छा ये तुम्हारी विद्या-रेखा है” मैंने अपने अंगुली को विद्या रेखा वाली जगह रखा तो मेरी ओर देखने लगी। मैंने पूछा “तुम जीवन में आगे क्या बनाना चाहती हो?”

“पापा तो कहते है तुम एम.बी.ए. या सी.ए. कर लो। आप क्या कहते हो?”

“मैं तो एम.बी.बी.एस. करके डॉक्टर बनना चाहता था पर नहीं बन पाया क्या तुमने कभी डॉक्टर बनाने के बारे में नहीं सोचा?”

“अरे बाप रे! उसमें तो बहुत पढ़ाई करनी पड़ती है? आँखों पर मोटा सा चश्मा लग जाता है!”

“तो क्या हुआ! कुछ बनाने के लिए कुछ मेहनत तो करनी ही पड़ती है, और फिर दूसरो को इंजेक्शन लगाने में तुम्हे मजा भी तो आएगा!” वो हैरानी से मुझे देखने लगी और मैं हंसने लगा।

मिक्की ने कहा “चलो वो बाद में सोचेंगे, हाँ! आगे बताइये!”

“और ये तुम्हारी हार्ट-लाइन है!”
“हुम्म्म्म्म”

“और ये शुक्र पर्वत है।” मैंने उसकी हथेली के एक ओर इशारा करते हुए कहा।

“हाँ हाँ! शुक्र पर्वत के बारे में बताइये!”

“क्यों तुम शुक्र पर्वत के बारे में ही क्यों जानना चाहती हो? तुम्हें जीवन रेखा या हृदय रेखा के बारे में नहीं जानना?” मैंने पूछा।

“नहीं पहले शुक्र रेखा, आई मीन, पर्वत के बारे में बताइये!” वो फिर जिद्द करने लगी। उसने बाद में बताया था कि एक दिन कोई पंडितजी उनके घर आये थे और वो मम्मी का हाथ देख रहे थे। पर जब शुक्र पर्वत की बात आई तो पंडितजी और मम्मी ने उसे बाहर भेज दिया था। पता नहीं ऐसी क्या बात थी जो उसके सामने नहीं बताना चाहते थे।

अगर आपको थोड़ा बहुत हस्त रेखाओं का ज्ञान हो तो आप जानते होंगे कि शुक्र ग्रह को सेक्स का ग्रह माना जाता है। जिसका शुक्र पर्वत जितना ऊँचा उठा होता है सेक्स के मामले में वो उतना ही ज्यादा कामासक्त और सक्रिय होता है। मैं जानता हूँ सुधा एक नंबर की चुद्दकड़ है। जब से रमेश एक एक्सीडेंट के बाद सेक्स के मामले में कुछ ढीला हुआ है सुधा के सेक्स कि भूख और ज्यादा बढ़ गई है। मैं भी उसे चोद चुका हूँ उसकी गांड भी मार चुका हूँ। ऐसी ठरकी औरतें एक मर्द से कभी संतुष्ट नहीं होती। (खैर मेरा ये अनुभव ‘नन्दोइजी नहीं लंन्दोइजी’ नाम से बाद में पढ़ लेना)

हे भगवान्! तू कितना दयालु है। मेरे जैसे भक्त के ऊपर कितना मेहरबान है। मिक्की का शुक्र पर्वत उसकी मम्मी से भी ज्यादा उंचा है। आप समझ गए होंगे मेरी तो लाटरी ही लग जायेगी। इतनी हसीन नाज़ुक कमसिन कच्ची कली मेरे सामने अपना हुस्न लुटाने बेताब बैठी है। या अल्लाह … । सॉरी!!! लिंग महादेव … !

“ओफ्फो … जीजू बताइये न?”

“हाँ हाँ … देखो ये जो शुक्र पर्वत होता है ये कामगुरु होता है और उसे नियन्त्रित करता है।” मैंने उसे समझाते हुए कहा।

“ये काम-गुरु क्या होता है?” मिक्की ने पूछा।

अब मेरे लिए उलझन का वक़्त था। क्या सब कुछ स्पष्ट शब्दों में बोल दूँ या फिर थोड़ा घुमा फिरा कर उसे समझाऊं। मेरा पप्पू और दिल तो कह रहे थे- गुरु! लोहा गरम है और खुदा मेहरबान है (क्या पता इतनी जल्दी लिंग महादेव प्रसन्न हो गए हों) मार दो हथोड़ा! क्यों इधर उधर भटक रहे हो, इस कच्ची कली को प्यार से लंड और चूत की परिभाषा साफ़ साफ़ बता दो।

