निरंकुश वासना की दौड़- 6

(Ek Lund Do Chut Ki Kahani)

एक लंड दो चूत … एक अपनी बीवी की चूत तो दूसरी दोस्त की बीवी की चूत … दोनों चूतों को खुश करना था. चूत के साथ गांड भी होती है. और अगर लड़की को गांड मरवाने का शौक हो तो …

कहानी के पंचम भाग
सुप्त संध्या का उन्मुक्त अवतार
में अब तक आपने पढ़ा कि नीलम अपनी नए लंड की तलब मिटाने, अपने पति के मित्र निखिल से चुदवाने मुंबई पहुंचती है।
उसकी पत्नी संध्या के साथ लेस्बियन संबंध स्थापित कर के, उसको कामातुर बनाने के लिए कामक्रीड़ा पर उसकी विभिन्न जिज्ञासाओं को शांत करती है। संध्या और निखिल के साथ स्वैपिंग का खेल खेलती है। उसके बाद उन्मुक्त हो चुकी संध्या, सुनील और नीलम के साथ जीवन में नए आनन्द की खोज में गोवा जाने के लिए तैयार हो जाती है।

अब आगे एक लंड दो चूत की कहानी:

रात में सुनील के लंड से दो बार चुदवा के तृप्त हुई संध्या, सुनील की बाहों में मीठी नींद सो गयी।

सुबह संध्या सुनील की बांहों से निकली, फ्रेश होकर आई तो देखा कि रात भर के विश्राम के बाद सुनील का लंड फिर तन्नाया हुआ संध्या को सलामी दे रहा था।

रात में दो-दो बार की मस्त चुदाई से उपकृत संध्या के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और कुछ सोच कर उसने अपनी गांड में ढेर सी चिकनाई लगाई और सुनील के लंड को पकड़ के सीधा किया और उस पर बैठती चली गई।

संध्या के दबाव डालने के कारण निखिल के लंड का चमकदार सुपारा, संध्या की गांड के छिद्र को चौड़ा करते हुए भीतर समाने लगा।

संध्या की गांड निखिल के लंड की तो अभ्यस्त थी लेकिन सुनील का लंड अपेक्षाकृत अधिक मोटा था।
सुनील के गदराए लंड की गोलाई को संध्या की गांड की रिंग ने कस लिया था।

सुनील की नींद खुल गई उसे सुखद अहसास हुआ कि उसका लंड संध्या ने स्वेच्छा से अपनी गांड में ले लिया है.

उसने मुस्कुरा कर संध्या से पूछा- यह सुबह-सुबह तुमको गांड मरवाने की क्या सूझी?
इस पर संध्या ने मुस्कुरा कर जवाब दिया- कल रात में तुमने जो जी तोड़ मेहनत की थी और मेरे को पहली बार मेरी जिंदगी के कई बेहतरीन ऑर्गेज्म दे कर खुश किया था इसलिए मैं तुम्हें उस कारनामे का ईनाम अपनी गांड के रूप में तुम्हें दे रही हूं।

संध्या ने पूछा- क्यों, इनाम पसंद नहीं आया क्या?
इस पर सुनील ने जवाब दिया- अरे यार संध्या, कैसी बात कर रही है? दुनिया में ऐसा कौन सा मर्द होगा जिसको किसी नई औरत की, पहली बार गांड मारने में मजा नहीं आता होगा?

सुनील ने संध्या के स्तनों को सहलाना और दबाना शुरू किया तो संध्या अपनी गांड की खुजली को मिटाने के लिए कमर हिलाने लगी।
उसको अपनी गांड में सुनील के मोटे लंड के रगड़े सुहा रहे थे।

उसने अपने एक हाथ को चूत पर ले जाकर चूत को तेजी से सहलाना शुरू किया और सुनील के लंड पर उछलती रही।

उसके बाद वह अपने भगांकुर को लगातार छेड़ती रही।
यहां तक कि उसकी चूत फिर से झड़ने को तैयार हो गई।

