जोधपुर की यात्रा-1

मेरा नाम सोनिया है और मेरी उम्र 28 साल है मैं एक घरेलू महिला हूँ। मेरा फिगर 34-28-34 हैं मेरा एक दो साल का बेटा है, मेरे पति एक कम्पनी में मार्केटिंग मेनेजर हैं जो अक्सर टूर पर जाते रहते हैं। मैं बहुत कामुक हूँ, मेरी शादी को 5 साल हो चुके, जिसमें मैं कई पराये मर्दों से चुद चुकी हूँ। शादी से पहले भी मुझे कई लोगों ने चोदा है।

मैं एक बार की बात बताती हूँ। एक बार मेरे पति मुम्बई के टूर पर चार दिन के लिए चले गए। मैं घर पर अकेली हो गई तो मैंने सोचा कुछ शॉपिंग कर लूं इसलिए मैंने अपना पर्स उठाया और बेटे को नौकर के पास छोड़ कर चली गई और उसे कह दिया कि मैं शाम को जल्दी आ जाउंगी। मैं बस स्टॉप पर चल दी, मैंने नीले रंग की साड़ी और लो-कट ब्लाऊज पहन रखा था। वैसे मैं जींस, टी-शर्ट भी पहन लेती हूँ। मैंने जोधपुर में शॉपिंग करने का मन बना लिया और जोधपुर की बस में बैठ गई। लम्बे सफ़र के बाद मैं जोधपुर पहुँच गई।

मैंने जोधपुर में काफी सामान खरीद लिया और शॉपिंग करते करते कब शाम हो गई पता ही नहीं चला। तभी मैंने घड़ी में देखा तो साढ़े छः बज रहे थे।

मैं तुरंत बस स्टॉप पर पहुँची, स्टॉप बिल्कुल खाली था, मैं वहाँ बिल्कुल अकेली खड़ी थी। मन में अजीब सा डर था। वैसे तो पहले भी कई बार अकेले रात को घर गई थी पर आज पता नहीं क्यों !

खैर एक आदमी और आ गया जिसकी उम्र तीस साल के आस पास थी।

मैंने उससे पूछा- जयपुर की बस कितने बजे की है?

तो उसने पहले मुझे घूर कर देखा और कहने लगा- क्या आप पहली बार जोधपुर आई हैं?

मैंने हाँ में सिर हिला दिया।

उसने कहा- मैडम तभी आप ऐसा सवाल पूछ रही हैं। शायद आपको पता नहीं कि आखिरी बस सात बजे की है और वो भी आज जल्दी चली गई।

यह सुनकर मेरा दिमाग ख़राब हो गया, मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गई। तभी उस आदमी ने कहा- मैडम, अब तो अगली बस सुबह साढ़े ग्यारह बजे ही आएगी। लेकिन घबरायें मत ! एक लोकल जीप जो जयपुर-जोधपुर के चक्कर लगाती है, आने ही वाली होगी !

यह सुनकर मेरी सांस में सांस आई।

खैर थोड़ी देर बाद जीप आ गई लेकिन जीप एकदम खाली थी।

मैंने जीप के अन्दर देखा और थोड़ा सकपका गई, मैंने कहा- भाई, क्या आप जयपुर जायेंगे?

तो ड्राईवर ने मुझे ऊपर से नीचे देखने के बाद कहा- हां जी, क्यों नहीं !

तभी दूसरा आदमी जो स्टैंड पर खड़ा था, जीप में जाकर बैठ गया और अंदर से ही मुझे आवाज दे कर कहने लगा- आ जायें मैडम ! यह जयपुर जाएगा।

मैंने कहा- कितने पैसे लोगे?

तो उसने कहा- दोगुने पैसे देने होंगे, रात में पैसे दोगुने हो जाते हैं।

मैंने कहा- कोई बात नहीं भाई ! ठीक है !

