दिल्ली मेट्रो में मिली भाभी की चुदने की चाहत-1

(Delhi Metro Me Mili Bhabhi Ki Chudne Ki Chahat- Part 1)

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अन्तर्वासना के पाठकों को मेरा नमस्कार! मेरा नाम विक्रम है.. लेकिन प्यार से लोग मुझे विकी बुलाते हैं। मैं दिल्ली में रहता हूँ, मेरी उम्र 28 वर्ष, लम्बाई 6’2″ है। रंग बहुत ज्यादा गोरा नहीं है.. परन्तु गोरे की श्रेणी में ही आता हूँ और मेरा शरीर बिल्कुल छरहरा है।

मैंने अभी तक शादी नहीं की है इसका कारण यह है कि मैं अपने जॉब से अभी संतुष्ट नहीं हूँ। इसलिए मैं घर वालों के बहुत दबाव के बाबजूद शादी करने से मना कर देता हूँ। मेरा स्वभाव कुछ ऐसा है कि आज तक कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं बनी क्योंकि लड़कियों से मैं बात ही नहीं कर पाता हूँ।

जब मैं पढ़ाई करता था.. उस समय भी कोई लड़की मुझसे कुछ बात करती थी तो मैं उससे सिर्फ पढ़ाई के बारे में बात करके वहाँ से कन्नी काट लेता था।
इसका यह मतलब नहीं है कि मैं लड़कियों को पटाना नहीं चाहता था.. बल्कि मैं अपने संकोची स्वाभाव के कारण लड़कियों से खुल कर बात नहीं कर पाता था.. जिसके कारण मैं किसी भी लड़की को पटाने में असफल रहा हूँ।

लेकिन कहते हैं न कि भगवान के घर देर है.. अंधेर नहीं। ठीक वही कहावत मेरे साथ चरितार्थ हुई।

ये बात लगभग चार महीने पहले की है। मैं अपने काम के सिलसिले में दिल्ली मेट्रो से जा रहा था। मैं जब भी मेट्रो से सफ़र करता हूँ तो लेडीज सीट के ठीक बगल वाली सीट पर बैठना मेरी पहली पसंद होती है। मैं अक्सर वहीं बैठने का प्रयास करता हूँ क्योंकि मैं जहाँ से मेट्रो लेता हूँ.. वहाँ से मेट्रो बनकर चलती है इसलिए मुझे पसंदीदा सीट मिल भी जाती थी।

मैं इसका भरपूर फायदा भी उठाता हूँ। वहाँ पर दो लेडीज सीटें होती हैं जिसमें कभी-कभी तीन महिलाएं भी बैठ जाती हैं। मैं उनके साथ बैठ कर उनके शरीर की गर्मी का एहसास करते रहता हूँ।

मैं अपनी पसन्द के अनुसार ही लेडीज सीट के बगल में बैठ कर जा रहा था और दो लेडीज वहीं पर मेरे बगल में आकर बैठ गईं।
अभी दो ही स्टेशन आगे बढ़े थे कि एक लगभग 30 साल की बहुत ही सुन्दर औरत गोद में एक बच्ची को लिए आई.. उनके साथ एक आदमी भी था।

वो आदमी मेरे पास आकर खड़ा हो गया और जो भाभी बच्ची को गोद में लिए थी.. वो भी करीब में आ गईं।

मैं उनको देख कर थोड़ा सा खिसका.. जिससे कुछ जगह दिखने लगी। थोड़ी सी जगह दिखते ही वो आदमी पहले से बैठी औरतों से बोला- आप लोग भी थोड़ा-थोड़ा एडजस्ट कर लेतीं.. तो ये बच्चे को लेकर यहाँ बैठ जाती।

उसके इतना कहते ही वो औरतें भी थोड़ा-थोड़ा खिसक गईं, अब वो भाभी बच्चे को लेकर बैठ गईं।

जैसा मैं चाहता था वैसा ही हुआ… अब मैं और वो भाभी बिल्कुल सटे हुए बैठे थे। हम दोनों के शरीर एक-दूसरे से बिल्कुल चिपके हुए थे। वो भाभी इतनी सुन्दर थीं कि लगता था स्वर्ग से कोई अप्सरा नीचे उतर आई हो।

अब मैंने भाभी से चिपके होने का फायदा लेना शुरू किया, मैंने अपना एक हाथ भाभी की जाँघों पर रख दिया। भाभी अपनी गोद में बच्चे को पकड़े हुए थीं.. जिसके कारण उनके दोनों पैर फैले हुए थे।

मैंने उलटी तरफ वाला हाथ भाभी की जाँघों पर रख कर थोड़ा सा हाथ को अन्दर के तरफ खिसकाया। फिर कुछ देर तक वैसे ही बैठा रहा। इसके बाद धीरे-धीरे मैंने भाभी की जांघ को सहलाना शुरू कर दिया।

मैंने एक-दो बार ही अपनी उंगलियों को आगे-पीछे किया कि भाभी एकदम से हड़बड़ा कर इधर-उधर देखने लगीं।
मैंने भी अपने हाथ को थोड़ा सा पीछे खींच लिया लेकिन तब तक भाभी ने देख लिया था और वो मेरे चेहरे के तरफ देखने लगीं।
मैं भाभी की तरफ ना देख कर सामने देखता रहा.. लेकिन मेरा ध्यान भाभी पर ही था।

भाभी यूँ ही कुछ देर देखने के बाद अपने बच्चे को नीचे उतार दिया और अपने एक पैर के ऊपर दूसरा पैर चढ़ा लिया। भाभी अब थोड़ा सा दूसरी तरफ को खिसक गईं।