सुनील भी नीचे चित लेटा हुआ अब सक्रिय हो गया था और अपनी कमर को उछाल-उछालकर संध्या की सुडौल गांड मारने का मजा ले रहा था।
अंततः संध्या की मेहनत रंग लाई और उसकी चूत जोर जोर से फड़कना शुरू हुई।

उसका प्रभाव संध्या की गांड तक पहुंच रहा था।
चूत के साथ गांड में भी संकुचन और विमोचन होने से सुनील के लंड को नई सनसनी मिली तो सुनील ने उछलती हुई संध्या को थामा और अपने लंड पर दबाव डालकर बिठा दिया और खुद ने ऊपर की ओर जोर लगाया।

सुनील के लंड ने संध्या की गांड की गहराई में वीर्य का एनिमा लगा दिया।
काफी देर तक संध्या और सुनील इस आनन्द को महसूस करते रहे।

सुनील का लंड कुछ देर में नर्म पड़कर, संध्या की गांड से फिसल के बाहर निकला आया।

उसके बाद जैसा कि एनिमा लगने के बाद होता है, संध्या को दौड़ के टॉयलेट की ओर भागना पड़ा।

सुनील ने अपने लंड को नैपकिन से पौंछा।
वह सुबह-सुबह एक परस्त्री की गांड मार कर बहुत प्रसन्न था.

उसको भी अब टॉयलेट जाना था।

सुनील ने जब टॉयलेट में प्रवेश किया तो संध्या टॉयलेट सीट पर बैठी पड़ पड़ की आवाज के साथ, सुनील का वीर्य अपनी गांड से बाहर निकाल रही थी।
सुनील यह दृश्य देखकर हंस पड़ा तो संध्या झेंप गई और बड़े लाड़ से बोली- कमीने!

उधर निखिल मेरी एक बार चुदाई करके जो सोया तो सुबह ही उठा।

मैं अभी सो ही रही थी.
उसके उठने पर मेरी नींद भी उचटी, मैंने देखा सुबह भी निखिल का लंड पूरी तरह से तैयार नहीं था।

जैसे उसके शरीर में ऊर्जा की कमी होने से वह कई कई दिनों तक संध्या को नहीं चोद पाता है, उसी प्रकार यहां भी उसकी यह इच्छा नहीं हुई कि वह मेरे जाने के पहले कम से कम एक बार और मेरी चुदाई करे।

वह टॉयलेट जाकर बेडरूम से बाहर निकल गया और सबके लिए किचन में जाकर चाय चढ़ा दी।

संध्या, सुनील और मैं जब उठकर बाहर आए तो हम तीनों के चेहरे खिले हुए थे।

संध्या की नजर जब मेरे से मिली तो संध्या ने आंख मार दी।
मैं समझ गई कि संध्या ने जी भर के मेरे सुनील के नए लंड का आनन्द लूटा है।

मैंने देखा कि संध्या का चेहरा दमक रहा था.

फिर संध्या ने मेरे से पूछा- तेरी रात कैसी गुजरी? कितनी बार चुदी?
मैंने कहा- ठीक रही, नए लंड के मजे लिए लेकिन बस एक बार। एक बार चोदने के बाद निखिल जो सोया तो मेरे उठने के पहले ही वह बिस्तर छोड़कर जा चुका था।

संध्या ने आश्चर्य से कहा- बस एक बार?

इस पर संध्या ने निखिल को कहा भी- क्या यार निखिल, तुमको नई चूत मिली, उसका भी पूरी तरह से आनन्द नहीं लिया तुमने?
निखिल झेंप गया और बोला- अरे यार दिन में भी तो दो बार चोदा था, मूड नहीं बन पाया। अब छोड़ … रात गई, बात गई। तूने क्या किया सुनील के साथ?

संध्या निखिल की गांड जलाते हुए बोली- मैंने तो खूब मजे लिए। दो बार तो रात में चुदी और अभी सुबह सुबह गांड मरवा के आ रही हूं और तीनों बार मस्त ऑर्गेज्म दिया सुनील ने!

