विज्ञान से चूत चुदाई ज्ञान तक-43

(Vigyan se Choot Chudai Gyan Tak-43)

पिंकी सेन 2015-02-09 Comments

This story is part of a series:

विकास ने चोदने की रफ़्तार और तेज कर दी थी..
वो भी थक गया था और उसकी उत्तेजना भी चरम सीमा पर थी..
बस लौड़े की ठाप से चूत को पीट रहा था..

जैसे ही दीपाली की चूत का पानी निकल कर लौड़े से स्पर्श हुआ..
विकास ने लौड़े को जड़ तक घुसा कर एक लंबी सांस ली और उसका बाँध भी टूट गया..
दो नदियों का संगम हो गया..
काफ़ी देर तक दोनों उसी हालत में पड़े रहे।

इनका तो हो गया.. अब आप सोच रहे होंगे दीपक और प्रिया अन्दर गए थे.. पीछे से सोनू भी गया था.. वहाँ क्या हंगामा हुआ.. तो चलो हम वहीं जाकर देखते हैं।

सुधीर के घर में जाते ही प्रिया ने मुख्य दरवाजा बन्द कर दिया और दीपक से चिपक गई।
उसने अपने होंठ उसके होंठों पर टिका दिए।

दीपक भी उसका साथ देने लगा और उसकी गाण्ड को दबाते हुए उसे चुम्बन करने लगा।
थोड़ी देर बाद दोनों अलग हुए।

दीपक- मेरी प्यारी बहना.. यहाँ नहीं.. कमरे में चल.. वहाँ आज तेरी गाण्ड मारूँगा…

प्रिया- नहीं भाई.. पहले तो मेरी चूत को शान्त करो.. लौड़े के लिए ये बड़ी तड़प रही है.. उसके बाद आप गाण्ड मार लेना…

दोनों कमरे में चले जाते हैं और वहाँ जाते ही प्रिया नीचे बैठ कर दीपक की ज़िप खोल कर लौड़ा बाहर निकाल लेती है और मज़े से चूसने लगती है।

दीपक- आहह.. अरे बहना.. आहह.. कपड़े तो निकालने देती.. उफ़ ऐसे ही शुरू हो गई तू आहह…

दोस्तो, इसी पल सोनू खिड़की से अन्दर आया था और आपको बता दूँ वो रसोई की खिड़की थी.. यह उसके पास के कमरे में थी.. सोनू जब खिड़की से अन्दर कूदा दूसरे कमरे में.. इन दोनों को आवाज़ सुनाई दी।

दीपक ने जल्दी से प्रिया के मुँह से लौड़ा निकाला और पैन्ट के अन्दर करके ज़िप बन्द कर ली।

प्रिया- भाई बाहर कोई आया है.. आवाज़ आई ना अभी?

दीपक- चुप चुप.. आराम से.. उस कुर्सी पर बैठ जा.. शायद दीपाली आ गई होगी…

प्रिया- नहीं भाई.. चाभी मेरे पास है.. दरवाजा बन्द है.. वो कैसे अन्दर आ सकती है.. शायद घर वाला आ गया है.. उसके पास तो दूसरी चाभी होगी ना…

दीपक- तू यहीं बैठ.. मैं बाहर जाकर देखता हूँ.. वो हुआ तो कह देंगे दीपाली ने यहाँ मिलने के लिए बुलाया था.. ओके.. मैं अभी आता हूँ।

दीपक कमरे से बाहर निकला.. उधर सोनू भी दबे पांव रसोई से बाहर आ रहा था। दोनों आमने-सामने हो गए नजरें मिलीं और…

दीपक- अरे साले.. मादरचोद.. डरा दिया.. तू यहाँ क्या कर रहा है?

सोनू- तुझे देख कर ही यहाँ आया हूँ.. तू बता प्रिया के साथ यहाँ क्या कर रहा है?

अब दीपक की हवा निकल गई.. वो हकलाने लगा- श..श..सी.. क्या बोल रहा है प्प..प्रिया को तूने क..कब देखा?

