चलती बस में समलिंगी अनुभव

उस समय मेरी भी उम्र 25 रही होगी। मेरी शादी भी नहीं हुई थी। होली की छुट्टियाँ होने वाली थी, मैंने अपने दोस्तों के साथ देवी के दर्शन करने जाने का प्लान बनाया। हम लोगों को ट्रेन का रिजर्वेशन नहीं मिला और हमें कानपुर से दिल्ली बस से जाना था। हम लोग जिस दिन होली जलती है, उसी रात को बस से अपने सिटी से दिल्ली के लिए रवाना हुए।

त्यौहार होने की वजह से बहुत भीड़ थी और हम सब दोस्त तो सीट मिल जाने की वजह से बैठे थे, पर बहुत सी सवारियाँ सीट न मिल पाने के कारण खड़ीं थीं।

जब बस चली तो थोड़ी दूर जाने के बाद कुछ सवारियाँ, जहाँ जगह मिली, बैठने लगीं। मेरे बगल में भी एक लगभग 25 साल का लड़का बैठ गया था। रात के बारह बजे के बाद बस की काफी सवारी सो चुकी थीं। लाइट भी बंद थी। मैं भी लगभग आधी नींद में था, तभी मुझे लगा कि किसी ने मेरे जांघों पर अपना हाथ टिकाया। मैंने टटोल कर देखा, यह उसी लड़के का हाथ था। वो मेरे पैर पर सर टिका कर सो रहा था। उसके हाथ मेरी जांघों पर रखे थे। मैंने सोचा कोई बात नहीं नींद में ऐसा हो जाता है। वो हाथ रखे रहा।

थोड़ी देर में मैंने महसूस किया कि वो हाथ मेरे लंड के नजदीक आ गया था। न जाने मुझे क्यों अच्छा लगा और मैं चुपचाप बैठा रहा पर मेरी नींद उड़ गई थी। मैं चुपचाप आँखें बंद किये रहा। थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया कि उसका हाथ मेरे लंड के ऊपर आकर रुक गया है।

मैं कुछ-कुछ समझने लगा था कि यह लड़का गांडू है और इसको लंड चाहिए।

मुझे उसके लंड के ऊपर हाथ रखने से आनंद मिल रहा था और इस मजे की वजह से लंड भी खड़ा हो चला था। वो तो खिलाड़ी था, जैसे ही मेरा लंड रंग में आने लगा, वो समझ गया कि मुझे मजा आ रहा है। उसने मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही थोड़ा मुट्ठी में दबाया।

उसने जब दबाया तो लंड ने और अपना कमाल दिखाया। मेरी नुन्नू अब लौड़ा बन कर पूरा मस्त हो गया। वो लड़का धीरे-धीरे लंड को दबाने लगा। मुझे मजा तो आ रहा था, पर मैं अब सैक्स के अधीन हो चुका था, मुझे अब पूरा मजा लेने का मन हो रहा था। मैंने अपनी शाल को अपने पैरों पर डाला और धीरे से अपने पैंट की चैन खोल कर लंड को बाहर निकाला और उसको पकड़ा दिया।

उसने भी आराम से शाल के अंदर मेरे लंड की टोपी की खाल नीचे-ऊपर करते हुए तरह-तरह से मुझे मजा देना शुरू किया। मैं चुपचाप अपने ऊपर कंट्रोल किये हुए बिना कोई आवाज़ निकाले मस्ती लेता रहा। क्योंकि मेरे दोस्त भी बगल में ही थे। वे सब सो रहे थे, पर बस की नींद आप तो जानते हो कैसी होती है। वो जरा सी आहट से में जग जाते। और मैं नहीं चाहता था कि बिना पैसे की जो मस्ती मैं ले रहा हूँ उसमे कोई खलल पड़े।

उसने मेरा लंड लगभग एक घंटे तक सहलाया कई बार तो लगता था कि मेरा जूस निकल जायेगा पर वो बड़ा एक्सपर्ट था उसे समझ आ जाता था कि लंड का जूस निकलने ही वाला है, वो मेरे लंड को रगड़ना बंद कर देता था और 5 मिनट के बाद फिर से लंड के टोपे को उंगली से सहलाते हुए पूरे लंड को धीरे धीरे दबाते हुए मुझे मस्ती देने लगता था।