निखिल अपनी पत्नी संध्या के इस कामुक अवतार को देखकर दंग रह गया।

फिर वह बात पलटते हुए कहने लगा- चाय तैयार है, चलो चाय पीते हैं।

उसके बाद संध्या ने निखिल को बताया- मैं नीलम के साथ गोवा जा रही हूं। तुम चलना चाहते हो?
जैसी कि उम्मीद थी, निखिल ने बोला- नहीं यार, मेरा जाना तो मुश्किल है।

संध्या बोली- तो ठीक है, मैं तो जा रही हूं।
निखिल ने कहा- ओके, जाओ, एंजॉय करो।

नाश्ता करने के बाद सुनील, मैं और संध्या गोवा के लिए निखिल की कार से रवाना हुए।
रास्ता लम्बा था करीब 600 किलोमीटर … पर सुनील को लॉन्ग ड्राइव में मजा आता है.

निखिल के सामने ही संध्या आगे की सीट पर बैठी।
कार सुनील ड्राइव कर रहा था और पीछे मैं बैठी थी।

यह इस बात का संकेत था कि संध्या जी भर के सुनील के लंड के मजे लेने वाली है।

चूंकि निखिल कल तीन बार मेरे को चोद के शारीरिक रूप से पस्त था और मानसिक तौर पर पूरी तरह वासना से रिक्त, इसलिए उसे न अच्छा लगा, न ही बुरा। मुस्कुराते हुए सुनील ने कार आगे बढ़ा दी और तीन कामुक और लालसा से भरे हुए जिस्म गाते, गुनगुनाते, नॉनवेज जोक्स सुनते सुनाते, गोवा की ओर चल पड़े, मस्ती की नई ऊंचाइयों को छूने।

सुनील गाड़ी ड्राइव करते-करते, जब भी मौका मिलता, संध्या के स्तनों को दबा देता।

संध्या अब एक एक पल को जीना चाहती थी, उसने अपने टॉप के बटन खोलकर पर्याप्त जगह बना दी थी जिससे सुनील टॉप के अंदर डाल हाथ डालकर उसके मम्मों को सहला सके, उनके साथ खेल सके।

टॉप के अंदर उसने ब्रा भी नहीं पहनी थी और नीचे केवल स्कर्ट पहनी थी, पैंटी नहीं।

सुनील थोड़ी देर तो स्तनों से खेलता रहा, उसके बाद उसका हाथ जब संध्या के नीचे गया तो उसने स्कर्ट को ऊपर की ओर सरकाया।

संध्या ने अपनी मांसल जांघों को फैला दिया और जब जांघों के जोड़ पर सुनील ने हाथ रखा तो वह चौंक गया, उसका हाथ संध्या की गीली और गर्म चूत पर जा पहुंचा था जो लगातार पानी छोड़ रही थी।

सुनील ने चूत पर उंगलियां फेरी तो वे चूत रस में भीग गई।

र्भी सुनील ने संध्या की चूत रस में डूबी हुई उंगलियों को अपने मुंह में ले कर नमकीन दिव्य रस का स्वाद लिया।
पीछे बैठी मैं, उन दोनों दीवानों की हरकतें देख कर गर्म हो रही थी।

अपनी चूत पर हाथ लगाकर, दबा दबा के मैं अपनी वासना को नियंत्रित करने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
मैं बड़बड़ाने लगी- अरे कोई मेरा भी ध्यान रखो यार! तुम्हारी हरकतें देख देख कर मेरी चूत सुलग रही है और गांड भी जल रही है।

इस बात पर हम तीनों हँस पड़े।
मैंने संध्या की सीट को पीछे की ओर झुकाया और उसके उरोजों से खेलने लगी.