सोनू- जब तुम दोनों मुख्य दरवाजे से अन्दर घुसे.. तब देखा और पीछे की खिड़की से यहाँ आया हूँ.. अब सच-सच बता.. तुम दोनों इस खाली घर में क्या करने आए हो..? दूसरा तो कोई दिखाई ही नहीं दे रहा यहाँ।

दीपक कुछ बोलता.. उसके पहले प्रिया कमरे से बाहर आ गई और बोल पड़ी।

प्रिया- सोनू.. मैं बताती हूँ.. हम यहाँ क्यों आए हैं।

दीपक हक्का-बक्का सा बस प्रिया को देखने लगा।

सोनू- हाँ.. बताओ.. बताओ.. मैं भी सुनना चाहूँगा।

प्रिया- तो सुनो तुमने और मैडी ने भाई को पागल कर दिया है.. बिगाड़ कर रख दिया है.. उस उस दीपाली के चक्कर में भाई दिन-रात उसी के बारे में सोचते रहते हैं.. मुझसे ये देखा नहीं गया.. तब मैंने भाई से कहा कि मैं दीपाली को उनसे मिलवा देती हूँ.. बस आज यहाँ इसी लिए आए हैं दीपाली भी आने वाली है.. समझे…

प्रिया ने इतनी सफ़ाई से झूठ बोला कि दीपक तो बस उसको देखता रह गया और सोनू का भी मुँह खुला का खुला रह गया।

सोनू- क्या दीपाली यहाँ आ आने वाली है.. व्व..वो मानी कैसे? और द..दीपक तुमने हमें बताया क्यों नहीं.. कि प्रिया हमारा साथ दे रही है?

अब तो दीपक में जान आ गई थी.. सोनू प्रिया के झूठ के जाल में फँस गया था।

दीपक- बहन के लौड़े.. तुझे बड़ी जल्दी है हर काम की.. वो साला मैडी प्लान बना रहा है मगर कुछ बता नहीं रहा.. तो मैंने सोचा क्यों ना प्रिया के जरिए दीपाली तक पहुँच जाऊँ मगर तू यहाँ अपनी माँ चुदवाने आ गया.. अगर वो आ गई और तुझे यहाँ देख लिया तो हाथ से गई समझ.. उसके बाद तो मैं तुझे देख लूँगा।

सोनू- अरे यार मुझे क्या पता.. मैं तो समझा तुम दोनों यहाँ…

दीपक- क्या सोचा बे.. मादरचोद.. बोल साले तेरी ज़ुबान काट के हाथ में दे दूँगा.. अगर कुछ भी उल्टा-सीधा बोला तो.. बता अब…

सोनू बेचारा क्या बोलता.. उसकी तो जान आफ़त में आ गई थी और दीपक तो बस पूछो मत उल्टा चोर कोतवाल को डांटने पर तुल गया था।

सोनू- अरे कुछ नहीं सोचा मेरे बाप.. अब मैं जाता हूँ मगर जाने के पहले बस एक बार दीपाली को देख लूँ.. मेरे मन को तसल्ली मिल जाएगी।

प्रिया- हाँ देख लेना.. वो आती ही होगी.. जाओ छुप जाओ और सुनो उसके सामने मत आ जाना.. भाई भी यहाँ छुपने ही मेरे साथ आए थे.. बस वो मुझसे मिलने आ रही है।

दीपक ने कुछ और बोलना ठीक ना समझा और सोनू के साथ रसोई में छुप गया।

उन दोनों के जाने के बाद प्रिया बड़बड़ाने लगी।

प्रिया- ओह.. गॉड.. बाल-बाल बची.. दीपाली अब आ भी जाओ.. एक तो सर ने मेरी चूत को पानी-पानी कर दिया.. अब ये बीच में सोनू आ गया.. सर जल्दी से दीपाली को चोद कर भेज दो.. नहीं तो सोनू को समझाना मुश्किल हो जाएगा।

दीपक- साले तुझे ऐसे खिड़की से किसी के घर में घुसते हुए ज़रा भी डर नहीं लगा…

सोनू- कैसा डर.. तुम दोनों को जाते देख लिया तो बस मन नहीं माना और यहाँ देखने आ गया।

दीपक- मैं जानता हूँ साले.. तू एक नम्बर का हरामी है.. जरूर कुछ गलत सोच कर देखने आया होगा।

सोनू- ऐसी बात नहीं है यार.. अच्छा ये सब जाने दे.. पहले ये बता दीपाली यहाँ आ रही है.. ये सब जुगाड़ कैसे किया.. प्रिया को सब बातों का पता है क्या?