एक घंटा तो मैंने बर्दाश्त किया। न जाने कितना प्री-कम निकला होगा। मैं भी कभी-कभी अपने लंड को हाथ से दबाता था। और मेरा हाथ में मेरे रस से गीले हो जाते थे। पर अब रहा नहीं जा रहा था। बस लगता था कि मैं झड़ ही जाऊँगा और दिल भी कर रहा था कि मेरा पानी निकले। पर जूस निकलने के समय होने वाले रिएक्शन को भी सम्हालना था।

मैंने अपना रुमाल निकाल कर अपने हाथ में लंड के टोपे के पास कर लिया और उसके हाथ को जोर से दबाकर जताया कि मेरा माल निकाल दे। वो समझ गया मैं क्या चाहता हूँ। उसने अब अपना एक हाथ मेरे लंड की जड़ पर लगाकर जोर से पकड़ा और दूसरे हाथ पर मेरे ही लंड का पानी टोपे के चारों तरफ लगाकर केवल टोपी को ही रगड़ने लगा।

मैं साँस रोक कर दांतों को कस कर भींच कर अपने पूरे शरीर को कड़ा करके माल के बाहर आने का इंतजार कर रहा था। वो बड़ा सयाना था। मुझे स्लो-पॉयजन दे रहा था। दो मिनट बाद मेरी गोलियाँ लंड के और नजदीक आकर ठहर गईं।

लंड की सारी नसें फूल गईं और मेरे लंड का सुपाड़ा बड़ा हो गया, मेरे रुमाल पर माल निकल पड़ा। न जाने कैसे मैंने खुद को काबू में रखा। मेरे लंड से कितना माल निकला, मैं देख न सका, पर मैंने महसूस किया कि अब तक की मेरी सैक्स लाइफ का सबसे ज्यादा जूस निकला होगा।

उसने मेरे हाथ से मेरा रुमाल ले लिया। पता नहीं क्यों? मैं भी थका हुआ महसूस कर रहा था, जैसे दो मील दौड़ कर आया होऊँ ! चुपचाप गहरी-गहरी साँसें लेता रहा, लगभग 15 मिनट के बाद उसने मेरा रुमाल वापिस कर दिया। वो गीला था पर उसमें मेरे जूस का चिपचिपापन नहीं था, मैं समझ गया वो मेरा जूस चाट गया है। मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि मैंने बहुत सी चुदाई की पिक्चर में लड़की और लडकों को वीर्य चाटते हुए देखा था।

अब मुझे नींद आ रही थी और रात का लगभग एक बज रहा था। बस अपनी मंजिल की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। कुछ देर के बाद ही ड्राईवर ने एक ढाबे पर गाड़ी रोक दी। मज़बूरी में हमें भी नीचे उतरना पड़ा। मेरे दोस्तों ने मुझे वहीं चाय भेजने को कहा। मैंने उनके लिए चाय भेजी और खुद वहीं पीने लगा।

चाय पीकर मैंने एक सिगरेट पीने की सोची और सोचा सू-सू भी कर लूँ। मैं थोड़ा एकांत में सू-सू करने गया और सिगरेट भी जला ली थी। मैंने देखा वो लड़का भी मेरे पीछे-पीछे ही सू-सू करने आ रहा है।

मैंने उससे पूछा- तुम्हें कैसे यह चस्का लग गया? तुम तो पढ़े-लिखे मालूम होते हो?

वो कुछ नहीं बोला, मेरे बगल में आकर मूतने लगा। मैंने उसका लंड देखा, तो देखता ही रह गया। उसका लंड मेरे लंड से कम से कम 3 इंच बड़ा था और उसी अनुपात में मोटा भी था। बात मेरी समझ में नहीं आई।

मैंने तो सुना था कि जो लोग नामर्द होते है या जिनको बवासीर होती है, वो लोग अक्सर गांड मरवाना पसंद करते हैं पर इसका तो लंड भी मस्त है। ये ऐसा क्यों है? मैंने इस बात की तह तक जाने का निर्णय किया और उससे उसका नाम पता पूछा।

