अनजानी और प्यासी दिव्या-2

(Anjani Aur Pyasi Divya-2)

ऋतु राज 2016-05-07 Comments

This story is part of a series:

अब तक आपने पढ़ा..

फिर मैंने उसके होंठों को चूमकर उसे चादर से ढक दिया और अपने ऊपर से चादर हटाकर कपड़े ठीक किए और थोड़ी देर के लिए खिड़की खोल दी.. ताकि ठंडी हवा अन्दर आ जाए।
मेरा लंड अभी भी तना हुआ था.. लेकिन मैं सही समय का इंतजार कर रहा था। तभी गाड़ी रुकी.. यानि अगला स्टॉप आ गया था और मेरा इंतजार खत्म होने वाला था।
अब आगे..

जैसे ही गाड़ी चलने लगी.. ठंडी हवा खिड़की से होकर हमारे शरीर को छूने लगी। ठंडी हवा के झोकों की वजह से दिव्या भी उठकर बैठ गई हमारी आँखें ज्योंही एक हुईं.. हम दोनों के चेहरे पर एक कातिलाना मुस्कान आ गई।

मैंने उससे इतना गर्म होने की वजह पूछी कि क्यों वो अपने आप को सम्भाल नहीं पा रही थी और सेक्स उस पर भूत की तरह हावी होता जा रहा है?
तो उसने कहा- मैंने बहुत दिनों से अपनी चूत को कुछ खाने को नहीं दिया.. अपने आपको मैंने बहुत रोककर रखा था.. लेकिन आज पता नहीं क्या हुआ.. मेरा अपने ऊपर कोई नियंत्रण ही नहीं रहा और सेक्स मुझ पर हावी हो गया। आज की इस हवा में ही कुछ ख़ास बात है।

इतना कहकर उसने आगे होकर मेरे होंठों को कैद कर लिया और बिन्दास होकर मेरे होंठ चूसने लगी।
फिर मैंने इस चुम्बन को जारी रखकर एक हाथ से खिड़की को बंद कर दिया और दूसरा हाथ उसकी कमर की ओर ले जाकर उसे नीचे लेटने का इशारा दिया। मेरी इस क्रिया से वो बेहद खुश हो गई मानो उसकी बरसों पुरानी कोई मुराद पूरी हो गई हो।

उसे नीचे लिटाकर मैंने पर्दे में से बाहर झाँककर देखा तो सब अपनी-अपनी सीट पर पर्दे बंद करके मजे ले रहे थे। तो मैंने भी अपना पर्दा ठीक से बंद कर दिया और उसके ऊपर होकर फिर से होंठ चूसने लगा।
इस बार मैंने अपनी जीभ उसके मुँह के अन्दर डालकर घुमाने लगा और वो भी मजे से मेरी जीभ को चूस रही थी। लगभग पाँच मिनट बाद उसने मेरे होंठ छोड़ दिए।

अब उसके हाथ मेरी शर्ट के अन्दर चल रहे थे और मैं उसके चूचों को सहला रहा था। मेरे होंठ उसकी गर्दन को चूम रहे थे और वो मेरे कान में बहुत ही कम आवाज में कामुक ध्वनियाँ निकाल रही थी।
तभी मैंने थोड़ा औंधा लेटकर अपने हाथ से उसके चूचे छोड़ कर कमर की तरफ गया और उसकी कमीज को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाने लगा।

जैसे-जैसे उसकी कमीज ऊपर की ओर सरकती.. वैसे-वैसे उसका दूध सा गोरा बदन मेरे आँखों में कैद होता जा रहा था। मैं उसकी इस अफलातून जवानी को अपनी आँखों से पीने के साथ साथ होंठों से प्यार भी कर रहा था।
मेरे ऐसा करने से वो गर्म होने लगी थी और मेरे बालों में अपने हाथ घुमाकर मेरे सर को सहला रही थी।

फिर मैंने धीरे-धीरे उसके निगोड़ी जवानी से लबरेज जिस्म का रसपान करते हुए उसकी गुलाबी कमीज को उसके गुलाब जैसे बदन से अलग कर दिया। कमीज निकालने में उसने भी मेरी सहायता की। अन्दर उसने क्रीम कलर की ब्रा पहनी हुई थी.. जो कि उसके बदन पर चॉकलेट मिल्क-शेक की तरह लग रही थी। पूरा बदन दूध सा गोरा और ऊपर क्रीम कलर की ब्रा कहर बरसाने में कोई चूक नहीं कर रहे थे।