दीपक- अरे नहीं साले.. उसको थोड़ी ये बोल सकता हूँ कि दीपाली को चोदना चाहता हूँ.. मैंने प्रिया को झूट-मूट प्यार का नाम ले दिया इसी लिए उसने दीपाली को यहाँ बुलाया है।

सोनू- ओह.. ये बात है.. प्यार के चक्कर में फँसा कर चोदेगा.. चल अच्छा है.. कैसे भी आए.. चूत मिलनी चाहिए बस….

दीपक कुछ बोलना चाह रहा था.. तभी दरवाजे की घन्टी बजने लगी शायद दीपाली आ गई थी।

दोस्तो, दूसरी बार चुदने के बाद दीपाली ने विकास से कहा- उसको अब जाना होगा.. जरूरी काम है।

विकास ने बहुत रोकना चाहा मगर वो वहाँ से बहाना बना कर निकल गई और अब दरवाजे के बाहर खड़ी है।

प्रिया झट से गई.. दरवाजा खोला और धीरे से कहा।

प्रिया- सस्स.. कुछ मत कहना.. सोनू यहीं है ऐसी कोई बात करना उसको कुछ पता नहीं है।

दीपाली- अरे शिट.. उसको यहाँ क्यों बुलाया?

प्रिया- चुप रह ना.. सब बता दूँगी अन्दर तो आ.. किसी ने नहीं बुलाया.. खुद आ गया.. अब आ जा…

सोनू रसोई की खिड़की से दीपाली को आता देख रहा था, तभी दीपक ने उसको वहाँ से हटा दिया।

दीपक- साले हट.. वो देख लेगी तो बना-बनाया काम बिगड़ जाएगा।

प्रिया और दीपाली उस कमरे में चली गईं वहाँ जाकर प्रिया ने सारी बात दीपाली को समझा दी।

सोनू- अरे यार तू सच में खिलाड़ी है.. दीपाली आ गई.. काश अभी प्रिया यहाँ ना होती तो साली को अभी चोद देते…

दीपक- अबे चुप बहन के लौड़े.. अब चल निकल जा यहाँ से और सुन बाहर इंतजार कर.. मैं बस 5 मिनट में आता हूँ.. वहीं रहना।

सोनू की उसी खिड़की से बाहर निकल गया दीपक ने खिड़की बन्द कर दी और कमरे में चला गया।

प्रिया- गया क्या वो? आज तो बाल-बाल बचे.. वैसे क्या बोला अपने उसे?

दीपक- कुछ नहीं.. यही कि तुम दीपाली को मेरे प्यार के बारे में बता कर यहाँ बुलाकर लाने वाली हो.. अब मैं जाता हूँ.. साला वो बाहर ही खड़ा है.. कहीं उसको शक हो गया तो गड़बड़ हो जाएगी।

प्रिया- ठीक है आप जाओ।

दीपाली- अरे मेरे आशिक.. तेरी किस्मत में आज भी मेरी चूत नहीं लिखी.. जा मैडी से मिल.. उसका कल का प्लान पता कर.. नया बदलाव में फ़ोन पे बता दूँगी तुम्हें ओके….

दीपक- मेरी जान अब कोई टेन्शन नहीं है.. जब चाहूँ तुझे चोद लूँगा.. फिलहाल तो मैं जाता हूँ.. उस हरामी सोनू के रहते मैं कोई ख़तरा मोल नहीं ले सकता.. तुम दोनों यहीं रहो.. मैं जाता हूँ.. जल्दी आने की कोशिश करूँगा।

दीपक के जाने के बाद दीपाली आराम से बिस्तर पर लेट गई।

दीपाली- आह.. बड़ा सुकून मिल रहा है आज तो कमर दुखने लगी।

प्रिया- तू तो सर के लौड़े से चुद कर आई है मेरी चूत की हालत खराब है.. ये सोनू कुत्ता भी ऐन मौके पर आ गया.. नहीं तो दीपक के लौड़े से अब तक मेरी चूत ठंडी भी हो जाती।

दीपाली- शुक्र कर.. कुछ शुरू होने के पहले वो आ गया.. नहीं तो तुम दोनों को भारी पड़ जाता और दीपक के साथ वो भी अभी तेरी चूत के मज़े ले रहा होता।

बस दोस्तो, आज के लिए इतना काफ़ी है। अब आप जल्दी से मेल करके बताओ कि मज़ा आ रहा है या नहीं!
तो पढ़ते रहिए और आनन्द लेते रहिए…
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