अंगूर का दाना-7

(Angoor Ka Dana- Part 7)

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प्रेम गुरु की कलम से
‘अम्मा बापू का चूसती क्यों नहीं। अनार दीदी बता रही थी कि वो तो बड़े मजा ले ले कर चूसती है। वो तो यह भी कह रही थी कि मधुर दीदी भी कई बार आपका…?’ कहते कहते अंगूर रुक गई।

मैं भी कितना उल्लू हूँ। इतना अच्छा मौका हाथ में आ रहा है और मैं पागलों की तरह ऊलूल जुलूल सवाल पूछे जा रहा हूँ।

ओह… मेरे प्यारे पाठको! आप भी नहीं समझे ना? मैं जानता हूँ मेरी पाठिकाएं जरूर मेरी बात को समझ समझ कर हँस रही होंगी। हाँ दोस्तो, कितना बढ़िया मौका था मेरे पास अंगूर को अपने लंड का अमृतपान करवाने का। मैं जानता था कि मुझे बस थोड़ी सी इस अमृतपान कला की तारीफ़ करनी थी और वो इसे चूसने के लिए झट से तैयार हो जाएगी।

मैंने उसे बताना शुरू किया- हाँ तुम सही कह रही हो। मधुर को तो इसे चूसना बड़ा पसंद है। वो तो लगभग रोज़ ही रात की चुदाई करवाने से पहले एक बार चूसती जरूर है!

‘हाँ मुझे पता है। अनार दीदी ने तो मुझे यह भी बताया था कि इससे घिन कैसी? इसे पीने से तो आँखों की ज्योति बढ़ती है। यही तो वह रस है जिससे मैं, तुम, रज्जो, गौरी, मीठी, कालू, सत्तू और मोती बने हैं। इसी रस से तो औरत माँ बनती है और यही वो रस है जो हमारे जीवन का मूल है। यह रस नहीं होता तो ना मैं होती ना तुम।’

‘वाह मेरी जान तुमने तो मेरी मुश्किल ही आसान कर दी’ मैंने अपने मन में सोचा। मैं जानता था यह पट्टी मधुर ने अनार को पढ़ाई थी और उसने इस नादान कमसिन अंगूर को कभी अपनी बुद्धिमत्ता दर्शाने को बता दी होगी। वाह मधुर, अगर मैं तुम्हारा लाख लाख बार भी धन्यवाद करूँ तो कम है।

मेरा पप्पू तो अब घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था। वो अंगूर के नितम्बों के नीचे लगा बार बार जैसे उफन ही रहा था। अंगूर अपने नितम्बों को भींच कर उसका होसला बढ़ा रही थी।

मैंने अंगूर से कहा- अंगूर क्या तुमने कभी कोशिश नहीं की?’
‘धत्त?’ आप भी कैसी बातें करते हैं?’

‘अच्छा एक बात बताओ?
‘क्या?’
‘कभी तुम्हारे मन में चूसने की बात आई या नहीं?’

वो कुछ पलों के लिए सोचती रही और फिर बोली- कई बार मैंने मोती को नहाते समय अपने लंड से खेलते देखा है और अपने मोहल्ले के लड़कों को भी गली में मूतते देखा है। वो लड़कियों को देख कर अपना जोर जोर से हिलाते रहते हैं। तब कई बार मुझे गुस्सा भी आता था और कई बार इच्छा भी होती थी कि मैं भी कभी किसी का पकड़ लूं और चूस लूँ!’

‘अंगूर एक बार मेरा ही चूस लो ना?’

वो मेरी बाहों से छिटक कर दूर हो गई। एक बार तो मुझे लगा कि वो नाराज़ हो गई है पर फिर तो वो एक झटके के साथ नीचे बैठ गई और मेरे लंड को अपने मुँह में गप्प से भर कर चूसने लगी।

मैं सच कहता हूँ मैंने जितनी भी लड़कियों और औरतों की चुदाई की है या गांड मारी है सिमरन को छोड़ कर लगभग सभी को अपना लंड जरूर चुसवाया है। लंड चुसवाने की लज्जत तो चुदाई से भी अधिक होती है।
उसके लंड चूसने के अंदाज़ से तो मुझे भी एक बार ऐसा लगने लगा था कि इसने पहले भी किसी का जरूर चूसा होगा या फिर देखा तो जरूर होगा।

