खट्टे अंगूर और संतरों का रस

(Khatte Angoor Aur Santron Ka Ras)

दोस्तो, आज में मेरी पहली कहानी लिखने जा रहा हूँ.. कोई भूल चूक हो तो माफ कर दीजिए।

मैं एक साधारण सा लड़का हूँ.. जो कि पढ़ाई में ध्यान देता और घर के छोटे-मोटे काम भी कर देता था। ज़िंदगी एक सीधी सी रेखा की तरह चलती जा रही थी.. जिसका कोई अंत ना हो.. पर किसे पता था कि कब मेरी यह सीधी सी ज़िंदगी ऐसा रुख़ बदलेगी कि आज मुझे यह कहानी लिखनी पड़ी है।

मैं अपनी युवावस्था की दहलीज़ पर था और मुझे जवान होने का एहसास होने लगा था, मन में किसी भी युवती को देख कर मुझे भी उसकी जवानी के आगोश में खोने का मन होता था।
मैं हर वक़्त किसी ना किसी लड़की को चोदने के ख्यालों में डूबा रहता था.. पर कभी हिम्मत नहीं कर पाता था।

मेरी क्लास में एक लड़की पढ़ती थी.. जो कि थोड़ी सी चुलबुली थी.. पर सिर्फ़ अपने दोस्तों के ही साथ!
जिस्म उसका ऐसा कि.. मन में अन्तर्वासना जगा दे और क्या कहूँ.. रस टपकता था उसके जिस्म से..

उसकी नज़र तो कभी मुझ पर नहीं पड़ी.. पर मैं हर वक़्त उसे देखता रहता था, हर वक़्त उसके जिस्म की नुमाइश देखता रहता था। इस बात से बेख़बर कि किसी और की नज़र मुझ पर है।

एक दिन मेरी ही क्लास की एक और लड़की जिसका नाम ऋतु था.. उसने मुझसे आकर कहा- जिन अंगूरों को तुम खाना चाहते हो.. वो नहीं मिलने वाले.. पर रस भरे संतरे तुम्हारे लिए तरस रहे हैं।

मुझे उस वक़्त वो बात समझ नहीं आई.. पर कुछ दिन बाद फ़ेसबुक पर ऋतु का मैसेज मिला.. उसमें लिखा था कि संतरों का रस पीना हो.. तो मुझसे मिलो।
मैंने उससे कहा- ठीक है.. कहाँ मिलना है?
उसने कहा- जहाँ तुम चाहो।

मैंने सोचा कि यह सच में जूस पिला रही होगी.. तो मैंने कहा- मार्केट में मिलूं?
तभी उसने मैसेज किया- यह रस अकेले में पीने का है.. तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारा घर कब खाली होता है?
मैंने जवाब में लिखा- सुबह नौ बजे से शाम के पाँच बजे तक..
उसका जवाब आया- मैं कल तुम्हारे घर आ रही हूँ.. कॉलेज मत जाना।

मैंने उससे ‘हाँ’ बोल दिया… इस बात से बेख़बर कि जिस को में संतरे का जूस समझ रहा हूँ.. वो तो कुछ और ही है।

अगले दिन वो ठीक दस बजे मेरे घर पहुँच गई।
मैंने उसे सोफे पर बैठने को कहा और अन्दर पानी लाने चला गया। उसे पानी का गिलास दिया और उसके सामने बैठ गया।
मेरा ध्यान उसके बदन पर कभी नहीं गया.. क्योंकि मैं एक बेवकूफ़ आशिक़ की तरह किसी और के नाम की मुठ्ठ मारता था।

उसने आधा गिलास पानी ही पिया और मुझसे कहा- नेहा जिसे तुम चोदने के सपने देख रहे हो.. वो तो किसी और के लण्ड पर कूदती है।
उसकी इस खुल्लम-खुल्ला बात को सुन कर मैं दंग रह गया।

मैं कुछ बोलूँ.. उससे पहले वो खड़ी हुई और हाथ में वो पानी की गिलास लिए हुए मेरे पास आ गई, वो धीरे से नीचे बैठी और कहा- मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ और तुम्हारी हर ज़रूरत को पूरा करूँगी।

इतना कहते ही उसने वो पानी का गिलास अपने चूचों पर गिरा दिया।

मेरी नज़रें उसके उभरे हुए चूचों पर गईं तो मैं दंग रह गया.. उसके मम्मे ज़्यादा बड़े तो नहीं थे.. पर मुझ जैसे मुठ्ठ मार का लण्ड खड़ा करने के लिए काफ़ी थे। उसके गिलास में तो अब भी कुछ पानी बचा था.. जो उसने मेरे सर पर डाल दिया।
मैं खुद को काबू ना कर सका और उस पर टूट पड़ा।