सीट पीछे झुकने से सुनील के सामने संध्या की कमर का निचला हिस्सा आ गया.
स्कर्ट ऊपर उठ चुकी थी और संध्या सुनील को अपनी बिना झांटों वाली चिकनी चूत दिखा कर ललचा रही थी।

सुनील का लंड अंगड़ाइयां लेने लगा और उसके होठों में सरसराहट होने लगी।
उसकी जुबान संध्या की चूत का रसास्वादन करने के लिए मचलने लगी।

उसने कुछ सोच कर सड़क के एक साइड वे में कार रोकी और संध्या की सीट की तरफ जा के उसकी चूत चाटने लगा।

उसने और संध्या ने इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं की कि चलते ट्रैफिक में डिवाइडर की दोनों ओर आते जाते ट्रक वाले, उनकी हरकतों को देख रहे थे।
वे कुछ कर भी नहीं सकते थे सिवाय इसके कि वे इस जीवंत पोर्न फिल्म को देख कर अपने तन्नाये हुए लंड को मुठ मार के शांत करें।

संध्या, सुनील और मैं तीनों इस अत्यधिक उत्तेजक खेल से, एक अजीब सी सनसनी भरी अनुभूति का आनन्द ले रहे थे।

अब संध्या की तो बुद्धि काम नहीं कर रही थी, वह सोच रही थी कि अब तक उसने कैसी नीरस ज़िंदगी व्यतीत की है? काश मैं और सुनील उसको पहले मिल जाते तो उसकी मादक जवानी के इतने बरस यूं बर्बाद नहीं होते।

यह सच है कि बीता हुआ समय लौट नहीं सकता किन्तु वर्तमान समय और आने वाले समय के हर एक पल को भरपूर आनन्द के साथ जीया जा सकता है।

मेरा, मेरे सभी प्रशंसकों, पाठकों और पाठिकाओं से बार-बार यही आग्रह है कि आप सब पाखंड से बचें।
जो आपका शरीर, जो आपका दिल, जो आपका दिमाग चाहता है, उसे अपने साथी को बताएं और मिलजुल कर, जितना हो सके जिंदगी का मजा बढ़ायें, जितना हो सके उतना आनन्द उलीचें।

जब संध्या सुनील के ओरल से एक बार झड़ गई तो सुनील ने उसकी चूत रस में भीगे होंठ मेरे होठों पर रख के मुझे भी संध्या की चूत का स्वाद दिलाया।
संध्या यह दृश्य देख कर मस्ती में झूम उठी और मेरे गले से लग गई।

मैंने कहा- चल री गर्म कुतिया, अब तू पीछे आ जा और मेरे को मेरे कुत्ते के साथ मजे करने दे।
संध्या ने कहा- चल तू भी क्या याद करेगी, जा मैंने अपने यार को तेरे हवाले किया।
मैंने कहा- साली, सुनील तेरा यार बाद में है, पहले तो मेरा पति है।

इस पर संध्या बोली- तेरा पति होगा जयपुर में, वहां तो तू रोज़ ही इस के साथ मजे करती है। मुंबई से गोवा तक यह मेरा यार पहले है, तेरा पति बाद में। अभी मुझे मजे लूटने दे इसके साथ!
सुनील हम दोनों कामुक औरतों की नोक-झोंक का मजा ले रहा था।

कुल मिलाकर हम तीनों चाहे जो बात कर रहे हों, उन बातों की तह में कामवासना और लालसा अठखेलियां कर रही थीं।

संध्या और मेरे द्वारा आपस में सीट बदलने के बाद सुनील ने कार फिर दौड़ा दी।

पुणे नजदीक था, सड़क पर चहल कदमी, आवागमन बढ़ा हुआ था और दोपहर का समय हो रहा था। सुनील ने खाना खाने के लिए कार एक रेस्टोरेंट पर रोकी। संध्या की उपस्थिति ने सुनील और मेरे कामोन्माद को भी बढ़ा रखा था।

खाना लगने तक टेबल के नीचे तीनों के पांव एक दूसरे को सहला कर स्पर्श सुख दे रहे थे।
तीनों ने अपनी-अपनी पसंद का खाना ऑर्डर किया, मिलकर खाने का लुत्फ उठाया।

उसके बाद कार फिर चल पड़ी अपने गंतव्य की ओर।

सुनील की इच्छा मेरी चूत चाटने की तो क्या होती क्योंकि वह तो उसके द्वारा हजारों बार चोदी हुई और सैकड़ों बार चाटी हुई थी.
अतः सुनील की जगह मैंने पहल की और उसे फिर से गाड़ी साइड में लेने को कहा।

