मेरी बेवफाई-2

(Meri Bewafai-2)

मेरे प्यारे दोस्तो,

आप लोगों ने मेरी कहानी ‘मेरी बेवफाई‘ पसंद की और मुझे इतने मेल किए कि मैं सोच भी नहीं सकती थी, सो धन्यवाद उन सबका जिन्होंने मुझे मेल करके खुशी दी।

मैं इसी कहानी का दूसरा भाग लेकर हाजिर हूँ।

इसके बाद सुनील मेरे यहाँ करीब पाँच दिन बाद आया पर यह पाँच दिन मेरे लिए बहुत बुरे निकले।

जब गुड्डू रात को बारह बजे नाइट शिफ्ट करके आए तो मैं बहुत बुरा महसूस कर रही थी कि मैंने यह क्या कर दिया?

जब हम रात को सोने गए तो वो अपनी आदत के अनुसार प्यार करने लगे पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं उनसे प्यार करूँ।
मुझे एक आत्मग्लानि अपने मन में थी।

मुझे पता नहीं क्या हुआ कि मैं रोने लगी उनकी बाँहों का तकिया बना कर मेरी रुलाई फूट पड़ी।

उन्होंने मुझे रोने दिया और जब मैं जी भर कर रो ली तो उन्होंने मेरे आँसू पौंछे और मेरे गालों पर चूम कर बोले कि अगर अपनी मम्मी की याद आ रही हो तो अपनी माँ के पास जा सकती हो।

मुझे उस दिन जितना उन पर प्यार आया, मैं कह नहीं सकती कि मेरे पति मेरा कितना ध्यान रखते हैं और मैंने यह क्या किया?

फिर मैं उनसे लिपट कर लेट गई और उनको प्यार करने लगी।

वो बाले- तुम भी न यार, कभी क्या सोचती हो और कभी क्या करती हो?

मैं जब तुम्हें प्यार कर रहा था तो अपनी मम्मी को लेकर आ गई और अब जब मैं सोने की सोच रहा हूँ तो तुमको करने की पड़ी है।

सच उस दिन मैंने उनको हर तरह से खुश किया।

करीब बीस मिनट सेक्स के बाद हम दोनों सो गए।

मैंने भी सोच लिया था कि मैं अब कभी सुनील को घर में नहीं आने दूँगी जब यह नहीं होंगे पर वो मेरे घर पाँच दिन बाद आया और मेरे पास आ कर बैठ गया।

मैं वहाँ से उठ कर उसके सामने सोफ़े पर बैठ गई।

वो कुछ कहना चाह रहा था पर मैंने उसको बोल दिया- तुम प्लीज, यहाँ अब मत आया करो। मैं भी पता नहीं उनसे कैसे बेवफ़ाई कर बैठी, मैं काफ़ी शर्मिंदा हूँ।

तब वो बोला- जो हुआ उसका मुझे कोई अफसोस नहीं है, मैंने तुम्हें चोदने के बारे में सोचा और मैंने कर लिया, चलो जब तुम्हारी मर्जी हो तो मुझे बुला लेना, मैं आ जाऊंगा।

मैंने कहा- अब मैं तुम्हें नहीं बुलाऊँगी, जो हुआ उसे भूल जाओ, बस जो जब था वो उस दिन ही था।

पर बेशर्म था सुनील जाते-जाते मुझसे पूछने लगा- एक बात बताओ भाभी, उस दिन आपको गुड्डू से ज्यादा मजा आया या नहीं?

मैंने उससे कहा- मुझे सबसे ज्यादा मजा तो गुड्डू के साथ ही आता है और वो सही है मेरे लिए, हाँ एक बात मैं कहूँगी कि मुझे तुम्हारे साथ भी मजा आया यह बिल्कुल सच है।

तभी सुनील उठा और उसने मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और मेरे होंठों पर जोरदार वाला चूमा लिया और चला गया।

लेकिन इस चुम्मे ने मेरा क्या हाल किया, सुनील मुझे चूम कर जा चुका था और मेरे अंदर उस आग को वापस जगा चुका था जो मैंने ना करने की कसम खाई थी।

मुझे लग रहा था कि मुझे अभी किसी मर्द की जरूरत है जो मुझे न मिला तो मैं ना जाने क्या कर लूँगी?