वो कभी मेरे लंड पर जीभ फिराती कभी उसका टोपा अपने होंठों और दांतों से दबाती। कभी उसे पूरा का पूरा अन्दर गले तक ले जाती और फिर हौले हौले उसे बाहर निकालती।

हालांकि मधुर भी लंड बहुत अच्छा चूसती है पर यह तो उसे भी मात कर रही थी।
मुझे लगा अगर इसने मेरा 2-3 मिनट बिना रुके ऐसे ही चूसना जारी रखा तो मैं तो इसके मुँह में ही झड़ जाऊँगा। दरअसल मैं पहले एक बार तसल्ली से इसकी गांड मारना चाहता था। कहीं ऐसा ना हो कि मधुर ही जाग जाए। अगर ऐसा हो गया तो मेरी तो सारी मेहनत और योजना ही खराब हो जायेगी।

मैं अभी यह सोच ही रहा था कि वो अपने होंठों पर जीभ फिराती उठ खड़ी हुई. मैंने एक बार उसके होंठों को फिर से चूम लिया।
‘बाबू बहुत देर हो गई कहीं मधुर दीदी ना जाग जाए?’
‘अरे तुम उसकी चिंता मत करो। वो सुबह से पहले नहीं जागेगी!’ मैंने उसे बाहों में भर लेना चाहा।

‘बस बाबू, अब छोड़ो मुझे, जाने दो!’
‘अंगूर तुम मेरी कितनी प्यारी साली हो!’
‘तो?’
‘अंगूर यार मेरी एक और इच्छा पूरी नहीं करोगी क्या?’
‘अब और कौन सी इच्छा बाकी रह गई है?’
‘अंगूर यार एक बार अपने पिछले छेद में भी करवा लो ना?’

मैं उसे पकड़ने के लिए जैसे ही थोड़ा सा आगे बढ़ा वो पीछे हटती हुई बोली- ना बाबा ना… मैं तो मर ही जाऊँगी!’
‘अरे नहीं मेरी जान तुम्हें मरने कौन बेवकूफ देगा? तुम तो मेरी जान हो!’ मैंने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

‘इसका मतलब दीदी सच कह रही थी ना?’ उसने अपनी आँखें नचाते हुए कहा।
‘क्या मतलब?’
‘तुम सभी मर्द एक जैसे होते हो। ऊपर से शरीफ बनते हो और… और…?’

‘ओह… अंगूर देखो मैं बहुत प्यार से करूँगा तुम्हें जरा भी दर्द नहीं होने दूंगा!’ कहते हुए मैंने उसके होंठों को चूम लिया।
‘वो… वो… ओह… नहीं!’
‘प्लीज मेरी सबसे प्यारी साली जी!’
‘ओह… पर वो… वो… यहाँ नहीं!’
‘क… क्या मतलब?’

‘यहाँ बे-आरामी होगी, बाहर कमरे में चलो!’

मैं तो उस पर मर ही मिटा। मधु तो इसे मासूम बच्ची ही समझती है। मुझे अब समझ आया कि लड़की दिखने में भले ही छोटी या मासूम लगे पर उसे सारी बातें मर्दों से पहले ही समझ आ जाती है। इसी लिए तो कहा गया है कि औरत को तो भगवान् भी नहीं समझ पाता।

हमने जल्दी से तौलिये से अपना शरीर पोंछा और फिर मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया। उसने अपनी बाहें मेरे गले में ऐसे डाल दी जैसे कोई प्रियतमा अपने प्रेमी के गले का हार बन जाती है। हम दोनों एक दूसरे की बाहों में समाये कमरे में आ गए।

मैंने उसे बिस्तर पर लेटा दिया, वो अपनी जांघें थोड़ी सी फैला कर आँखें बंद किये लेटी रही। मेरा ध्यान उसकी बुर की सूज कर मोटी मोटी और लाल हो गई फांकों पर चला गया। मेरा तो मन करने लगा कि गांड मारने के बजाये एक बार फिर से इसकी बुर का ही मज़ा ले लिया जाए। ओह… इस समय उसकी बुर कितनी प्यारी लग रही थी।

