तृष्णा की तृष्णा पूर्ति-1

(Trishna Ki Trishna Purti-1)

टी पी एल 2013-03-03 Comments

प्रिय अन्तर्वासना के पाठको !

आप सब को इस नाचीज़ तृष्णा का सप्रेम प्रणाम ! मुझे अन्तर्वासना पढ़ते हुए अभी सिर्फ एक माह ही हुआ है और इतने कम समय में ही मैं इसकी एक बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई हूँ, हर रोज़ मैं अपने खाली समय में कम्प्यूटर पर बैठ जाती हूँ और अन्तर्वासना पर प्रकाशित नई तथा पुरानी कहानियाँ पढ़ती रहती हूँ। इन कहानियों ने मुझे इतना प्रभावित किया है कि मैंने अपने उसी खाली समय में से कुछ समय निकाल कर अपने जीवन में घटित कई घटनाओं में से एक घटना को अपनी टूटी फूटी भाषा में लिख भी लिया है। आज मैं अपनी उस घटना का लिखित विवरण आपके सामने प्रस्तुत करने का दुस्साहस कर रही हूँ। मैं आशा करती हूँ कि आप सब मेरे इस पहले प्रयास को पढ़ कर मुझे अपने जीवन की अन्य घटनाओं को लिखने के लिए ज़रूर प्रोत्साहित करेंगे !

इससे पहले कि मैं अपनी उस घटना का वर्णन करूँ, मैं आप सबको अपना परिचय देना चाहूँगी। मेरा नाम तृष्णा है, मैं एक विवाहित स्त्री हूँ। आज से 16 वर्ष पहले जब मैं 20 वर्ष की थी तब मेरा विवाह मेरे पति के साथ हुआ था। आजकल हम उत्तराखण्ड में रहते हैं और मेरे पति का कंप्यूटर और मोबाइल का व्यवसाय है। मेरी बेटी मसूरी के एक जाने माने बोर्डिंग स्कूल की छात्रा है तथा कक्षा 10 में पढ़ती है और स्कूल के छात्रावास में ही रहती है, हर सप्ताह शनिवार शाम को वह घर आती है और सोमवार सुबह वापिस मसूरी चली जाती है!

एक आलीशान इलाके में हमारा घर है जिसकी पहली मंजिल में हम रहते हैं और निचली मंजिल में हमने पास ही के एक मेडिकल कॉलेज की दस छात्राओं को मैंने पेइंग गेस्ट रखा हुआ है। लगभग पांच वर्ष पहले मैंने उन लड़कियों के लिए खाना बनाने और पूरे घर के बाकी सब काम करने के लिए एक बुजुर्ग औरत रखी ली थी जो दिन भर सारा काम करती रहती है और रात को अपने पोते के साथ नीचे बने स्टोर में ही सो जाती है। उस बुजुर्ग औरत का 20 वर्षीय पोता जिसका नाम तरुण है, जो तब स्कूल में पढ़ता था और घर के काम में अपनी दादी का हाथ भी बंटा देता था।

लगभग दो वर्ष पहले तरुण ने 10+2 की परीक्षा पास करने के बाद जब आगे पढने से मना कर दिया तब उसकी दादी ने मुझसे और मेरे पति से उसके लिए कुछ काम के लिए मदद मांगी। हम दोनों ने दादी के आग्रह पर सोच विचार करके उसे घर और दुकान में काम करने के लिए रख नौकरी पर लिया।

तरुण रोज़ सुबह 6 बजे से 10 बजे तक अपनी दादी के साथ नीच की मंजिल में झाड़ पोंछ और कपड़ों की धुलाई का काम करता है तथा 10 बजे से 1 बजे तक ऊपर की मंजिल में काम करता है। काम समाप्त कर के वह मेरे पति के लिए दोपहर का खाना लेकर दुकान पर चला जाता है और शाम तक वह दुकान में मेरे पति की मदद करता रहता तथा रात को उनके साथ ही घर वापिस आता है।

उसे ऊपर की मंजिल में काम करते हुए लगभग तीन माह ही बीते थे, जब एक दिन उसे काम समाप्त करने में कुछ अधिक समय लग गया और उसे दुकान जाने के लिए काफी देरी हो गई थी, तब मैंने उसे कह दिया कि वह ऊपर ही बाहर वाले गुसलखाने में ही नहा कर तैयार हो जाए !

उसके बाद वह रोज़ ही काम ख़त्म करने के बाद ऊपर ही नहा लेता और तैयार हो कर खाना लेकर दुकान पर चला जाता !

