गांव की बहू को बच्चे का सुख दिया- 2

(Desi Gaon Ki Chut)

विनय सिंहल 2024-02-12 Comments

देसी गाँव की चूत चोदने का मौक़ा मुझे तब मिला जब मैं गाँव की एक भाभी का इलाज कर रहा था. उसे बच्चा नहीं हो रहा था और उसका पति फिसड्डी था.

कहानी के पहले भाग
मकान मालिक की बहू फिर चुदी
में आपने पढ़ा कि माकन मालकिन ने अपने भाई की पुत्रवधू को इलाज के लिए बुलाया. मैंने उसकी जांच की और इलाह शुरू किया. लेकिन उसके पति के लंड में दम नहीं था तो मैंने ही उसे चोद कर बच्चा देना था. इसी बीच मकान मालकिन की बहू घर आई तो मुझसे चुद कर गयी.

अब आगे :

मंजू अस्पताल से घर आ गई।
वह गीता वाले कमरे में रहने लग गई।

राजू को मैंने विटामिन आयरन की टेबलेट के साथ कामसूत्र ऑयल की शीशी दे कर कहा कि इनमें से एक एक गोली सुबह शाम खानी है। तेल की रात को हल्के हाथ से मालिश करनी है एक महीने तक और एक महीने तक मंजू से अलग रहना है।

राजू गांव चला गया।

अगले दिन मंजू अम्मा के कहने पर मेरे कमरे में चाय देने आई।

उसने मुझसे पूछा- डाक्टर साहब, आपने जो दवाई दी है वो खत्म हो गई। अब मुझे क्या करना है।
मैंने कहा- इस दरवाजे की कुंडी उस तरफ से बंद है। रात को 12 बजे कुंडी खोल कर चुपचाप बिना आवाज किए आना।
वह बोली- क्यों।
मैंने कहा- चेक करूंगा। आओ तो तुम्हारी मर्जी, नहीं आओ तो तुम्हारी मर्जी! यदि बच्चा चाहिए तो जो मैं बताऊं, वो करना पड़ेगा। नहीं तो गांव लौट जाओ।
उसने कहा- ठीक है, मैं आऊंगी।

मैं अस्पताल चला गया।

शाम को मैं वापस आया, चाय पी रात का खाना खाकर टी वी देख कर सो गया।

रात 12 बजे कुंडी खुलने की आवाज आई।
मैं उठ कर बैठ गया।

मैंने उसे पलंग पर बैठा लिया।
फिर उससे पलंग पर लेटने को कहा।
वह लेट गई।

मैंने उसका पेटीकोट ऊपर किया।
उसने नीचे कुछ नहीं पहना था।
वह कुछ नहीं बोली.

मैंने उसकी टांगों को फैला कर उसकी चूत देखी; दोनों हाथों से उसकी देसी गाँव की चूत के होठों को चौड़ा किया।

उसका चूत का कौआ बहुत ही छोटा था।
चूत की दोनों गुलाबी होंठ पंखुड़ियों की तरह बेहद छोटी और मुलायम थीं जो लगातार चूत की चुदाई करने पर फैल जाती हैं।

क्लिट, चूत का कौआ बार बार चुदाई के कारण लंड के अंदर बाहर करने से बाहर को आ जाता है।
इससे ये कंफर्म हो गया कि मंजू के बच्चा कैसे होता ढंग से चुदाई भी नहीं हुई थी।

उसने पूछा- डाक्टर साहब, मेरे बच्चा तो हो जायेगा?
मैं बोला- नहीं!

वह बोली- आपने तो कहा था कि ऑपरेशन के बाद मैं मां बन जाऊंगी।
“मैंने कहा तो था … पर मंजू यह बताओ ईमानदारी से … कि क्या तुम राजू की चुदाई से संतुष्ट हो जाती हो?”
वह चुप रही.

