प्यार का सफ़र-1

सच कहते हैं लोग कि आज की दुनिया में अगर एहमियत है तो बस पैसों की ! ज़ज्बात, इंसानियत और प्रेम हवस और पैसों की आग में झुलस चुका है। नहीं तो इश्क यू बाज़ार में बिकता नहीं… और हुस्न ऐसे सरेआम नीलाम न होता, उसकी बोलियाँ न लगाई जाती, उसकी आबरू को ऐसे बेपर्दा न किया जाता हवस के भूखों के आगे..

यह कहानी मेरे दोस्त की है, राजू नाम है उसका !

कहते हैं इन्सान के पैदा होते वक़्त ही यह निश्चित हो जाता है कि वो आगे क्या करेगा, वरना राजू जो एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से कॉमर्स में स्नातकोत्तर की उपाधि गोल्ड मैडल से पास था, किसी ने सोचा भी नहीं था कि वो ऐसे पेशे में जाएगा। मुझे भी उसके पेशे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, बस इतना पता था कि वो बहुत कमाता है।

बात उस वक़्त की है जब मैं पहली बार दिल्ली गया था, पहाड़गंज पहुँच मैंने राजू को फ़ोन किया। एक वो ही था दिल्ली में जिसे मैं जानता था। उसने मुझे अपना पता नोट कराया और कहा कि ऑटो लो और इस पते पर पहुँचो।

काफी शानदार अपार्टमेंट था, 103 उसका फ्लैट नंबर था। दरवाज़ा खुला था, अन्दर आते ही मैंने देखा चार बेडरूम हॉल दिल्ली में और फ्लैट की हर चीज़ जैसे यहाँ रहने वाले की दौलत का बखान कर रही थी। एक खूबसूरत सी लड़की जो दिखने में विदेशी जैसी लग रही थी अचानक मेरे सामने आ गई।

मैंने कहा- ओह, माफ़ कीजियेगा, लगता है मैं गलत पते पर आ गया हूँ।

उसने पूछा- आप निशांत हो न..? राजू सर बाहर क्लाइंट से मिलने गए हैं, बस आते ही होंगे…

मैंने राहत की सांस ली।

वो मुझे कमरे में ले गई… मैं तो बस उसके कूल्हों को ही निहार रहा था।

5’8″ की लम्बाई और भरपूर जिस्म, कपड़ों में कैपरी और शॉर्ट टॉप ! अंगड़ाई ले तो ब्रा दिख जाये… जिसकी नीयत ना डोले वो मर्द ही नहीं…

मैंने सोचा कि क्यों न मौके का फायदा उठाया जाये… बेड के पास आते ही जानबूझकर लड़खड़ा गया और बचने की कोशिश का बहाना करते हुए उसके लोअर को पकड़ लिया।

अब मैं नीचे और वो मेरे ऊपर गिरी, उसके कूल्हे मेरे लिंग पर थे। वासना के वशीभूत इंसान को कुछ दिखाई नहीं देता, मुझे मेरी गलती का एहसास हुआ, मैं हटने की कोशिश करने लगा। मेरा लिंग अपने पूर्ण तनाव वाली स्थिति में था।

अब यह तो और भी शर्मनाक स्थिति थी मेरे लिए ! मैंने बस अपनी आँखें बंद कर ली। तभी मुझे स्पर्श का अनुभव हुआ मेरे लिंग पर… हाथों को अपने लिंग से दूर करता हुआ उसे बाँहों में ले बिस्तर पे पटक दिया। वासना अब हम दोनों की आँखों में थी, मैंने पूछा- कौन हो तुम?

उसने पूछा- फिलहाल तुम्हें कौन चाहिए?

यह सवाल भी बड़ा अजीब सा था, मैंने कहा- गुलाम ! जिसके साथ जो भी करूँ वो इन्कार ना करे..

जवाब में उसने मेरा हाथ पकड़ा और उसे अपने स्तनों पे रख दिया।

मुझे मेरा जवाब मिल चुका था। उसके टॉप को ऊपर करता हुआ उसके हाथों के पास ले गया और उसी टॉप से उसके हाथ बांध दिए। उसके ब्रा के हुक को खोल दिया… अब ऊपर से पूरी नंगी थी। उसके पीठ पे चुम्बनों की जैसे झड़ी सी लगा दी मैंने !

थोड़ा नीचे होते हुए मैं उसके लोअर को उतारने जा रहा था कि तभी मुझे साइड में थोड़ा फटा हुआ दिखा, शायद गिरते वक़्त जो मैंने उसके लोअर का सहारा लिया था उसी में फट गया था।

उसी में मैंने एक उंगली डाली और पूरा लोअर फाड़ डाला।

वो चिल्लाने लगी तो तुरंत उसे पलट के उसके मुंह में अपना पूरा लिंग दे दिया, जब उसका दम घुटने लगता तब लिंग बाहर निकाल लेता और जब सामान्य होती तो पुनः घुसा देता। उसी अवस्था में उसके लोअर के चीथड़े करने लगा, अब सिर्फ उसकी पैंटी रह गई थी। उसे भी फाड़ के उसके जिस्म से अलग किया और अपने कपड़े उतार उसके ऊपर टूट पड़ा।

उसके होंठ, गाल, गर्दन हर जगह मेरे वार के निशान छूटने लगे।

अपने जिंदगी के अनुभवों से मैंने सीखा था कभी किसी पर भरोसा न करना, प्यार और प्यार करना मैं भूल ही चुका था…