उसने अपना नाम राकेश बताया और मेरे ही शहर में जॉब करता था। पर वो रहने वाला टूंडला का था। जब उसने सुना मैं भी उसी के शहर का हूँ, तो वो भी खुश हुआ और उसने अपना पता बताया।

उसने कहा- जब मैं वापिस आऊँ तो किसी भी रविवार को उसके यहाँ आऊँ।

उसके बाद हम लोग पुनः बस में सवार हुए और बस दिल्ली की ओर चल पड़ी। बस जैसे ही आगे बढ़ी, हम लोग पुनः सोने की तैयारी करने लगे। बस की लाइट एक बार फिर बंद हो गई। लगभग दस मिनट के बाद ही राकेश ने फिर से अपना हाथ मेरे लण्ड के ऊपर रखा।

मैंने पूछा- अभी दिल नहीं भरा क्या?

मेरे दोस्त भी अभी पूरी तरह से सोए नहीं थे। वो धीरे से फुसफुसाया कि नींद नहीं आ रही है तो हम दोनों का टाइम कैसे पास होगा?

मैंने भी सोचा ठीक है आखिर मजा तो मुझे भी आ ही रहा था। मैंने फिर से अपना सोया हुआ लण्ड निकाल कर उसके हाथ में दे दिया। शाल ऊपर से डालकर सोने की एक्टिंग करने लगा।

उसके थोड़े ही प्रयास के बाद मेरे लण्ड में जान आने लगी और मेरा लण्ड फिर से तैयार हो गया। वो अबकी बार बहुत सही पोजीशन लेकर बैठा था। उसने मुझे थोड़ा सा मुड़ने का इशारा किया। मैं समझ गया ये मेरे लण्ड को चूसना चाहता है।

मुझे भी अब न जाने क्या हुआ? कोई डर नहीं कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा? केवल सैक्स ही दिखाई दे रहा था।

मैं थोड़ा सा मुड़ा और थोड़ा वो झुका उसके मुँह में मेरा लण्ड जा चुका था। मैंने उसके सर पर शाल डाल दी। वो बिना शोर किए या आवाज़ निकाले मेरे लण्ड की टोपी को चूसने लगा।

ज्यादा हिलने-डुलने की जगह थी नहीं, पर मेरा दिल तो करता था कि खड़ा होकर इसके मुँह की चुदाई कर दूँ। पर दोस्तों समय का तकाज़ा था कि चुपचाप मस्ती लेते रहो।

मैंने भी मस्ती ही लेने की सोची और उसके कान में उंगली से सहलाने लगा। कभी-कभी अपने लण्ड के साथ ही उसके मुँह में उंगली भी चुसवा लेता।

यह चुसाई लगभग आधे घंटे तक चली, सुबह के तीन बजने वाले थे, मैंने भी सोचा कि अब जूस निकाल ही देना चाहिए। क्योंकि लोग भी जाग सकते थे।

मैंने उसको इशारा किया कि अपने हाथ से लण्ड को जल्दी-जल्दी मुठ मार कर काम खत्म करो। शायद वो भी थक गया था और यही चाहता था।

मैंने अपना वही गीला रुमाल उसको दिया, जो उसने पहली बार मेरे झड़ने पर चाट लिया था। उसने मेरे रुमाल को वापिस कर दिया और जीभ से जल्दी जल्दी मेरे लण्ड के टोपे पर और पेशाब के छेद पर चाटने लगा। दूसरे हाथ से मेरे लण्ड के निचले सिरे को जोर से पकड़ लिया और मैं थोड़ी ही देर में झड़ने लगा।

मेरा सारा जूस उसके मुँह में ही निकला, उसने पहले तो मेरा लण्ड ढीला होने तक जूस मुँह में ही रखा और लण्ड को चूसता रहा पर बाद में इकठ्ठा जूस गटक लिया।

मुझे अब लण्ड में दर्द होने लगा था। क्योंकि लम्बे समय उसके मुँह में रहा था और दो बार पानी भी निकल चुका था। मैंने उसके मुँह से लण्ड निकाल कर रुमाल से साफ किया। मैंने लण्ड साफ कर वापस पैंट के अंदर किया तो उसने फिर हाथ रख दिया मेरे लण्ड के ऊपर।