मैंने कहा- सच बताओ।
बड़ी मुश्किल से वह बोली- डाक्टर साहब, उनका ढंग से खड़ा भी नहीं होता। मेरी चूत में जब डालते हैं तो मुझे पता ही नहीं लगता। वो थोड़ी देर हिल हिला कर अलग लुढ़क कर सो जाते हैं। मैं सारी रात परेशान रहती हूं। अपनी अंगुली से काम चला लेती हूं। मेरी अंगुली उनके लंड से कड़क और लंबी है। मजबूरी है, गांव में लोक लाज से किसी से कुछ कह नहीं सकती। बूढ़े सास ससुर कहते हैं कि हम बिना पोता पोती के मुंह देखे मर जायेंगे।

मैंने कहा- बच्चा तो मैं पैदा कर सकता हूं पर मेरे साथ तुम्हें चुदाई करनी होगी। नहीं तो बच्चे की बात भूल जाओ। यह बात मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगी। खूब सोच समझ लेना। यदि सही में अपने सास सुसर को पोता पोती ओर राजू को पिता बनाना चाहती हो तो कल रात को 12 बजे आना हो तो आ जाना। कोई जोर जबरदस्ती नहीं है।

मैंने अब उसे अपने कमरे में जाने को कह दिया क्योंकि मैं उसे सोचने समझने का समय देना चाहता था.
और वह अपने कमरे में चली गई।

अगले दिन मंजू मेरे कमरे में रात 12 बजे आई और बोली- डाक्टर साहब, मुझे बच्चा चाहिए। आप जो भी करो।

मैंने उसे बेड पर लिटा लिया, उसके बलाऊज के बटन खोले।

उसने अंदर सस्ते दामों की ब्रा पहनी थी, उसमें उसके बोबे आधे से ज्यादा बाहर निकले थे।
उसके स्तन लगभग 34 साईज के होंगे।

मैंने जैसे ही उसकी ब्रा के हुक खोलने लगा।
उसकी लेस टूट गई।
वह बोली- मेरे पास ये एक ही थी।

मैंने कहा- कोई नहीं, कल नई ले आऊंगा।

उसके बोबे ब्रा की कैद से छूट कर बाहर आ गए।

गोल गोल मोटे मोटे इतने बड़े स्तन थे कि मेरे हाथों में भी नहीं आ रहे थे।
उसके बोबे की चूचियों की घुंडी बहुत ही छोटी थीं; शायद कभी चूसी भी नहीं होंगी।

मैंने उसका पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।

अब वह मेरे सामने बिल्कुल नंगी लेटी थी।
मैंने उसके चूचों को मुंह में भर लिया, उसकी निप्पल को मैं दांतों से काटने लगा।

वह बोली- डाक्टर साहब, धीरे धीरे करो … मुझे लग रही है!
मैं आराम से आपने होठों के बीच निप्पल दबा कर चूसने लगा।
उसे भी मजा आने लगा।

अब मैं उसकी देसी गाँव की चूत में एक अंगुली डाल कर अंदर बाहर करने लगा।
उसकी चूत बहुत टाइट थी।
वह चिहुंक उठी।

ऐसा लग रहा था कि वह पहली बार ऐसा कर रही हो।

थोड़ी देर में ही मंजू झड़ गई।

अब मैंने अपने लोड़े के टोपे पर तेल लगाया।
अपनी अंगुली से उसकी चूत में भी तेल लगाया।

उसकी चूत पर लंड का टोपा रख कर धीरे से धक्का लगाया।
मेरा लंड फिसल कर बाहर आ गया।

दिक्कत यह थी कि उसकी हाईट मेरे से बहुत कम थी।
लेते लेटे उसका मुंह मेरी छाती से नीचे आ रहा था।
इसलिए लेट कर उसकी चूत में लंड डालने का हिसाब नहीं बैठ रहा था।

फिर मैं नीचे लेट गया और उसे अपने ऊपर आने को कहा।
वह मेरे ऊपर आ गई।

मैंने अपना खड़ा लंड पर उसको बैठने को कहा।
उसने अपनी चूत मेरे लंड पर रखी और दवाब दिया।