मुझे आज भी याद है जब मैंने सिमरन के साथ पहली बार सम्भोग किया था तो उसकी बुर भी ऐसी ही हो गई थी।

मेरा मन उसका एक चुम्मा ले लेने को करने लगा। जैसे ही मैं नीचे झुकने लगा अंगूर बिस्तर पर पलट गई और अपने पेट के बल हो गई। उसके गोल गोल कसे हुए नितम्ब इतने चिकने लग रहे थे जैसे रेशम हों।

मैंने बारी बारी एक एक चुम्बन उन दोनों नितम्बों पर ले लिया। अंगूर के बदन में एक हलकी सी झुरझुरी सी दौड़ गई। मैं जानता था यह डर, रोमांच और पहली बार गांड मरवाने के कौतुक के कारण था।

मेरी भी यही हालत थी। मेरा पप्पू तो ऐसे तना था जैसे कोई फौजी जंग के लिए मुस्तैद हो। मैंने पास रखे टेलकम पाउडर का डिब्बा उठाया और उसकी कमर, नितम्बों और जाँघों के ऊपर लगा दिया और अपने हाथ उसके नितम्बों और कमर पर फिराना चालू कर दिया। बीच बीच में मैंने उसकी गांड के छेद पर भी अपनी अंगुली फिरानी चालू कर दी।

आप जरूर सोच रहे होंगे यार प्रेम अब क्यों तरसा रहे हो साली को ठोक क्यों नहीं देते।

ओह… मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ… बस थोड़ा सा सब्र और कर लो। आप तो सभी बहुत गुणी और अनुभवी हैं। आप अच्छी तरह जानते हैं कि पहली बार किसी कमसिन लड़की की कुंवारी गांड मारना और कितना दुश्कर कार्य होता है। पहले क्रीम और बोरोलीन से इसे रवां करके इस कसे और छोटे से छेद को ढीला करना होगा।

सबसे ज्यादा अहम् बात तो यह है कि भले ही अंगूर मेरे कहने पर गांड मरवाने को राज़ी हो गई थी पर अभी वो शारीरिक रूप से इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं हुई थी। जब तक वो पूरी तरह अपने आप को इसके लिए अंतर्मन से तैयार नहीं कर लेगी उसकी कोरी गांड का छल्ला ढीला नहीं होगा।

मैंने अंगूर के नितम्बों को एक बार फिर से थपथपाया और फिर उन्हें चूमते हुए कहा- अंगूर अपनी जांघें थोड़ी से चौड़ी करो प्लीज!’

मेरी बात सुनकर उसने एक बार मेरी ओर देखा और फिर अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर करते हुए अपने घुटनों को मोड़ कर उसने अपना सिर झुका कर अपने घुटनों पर ही रख लिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब जो आपस में जुड़े थे खुल गए और गांड का सांवले रंग का छोटा सा छेद अब साफ़ नज़र आने लगा। वह कभी खुल और कभी बंद होने लगा था। शायद रोमांच और डर के कारण ऐसा हो रहा था।

मैंने अपनी अंगुली पर वैसलीन की डब्बी से खूब सारी वैसलीन निकाली।
और उसकी गांड के छेद पर लगाने में लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया, वो बोली- बाबू… जरा धीरे करना… मुझे डर लग रहा है… ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?’

मैं तो उसके इस भोलेपन पर मर ही मिटा। ओह… वो तो शायद यही सोच रही थी की मैं थूक लगा कर एक ही झटके में अपना लंड उसकी गांड में घुसेड़ने की कोशिश करूँगा।

‘अरे मेरी रानी तुम चिंता क्यों करती हो मैं इस तरह से करूँगा कि तुम्हें तो पता भी नहीं चलेगा?’