लेकिन फिर मस्तिष्क ने कहा- कुछ पर्दा तो रखो! अगर उसने अपनी मम्मी या बुआजी से कुछ उलटा सीधा कह दिया तो हाथ में आई मछली फिसल जायेगी और तुम जिंदगी भर इस कमसिन कली की याद में अपना लंड हाथ में लिए मुठ मारते रह जाओगे। इस अनछुई नाज़ुक चूत (सॉरी बुर) को चोदने के सारे सपने एक मिनट में स्वाहा हो जायेंगे।

मैंने एक जोर का सांस लिया और एक मिनट में सब कुछ सोच लिया। मैं इतना पागल नहीं था कि ऐसा सुन्दर मौका हाथ से निकल जाने देता।

“देखो, मैं तुम्हे साफ़ साफ़ समझा तो दूंगा, पर मेरी एक शर्त है?” मैंने कहा।

“वो क्या?” मिक्की ने हैरत भरी नज़रों से मुझे देखा।

“देखो तुम्हारी मम्मी भी कुछ बातें तुमसे छुपाती हैं? है ना?”
“हांऽऽन?”

“तो तुम भी वादा करो कि हमारे बीच जो बाते हो रही हैं या भविष्य में होंगी उनके बारे में अपनी मम्मी या बुआजी किसी को कभी नहीं बताओगी!”
“ठीक है”
“प्रोमिस?”
“हाँ प्रोमिस! पक्का!!” मिक्की ने हामी भरी।

दोस्तो! अब तो बस मेरी मंजिल का फासला कोई दो कदम का ही रह गया था।

लेकिन दिल्ली अभी दूर थी। अचानक एक बन्दर उछलता हुआ पता नहीं कब हमारे बीच आया और मिक्की के हाथों से मिठाई और चने का पैकेट छीन कर भाग गया। मिक्की की घिघ्घी बंध गई और डर के मारे मुझ से लिपट गई। उफ़्फ़ … ! उसके नाजुक कबूतर (उरोज) मेरे दोनों हाथों में आ गए मैंने उसे अपनी बाहों में समेट लिया, वो मम्मी! मम्मी! चिल्ला रही थी।

मैं उसको चुप कराने की कोशिश कर रहा था और कोशिश क्या मैं तो इस सुखद घटना का पूरा फायदा उठा रहा था। कभी उसके नरम गालों पर हाथ फेरता कभी उसके नितम्बों पर कभी उसके उरोजों पर। मिक्की किसी अबोध डरे हुए बच्चे की तरह मुझसे लिपटी थी जैसे कोई लता किसी पेड़ से। उसका दिल बहुत जोर से धड़क रहा था। वो मेरे सीने से चिपटी रोए जा रही थी।

इतने में दो तीन आदमी और औरतें भागते हुए आये और पूछने लगे क्या हुआ। मैंने उन्हें कहा कुछ नहीं थोड़ा सा डर गई है एक बन्दर मिठाई का लिफाफा छीन कर भाग गया और ये डर गई।

अब वहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं रह गया था। हमने जल्दी जल्दी वहाँ से उतरना चालू कर दिया। शाम होने वाली थी। मिक्की डर के मारे एक बच्चे कि तरह मेरा बाजू पकड़े मुझसे चिपकी हुई थी। मेरे लिए तो ये स्वर्णिम अवसर था। मैं भला ऐसा सुन्दर मौका कैसे छोड़ सकता था मैंने भी उसे अपने से चिपटा लिया। हे महादेव! तुमने तो मेरी एक ही सोमवार में सुन ली।

कोई सात बजे का समय रहा होगा। अब एक और खूबसूरत हादसा होने वाला था। मिक्की ने चढ़ाई शुरू करने से पहले पूरी एक बोतल पानी और दो-तीन फ्रूटी भी पी थी। अब भला पेट का क्या कसूर! सू सू तो आना ही था?

“फूफाजी! मुझेऽऽ सूऽऽ-सूऽऽ आऽ रहाऽ हैऽ!” वो संकुचाते हुए बोली। अब वहाँ बाथरूम तो था नहीं, मैंने कहा “जाओ उस बड़े पत्थर के पीछे कर आओ।”

वो डर के मारे अकेली नहीं जाना चाहती थी,”नहीं आप मेरे साथ चलो आप मुंह दूसरी तरफ कर लेना!”