और यह कह कर मैं जीप में बैठ गई। पहला वाला आदमी मुझे घूर रहा था, उसकी नज़र बार-2 मेरे उभारों पर जा रही थी, जैसे ही मैं उसे देखती वो नज़र हटा लेता।

तभी जीप वाले ने गाड़ी एक रेस्टोरेंट पर रोकी और हमें बोला- मैं एक मिनट में आता हूँ …

और भाग कर रेस्टोरेंट में चला गया। थोड़ी देर बाद जब वो आया तो ऐसा लगा कि जैसे उसने दारू पी रखी हो।

मैं डर गई। मैंने सोचा कहीं यह पीने के बाद सो ना जाये और गाड़ी का एक्सिडेंट न हो जाए, इसलिए मैं उससे बात करने लगी- भाई, कितना समय लगेगा जयपुर पहुँचने में?

तो वो बोला- मैडम चार घंटे तो लग ही जायेंगे क्योंकि रात का समय है, मैं गाड़ी धीरे ही चलाऊंगा।

यह सुनकर मेरा दिल शांत हो गया कि चलो गाड़ी धीरे चलेगी तो एक्सिडेंट का खतरा नहीं है।

जब मैं यह बात कर रही थी तो पहले वाला आदमी मुझे देख रहा था और मन ही मन खुश हो रहा था मानो मैं उससे बात कर रही हूँ।

तभी मैंने उससे पूछ लिया- आप क्यों खुश हो रहे हैं?

तो वो कुछ नहीं बोला और चुप हो गया। मैंने ड्राईवर की तरफ देखा, वो भी मुझे देख रहा था। तभी अचानक उस आदमी ने मेरे पैर पर अपना पैर रख दिया। मैंने उसकी तरफ देखा तो वो मुस्कुराने लगा। मैंने देखा कि ड्राईवर भी मुस्कुरा रहा है तो मैं भी मुस्कुरा गई। मेरी मुस्कराहट ने जीप की शांति भंग करने में बड़ा योगदान दिया और हम तीनों के बीच बातचीत शुरू हो गई। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया और उन्होंने अपना !

ड्राईवर का नाम अनवर था और उस आदमी का नाम मंगतराम था। बात करते वक़्त मेरी नज़र जीप से बाहर गई तो देखा चारो तरफ सिर्फ रेत और तन्हाई ही थी। जीप की आगे वाली लाइट की रोशनी ही जीप में थोड़ा बहुत उजाला कर रही थी। मंगतराम भी जयपुर का ही था। उसने मेरा पता पूछा और कहने लगा- आपका घर तो मेरे घर के पास ही है !

यह कहने के बाद जीप में फिर से शांति हो गई। थोड़ी दूर चलने के बाद अनवर ने जीप रोकी और बोला- मैं अभी आता हूँ !

वह गाड़ी से उतर कर बाहर चला गया शायद पेशाब करने के लिए जा रहा था। थोड़ा आगे जाकर उसने वही किया जो मैंने सोचा था।

उसने अपना लिंग बाहर निकला और धार मारने लगा। शायद वह भूल गया था कि गाड़ी की लाइट जल रही है, उसका लिंग मुझे साफ़ नहीं पर ठीक दिख रहा था। उसका लिंग देखते हुए मैं यह भूल गई कि गाड़ी में कोई और भी है और उसके लिंग को निहारने लगी।

शायद अनवर भी यही चाहता था। तभी मैंने महसूस किया कि मेरे पैर पर मंगतराम के पैर का दबाब पड़ा हुआ था। मैं सहम गई और चुप रही। लेकिन अनवर का लिंग देखने के बाद मेरे मन में आग लग गई थी, वैसे भी कई दिनों से चुदी नहीं थी। मेरी योनि में खुजली होने लगी, मैंने सोचा कई लिंग खा चुकी हूँ क्यों न यहाँ भी किस्मत आजमा ली जाये।

मैंने भी ठान लिया, यहाँ किसी को क्या पता लगेगा और इस बेकार रात को क्यों ना यादगार बना लिया जाये।

