अतुलित आनन्द-1

प्रेषक : फ़ोटो क्लिकर

दोस्तो, मेरा नाम क्या है या है भी कि नहीं, इससे कुछ फ़र्क पड़ता !

किस्सा क्या है यह ज्यादा मायने रखता है। प्रेम किसी को भी किसी से भी हो सकता है, और जब हो जाये तो दुनिया रंगीन, जिन्दगी हसीन लगने लगती है, यह सिर्फ़ सुना था पर महसूस नहीं हुआ था। मैंने पहले भी यौन सुख तो अकसर भोगा था पर प्रेम के बारे में अनजान था।

कॉलेज में लड़कियों से दोस्ती थी, यौन संबध भी हुए, पर प्यार कभी नहीं हुआ।

बात आज से तीन साल पहले की है जब मैं पानी साफ़ करने वाली यंत्र बेचने वाली कंपनी में नौकरी करता था भुवनेश्वर में। उस समय मेरी उम्र सत्ताईस साल थी, शरीर स्वस्थ रखने के लिये मैं जिम जाया करता था वैसे आज भी यह आदत बरकारार है।

ऐसे नौकरी से तो आप परिचित होगें ही, मुझे लोगो के घर घर जाना होता था और उन्हें हमारे उत्पादों के बारे में जानकारी देनी होती थी और बेचने होते थे। नौकरी करते करते मैं उडिया भाषा सीख गया था, फ़र्राटे से बोल लेता था। वैसे मैं रहने वाला रांची का हूँ।

मैं रोज अपने घर से सुबह नौ बजे निकलता था और आफ़िस साढ़े नौ बजे हाजरी लगा कर वहाँ से अपना बैग लेकर अपने हीरो होण्डा पर लोगों के घर चल पड़ता था।

उस दिन मैं वहाँ के पॉश कहे जाने वाले इलाके में जाने को निकला था इसलिये अच्छे कपड़े और खुशबू लगा कर निकला था।

वहाँ एक घर के नजदीक बाइक खडी कर मैंने आठ दस घरों में पैदल ही जाने का निश्चय किया।

दो घरों में घूम कर मैंने एक यंत्र बेच दिया फ़िर तीसरे घर की ओर चल पड़ा। सूर्यदेव पूरे दम से जैसे आग ही बरसा रहे थे, मैं पसीने से तरबतर हो चुका था, गेट पर दरबान था, मैंने उसे अपना कार्ड दिया और कहा कि घर में किसी व्यक्ति को दे आए।

कुछ देर में उसने आकर कहा- मालकिन ने आपको अंदर बुलाया है।

अंदर जाने पर देखा कि एक 30-32 साल की महिला सोफ़े पर बैठी थी, बिल्कुल गोरी, सफ़ेद कमीज पर छोटे छोटे फ़ूल बने थे और नीले रंग की सलवार, कद करीब 5’5″ का, भरा-पूरा बदन, कोमल से होंठ जिन्हें ऊपर वाले ने ही रंग कर भेजा था। उन्हें देख कर ही उस गर्मी में सर्दी का एहसास होने लगा था। शायद ऊपर वाले ने पूरी तल्लीनता से उन्हें तराशा था। मुझे देखकर उन्होंने अंदर बुलाया, मेरा चेहरा देखकर उन्होने कहा- आप तो पसीने से तर हो ! मैं कुछ पीने को देती हूँ।

मैंने धन्यवाद कहा।

वे झट से दो ग्लास शर्बत ले आई और मैं एक पी गया तो उन्होंने दूसरा भी दे दिया और कहा- दोनों आपके लिए ही हैं।

लगा जान में जान आई, मैंने फ़िर धन्यवाद दिया।

मन में ख्याल आया कि खूबसूरत शरीर में एक खूबसूरत दिल भी है।

मैंने अपना काम किया और उनसे ऑर्डर भी ले लिया। उनका नाम पता चला- प्रियंका ! तीन साल हुए शादी को, पति विदेश रहते हैं, एक बूढ़ी सास है जिसके चलते वो अपने पति के साथ नहीं रह पा रहीं है, सास कुछ दिनों के लिये बेटी के घर गई है।

