गोदाम में चुदी

प्रेषिका : मंजू

सर्दी के दिन थे और शाम के करीब 7 बजे थे, लेकिन अँधेरा छा चुका था।

मेरी माँ ने मुझे कहा- मंजू, जा तेल ले आ बाबू की दुकान से ! उसे कहना पैसे पिताजी दे देंगे !

मैं उदास मन से ही करियाने की दुकान पर गई क्यूंकि दुकानदार एक नंबर का हरामी था। इससे पहले भी उसने एक दो लड़कियों को छेड़ा था और पैसे देकर केस दबाये थे। वह लड़की को पूरा ऊपर से नीचे देखता था और उसकी नजर वासना से भरी होती थी, उसका चुदाई का कीड़ा बहुत बलवान था और उसे हमेशा चोदने की इच्छा लगी रहती थी।

मैंने जैसे ही दुकान पर पहुँच कर तेल माँगा, वह मुझे अपनी वही कुत्ते वाली नजर से देखने लगा, तब दुकान पर एक और महिला भी खड़ी थी। बाबूलाल ने उसको सामान दिया और वह चली गई।

बाबूलाल मेरी तरफ देख कर बोला- तेल पीछे गोदाम में है, एक काम करता हूँ, दुकान बंद करके तुझे वहीं से तेल निकाल कर देता हूँ। मुझे थोड़ी हिचकिचाहट तो तभी हुई क्यूंकि मुझे पता था कि बाबूलाल एक नंबर का चुदक्कड़ है और वो चुदाई का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं देता।

मैं डरते डरते उसके गोदाम में गई, उसका गोदाम दुकान के पीछे वाले हिस्से में था।

उसने अंदर जाकर लाईट जलाई, लेकिन इसकी लाईट भी उसके जैसी ही कंजूस थी, कमरे में अभी भी जैसे ही अँधेरा था।

मैंने पतीली हाथ में पकड़ी थी, बाबूलाल ने तेल का पीपा उठाया और बोला- मंजू, तू मुझे आज चोदने दे, मैं तुझे 500 रूपये दूंगा !

मैं डर कर पीछे हटने ही वाली थी कि उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला- घबरा मत, 500 रूपये भी दूंगा और तुझे हर महीने खर्चा पानी देता रहूँगा… देख ले, एक बार ले ले नहीं तो फिर पछताएगी।

500 में चोदने का तय हुआ।

मैं अभी भी डर रही थी.. वैसे 500 रूपये मुझे आज तक एक साथ कभी नहीं मिले थे.. पूरे महीने के खर्च के तौर पर भी !

मेरे मन में सवाल आया- बाबू 500 दे रहा है और वो भी एक बार चोदने के… लूँ या ना लूँ ! मैं इसी कश्मकश में थी और बाबूलाल ने 100-100 के पांच नोट निकाले और मेरे सामने रख दिए।

मुझे 100 के नोट की खुशबू सूंघे काफी अरसा हो गया था, मैंने नोट हाथ में लिए और कहा- जल्दी करना, मेरी माँ राह देख रही है घर पे !

बाबूलाल- अरे रानी, घबराती क्यूँ है, मैंने तेरी माँ को भी कितनी बार यहीं चोदा है, अगर वो ज्यादा कुछ कहे तो बोल देना, गोदाम गई थी तेल निकालने ! वैसे मैं उसे यहाँ गेहूं, बाजरा, चावल, तेल, शक्कर सब निकालने के लिए ला चुका हूँ…

यह सुन कर मुझे अजीब तो लगा लेकिन फिर मेरे दिल में ख्याल आया कि बाबू लाल की बात सच तो लगती है क्यूंकि मेरी माँ कभी कभी तो उसकी दुकान पर आती और 20-25 मिनट तक वापस नहीं आती थी।

बाबूलाल ने अपनी धोती उतारी और सफ़ेद लंगोट में उसका तना हुआ लंड चुदाई के लिए पोजीशन लिए ही खड़ा था। मैंने आज तक कभी लंड देखा भी नहीं था, उसने जैसे ही लंगोट हटाई मेरे दिल में एक सनसनी उठी, उसका लंड बालों से घिरा हुआ था। उसके गोटे बड़े बड़े और गोल थे।

उसने लंड को हाथ में लिया और हिलाने लगा, उसने मुझे वहीं एक बोरी पर बिठाया और बोला- यह ले चख इस सेक्स के क़ुतुब मीनार को…