मैंने भी मंगतराम के पैरों को इशारा देना चालू कर दिया। वो मेरा इशारा देख कर और जोर से मेरा पैर दबाने लगा। इतने में अनवर वापिस गाड़ी में आ गया और गाड़ी में बैठते वक़्त मुझे देखने लगा और मुस्कुरा दिया। मैं उसकी मुस्कराहट को समझ गई थी कि वो क्या कहना चाहता है। शायद उसे पता था कि मैंने उसका विशाल लिंग देख लिया है।

उसने गाड़ी स्टार्ट की और चल दिया। उधर मंगतराम मुझे गर्म करने में लगा था। वो मेरे सामने वाली सीट पर बैठा था उसने अपने जूते उतारे और मेरे बराबर में सीट पर पैर रख लिए। मैंने यह देख कर पीछे की ओर गुजरती हुई सड़क को देखने लगी। तभी मंगतराम ने बगल में रखे पैर से मेरे जान्घों पर हरकत करनी शुरू कर दी। मैंने उसका कोई विरोध नहीं किया जिससे उसकी हिम्मत और बढ़ गई।

यह सब अनवर शीशे में से देख रहा था। हम तीनों उस वक़्त वासना की आग में जल रहे थे परन्तु कोई कुछ नहीं बोल रहा था। मैंने सोचा कि शायद ये दोनों कुछ नहीं करेंगे। लगता है मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।मैंने धीरे से अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और मेरे उभारों की दरार मंगतराम को नज़र आने लगी। मैंने पल्लू को मंगत राम के पैरों पर डाल दिया ताकि उसे मुझे छेड़ने में हिचकिचाहट ना हो। और बिलकुल वैसा ही हुआ जैसा मैंने सोचा था, मंगतराम बिना किसी डर के मुझे लगातार पैरों से रगड़ने लगा। मंगतराम ने धोती कुरता पहन रखा था और एक बलिष्ठ आदमी था। थोड़ा सांवला था पर काफी रोबदार था।

मैंने देखा कि उसकी धोती में थोड़ा उभार था। जिसे देख कर मैं सहम गई क्योंकि उभार को देखते हुए लग रहा था कि उसका लिंग काफी आक्रामक और तगड़ा होगा। मैंने अपना सामान, जो मैं बाज़ार से लाई थी, को सँभालते हुए अपना हाथ बार-2 उसकी जान्घों पर लगाना शुरू कर दिया जिसकी वजह से वो अपने आप को नहीं संभाल पा रहा था।

उधर अनवर भी बार-2 पीछे देख रहा था।

तभी मैंने कहा- अनवर जी, ज़रा गाड़ी रोकना !

उसने कहा- क्यों ?

तो मैं शर्माने का नाटक करते हुए कहने लगी- मैं नहीं बता सकती ! बस आप गाड़ी रोक दीजिये !

अनवर ने तुरंत गाड़ी रोक दी। गाड़ी से उतर कर मैं जब बाहरगई तो चारो तरफ अँधेरा और रेत के टीले थे। मुझे डर तो लगा पर मेरे मन में बैठे शैतान ने वहाँ भी कोई योजना बना रखी थी क्योंकि अब मेरी जवानी मेरे बस में नहीं थी।मैंने अनवर को बाहर आने को कहा और उससे बोला- मुझे यहाँ डर लग रहा है, तुम मेरे साथ ही रहना !

तो अनवर ने मुझसे कहा- वो तो ठीक है, लेकिन आपको जाना कहाँ है?

तो मैंने कहा- जहाँ पहले तुम गए थे !

यह सुनकर वो हंस दिया और मुझे गाड़ी के पीछे ना ले जाकर गाड़ी के आगे ले गया जैसा कि मैं भी चाहती थी। ताकि ये दोनों मुझे नग्न अवस्था में देख सकें !

मैंने अनवर से कहा- आप पीछे मुँह करके खड़े हो जाये !

हालाँकि मुझे पता था कि ऐसा नामुमकिन है। मैंने अपनी साड़ी ऊपर की और कच्छी नीचे करके बैठ गई।

शेष कहानी अगले भागों में !

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जोधपुर की यात्रा-2

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