पर उसकी चूत इतनी टाइट थी कि लंड फिर भी नहीं गया।

अब मैं बेड से नीचे उतर गया।
उसको बेड के किनारे लेकर उसके दोनों पैरों को अपने कंधों पर रख कर अपने दोनों हाथों से उसके कंधे मजबूती से पकड़ कर रखे।

तब मैंने लंड को उसकी चूत के मुंह पर सेट करके एक हल्का सा धक्का दिया।
मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में आधा इंच ही घुसा था कि वो चिल्ला पड़ी।

अब समस्या ये थी कि मैं उसके मुंह पर मुंह कैसे रखता।
क्योंकि उसकी लंबाई ज्यादा की वजह से मेरा मुंह बहुत आगे था, मैंने हाथों से उसके कंधे पकड़ रखे थे।

मैंने अपना लंड चूत के दरवाजे पर ही रोक दिया।

अब मैंने तरकीब लगाई।

मैंने एक हाथ उसकी गर्दन में डाल कर अपनी ओर उठा लिया।
अब मेरा एक हाथ फ्री था।

मैंने उसका मुंह अपनी हथेली से बंद करके लंड का एक झटका दिया।
वह दर्द से बिलबिला उठी।

मेरा 7 ईंच के लंड का 2 इंच उसकी चूत में घुस गया।
वह तड़फने लगी।
पर मेरी पकड़ मजबूत थी।

मैंने उसके मुंह को कस कर अपनी हथेली से बंद कर रखा था इसलिए वो चीख नहीं पा रही थी।

तब मैंने दूसरा झटका दिया मेरा लंड 4 इंच अंदर घुस गया।
वह जोरों से अपने को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी।

मैं थोड़ा रुका फिर एक जोर के झटके के साथ ही अपना पूरा लंड उसकी चूत में प्रविष्ट कर दिया।
मुझे ऐसा लगा कि मेरा लंड का टोपा उसकी बच्चेदानी से टकरा गया था।

वह बेहोश हो गई।
मैंने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला फिर अंदर कर दिया।

वह बेहोश थी.

मैं जल्दी जल्दी लंड अंदर बाहर करने लगा।
उसके मोटे बोबे मेरी छाती से दब रहे थे।

मैं सीधा हुआ थोड़ी देर रुका।
पर मेरा लंड उसकी चूत में ही फंसा हुआ था।

मैंने बेड के सिरहाने रखी पानी की बोतल से पानी लेकर उसके चेहरे पर छिड़का।
उसे होश आ गया।

उसकी आंखों से आंसू निकल रहे थे।
उसे अब दर्द भी कम हो रहा था।

मैंने अपना लंड थोड़ा बाहर निकाला उससे पूछा- अब दर्द तो नहीं हो रहा है?
वह बोली- अब कम है।

मैं अपने लंड को अंदर बाहर करने लगा।
अब उसे भी मज़ा आने लगा। अब वह अपनी कमर उठा उठा कर साथ देने लगी।

जल्दी ही वह झड़ गई।
पर मेरा बाकी था।

मैंने स्पीड बढ़ा दी।
उसके मुंह से आवाज आने लगी- ओ ओ ई इ उई उई सी सी … उई मां मर गई। और जोर से चोदो मुझे!

मैं अंत में उसकी चूत में झड़ गया और उसके ऊपर ही लेट गया।

जब मैंने अपना लंड बाहर खींचा तो फच की आवाज के साथ बाहर निकलते ही खून की धार मेरे वीर्य के साथ निकली।

वह गांव की मेहनतकश लड़की थी सो दर्द सहन कर गई।

मैंने उसे उठाया।
उसने कपड़े से अपनी चूत साफ की मेरा लंड साफ किया और मेरी बगल में लेट गई।

मैं उसके चूचों मुंह में भर कर फिर चूसने लगा।
उस रात हमने तीन बार चुदाई की।
सुबह 4 बजे वो अपने कमरे में चली गई।