मैं बोला- भाई क्या मेरे पप्पू की जान लोगे? दो बार तुमने इसका पानी निकाला और रात भर हम सोए नहीं। अब थोड़ा तो आराम कर लेने दो। कल हम लोगों को दिन भर सफर करना है।

वो बोला- आपका काम तो दो बार हुआ पर मैं तो वैसा ही हूँ, जैसा था।

मैंने कहा- मैं क्या सहायता कर सकता हूँ।

हम लोग सारी बातें बहुत धीरे से कर रहे थे ताकि कोई सुन न ले, उसने कहा कि मैं उसके लण्ड का भी जूस निकालूँ। मैंने कभी आज तक किसी का लण्ड पकड़ा भी नहीं था और वो लण्ड का पानी निकलने की बात कर रहा था।

मैंने साफ मना कर दिया- मुझे यह सब नहीं करना और मैंने कभी किया भी नहीं तो तुम भाई, खुद मुठ मार लो।

उसने कहा- ठीक है आप अपने पैर से मोजा हटा दें। मैं आपके पैर पर रगड़ कर जूस निकाल दूँगा।

मैंने सोचा कि अजीब आदमी है इसमें इसे क्या मजा आएगा? पर मुझे किसी तरह उससे पीछा छुड़ाना था। सो मैंने अपने एक पैर का जूता-मोजा निकाल दिया और उसने अपना लण्ड निकाल लिया।

उसका लण्ड जब मेरे पैर में टच हुआ तो मुझे बड़ा अजीब सा लगा और उत्तेजना भी हुई। वो अपने एक हाथ से लण्ड को हिला रहा था और एक हाथ मेरे लण्ड पर पैंट के ऊपर से रख कर दबा रहा था।

अब मैं सोच रहा था कब इसका माल निकले और मैं सोऊँ। मैंने अपने पैर के अंगूठे से उसके लण्ड के टोपे को रगड़ना शुरू किया। जैसे ही मैंने रगड़ना शुरू किया, उसने जोर से मेरे लण्ड को मुठ्ठी में भर लिया और अपने सर को मेरी गोद में दबाया।

मैं समझ गया कि इसका काम भी अब हो जाएगा। मैं भी जल्दी-जल्दी उसके लण्ड की टोपी को पैर के अंगूठे से रगड़ने लगा। मुझे थोड़ा गीला सा महसूस हुआ तो मैं समझा कि वो झड़ गया और मैंने पैर हटा लिया।

वो फुसफुसाया- हटा क्यों लिया आपने पैर?

मैं बोला- क्यों झड़ा नहीं तुम्हारा?

वो बोला- बस थोड़ी देर में झड़ जाएगा। मेरी हैल्प करो।

मैंने फिर से उसके लण्ड को अपने अंगूठे और बाकी की उँगलियों से रगड़ना शुरू किया। थोड़ी ही देर में उसका माल निकल गया और मेरे पैर के ऊपर ही उसने झटके ले-लेकर गिराया। गिराने के बाद उसने मेरा रुमाल लेकर उसमे मेरे पैर पोंछकर मुझे जूते-मोज़े पहनाए और धन्यवाद दिया।

मैं दूसरी तरफ होकर सो गया। मुझे बहुत तगड़ी नींद आ गई। लगभग सुबह 6 बजे मेरी नींद टूटी तो देखा वो कही नहीं था, और न जाने किस जगह उतर गया था।

उसने मुझे पता तो दिया ही था। इसलिए फिर से मिलने की उम्मीद थी। मैं देवी के दर्शन करने के बाद जब वापस अपने शहर आया तो पहला रविवार आते ही उसके घर गया।

मैंने जैसे ही उसके घर की बेल बजाई तो उसका मकान मालिक निकला मैंने राकेश के बारे में पूछा तो उसने कहा- कहीं गए हैं अभी आते होंगे।
मैं इंतजार करने लगा…

अगर आप लोगों को मेरी कहानी जरा भी पसंद आ रही हों तो कृपया मुझे मेल जरूर करें ताकि मैं और दिल से लिखूँ। यह कहानी सच्ची है।

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प्रकाशित : 13 जनवरी 2014

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