रैगिंग ने रंडी बना दिया-73

(Ragging Ne Randi Bana Diya- Part 73)

पिंकी सेन 2017-11-11 Comments

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अब तक की इस बेटी से सेक्स कहानी में आपने पढ़ा था कि मोना ने उस नई कमसिन लड़की से गोपाल के पैरों की मालिश करवा के बीच में ही हटा दिया था, जिससे गोपाल लंड की मालिश करवाने की अधूरी चाह लेकर रह गया था.
अब आगे..

गोपाल समझ गया कि अब ये मानने वाली नहीं.. तो सोने में ही भलाई है. उसने मोना को बाहर जाने को कहा और सो गया.

मोना- नीतू, जरा मेरे पास इधर तो आ.
नीतू- हाँ दीदी बोलो, क्या हुआ, जीजू को मेरा पैर दबाना अच्छा लगा क्या?
मोना- हाँ अच्छा लगा मगर वो थोड़े नाराज़ भी हैं.. तुम्हें ऊपर करने को कहा तो तुम क्यों नहीं कर रही थीं?
नीतू- व्व..वो दीदी और ऊपर करती तो जीजू की लुल्ली से हाथ लगता.. उनकी वो एकदम खड़ी हुई थी.

मोना- अच्छा, तुझे ये भी पता है. मैं तो समझी थी कि तू भोली है और लुल्ली खड़ी थी ये तुझे कैसे पता चला?
नीतू- दीदी पहले पता नहीं था.. अभी कुछ महीने पहले ही मुझे पता लगा.
मोना- कैसे पता लगा.. जरा मुझे भी बता.. तो मैं भी तो देखूं कि तुझे क्या-क्या पता है?

नीतू- वो हमारे घर के पास नाला है, सब आदमी उसी में मूतते हैं, तो कई बार उनकी लुल्ली देखने को मिल जाती है. फिर हमारे घर के पास बड़ी लड़कियां उनके बारे में बातें करती हैं कि इसका बड़ा है और इसका देखो खड़ा है. बस उन्हीं से पता लग गया. इससे ज्यादा मुझे और कुछ नहीं पता.
मोना- ओह ये बात है.. अच्छा वो सब चुदाई की बातें भी करती है क्या?
नीतू- ये क्या होती है दीदी, मैंने नहीं सुनी.

मोना समझ गई थी कि नीतू को ज़्यादा कुछ पता नहीं है, ये कोरा कागज है. अब तू इस पर जो चाहे वो लिख सकती है.

मोना- देख नीतू जैसे पैर दुख़ते हैं ना.. वैसे लुल्ली भी दुखती है. अबकी बार जीजू कहे तो दबा देना और उनसे ये मत कहना कि मैंने कहा था.. समझ गई ना?
नीतू- ठीक है दीदी दबा दूँगी… मगर मेरी माँ कहती है आदमी की लुल्ली की बात नहीं करना चाहिए.. ये गंदी बात होती है.
मोना- अरे तेरी माँ को क्या मालूम. उसको जाने दे, तू यहाँ काम करने आई है ना.. तो बस मन लगा कर काम कर मेरी सारी बातें मानेगी ना.. तो मैं तुझे ज़्यादा पैसे दूँगी.

पैसों का नाम सुनकर नीतू खुश हो गई. अब गरीब के लिए तो पैसा ही सब कुछ है और बेचारी भोली-भाली नीतू क्या जाने कि पैसों के चक्कर में उसकी चुत की सील टूटने वाली है.

नीतू- अच्छा दीदी मैं अबकी बार जीजू की लुल्ली दबा दूँगी.
मोना- गुड गर्ल.. अच्छा सुन तेरे जीजू जैसे जैसे कहें, तू करना. तुझे बहुत मज़ा आएगा और आज रात मैं तुझे एक खेल खेलना भी सिखाऊंगी. फिर हम दोनों मिलकर मज़ा करेंगे.

मोना ने नीतू को अपनी बातों के जाल में फँसा लिया. फिर वो उसे साथ लेकर बाजार से कुछ सामान लेने चली गई.

उधर सुमन के दिमाग़ में शैतानी आइडिया आ गया था. अब पता नहीं ये भोली भाली सुमन को क्या हो गया. ऐसे अचानक इतनी तेज कैसे हो गई. इसका एक कारण तो हम सब जानते हैं कि टीना की संगत का असर था और दूसरा उसने ऐसे-ऐसे टास्क कर लिए थे, जिससे उसकी वासना जाग गई थी. मगर अपने बाप के लिए ऐसे सोचना.. इसका सबसे बड़ा कारण इंसानी प्रवृति है. अक्सर हम दूसरों के मुक़ाबले अपने किसी करीबी से ज़्यादा उत्साहित होते हैं, इसे शैतानी दांव भी कहते हैं. अब जो भी है.. हमें उससे क्या. चलो ज्ञान बहुत हो गया अब कहानी का मजा लेते हैं.