उसकी चूचियों को ब्रा के ऊपर से ही खाने का मन कर रहा था.. तो मैंने एक चूची मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरी को हाथ से सहला-सहलाकर ब्रा के कप से आजाद करने की कोशिश में लग गया। लेकिन ब्रा एकदम फिट होने की वजह से और स्तनों का आकर भी बड़ा होने से वो बिना ब्रा का हुक खोले बाहर आने वाली नहीं थी.. तो मैंने उसके स्तनों को चूसते हुए अपने हाथ पीछे उसकी पीठ की ओर ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया।

जैसे ही ब्रा का हुक खुला.. ब्रा एकदम झटके से ऊपर की ओर उछली और अब चूचियाँ नंगी हो चुकी थीं.. उनका साइज़ भी पहले से ज्यादा लगने लगा।
यह सब कमाल उसकी पैडेड ब्रा का था.. जिसकी वजह से उसके स्तन अन्दर ही दबे रह गए थे। लेकिन अब आजाद होने पर उनका आकार देखने लायक था।

सच में उसकी एक चूची सम्भालने के लिए मुझे अपने दोनों हाथों की जरूरत पड़ रही थी।

अब मैं उसके निप्पल को चूसते हुए दूसरे बोबे को एक हाथ से मसलने की कोशिश कर रहा था। उसने भी आगे होकर मेरी शर्ट निकालना चाही.. तो मैंने भी हाथ ऊपर की ओर करके शर्ट को निकाल दिया।
अब हम दोनों ऊपर से बिलकुल नंगे थे।

मैंने फिर एक बार उसके होंठों को चूमकर गर्दन पर जीभ घुमाते हुए नीचे की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और उसकी नाभि में जीभ डालकर घुमाने लगा। इससे वो और गर्म होकर मेरे सर को जोर से दबाने लगी तो मैंने भी ज्यादा देर न करते हुए उसकी सलवार को नीचे खिसका दिया और उसकी गुदाज जाँघों पर चुम्बन जड़ने लगा।

फिर थोड़ा और नीचे होकर मैंने उसकी सलवार में से उसका एक पैर निकालकर दूसरे पैर में सलवार को लटका दिया। क्योंकि अभी हम गाड़ी में थे तो एकदम से पूरे नंगे भी नहीं हो सकते थे। फिर मैंने अपनी पैन्ट को भी उसी तरह लटका दिया और फिर उसे आलिंगन देकर लबों को चूमने लगा।

पिछला स्टॉप निकले लगभग एक घंटा हो चुका था.. और हमारे पास और एक घंटा बचा था। तो मैंने भी अधिक जल्दबाजी करना ठीक नहीं समझा।

फिर मैंने उससे थोड़ी बातचीत चालू कर दी।
मैंने उससे पूछा- कैसा लग रहा है..? और अभी तुम किस स्टाइल में क्या करना चाहोगी?

पहले तो दिव्या बातचीत करना टाल रही थी.. लेकिन मेरे जोर देने पर उसने कहा- अब ऐसा लग रहा है जैसे मैं जन्नत में हूँ और जो भी तुम्हें करना है राज की स्टाइल में करो.. क्योंकि अभी तक तुमने जिस तरह से मुझे मसला है.. मैं तो तुम्हारी दीवानी हो गई हूँ।

अब मैं सिर्फ अंडरवियर में और दिव्या सिर्फ पैन्टी में था। मेरे लंड का भी अब बुरा हाल हो रहा था। बड़ी देर से वो अन्दर ही हिचकोले खा रहा था। वो अपनी जगह पर से ही दिव्या की चूत में रास्ता बना रहा था और अब उसे आजाद करने का समय आ गया था।

तो मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर अपना अंडरवियर नीचे सरकाया और लंड महाराज को आजाद कर दिया। अब बारी थी उसकी पैन्टी की, लेकिन मैंने उसे वैसे ही रहने दिया और पैन्टी के ऊपर से ही उसकी चूत की दरार में लौड़े को रगड़ने लगा।

अब वो छटपटाने लगी और मुझे कसकर अपनी बाँहों में जकड़ लिया। मैं समझ गया कि यह झड़ने वाली है.. तो मैंने भी झट से अपनी दो उंगलियों को पैन्टी के अन्दर डालकर उसकी चूत में पेल दिया। उसकी चूत में उंगलियाँ जाते ही उसने अपनी धार छोड़ दी और मैं अपनी उंगलियों को उसकी चूत में चारों ओर घुमाकर चूत को लंड लेने के लिए तैयार करने लगा।

