पापा मम्मी की दूसरी सुहागरात -5
पापा का हाथ मम्मी की कमर से होता हुआ उनके पेटीकोट पर जा टिका, पापा ने एक झटके में ही मम्मी के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और मम्मी से बोले- सुरभि, थोड़ा कमर उठा ना!
किसी लड़की का नंगा बदन देखने को मिल जाए तो क्या कहने… ऐसे ही जवान भाभी, आंटी, गर्ल्स का नग्न शरीर देख कर मजा लूटने की कहानियां यहाँ पढ़ा कर मजा लें!
पापा का हाथ मम्मी की कमर से होता हुआ उनके पेटीकोट पर जा टिका, पापा ने एक झटके में ही मम्मी के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और मम्मी से बोले- सुरभि, थोड़ा कमर उठा ना!
नहीं.. आज हम दोनों भाई-बहन नहीं.. एक लड़का और लड़की हैं और हम दोनों को अभी एक-दूसरे की ज़रूरत है.. हम दोनों ने एक-दूसरे का सब कुछ देख लिया है और अगर मैं तुम्हारा भाई नहीं होता.. तो क्या तुम वो सब नहीं करतीं?
भाभी ने मेरे खड़े लंड को अपनी सफाचट चूत में डाल रखा था और वो ऊपर चढ़ कर मुझको बड़े मज़े से चोद रही थी। धीरे धीरे वो ऊपर नीचे हो रही थी और मेरे होटों को भी झुक कर चूस रही थी।
उसकी चूत के दोनों लबों को खोलते हुए मैं बोली- जाहिरा तुम्हारी चूत तो कल की बनिस्बत ज्यादा खुली हुई लग रही है.. जैसे किसी ने अपना मोटा लंड तुम्हारी चूत में डाल दिया हो?
सुमी मेरे ऊपर चढ़ी हुई थी और मेरे लंड को अपनी चूत के अंदर डाल कर हल्के हल्के ऊपर नीचे हो रही थी। सुमी एकदम नंगी थी और मैंने भी जब अपने को देखा तो मैं भी नंगा था। इधर उधर देखा तो कम्मो भी नंगी और साथ ही शांति भी पूरी नंगी थी।
मेरी गर्लफ़्रेन्ड मुझे अपनी सहेली के जन्मदिन की पार्टी में ले गई, लेकिन वहां हम तीनों ही थे। वाइन पीकर हम तीनों बहक गए और दोनों सहेलियाँ आपस में फ़्रेंच किस करने लगी।
अमर उसकी चूत चाट रहा था, विजय उसके होंठों को चूमे जा रहा था, संतोष और पप्पू उसके दोनों चूचों के पीछे पड़े थे, मधुर और राहुल उसके चूतड़ दबा रहे थे।
जहाँ पापा मम्मी के गुलाबी अधरों का रस पान कर रहे थे, वहीं मम्मी पापा के मुँह का रस पी रही थी और रोमाँच के कारण उनके मुँह से केवल उम्म... उम्ह... उम्ह की सिसकारी रूपी आवाजें निकल रही थी। अब पापा के हाथ मम्मी के ब्लाउज पर आ गए, पापा अपने हाथ मम्मी के उरोजों पर ब्लाउज के ऊपर से ही फिराने लगे।
दोनों बहनें अलग अलग अपने अपने बॉय फ्रेंड से चुदती रही, धीरे धीरे हम दोनों ने एक दूसरे को अपने अपने यारों से भी मिला दिया। वो दोनों भी आपस में दोस्त से बन गए।
प्रेमा और रानी दोनों ही गर्भवती हो चुकी थी तो वे दोनों आई और नंगी होकर मेरे लंड की पूजा की. उसके बाद कम्मो ने उन दोनों से मजाक में मेरा गुप्त विवाह करवाया.
'वाउ.. गुरूजी और रत्ना मैडम.. हम सोच रहे.. आप कहाँ रह गए हो.. और इधर आप दोनों तो यहाँ जंगल में नंगा दंगल कर रहे हो।' सब लोग हमें चुदाई में मस्त और व्यस्त देख कर ताली बजाने में लग गए और मुझे शर्म आ गई, मैंने अपनी गर्दन नीचे कर ली।
मैं और माँ चुदाई के मामले में खुल गए थे और अब दीदी को अपने खेल में शामिल करना चाह रहे थे। हमने मिल के योजना बनाई कि दीदी को माँ और मेरी चुदाई का पता लग जाए
अपनी सौतेली मॉम की चूत चाटने के बाद मॉम ने मेरा लण्ड चूसा फ़िर लण्ड पर चूत टिका कर चुदी। लेकिन घर आकर मैंने मॉम को उनके पूरे होशोहवास में कैसे चोदा, पढ़ें इस भाग में…
मैं और मेरी सहेली एक स्कूल में पढ़ाती थी। प्रिंसीपल की नजर मेरे ऊपर थी, मेरी सहेली भी कहती थी कि प्रिंसीपल मुझे घूरता है। आखिर एक दिन मैं उसके हत्थे चढ़ ही गई!
माँ अब काफ़ी खुल कर बातें करने लगी थीं, तो मैंने जानबूझ कर अंजान बनते हुए माँ की जांघों के ऊपर से नाईटी का बटन खोल कर हटा दिया जिससे उनके कमर के नीचे का हिस्सा नंगा हो गया और उनकी बुर को हाथों से छूते हुए कहा- अरे हाँ.. तुम्हारे तो लंड है ही नहीं.. लेकिन छेद कहाँ है..
मैंने उनकी साड़ी को कमर तक उठाया और अपना लंड डालने लगा लेकिन कई बार कोशिश करने के बाद भी नहीं गया तो मामी ने पूछा- पहली बार है क्या? रुको, मैं सिखाती हूँ।
मैंने अपनी नाइटी उतार दी और पूरी नंगी हो गई और झूठ मूठ के कीड़े को ढूंढने लगी। मैं जानबूझ कर अपनी चूत और मम्मे सेठ के मुंह के पास ले जा कर ढून्ढ रही थी कीड़ा।
भाई को चूची चुसवा कर मेरे पास आई तो जाहिरा को मैंने दबोच लिया उसकी चूची चूसने के साथ साथ मेरी नज़र जाहिरा की जाँघों के बीच में जाहिरा की अनछुई चूत पर थी।
मम्मी की चूत को चाटने में मुझे बहुत मजा मिल रहा था। थोड़े समय बाद मैं अपनी जीभ से मम्मी की चूत को जीभ से ही चोदने लगा और उनकी चूत से निरंतर निकलते रस का पान करने लगा। अब मम्मी की साँसें काफ़ी तेज हो गई थीं।
नयना ने झुककर दीप्ति की जाँघों पर पड़ा मेरा पूरा वीर्य चाट लिया और मैंने उसकी जीन्स की बटन खोल कर पैन्टी के साथ नीचे खींच ली। वॉऊ.. क्या चूतड़ थे नयना के.. एकदम राउंडेड.. चिकने और दूध की तरह मुलायम.. ! मैं उसके चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। अब वक्त था मेरी गाण्ड में ककड़ी जाने का…