अब मैंने उसके खुलते बंद होते छेद पर वैसलीन लगा दी और धीरे धीरे उसे रगड़ने लगा। बाहर से उसकी गांड का छेद कुछ सांवला था पर मैं जानता हूँ अन्दर से तो वो चेरी की तरह बिल्कुल लाल होगा। बस थोड़ा सा नर्म पड़ते ही मेरी अंगुली अन्दर चली जायेगी।

मुझे कोई जल्दी नहीं थी, मैंने थोड़ी क्रीम और निकाली और अपनी अंगुली का एक पोर थोड़ा सा गांड के छेद में डाला। छल्ला बहुत कसा हुआ लग रहा था।
वो थोड़ी सी कुनमुनाई पर कुछ बोली नहीं। मैंने अपनी अंगुली के पोर को 3-4 बार हौले हौले उसके छल्ले पर रगड़ते हुए अन्दर सरकाया। अब मेरी अंगुली का पोर थोड़ा थोड़ा अन्दर जाने लगा था।

मैंने इस बार बोरोलीन की ट्यूब का ढक्कन खोलकर उसका मुँह उसकी गांड के छेद से लगाकर थोड़ा सा अन्दर कर दिया और फिर उसे भींच दिया। ट्यूब आधी खाली हो गई और उसकी क्रीम अन्दर चली गई।
उसे जरूर यह क्रीम ठंडी ठंडी लगी होगी और गुदगुदी भी हुई होगी। जैसे ही मैंने ट्यूब हटाई उसका छेद फिर से खुलने और बंद होने लगा और उस पर लगी सफ़ेद क्रीम चारों और फ़ैल सी गई।

अब तो मेरी अंगुली बिना किसी रुकावट के आराम से अन्दर बाहर होने लगी थी। मैंने अपनी अंगुली पर फिर से क्रीम लगाई और उसके नर्म छेद में अन्दर बाहर करने लगा। मैंने अंगूर को अपनी गांड को बिल्कुल ढीला छोड़ देने को पहले ही कह दिया था। और अब तो उसे भी थोड़ा मज़ा आने लगा था। उसने अपनी गांड का कसाव ढीला छोड़ दिया जिससे मेरी अंगुली का पोर तो छोड़ो अब तो पूरी अंगुली अन्दर बाहर होने लगी थी।

अंगूर पहले तो थोड़ा आह… ऊँह… कर रही थी पर अब तो वो भी मीठी सीत्कार करने लगी थी। शायद उसके लिए यह नया अहसास और अनूठा अनुभव था। उसे यह तो पता था कि सभी मर्दों को गांड मारने में बहुत मज़ा आता है पर उसे यह कहाँ पता था कि अगर कायदे से (सही तरीके से) गांड मारी जाए और गांड मारने वाला अनाड़ी ना होकर कोई गुरु घंटाल हो तो गांड मरवाने औरत को चूत से भी ज्यादा मज़ा आता है।

दरअसल इसका एक कारण है। पुरुष हमेशा स्त्री को पाने के लिए प्रेम दर्शाता है पर स्त्री अपने प्रेमी का प्रेम पाने के लिए और उसकी ख़ुशी के लिए ही प्रेम करती है। जिस क्रिया में उसके प्रियतम को आनंद मिले वो कष्ट सह कर भी उसे पूरा करने में सहयोग देती है। अंगूर की मानसिक हालत भी यही बता रही थी।

हो सकता है अंगूर को गांड मरवाने में आने वाले आनंद का ना पता हो पर वो तो इस समय मुझे हर प्रकार से खुश कर देना चाहती थी। उसने रोमांच और नए अनुभव के आनंद से सराबोर होकर मीठी सीत्कारें करना भी चालू कर दिया था और अब तो उसने अपने हाथ का एक अंगूठा मुँह में लेकर उसे भी चूसना चालू कर दिया था। आह… मेरी मिक्की… तुमने तो नया जन्म ही ले लिया है?

कभी कभी वो अपने गांड के छल्ले को सिकोड़ भी लेती थी। उसकी गांड के कसाव को अपनी अंगुली पर महसूस करके मैं तो रोमांच से लबालब भर उठा। मेरा पप्पू तो झटके पर झटके मारने लगा था। बस अब तो जन्नत के इस दूसरे दरवाजे का उदघाटन करने का सही वक़्त आ ही गया था।

‘ओहो… बाबू अब करो ना… क्यों देर कर रहे हो?’

पढ़ते रहिए… कई भागों में समाप्य
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