थोड़ी देर शांत लेटे रहने के बाद दिव्या ने फिर से मेरे होंठों को और गर्दन को चूमना चालू कर दिया। मैं भी कहाँ पीछे रहने वाला था.. मैंने भी उसके चूतरस से सनी उंगलियों को उसकी चूत में घुमाने के बाद बाहर निकालकर उसके गर्दन पर घुमाकर उसे चाटने लगा। मेरी जीभ के गर्म से अहसास से वो फिर मूड में आ गई।

अब मैंने उसकी पैन्टी को नीचे खिसकाया और उसकी आँखों में देखकर उससे पूछा- क्या तुम तैयार हो दिव्या??
दिव्या ने कहा- इसे लेने के लिए मैं तो कब से मरी जा रही हूँ राज.. प्लीज इसे जल्दी से अन्दर डाल दो।

दिव्या की चूत उसके रस के कारण पहले ही गीली थी.. जिससे उसकी चिकनाई भी बढ़ गई और मेरे लिए आसानी भी बढ़ गई थी।
तो मैंने अपना लंड दिव्या के हाथ में देकर कहा- तुम इसे अपनी चूत के द्वार पर रख दो..

उसने मेरे लण्ड को मुठियाते हुए चूत से सटाकर लगाया और आँखों से मुझे इशारा किया कि मैं झटका दूँ। लेकिन मैंने झटका देना उचित नहीं समझा.. क्योंकि झटके से दिव्या की चीख भी निकल सकती थी.. जिससे हम दोनों परेशानी में आ सकते थे।

तो मैंने झटका देने की बजाए चिकनाई का फायदा लेकर अपनी कमर का प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ाना चालू कर दिया और साथ ही उसके होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया।

उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में घुसाई जिसे मैं चूसने लगा और तभी उसने वो हरकत की.. जिससे मैं चौंक गया।

उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में देकर खुद की आवाज भी बंद कर दी और नीचे से खुद ही कमर को उछालकर लौड़े को पूरा चूत के अन्दर समा लिया।

जैसे ही वो ऊपर को उछली और लंड पूरी गहराई तक समा गया.. उसने मुँह छुड़ाने की कोशिश की.. लेकिन मैंने उसे कसके पकड़े रखा.. ताकि उसका दर्द उसकी चीख के रूप में बाहर ना आए।

फिर थोड़ी देर उसी हालात में रुक कर मैंने उसे आराम लेने और दर्द से सम्भलने दिया। तब मैं उसे जोरदार तरीकों से किस किए जा रहा था। कभी उसके होंठ चूसता.. तो कभी जीभ और अपने हथेलियों से उसके पूरे बदन को सहलाने में व्यस्त था।

तभी धीरे-धीरे वो भी हरकत करने लगी और वो दर्द को भूलकर मजा लेना चाह रही थी।
मैंने भी धीरे-धीरे से आगे पीछे होना चालू कर दिया। अब मैं धीरे-धीरे अपनी रफ्तार बढ़ाते हुए एकदम मस्त तरीके से उसकी चुदाई करना चाह रहा था। मैंने उसकी आँखों में देखना चाहा तो वो आँखें मूंदकर बस मजा लेने में व्यस्त थी।

तो मैंने अपनी गाड़ी को थोड़ा ब्रेक लगाकर उसकी आँखों को चूम लिया जिससे उसके होंठों पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई।
अब मैं बस उसको लगातार चोदे जा रहा था।

कुछ देर उसी स्थिति में धकापेल चुदाई होने के बाद उसने मुझे स्थिति बदलने के लिए कहा।
मैं उसकी इस फरमाइश पर थोड़ा अचम्भित हो गया.. क्यूंकि मैं यहाँ इस छोटी सी जगह पर स्थिति बदलने के नहीं सोच रहा था.. लेकिन उसके कहने पर मैंने उसे डॉगी स्टाइल में लेकर पीछे से उसकी चूत में अपना लौड़ा सैट किया और दोनों हाथों में उसके स्तनों को पकड़कर एक झटका मार दिया।

चूँकि अब उसकी चूत मेरे लौड़े की साइज़ जान गई थी.. तो बड़े आराम से इस बार उसे निगल गई।
अब मैं उसके स्तन निचोड़ते हुए झटके दे रहा था। जिसे वो भी एन्जॉय कर रही थी।