मैं ऑर्डर शाम को पूरा करने की बात कह वहाँ से फ़ारिग हुआ। उनसे मिल कर अच्छा लगा।

शाम को पांच बजे टेक्निकल लड़के के साथ दोनों घरों में यन्त्र लगाने गया, पहले घर में लगाने के बाद इनके घर में गया, वो कहीं जाने की तैयारी में थी, सजी-धजी सी एक खूबसूरत साडी में।

मुझे देख कर मुस्कुराई, मैंने लड़के को काम पर लगा दिया।

हम बैठकर बातें करने लगे। उन्होंने मुझसे मेरे घर परिवार के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि मैं रांची का हूँ।

तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि मैं इतनी अच्छी उडिया कैसे बोल लेता हूँ।

उन्होने पूछा- शाम को काम खत्म करने के बाद क्या करते हो? दोस्त कौन कौन हैं? कोई गर्लफ़्रेंड है या नहीं ? वगैरह !

अब हम कुछ खुल चले थे। मैंने कहा- शाम को काम के बाद घर जा कर नहा कर मैं एक दोस्त के घर चला जाता हूँ जो यहीं का रहने वाला है, वहाँ गप-शप कर मैं वापस घर आ जाता हूँ क्योंकि मैं रात का खाना खुद पकाना पसंद करता हूँ, गर्लफ़्रेड नहीं है।

उन्होने कहा- मैं बोर हो रही थी तो अभी कहीं घूमने जा रही थी ! आपको अगर कोई काम ना हो तो साथ चलो।

मैंने कहा- मैं घर जा कर नहा कर और कपड़े बदलकर आता हूँ !

पर उन्होंने कहा- आप यहीं नहा लीज़िए, मैंने अपने पति के लिये कुछ नये कपड़े खरीदे थे, वो पहन लीजिए।

मैंने मना नहीं किया पर इन्तजार करने लगा कि वह लड़का यंत्र लगा कर चला जाए।

वो चला गया और मैं तैयार होने चला गया।

मैं नहाकर निकला तो देखा कि प्रियंका साथ वाले कमरे में कपड़े लिये खड़ी थी, मैं तौलिये मैं था, थोड़ा सकुचाया तो उन्होंने कहा- आप ये कपड़े पहन लीजिए, फ़िट आएँगे !

और वहीं खड़ी रही।

मैंने कपड़े हाथ में लेकर कहा- जी अगर आप… !!

वो झेंप गई और यह कहते हुए चली गई- मैं चाय बनाती हूँ।

मैं तैयार हो गया और ड्राईंग रूम में आ गया, चाय पी और चलने को हुए तो उन्होंने पास के दराज से सेंट निकाल कर मेरे कपड़ों पर छिड़क दिया और मुस्कुरा दी।

और हम चल पड़े।

मैं समझ रहा था कि शायद मुझे इस शहर में मौका मिलने वाला है।

हम बाहर उनकी कार में गये, गाड़ी मैं ही चला रहा था। मार्केट में घूमने के बाद हम पार्क चले गये जहाँ कई जोड़े हाथ में हाथ डाले तो कुछ एक-दूसरे को चूम रहे थे।

उन्हें देखकर मुझे कुछ होने लगा था, मैंने कहा- चलिये कहीं बैठते हैं।

हम वहीं घास पर बैठ गये तो पीछे से पुच पुच की आवाजें आने लगी। देखा तो एक जोड़ा झाड़ियों में चूमा-चाटी करने में मस्त था।

हमने एक दूसरे को देखा, अब आँखों ही आँखों में बातें होने लगी। उन्होंने मेरे हाथ पर अपनी हाथ रख दिया मैंने भी उनके हाथ को धीरे से दबाया, अब हम दोनों मस्त हो रहे थे।

मुझे लगने लगा कि क्या यह मस्त चीज मेरे ही लिये है? अगर हाँ तो ईश्वर का शुक्रिया।

इसी तरह हाथ दबाते हुए सहलाते हुए आधा घण्टा से ऊपर हो गया तो कहने लगी- चलिये, अब घर भी जाना है।

मैं अपने किस्मत को कोसते हुए चल पड़ा कि शायद मुझे ही पहल करनी चाहिए थी।

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