अब ना तो किसी की तलाश थी न तो किसी का इंतज़ार ! बस एक आग थी मेरे अन्दर जो जला देना चाहती थी हर एक भावना को… हर उस एहसास को… हर उस याद को जो मेरे दिल में दबी हुई थी…

शायद यही वजह थी कि मैं अपने आप में नहीं था।

अब मेरा मुख उसके स्तनों पर था। आज मैं उस जाम का एक एक कतरा निचोड़ लेना चाह रहा था… उसके गौर वर्णीय स्तन गोधूलि वेला के आकाश जैसे लाल हो गये थे।

अब धीरे धीरे मैं नीचे आता जा रहा था, मैं वज्र आसन में उसकी दोनों टांगों के बीच बैठ गया, टांगों को कंधे पर रख कर उसकी कमर को पकड़ के खींच के उसके योनि द्वार को अपने मुख के पास ले आया। इस आसन में उसका समूचा शरीर मेरे संपर्क में था, योनि मेरे मुख के, कूल्हे मेरी गर्दन के और मेरा एक हाथ उसके स्तनों के..

जब मैं थक गया तो फिर सामान्य आसन में उसके योनिरस का पान करने लगा। तभी उसके पैरों का घेराव जो मेरे शरीर के इर्द-गिर्द था, मुझे कसता हुआ महसूस हुआ और एक झटके से बाढ़ सी आ गई उसकी योनि में..

अब मैं फिर से उसके ऊपर था मेरे होंठ उसके होंठों से जा मिले। अपना हाथ पीछे कर उसके हाथों को बंधन से आज़ाद कर दिया। अब तो जैसे वो मेरे ऊपर छा सी गई। ऐसा लग रहा था मानो मेरे हर वार का बदला ले रही हो जैसे… उसके नाख़ून मेरे शरीर पर निशान छोड़ रहे थे। उसके होंठों का एहसास मुझे अपने सारे जिस्म पर महसूस हो रहा था।

नीचे होते हुए मेरे लिंग को अपने मुख में भर लिया उसने। अत्यधिक उत्तेजना की वजह से मैं स्खलित हो गया। वो सारा रस पी गई।

अब मैं थोड़ा नियंत्रित था मेरी भावनाओं का ज्वार थम सा गया था। अपने अन्दर के दबे हुए एहसास को शायद मैंने और भी अपनी दिल की गहराइयों में धकेल चुका था। आँखें भरी हुई थी मेरी, और ऐसा लग रहा था जैसे नया जीवन पा लिया हो मैंने…

पता नहीं कब पर राजू वहाँ आ गया था। बचपन में अक्सर हम नंगे होकर नदी में नहाया करते थे। पर आज फिर वो नंगा था शायद काफी देर से हम दोनों को देख रहा था… तभी तो उसका लिंग पूरे उफान पर था।

वो घोड़ी के आसन में आ गई, मेरा लिंग अपने मुख में भर लिया राजू पीछे से मज़े लेने लगा।

थोड़ी देर बाद राजू ने कहा कि वो स्खलित होने वाला है। फिर हम दोनों ने अपनी जगह बदल ली। अब मैं धक्के पे धक्का लगाये जा रहा था। मैं और राजू एक साथ स्खलित हो गए… एक साथ मुख और योनि में वीर्य भर जाने से वो तड़प सी गई और दौड़ कर बाथरूम में चली गई।

मैं और राजू एक दूसरे की तरफ देख कर हंसने लगे… राजू ने मेरे हाथ पर मुक्का मारते हुए कहा- साले आते ही शुरू हो गया?

वो मेरी कर्मचारी है।

मैंने पूछा- कौन सी कंपनी है तेरी?

वो थोड़ी देर चुप रहा, फिर उसने कहा- मैंने आज तक कोई बात तुझसे नहीं छुपाई है तो मैं बताता हूँ। दुनिया वालों के लिए मैं इवेंट मैनेजमेंट कंपनी चलाता हूँ। पर असल में मैं दिल्ली की हाई प्रोफाइल पार्टी में लड़कियाँ सप्लाई करता हूँ। अभी मैं एक मंत्री जी से मिल कर आ रहा हूँ, कल उनकी एक गुप्त पार्टी है, उन्हें 22 लड़कियाँ चाहिए थी।

मैं तो जैसे सन्न रह गया। एक बार तो आँखों के सामने सारी जिंदगी की यादें फ़्लैश बैक की तरह घूमने लगी।

मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था। इतना शांत व्यक्तित्व का व्यक्ति ऐसे पेशे में?

मैंने उससे पूछा- इतनी लड़कियाँ तेरे संपर्क में आई कैसे?

उसने कहा- यूँ तो हर शहर में ही लड़कियाँ ऐसे पेशे में होती हैं, पर वहाँ इन्हें पैसे भी कम मिलते हैं और बदनामी का खतरा सबसे ज्यादा होता है। मैंने शुरू में चार लड़कियाँ महीने की तनख्वाह पर रखी थी, धीरे धीरे वो ही सब से मिलवाती चली गई और आज मैं यहाँ तक पहुँच गया। इन्हें छोटे शहर से बुला कर एक महीने की ट्रेनिंग दी और फिर अपने साथ काम में लगाया। अब ये सब तराशे हुए हीरों की तरह हैं।

थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद राजू ने कहा- यह सब भूल जा ! चल तुझे दिल्ली की पार्टी दिखाता हूँ..

बाकी कहानी अगले भाग में..

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