मुझे अजीब तो लगा लेकिन मैंने जैसे ही मुहं में लंड को लिया मेरे शरीर में एक अलग ही आनन्द उठा और मैं लंड को अंदर तक चूसने लगी।

बाबूलाल ने मेरा माथा पकड़ा और उसने लंड को मुँह में अंदर बाहर करना चालू कर दिया।

बाबूलाल का लौड़ा मेरे मुँह को चोद रहा था और मुझे भी चूत के अंदर गुदगुदी होने लगी थी। मैंने कुछ 2 मिनट उसका लौड़ा चूसा था कि वह बोला- चल रानी, अपने कपड़े उतार दे, तुझे तेल दे दूँ !

मैंने अपनी चोली और घाघरा उतारा, मैंने आज ब्रा नहीं पहनी थी इसलिए चोली खोलते ही बाबू को मेरे बड़े बड़े चुच्चे दिखने लगे। वह भूखे लोमड़ की तरह मेरे ऊपर टूटा और उसने बारी बारी दोनों स्तन चूस डाले। उसका लंड मेरी जांघों को अड़ रहा था और मुझे चूत में चुदाई की गुदगुदी हो रही थी।

उसने स्तन को चूस चूस के उनमें दर्द सा अहसास करवाया, लेकिन यह दर्द बहुत मीठा था और मैं खुद चाहती थी कि बाबूलाल मेरे चुचे और भी जोर से चूसे। बाबूलाल अब रुका और उसने मुझे बोरियों के ऊपर ही लिटा दिया।

बाबूलाल ने अपना लंड मेरी चूत के ऊपर घिसा और उसके लंड की गर्मी मुझे बेताब कर रही थी। मैंने उसके सामने देखा और उसके चेहरे पर मेरी जवान चूत के लिए टपकती हुई लार साफ़ नजर आ रही थी।

बाबूलाल ने एक धीमा झटका दिया और लंड मेरी चूत में दिया।उसका आधे से ज्यादा लंड मेरी चूत में था… मैं चीख पड़ी और मेरी चूत से खून निकल पड़ा…

“अरे बहनचोद, तू तो कुँवारी है मेरी रानी.. पहले बताती ना…..!!”

मैं दर्द से मरी जा रही थी लेकिन बाबूलाल ने इसकी कोई परवाह नहीं की और लंड पूरा चूत में पेल दिया। खून तुरंत बंद हुआ और मुझे चुदाई का मजा आने लगा।

बाबूलाल चूत के अंदर लंड को धीमे धीमे पेल रहा था, यह बाबू था होशियार, उसे पता था कि कब क्या स्पीड से लंड पेलना है। पहले वह धीमे से मेरी चुदाई कर रहा था लेकिन जैसे उसने देखा कि मैं चुदाई से एडजस्ट हो चुकी हूँ, उसने झटके और तीव्र कर दिए.. उसका लंड अंदर मेरी चूत की दीवारों को जोर जोर से ठोक रहा था और मुझे असीम सुख मिल रहा था। मुझ से अब चुदाई का सुख जैसे झेला नहीं जा रहा था, मैंने बूढ़े बाबूलाल को नाख़ून मारे और मैं खुद अपनी गांड हिला कर उससे मजे से चुदवाने लगी।

बाबूलाल मेरे कबूतर दबाने लगा और उसने चोदने की गति और भी बढ़ा दी। कुछ 5 मिनट और चोदने के बाद बाबूलाल का लंड वीर्य छोड़ने लगा और उसने मेरी चूत को पूरा भिगो दिया।

उसकी साँसें फ़ूल गई थी और वह थक सा गया था, उसने मेरी तरफ प्यार से देखा और बोला- मंजू रानी, अब तो तू ही मेरे गोदाम की मालकिन बनेगी…

और उसके बाद यह सिलसिला चलता रहा ! मैं उससे चुदने उसके गोदाम में जाने लगी !

और वो मेरी हर जरुरत को पूरा करता था !

अगली कहानी में मैं बताऊंगी कि कैसे मुझे लौड़े का चस्का बढ़ता गया ! उसके बाद मैंने कैसे और लोगों से चूत मरवाई !

आप लोगों को कहानी कैसी लगी जरुर बताइयेगा.. मुझे आप सबकी मेल का बहुत इंतज़ार रहेगा।

धन्यवाद।

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category कोई मिल गया or similar stories about

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

गोदाम में चुदी

Comments

Scroll To Top