आप सोच सकते हैं मेरी जिन्दगी का सबसे खूबसूरत पल आने वाला था। मेरी तो मनमांगी मुराद ही पूरी होने वाली थी।

हम पत्थर के पीछे चले गए। मैंने थोड़ा सा मुंह घुमा लिया।

उसने अपनी सफ़ेद पेंट नीचे सरकाई- काली पेंटी में फंसी उसकी खूबसूरत हलके हलके सुनहरी रोएँ से सजी नाज़ुक सी बुर अब केवल दो तीन फीट की दूरी पर ही तो थी। जिसके लिए आदमी तो क्या देवदूत भी स्वर्ग जाने से मना कर दें। मैंने अपने आप को बहुत रोका पर उसकी बुर को देख लेने का लोभ संवरण नहीं कर पाया।

मेरे जीवन का ये सबसे खूबसूरत नजारा था। उसकी नाभि के नीचे का भाग (पेड़ू) थोड़ा सा उभरा हुआ। उफ़ ।। भूरे भूरे छोटे छोटे सुनहरे बालो (रोएँ) से लकदक उसकी बुर का चीरा कोई 3 इंच का तो जरूर होगा। गुलाबी पंखुड़ियां। ऊपर चने के दाने जीतनी रक्तिम मदन मणि गुलाबी रंगत लिए भूमिका चावला और करीना कपूर के होंठों जैसी लाल सुर्ख फांके। फूली हुई तिकोने आकार की उसकी छोटी सी बुर जैसे गुलाब की कोई कली अभी अभी खिल कर फूल बनी है।

मैं उसे छू तो नहीं सकता था पर उसकी कोमलता का अंदाजा तो लगा ही सकता था। अगर चीकू को बीच में से काट कर उसके बीज निकाल दिए जाएँ और उसे थोड़ा सा दबाया जाए तो पुट की आवाज के साथ उसका छेद थोड़ा सा खुल जायेगा अब आप आँखें बंद करके उसे प्यार से स्पर्श कर के देखिये उस लज्जत और नज़ाकत को आप महसूस कर लेंगे। बुर के चीरे से कोई एक इंच नीचे गांड का गुलाबी भूरा छेद खुल और बंद होता ऐसे लग रहा था जैसे मर्लिन मुनरो अपने होंठों को सीटी बजाने के अंदाज में सिकोड़ रही हो। उसके गोल गोल भरे नितम्ब जैसे कोई खरबूजे गुलाबी रंगत लिए हुए किसी को भी अपना ईमान तोड़ने पर मजबूर कर दे। केले के पेड़ जैसी पुष्ट चिकनी जंघाएँ और दाहिनी जांघ पर एक काला तिल। हे भगवान् मैं तो बस मंत्रमुग्ध सा देखता ही रह गया। ये हसीं नजारा तो मेरे जीवन का सबसे कीमती और अनमोल नजारा था।

मिक्की एक झटके के साथ नीचे बैठ गई। उसकी नाजुक गुलाबी फांके थोड़ी सी चौड़ी हुई और उसमें से कल-कल करती हुई सू-सू की एक पतली सी धार … शुर्ररऽऽऽ… शिच्च्च्च … !! सीईई … पिस्स्स्स! करती लगभग डेढ़ या दो फ़ुट तो जरूर लम्बी होगी।

कम से कम दो मिनट तक वो बैठी सू-सू करती रही।
पिस्स्स्स … ! का मधुर संगीत मेरे कानो में गूंजता रहा।
शायद पिक्की या बुर को पुस्सी इसी लिए कहा जाता है कि उसमे से पिस्स्स्स … का मधुर संगीत बजता है। छुर्रर … । या फल्ल्ल्ल्ल … । की आवाज तो चूत या फिर फुद्दी से ही निकलती है। अब तक मिक्की ने कम से कम एक लीटर सू-सू तो जरूर कर लिया होगा। पता नहीं कितनी देर से वो उसे रोके हुए थी। धीरे धीरे उसके धार पतली होती गई और अंत में उसने एक जोर की धार मारी जो थोड़ी सी ऊपर उठी और फिर नीचे होती हुई बंद हो गई। ऐसे लगा जैसे उसने मुझे सलामी दी हो। दो चार बूंदें तो अभी भी उसकी बुर के गुलाबी होंठों पर लगी रह गई थी।

इस जन्नत भरे नजारे को देखने के बाद अब अगर क़यामत भी आ जाए तो कोई डर नहीं। बरसों के सूखे के बाद सावन जैसी पहली बारिश की फुहार से ओतप्रोत मेरा तन मन सब शीतल होता चला गया। उस स्वर्ग के द्वार को देख लेने के बाद अब और क्या बचा था। मुझे लगा कि मैं तो बेहोश ही हो जाऊँगा। मेरे शेर ने तो पैन्ट में ही अपना दम तोड़ दिया। पर इस दृश्य के बाद मेरे शेर के शहीद होने का मुझे कोई गम नहीं था।

मैं यही सोच रहा था कि स्वर्ग के द्वार से अभी तक मिक्की ने केवल मूतने का ही काम क्यों लिया है। जब वो उठी तो किसी पेड़ से एक पक्षी पंख फड़फड़ाता कर्कश आवाज करता हुआ उड़ा तो मिक्की फिर डर गई और इस बार फिर मेरी और दौड़ने के चक्कर में उसका पैर फिसला और पैर में थोड़ी सी मोच आ गई। इतने खूबसूरत हादसे के बाद फिर ये तकलीफदेह दुर्घटना हे भगवान् क्या सब कुछ आज ही होने वाला है??