यह सिलसिला लगभग अगले तीन माह तक इसी तरह चलता रहा और फिर एक दिन वह घटना घटित हुई जिसका विवरण मैं आपको बताना चाहती हूँ। मुझे आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है जब तरुण सारे कपड़े धो कर तथा नहा कर गुसलखाने में से सिर्फ तौलिया बांधे हुए बाहर निकला और धुले कपड़ों को बाहर बंधी रस्सी पर सुखा रहा था। मैं उस समय रसोई में थी और उसे खिड़की में से उसे देख रही थी कि वह हर कपड़े को अच्छी तरह झटक कर उसे रस्सी पर डाल रहा था या नहीं !

तभी जब उसने मेरे पति की एक जीन्स को सुखाने के लिए जोर से झटका दिए तो वह उसके तौलिये से उलझ गई जिससे उसकी कमर में बंधा तौलिया एकदम से खुल कर नीच गिर गया। तरुण ने सकपका कर इधर उधर देखा और किसी को आसपास न देख कर उसने इत्मिनान से झुक कर तौलिया उठाया तथा फिर से कस कर कमर में बाँध लिया और बाकी के कपड़े सुखाने लगा।

तौलिये के नीचे गिरने से ले कर उसके दोबारा कमर के बाँधने तक के दौरान मुझे तरुण बिल्कुल नग्न दिखाई दिया और उसके आठ इंच लम्बे तथा ढाई इंच मोटे लिंग के भरपूर दर्शन भी किये। उसके इतने लम्बे और मोटे लिंग को देख कर थोड़ी देर के लिए तो मैं अवाक ही रह गई थी लेकिन फिर अपने आप को संभाला और रसोई के काम में तथा दोपहर का खाना बनाने में व्यस्त हो गई।

जब तरुण तैयार हो कर खाना लेने रसोई में आया तब मैंने उसे समझाया कि नहाने के बाद वह गुसलखाने में ही कपड़े पहन कर बाहर आया कर। तरुण झट से समझ गया कि मैंने वह तौलिया गिरने वाला दृश्य देख लिया था और इसीलिए मैंने उसे यह बात कही थी। उसने तुरंत मुझसे क्षमा मांगी और आगे से ध्यान रखने का आश्वासन दे कर चला गया।

तरुण के दुकान जाने के बाद मैं खाना खाकर सुस्ता रही थी तब नग्न तरुण का दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमने लगा ! मुझे ऐसा लगता था कि तरुण का आठ इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा लिंग जैसे मुझे चिढ़ा कर कह रहा था कि “तृष्णा, देखो मैं तो तुम्हारे पति के लिंग से ज्यादा शक्तिशाली हूँ, क्या तुम मुझे चखोगी नहीं? तुम्हारा नाम तो तृष्णा है फिर भी तुम्हारे मन में मुझे लेने की तृष्णा क्यों पैदा नहीं हो रही है?”

मेरे इन विचारों ने मेरे अन्दर की वर्षों से क्षीण हो रही कामवासना को झिंझोड़ दिया और मेरी अन्दर की काम-अग्नि को फिर से प्रज्ज्वलित करने के लिए मुझे प्रेरित करना शुरू कर दिया।

असल में तीन वर्ष पहले ही मेरे पति को मधुमेह का रोग हो जाने ले कारण उनके लिंग में सख्त और खड़ा होने की शक्ति में कुछ शिथिलता आ गई थी, इससे हमारे बीच होने वाले यौन सम्बन्ध से मुझे बिल्कुल संतुष्टि नहीं मिल पाती थी और इसी कारण मेरी कामुकता भी धीरे धीरे ठंडी पड़ने लगी थी। जहाँ हम दोनों रोज़ संभोग करते थे वहाँ अब संसर्ग किये कई दिन बीत जाते थे लेकिन उस दिन तरुण के लिंग को देखने के बाद मेरी कामुकता का फिर से पुनर्जन्म हो गया और अगले तीन दिन सोते-जागते वह दृश्य बार बार मेरी आँखों के सामने आने लगा ! नहीं चाहते हुए भी मेरा व्याकुल मन मेरे दिमाग को तरुण के बारे में सोचने को मजबूर कर देता ! अन्त में चौथे दिन मेरे अधीर मन ने मेरे दिमाग पर विजय प्राप्त के ली और मैंने तरुण के साथ सम्बन्ध बनाने का प्रयास करने का निर्णय ले लिया तथा उसे कार्यान्वित करने की योजना बनाने लगी।

कहानी जारी रहेगी।

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