दूसरे दिन मैं अस्पताल से आते समय उसके लिए 36 नंबर की पेंट्री ब्रा का सेट ले आया।

इस तरह हमने लगातार 8 दिन तक अलग अलग आसनों में चुदाई की।

नौवें दिन उसको पीरियड हो गए।
5 दिन लंड का उपवास हो गया।

छठे दिन मैंने उसे गांव में राजू को बुलाने को कहा।

राजू आया, तीन दिन उसके साथ सो कर चला गया।

अम्मा को भी उसने बता दिया कि कब पीरियड शुरु हुआ, कब खत्म हुआ।

राजू को पीरियड खत्म होने के बाद बुलाने का मतलब अम्मा जी खूब समझती थी।
4 दिन रह कर राजू चला गया।

अब मेरी बारी थी।
पीरियड के बाद मुझे उसे गर्भ धारण करवाना था।

वह रात को आई।
उसकी कमर के नीचे तकिया लगा कर मैंने खूब चुदाई की।

मैंने अपना लंड उसकी चूत से बाहर ही नहीं निकाला, मेरा एक बूंद वीर्य भी बाहर नहीं आने दिया।
जब लंड निकाला तो उसकी दोनों टांगों को ऊपर उठा कर काफी देर रोके रखा।

उसकी देसी गाँव की चूत मेरे पूरे वीर्य को अंदर ले गईं।
यानि मेरा बीज उसकी बच्चेदानी में रोपित हो गया।

जो पहले पहले ही शुक्राणु अंडे के साथ मिल जाते हैं बच्चा उसी से बनता है।
बाकी तो चुदाई मजे के लिए होती है।
हम भी रोज यही करते थे।

अंत में समय आया उसके पीरियड नहीं आए।
उसने यह खबर राजू को, अम्मा को दी।

अम्मा ने मुझसे उसके टेस्ट कराने को कहा।

मैंने टेस्ट की स्ट्रिप लाकर उसे दी।
गर्भ की बात कंफर्म हो गई।

इसके बाद वह अपने गांव चली गई।

बीच बीच में मंजू दिखाने आती थी, वह रात रुकती।
मैं उसके पेट पर हाथ फेरते फेरते उसकी चुदाई करता।

समय कटता गया।
गीता का बेटा भी 1 साल का होने पर आया।

कुछ दिनों बाद गीता दिल्ली से आई अपने बेटे के साथ!
बेटा दौड़ने लगा था।

रमेश गीता को छोड़ गया।
रात को गीता मेरे कमरे में आई, मुझसे लिपट गई।

वह बोली- डाक्टर साहब, मुझे फिर मां बना दो। मैं अभी 6 दिन पहले ही माहवारी से निबटी हूं। रमेश के साथ 5 दिन से सो रही थी। कोई डर नहीं … उसे पूरा भरोसा है।

मैंने गीता की चुदाई शुरू कर दी।

10 दिन तक रोज कभी घोड़ी बना कर, कभी मैं नीचे होता वो मेरे लंड पर ऊपर बैठ कर ऊपर नीचे होती।
कभी मैं उसकी चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े चोदता, कभी गोदी में बैठा कर चोदता।

कभी उसकी टांगों को ऊपर उठा कर मैं खड़े होकर लंड डालता।
यानि कामसूत्र का कोई आसन नहीं छोड़ा हमने!

रोज उसकी चूत को अपने लंड रस से भर देता।
वह कहती- डाक्टर साहब, मुझे आपने जिंदगी भर का सुख थोड़े समय में ही दे दिया है। मैं सात जन्मों तक आपका अहसान नहीं भूल सकती।

अंत में वही हुआ जो वो चाहती थी।
उसको महावारी नहीं आई।

टेस्ट से पता चला कि वह पेट से है।

उसने यह खबर रमेश को, अम्मा, बाबा को दी।
उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे।

नौ महीने बाद मंजू के लड़का हुआ।

उसके बाद तय समय पर गीता ने बेटी को जन्म दिया।

मेरा पी जी पूरा हो गया, मैं रोहतक से जयपुर आ गया।

मेरी प्यारे पाठको, अब बताओ कैसी लगी मेरी देसी गाँव की चूत की कहानी?
आगे नई कहानी लेकर हाजिर होऊंगा.
[email protected]

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