वो भी कभी अपनी कमर को आगे-पीछे करती.. तो कभी गोल घुमाने लग जाती जिससे मुझे भी अधिक मजा आ रहा था और मैं भी उसे अत्याधिक खुश करने के बारे में सोच रहा था।

तभी एकदम से उसका शरीर अकड़ने लगा तो मैंने धक्के मारना बंद किया।
दिव्या ने उत्तेजना से सिसकारते हुए कहा- आह्ह.. अब रुको मत.. तुम भी मेरे साथ ही आ जाओ.. और अपना वीर्य अन्दर ही छोड़ देना.. मैं उसे मेरे अन्दर महसूस करना चाहती हूँ।

मैंने भी धक्कों की गति को पुनः बढ़ा दिया और अपनी गाड़ी के आखिरी गियर पर आ गया।

इतने में दिव्या का बदन ढीला पड़ने लगा, उसने अपने हाथ पूरे नीचे ले जाकर वह लगभग औंधी लेट ही गई.. और उसके अन्दर से एक लावा उमड़ पड़ा। उस लावा के रस की गर्माहट और चूत के उस समय के कड़े कसावट की वजह से मेरा लौड़ा भी आग उगलने के लिए तैयार था।

दिव्या के स्खलित होने के बाद तो वो निर्जीव सी पड़ी रही और मैं भी 10-12 झटकों में स्खलित होकर उसके ऊपर गिर गया और उसकी गर्दन पर एक चुम्बन देकर कान में कहा- कैसा लगा मेरी जान?
उसने बस अपना सर ऊपर करके मेरे होंठों को चूमा और कुछ न बोलकर बस अपने कपड़े सम्भालने लगी।

तो मैंने भी अपने कपड़े पहनना ही ठीक समझा। हम नॉर्मल होकर मतलब सब कपड़े पहनकर ठीक-ठाक बैठ गए। वो मुझसे नजरें नहीं मिला रही थी तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा- क्या बात है दिव्या.. तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लगा क्या..? या फिर कोई और बात है?

तो वो कहने लगी- नहीं.. वो बात नहीं है। लेकिन क्या मैंने अब जो तुम्हारे साथ किया यह सही था? यह बात नहीं कि मैंने तुम्हारे साथ ही पहली बार किया है लेकिन फिर भी एक अजनबी के साथ..!

इतना कहकर वो रुक गई और अब मैं उसे समझाने लगा- देखो दिव्या, ये सब बातें आजकल नॉर्मल हो गई हैं और अगर तुम्हारी प्यास मिट जाए तो फिर प्रॉब्लम क्या है.. चाहे वो अजनबी हो या जाना-पहचाना.. चूत और लंड का रिश्ता ही सबसे महत्वपूर्ण है। तुम्हें अगर ये सब गलत लगा.. तो ठीक है, हम आगे से एक-दूसरे के लिए अंजान बने रहते हैं। लेकिन अगर अच्छा लगा तो हम आगे और भी मजे कर सकते हैं। अब तुम ही फैसला करो।

इतने में सफर का आखिरी स्टॉप आ गया और गाड़ी रुक गई। तो मैंने भी उसे कहा- देखो अब हम एक-दूसरे से दूर जा रहे हैं.. अगर तुम बुरा फील कर रही हो तो आगे कभी नहीं मिलेंगे। इस मुलाकात को पहली मुलाक़ात बनाना है या आखिरी तुम ही जानो.. बाय दिव्या..

और इतना कहकर मैं बर्थ से नीचे उतरकर अपना सामान निकालने लगा। तभी उसने मुझसे मेरा नम्बर माँगा.. तो मैं भी जल्द से नम्बर देकर उसका भी सामान निकाल दिया और फिर हम बातें करते-करते नीचे उतरने लगे।

अभी हम दोनों की मंजिल दूर थी.. तो मैंने उसे आगे का सफर भी साथ तय करने को कहा.. तो उसने मना कर दिया और फिर हम अलग-अलग बस से अपने-अपने घर पहुँचे।

अगली कहानी में लिखूंगा कि क्या वो मुझसे दोबारा मिली या नहीं।

मेरी कहानी आपको कैसी लगी मुझे जरूर बताइए। आप अपने मेल मुझे इस ईमेल आई-डी पर भेज सकते हैं…
[email protected]

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