जब हम घर पहुंचे तो मिक्की को लंगड़ाते हुए देख कर मधु ने घबरा कर पूछा “अरे कहीं एक्सीडेंट तो नहीं हो गया? क्या हुआ मोना को?”

“अरे कुछ ख़ास नहीं, थोड़ा सा फिसल गई थी, लगता है मोच आ गई है!”

“हे भगवान् ध्यान से नहीं चल सकते थे क्या? ऑफ … इधर आओ जल्दी करो लाओ आयोडेक्स मल देती हूँ” मधु घबरा सी गई।

“नहीं बुआजी कोई ज्यादा चोट नहीं लगी है ” मिक्की ने बताया।

“चुप! तुझे क्या पता कहीं फ्रेक्चर तो नहीं हो गया? किसी डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया उसी समय?” मधु बिना किसी की बात सुने बोलती जा रही थी।

आयोडेक्स लगाने, नमक वाले पानी से सिकाई करने, हल्दी वाला दूध पिलाने और इतनी गर्मी में भी चद्दर उढ़ा कर सुलाने के बाद ही मधु ने उसका पीछा छोड़ा।

मैं बाथरूम में जाकर अपना अंडरवियर चेंज करके जब ड्राइंग रूम में आया तो वहाँ पर मिठाई का एक डिब्बा पड़ा हुआ नज़र आया। मैंने मधु से जब इसके बारे में पुछा तो उसने बताया “अरे वो निशा है ना!”

“कौन निशा?”

“तुम्हें तो कुछ याद ही नहीं रहता! अरे वो मेरी झाँसी वाली कजिन की रिश्तेदार है न स्कूल में?”

ये औरतें भी अजीब होती है कोई भी बात सीधे नहीं करेगी घुमा फिर कर बताने और बात को लम्बा खीचने में पता नहीं इनको क्या मज़ा आता है।

“हाँ हाँ तो?”

“अरे भई उसके देवर की शादी है। वो तो मुझे कल रात को उनके यहाँ होने वाले फंक्शन में बुलाने का कह कर गई है। रिसेप्सन में तो जाना पड़ेगा ही सोच रही हूँ रात वाले फंक्शन में जाऊं या नहीं?”

मैं जानता था मैं मना करू या हाँ भरूं, मधु नाचने गाने का ये चांस बिलकुल नहीं छोड़ने वाली। मधु बहुत अच्छी डांसर है। शादी के बाद तो उसे किसी कॉम्पिटिशन में नाचने का अवसर तो नहीं मिला पर शादी विवाह या पार्टीज में तो मधु का डांस देख कर लोग तौबा ही कर उठते हैं। इस होली पर भांग पीकर उसने जो ठुमके लगाए थे और कूल्हे मटकाए थे, कालोनी के बड़े बुजुर्गों का भी ‘ढीलू प्रसाद’ धोती में उछलने लगा था। क्या कमाल का नाचती है।

आप की जानकारी के लिए बता दूँ राजस्थान में शादी वाली रात जब लड़की के घर फेरे होतें है तो लड़के वालों के घर पर रात को नाच गाना होता है। उसमे सिर्फ मोहल्ले वाली और नजदीकी रिश्तेदार औरतें ही शामिल होती है। मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था इतना सुनहरा मौका इतनी जल्दी मुझे मिल जायेगा। सच कहते है सचे मन से भगवान् को याद किया जाए तो वो जरूर सुनाता है। अब तक आपने अंदाजा लग ही लिया होगा कि मेरे जैसे चुद्दकड़ आदमी की भगवान् में कितनी आस्था होगी? वैसे देखा जाये तो मैं भगवान्, स्वर्ग-नर्क, पाप-पुण्य, पूजा-पाठ आदि में ज्यादा विश्वास नहीं रखता पर इन खूबसूरत हादसों के बाद तो उसे मान लेने को जी चाहता है।

मैंने आज पहली बार पूजा घर में जाकर भगवान का धन्यवाद किया।

अगला भाग भी जल्दी ही आपके सामने होगा।

इस कहानी का मूल्यांकन कहानी के अन्तिम भाग में करें!

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