अजीब सी सोच मेरे अंदर पैदा हो रही थी कि मुझे मेरे गुड्डू से बेवफ़ाई करते रहना चाहिए, जिस में मन को खुशी मिले वो कम करते रहना चाहिए या फिर अपनी ज़िंदगी को एक ही तरह, जैसे चल रही थी चलते रहना चाहिए।

पता नहीं मैं क्या करने वाली थी? पर इस समय मुझे अपने आप को शांत करना जरूरी था क्योंकि मेरे अंदर एक वासना पनप रही थी जिसे ही शायद अन्तर्वासना कहते है।

मुझे सेक्स की जरूरत थी।

मैंने देखा कि मेरी बेटी दूध पीते-पीते बस सोने वाली थी।

मैंने उसको सुलाने की कोशिश तेज की और मैंने एक हाथ से अपनी चूत को सहलाना शुरू कर दिया।

मेरी बेटी थोड़ी देर में ही सो गई और अब मैंने अपने कपड़े खोलने शुरू कर दिये।

यह भी नहीं सोचा कि मेरा घर खुला हुआ है जिस में से कोई भी अगर आना चाहे तो आ सकता है।

मैं कभी अपने मम्मों को दबाती थी, कभी अपनी चूत को सहला रही थी।
ना जाने मुझे क्या हो गया था?
मुझे अपनी बिलकुल भी परवाह नहीं थी, बस मन मे था कि किसी भी तरह शांति मिल जाए।
जो आग मेरे अंदर लगी है वो शांत हो जाए !

तभी मैंने अपनी चूत को ज़ोर-ज़ोर से रगड़ना और सहलाना शुरू कर दिया और मेरे घर मे कोई ऐसा सामान देखने लगी जिससे मुझे मजा आ जाए।

तभी मेरी नजर घर में बैंगन पर पड़ी जो कल ही मैं सब्जी के लिए लाई थी।

पहले तो मैंने उसको क्रीम से तरबतर किया, उसके बाद बिल्कुल पागलों की तरह मेरी चूत पर रगड़ने लगी और पता नहीं कब मैंने उस बैंगन को अपनी चूत में डाल लिया और पूरा ज़ोर-ज़ोर से अंदर-बाहर करने लगी।

करीब पंद्रह मिनट बाद मेरा पानी छूट गया तब जाकर मेरे मन को शांति मिली और मैं लंबी-लंबी साँसें लेने लगी

करीब दस मिनट आँखें बंद करके उसी अवस्था में पड़ी रही पर जब आँखें खोली तो क्या देखती हूँ मेरे ऊपर वाली भाभी जी मेरे सामने खड़ी है और मुझे देखे जा रहीं हैं और मेरी चूत मे घुसे हुए बैंगन को भी जो शायद आधा अंदर था और आधा बाहर था।

उनके देखने के अंदाज से ऐसा लग रहा था कि वो मुझे देख के शायद गरम हो चुकी है। मेरा अंदाजा एकदम सही था वो मेरे एक-एक अंग को निहार रही थीं।

मुझसे बोली- अगर ऐसा ही था तो मुझे क्यो नहीं बुला लिया?

मैं क्या कहती?

मैं कुछ कहने के लायक ही नहीं थी।

तभी उन्होंने मुझसे कहा- मैं दरवाजा बंद करके आती हूँ।

तब मुझे यह ध्यान आया कि ओह! मेरा दरवाजा खुला था और कोई मर्द अंदर नहीं आया वरना पता नहीं क्या हो जाता?

वो तुरंत गईं और दरवाज़ा बंद करके आ गईं और आकर उन्होंने मुझे चूमना शुरू कर दिया।
कभी मेरे गालों को चूमती तो कभी मेरे मम्मों को सहलाती तो कभी मेरी गांड को दबातीं।

मेरे अंदर वापस वासना भरने लग गई थी।

तभी उन्होंने कहा- मेरे कपड़े खोलो।

मैं भी अब समझ चुकी थी कि मुझे क्या करना है।

मैंने भी उनको ब्रा और पैंटी में कर दिया और उनको गले पर, छाती पर और उनके पेट पर चूमने लगी।

बहुत ही मस्त माहौल था, मैंने उनके गोल-गोल मम्मों को आजाद कर दिया और एक मर्द की तरह उनके मम्मों को दबाने, सहलाने और चाटने लगीं।

वो बोल रही थी- और ज़ोर से काट मेरे मम्मों को, बहुत मजा आ रहा है।

तभी उन्होंने मेरा वो बैंगन उठा लिया और कहने लगी– करुणा, अब नहीं रहा जाता, तू एक मर्द की तरह इससे मुझे चोद।

फिर मैंने भी सोचा, आज तो वास्तव में मजा आ ही गया।

मैं करीब उनको बीस मिनट तक चोदती रही और उनके मम्मों को एक हाथ से सहलाती काटती रही।

उसके बाद जब उनका पानी छूट गया तो मैं भी दोबारा गर्म हो गई थी।

मैंने उनसे भी चोदने को बोला और उन्होंने इसके बाद मुझे चोदा, तब जाकर हम दोनों को शांति मिली।

फिर मैंने और उन्होंने चाय पी।

तो दोस्तो, अभी और कहानी बाकी है जिसको मैं जल्दी ही आपसे कहूँगी।

मुझे मेल जरूर करना, आपके मेल का इंतजार रहेगा पर यार, प्यार की बातें लिखना सीधे लंड-चूत पर मत आना।

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