सुमन ने मेनडोर अनलॉक किया हुआ था और खिड़की से छुपकर वो अपने पापा के आने का इन्तजार कर रही थी.

सुमन- ओह पापा कहाँ रह गए, आ जाओ ना जल्दी से.. आपके लिए अभी तक मैं नहाई भी नहीं हूँ. आज मैं आपको अपना जिस्म दिखाना चाहती हूँ. मैं आपकी सोई हुई अन्तर्वासना आज जगा दूँगी. फिर आप किसी को भी चोदने को राज़ी हो जाओगे.

सुमन ये बातें सोच ही रही थी तभी उसे पापा आते हुए दिखाई दिए. वो जल्दी से भाग कर अपने कमरे के बाथरूम में चली गई और अपने कपड़े निकाल दिए.

जैसा सुमन ने सोचा, ठीक वैसा ही हुआ. गुलशन जी अन्दर आए और बिना आवाज़ किए वो सीधे सुमन के कमरे में आ गए. शायद उनके मन में भी चोर था. सुमन ने की-होल से उन्हें आता देखा तो पानी का शावर चालू कर दिया और मज़े से गुनगुनाते हुए नहाने लगी.

गुलशन जी धीरे से की-होल के पास बैठ गए और जैसे ही उन्होंने अन्दर देखा, उनका लंड एक झटके में खड़ा हो गया.. जैसे कोई बरसों का प्यासा हो.

सुमन के जवान जिस्म को देख कर गुलशन जी के अन्दर वासना भर गई. उनका दिल करने लगा कि अभी अन्दर जाकर उसके खड़े निपल्स को चूस के उसके मदमस्त चूचों को मसल डालें और उसकी कुँवारी चुत का सारा रस पी जाएं. मगर बीच में जो बाप और बेटी के रिश्ते की दीवार थी.. उसको कैसे तोड़ें.

गुलशन जी ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और सुमन की सुलगती जवानी को देखते हुए वो लंड को सहलाने लगे.
सुमन को पता था कि बाहर उसके पापा उसकी जवानी का मज़ा लूट रहे हैं. ये सोचकर उसके निप्पल हार्ड हो गए, चुत में खुजली होने लगी मगर उसने अपने आप पर काबू रखा. सुमन ये बिल्कुल नहीं चाहती थी कि अपने पापा के सामने वो चुत को रगड़े या कुछ ऐसी हरकत करे, जिससे उसके पापा उसे गंदी लड़की समझें. वो तो बस अनजान बन कर अपने पापा को मज़े देना चाहती थी.

जब सुमन नहा चुकी तो उसने अपने जिस्म को अच्छे से पौंछा और सिर्फ़ टॉवल लपेट कर वो बाहर आ गई. तब तक गुलशन जी वहां से बाहर निकल गए थे और फिर उन्होंने बाहर से सुमन को आवाज़ दी, जैसे वो अभी-अभी घर में दाखिल हुए हों.

गुलशन- सुमन कहाँ हो तुम? देखो मैं जल्दी आ गया ना.
सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया और बस मुस्कुराते हुए धीरे से बोली- वाह पापा, मेरे जिस्म को देख कर आँखें सेंक ली, अब बहाना बना रहे हो. वैसे आपका लंड भी तो मेरी चुत की तरह फड़क रहा होगा, उसे तो मैं ही अपने मुँह से चूस-चूस कर ठंडा करूँगी. देखना आप.
सुमन- मैं नहा रही थी पापा.. बस अभी कपड़े पहन कर आती हूँ.
गुलशन- अरे घर में ही तो रहना है, कपड़े पहनने की क्या जरूरत है.

गुलशन जी को पता नहीं क्या हो गया था. वो कुछ भी बोल रहे थे मगर फ़ौरन उन्हें अहसास हुआ तो बात बदल दी.
गुलशन- एमेम… मेरा मतलब है जल्दी से कुछ भी पहन ले.. कोई घर में पहनने लायक कपड़े.. समझ गई ना..!
सुमन- ओके पापा, बस अभी एक मिनट में आई.

सुमन ने अपने कपड़ों में से एक कॉटन की मैक्सी निकाली और पहन ली. इसके अन्दर उसने कुछ नहीं पहना था.