उसके दोनों चूचों को मैं ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था और वो मुझे पागलों की तरह चूम रही थी। फिर कुछ ऐसा हुआ कि मेरा लण्ड बेकाबू सा हो गया। उसके नरम होंठ मेरे होंठों से टकरा गए और मैं उससे पागलों की तरह चूमने लगा। उसके रस भरे होंठ इतने रसीले थे कि हम दोनों को पता भी नहीं चला कि कब हम सोफे पर आ गए।

मैंने उसका टॉप उतार फेंका.. और उसकी ब्रा खोलने की कोशिश में उसका हुक टूट गया और उसके रसीले संतरे बाहर आ गए।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
हम दोनों की एक बार आँख मिली.. हवस फिर से जाग उठी और मैं एक हाथ से उसका चूचा दबा रहा था और दूसरा चूचा चूस रहा था।

उसके हाथ मेरी कमर पर कभी मेरे बालों में थे। दस मिनट तक यह सब चलता रहा.. फिर शायद वो बहुत गरम हो गई थी। उसने अपने जीन्स उतार फेंकी और मुझ पर सवार हो गई।

वो लगातार अपनी चूत को मेरे लण्ड पर दबा रहती थी और पागलों की तरह मुझे चूम रही थी। उसके हाथ अपने आप मेरे लोवर और कब मेरे लण्ड तक पहुँच गए.. पता ही नहीं चला।

अब मैं और वो दोनों नंगे एक-दूसरे के जिस्म की गर्मी को महसूस कर रहे थे। उसकी गरम साँसें मेरी छाती पर लग रही थीं.. जो रह-रह कर मेरे लण्ड के सुपारे को फुला रही थीं।

अब मैं बेकाबू सा हो रहा था.. मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसे उठाया और उसकी पैन्टी को उतार फेंका।
उसकी पैन्टी गीली हो चुकी थी.. जिसमें से एक मदहोश करने वाली खुश्बू आ रही थी.. जिससे मैं और भी पागल हो गया।
मैंने उसकी चूत को चाटना चाहा.. पर उससे रूका नहीं गया और मुझे ऊपर खींच लिया और कहा- पहले डाल दो.. अब मैं नहीं रुक सकती।

मैंने लण्ड सीधा उसकी चूत में डालने की कोशिश की.. पर मेरा सुपारा चूत पर लगते ही टमाटर की तरह फूल गया.. अन्दर ही नहीं घुस रहा था।
मैंने फिर से कोशिश की और ज़ोर से झटका लगाया और ‘घप्प..’ से मेरा सुपारा उसकी चूत में समा गया।

वो दर्द से तिलमिला उठी.. उसने मुझे हटाना चाहा.. पर मुझ पर इतनी हवस सवार थी कि मैंने उसे बहुत ज़ोर से पकड़ा हुआ था। उसका दर्द कुछ कम हुआ हुआ तो मैंने एक और ज़ोर का झटका लगाया और लण्ड आधे से ज़्यादा चूत में समा गया।
दर्द में ऋतु ने अपने नाख़ून मेरी कमर में गड़ा दिए, उसके मुँह से ‘उऊह.. उऊह..’ की आवाज़ आ रही थी। मैं उसे गर्दन पर बेतहाशा चूम रहा था.. साथ ही बीच-बीच में धीरे-धीरे लण्ड चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था।

उसके मुँह से ‘उऊह.. उऊह..’ की आवाज़ बढ़ती ही जा रही थी। लड़की के मुँह से निकली हुई यह आवाज़ इतनी मदहोश करने वाली होती हैं कि अन्तर्वासना अपनी चरम सीमा तक पहुँच जाती है। मैं भी इसी आगोश में समा गया और पागलों की तरह ‘घचके’ लगाने लगा और ऋतु भी मेरा इसमें साथ देने लगी।

करीब बीस मिनट बाद हम दोनों का एक साथ रस छूट गया। मेरा लावा उसकी चूत में भर गया और उसकी चूत पानी-पानी हो गई। फिर हम दोनों एक-दूसरे से करीब दस मिनट तक यूँ ही चिपके रहे.. शाम को चार बजे तक दो बार और चुदाई हुई।

कैसे मेरी ज़िंदगी ने एक और मोड़ लिया मेरी अगली कहानी में लिखूंगा।
आशा करता हूँ कि मेरी यह सत्य घटना आपको पसंद आई होगी।
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