अब मेरी हिम्मत भाभी से सटने की नहीं हो रही थी, मैं चुपचाप बैठ गया। इधर मेट्रो में भीड़ बढ़ती गई और भाभी के साथ जो आदमी था.. वो कहीं दिख भी नहीं रहा था।

भाभी के साथ जो बच्ची थी वो 2-3 साल की होगी। बच्ची ने सीट के बगल वाले लोहे के पाइप को पकड़ रखा था। लेकिन भीड़ में किसी से उसका हाथ उस पाइप से दब गया और वो जोर-जोर से चिल्ला कर रोने लगी।
भाभी फिर से उसे गोद में उठा कर पुचकारने लगीं.. लेकिन वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
इतने में मुझे याद आया कि मेरे बैग में टाफी है जो कि छुट्टे ना होने की वजह से दुकानदार ने दे दी थी।

फिर क्या था मैंने अपने बैग से टाफी निकाल कर उस बच्ची को पकड़ा दी। बच्ची ने उसे अपने मुँह में रख लिया और चुप हो गई।
फिर भाभी ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और मैं भी उनसे नजर मिलते ही थोड़ा सा मुस्कुरा दिया।

भाभी थोड़ा इधर-उधर देख कर बोलीं- आप टॉफ़ी वगैरह साथ में लेकर घूमते हो?
मैंने कहा- नहीं भाभी एक्चुअली दुकानदारों ने आज कल छुट्टे देना बंद कर रखा है। वो छुट्टे की जगह टॉफ़ी ही दे देते हैं.. तो बस वही बैग में पड़ी थी।
फिर भाभी बात को आगे बढ़ाते हुए बोलीं- वैसे आप क्या करते हैं?

मैंने अपने जेब से कम्पनी का विजिटिंग कार्ड निकाला.. जिस पर मेरा नाम, नंबर तथा ईमेल लिखा था.. भाभी को देते हुए बोला- मैं इस कम्पनी में सेल्स डिपार्टमेंट में काम करता हूँ।
फिर भाभी ने पूछा- और वाईफ?
मैंने कहा- मैंने अभी शादी नहीं की है।
भाभी हँसते हुए बोलीं- आपके लिए शादी करना बहुत जरूरी है।

फिर मैंने हिम्मत करके कहा- जिस दिन आपके जैसी लड़की मिल जाएगी.. मैं उसी दिन शादी कर लूँगा।
भाभी बोलीं- क्या आपको पता नहीं है कि दुनियां में दो चीजें एक जैसी नहीं हो सकतीं।
मैंने कहा- हाँ साइंस में मैंने भी पढ़ रखा है.. कि बिल्कुल एक जैसी नहीं हो सकतीं.. लेकिन आस-पास तो हो ही सकती हैं।

कुछ देर तक चुप रहने के बाद मैंने उस बच्ची के तरफ इशारा करते हुए भाभी से पूछा- ये आपकी लड़की है?
भाभी फिर हँसते हुए बोलीं- नहीं पड़ोसी की है। बस मैं तो यूँ ही इसे लेकर घूम रही हूँ। बात ये है कि ये अपने पापा पर गई है.. मुझसे ये सवाल बहुत लोग पूछ चुके हैं।
यह कहते हुए भाभी थोड़ा सा उदास हो गई।

बात यह थी कि वो लड़की बिल्कुल काली के साथ-साथ बहुत भद्दी सी दिखती थी। फिर मैं समझ गया कि वो आदमी जो भाभी के साथ था.. वही हमारे भाई साहब यानि की भाभी के पति देव थे। जो कि एकदम काले से और लगभग 5 फीट लम्बाई के नाते से व्यक्ति थे। जबकि भाभी की लम्बाई 5 फीट 4 इंच की होगी।
दोनों की एक अजीब सी जोड़ी थी।

फिर मेरा स्टेशन आ गया और मैंने पहले उस बच्ची के तरफ बाय-बाय किया और उतरते-उतरते भाभी के तरफ भी थोड़ा सा हाथ हिला दिया।

उस रात जब मैं अपने कमरे पर पहुँचा तो उस भाभी का चेहरा मुझे बहुत याद आ रहा था और भाभी को याद करते हुए मैंने दो बार हस्तमैथुन भी किया।

लगभग 15-20 दिनों बाद मुझे एक फ़ोन आया। वो फ़ोन उन्हीं भाभी का था जो मेट्रो में सफ़र के दौरान मुझे मिली थीं, उनके पास मेरा विजिटिंग कार्ड था।
पहले उन्होंने बताया कि वो मुझसे मेट्रो में मिली थीं और फिर उन्होंने मुझे अपने घर पर आने के लिए बोला।

जैसे ही भाभी ने मेट्रो के बारे में मुझे याद दिलाई.. मुझे तुरंत भाभी का वो चेहरा याद आ गया और मैं बहुत खुश हो गया।

उन्होंने मुझसे कहा- जिस प्रोडक्ट की आप मार्केटिंग करते हो.. मुझे उसके बारे में थोड़ा जानकारी चाहिए।
जब मैंने भाभी से पूछा- कब आना है?
भाभी बोली- आप अभी आ सकते हो.. तो अभी ही आ जाओ।

अब मुझे कुछ उम्मीद हो चली थी कि भाभी से मिलकर कुछ काम बन सकता है।

मुझे उम्मीद है कि आपको कहानी में रस आ रहा होगा। प्लीज़ मुझे मेल अवश्य करें।
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कहानी जारी है।

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