सुमन- ये लो आ गई. पापा इस मैक्सी में मैं कैसी लग रही हूँ?
गुलशन- वाह बहुत अच्छी लग रही हो मगर ये तो वो पुरानी वाली है ना?
सुमन- हाँ पापा मगर ये पतली है.. तो इसमें आराम रहता है और वैसे भी आज मैंने ये बहुत दिनों बाद पहनी है.
गुलशन- अच्छी बात है.. चल तेरे बाथरूम का लॉक लगा देते हैं, देख मैं नया ले आया हूँ. उसके बाद बैठ कर बातें करेंगे.
सुमन- पापा पहले आप कपड़े तो बदल लो, ऐसे पैन्ट पहन कर काम करोगे क्या?

गुलशन जी को लगा सुमन सही बोल रही है और वैसे भी उनका इरादा उसके मज़े लेने का था तो पैन्ट में मज़ा नहीं आता, इसलिए वो अन्दर गए और सिर्फ़ लुंगी और बनियान पहन कर आ गए, उसके बाद बाथरूम का लॉक लगा दिया.

गुलशन- ले भाई, ये काम तो हो गया, अब बोल?
सुमन- पापा, पहले आप मेरे साथ कितना रहते थे मगर अब तो आप बहुत बिज़ी रहते हो.. मेरे साथ खेलते ही नहीं.
गुलशन- अरे मेरा तो बड़ा मन है तेरे साथ खेलने का.. मगर डर लगता है.
सुमन- कैसा डर पापा..? मैं आपकी बात का मतलब कुछ समझी नहीं.
गुलशन- व्व..वो मेरा मतलब है तुझे कोई चोट ना लग जाए इसलिए.
सुमन- हा हा हा हम कौन सा कुश्ती लड़ने वाले हैं जो चोट लगेगी.
गुलशन- हाँ ये भी है. चल आज तेरे मन की बात पूरी करते हैं, बोल क्या खेलेगी?

सुमन सोचने लगी कि ऐसा कौन सा खेल खेले, जिससे वो पापा को मज़ा दे सके और उनका लंड भी देख सके. रात से उसके मन में ख्याल था कि पापा का लंड कैसा होगा.

सुमन- कुछ समझ में नहीं आ रहा पापा क्या खेल खेलूँ.
गुलशन- अरे अभी तो बोल रही थी खेलते नहीं. अब खुद ही सोच में पड़ गई. चल ऐसा कर मैं तुझे गोदी में बिठा कर झूला झुला देता हूँ और तेरे सर की मालिश भी कर दूँगा. बोल क्या कहती है.

सुमन मन में- अच्छा पापा बड़ी जल्दी है आपको मज़ा लेने की.. मेरी चुत से लंड टच करना चाहते हो क्या.

गुलशन- अरे कुछ तो बोल.. हाँ या ना.. ऐसे पुतला बन कर क्यों खड़ी हो गई..?

गुलशन जी की बात सुनकर सुमन के दिमाग़ में एक आइडिया आया- वाउ पापा क्या आइडिया दिया है, ये मस्त है इसमें मज़ा आएगा.
गुलशन- अरे क्या आइडिया आया मुझे भी बता.
सुमन- पापा हम एक खेल खेलते हैं जिसमें एक पुतला बन जाएगा और दूसरा उसके जिस्म से छेड़खानी करेगा, लेकिन उसको हिलना नहीं है. वो सिर्फ़ बोल सकता है. ये टाइम देख कर खेलेंगे जो ज़्यादा देर तक टिका रहा, वो जीत जाएगा और हारने वाले की बात मानेगा.
गुलशन- नहीं नहीं, इसमें कुछ मज़ा नहीं आएगा थोड़ी सी गुदगुदी की और खेल खत्म.. कुछ और सोच, जिसमें मज़ा आए.

सुमन ने थोड़ी देर सोचा मगर उसके दिमाग़ में कोई आइडिया नहीं आया, जिससे वो खेल के बहाने पापा को मज़ा दे सके. साथ ही गुलशन जी भी इसी सोच में थे कि कैसे वो सुमन को लंड चुसवाए, उनके दिल में बस यही बात थी कि एक बार सुमन उनका लंड चूस दे और वो उसके निपल्स चूस सकें.

सुमन- मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा आप सोचो, मुझे तो भूख लगने लगी है. मैं फ़्रीज़ से केला लेकर आती हूँ. आपको भी एक लाकर दूँ क्या.

केले का नाम सुनते ही गुलशन जी के दिमाग़ की घंटी बजी और एक ज़बरदस्त आइडिया उनके दिमाग़ में आ गया.

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बेटी से सेक्स कहानी जारी है.

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