सुनील ने गाड़ी साइड में ले कर रोकी।

मैंने कार रुकने पर कहा कि अब अपना एक पैर गियर के ऊपर से मेरी सीट की ओर करो।
सुनील समझ गया कि मैं अब उसका लंड चूसूंगी।

उसका भी मन कर रहा था कि वह एक बार अपना वीर्य का स्टॉक खाली करे क्योंकि संध्या की चूत चाटने के कारण उसका लंड बुरी तरह अकड़ा हुआ था।

मैंने सुनील के लंड को चूसना शुरू किया.
कुछ ही पलों में सुनील की कमर भी हिलने लगी और पीछे से संध्या ने उठकर सुनील के होठों पर अपने होंठ रख दिए।

सुनील के दोनों हाथ संध्या के बोबे दबा रहे थे।
एक बार फिर से वातावरण उत्तेजना से भर गया और सुनील के लंड से वीर्य की एक तेज धार मेरे मुंह में निकलने लगी.

मैंने छोटे-छोटे घूंट भरते हुए सुनील का काफी वीर्य गटक लिया और अंत में थोड़ा सा अपने मुंह में रोक लिया और संध्या का चेहरा पकड़ कर उसके होंठ से अपने होंठ मिला दिए और अपने मुंह में रोके वीर्य को संध्या के मुंह में भेज दिया।

संध्या भी इस के लिए पूरी तरह से तैयार थी और वह मेरी वीर्य में लिपटी हुई जुबान को चूसने लगी।
इस प्रकार संध्या ने पहली बार सुनील के वीर्य का स्वाद लिया, केवल सुनील के वीर्य का ही नहीं बल्कि किसी भी मर्द के वीर्य का … क्योंकि उसने निखिल को अभी तक अपने मुंह में डिस्चार्ज नहीं करने दिया था।

हमारी यात्रा फिर आरंभ हुई.

कोल्हापुर पहुंचते पहुंचते हम को शाम हो गई, अंधेरा घिरने लगा।

हमने रात वहीं रेस्ट करने का निर्णय लिया।
एक होटल में हमने एक रूम लिया, कमरे में जाकर रिलैक्स हुए, चाय पी।

उसके बाद में तीनों साथ में नहाए, नहाते हुए तीनों ने जी भर के एक दूसरे के साबुन के झाग से चिकने नग्न और तरोताजा शरीर के साथ मस्ती की।

शॉवर के नीचे औरत के धुले धुलाए, स्निग्ध स्तन मर्द को भरपूर आनन्द देते हैं।

उनके मांसल चूतड़ कितनी उत्तेजना पैदा करते हैं, यह तो अधिकांश पाठकों को अनुभव होगा ही लेकिन जब सामने दो चुदासी औरतें हों तो फिर आनन्द भी दोगुना होना स्वाभाविक है। तीनों ने एक दूसरे के होठों को चूमा, चूसा।

सुनील ने मेरे और संध्या दोनों के जिस्म के मांसल हिस्सों को मसला, दबाया, सहलाया तो संध्या और मैंने भी सुनील के लंड से खूब मस्ती की, बारी बारी से चूसा.
और जब लंड कड़क हो गया तो दोनों ने संयुक्त रूप से अपने रसीले होठों से सुनील के लंड की मालिश की।

सुनील का लंड हम दोनों औरतों के नर्म और नाज़ुक होठों के लाड़ दुलार से इतना ऐंठ गया कि अब उसे उनकी चूत के होठों की मालिश की याद आने लगी।

अब एक लंड दो चूत… काम कैसे चले?

जब लंड का तनाव सुनील से सहन नहीं हुआ तो उसने हम दोनों को झुका कर बारी-बारी से हमारी चुदाई शुरू कर दी।

धुली हुई चूतों को चोदने का आनन्द अद्भुत होता है, सुनील मस्ती के समंदर में गोता लगा रहा था।
कुछ देर चोदने के बाद आखिर तो मर्द को, सब कुछ भुला देने वाले स्खलन के जादुई पलों की याद आने लगती है पर स्थिति बड़ी विकट थी।

लंड तो डिस्चार्ज एक ही की चूत में कर सकता था। अब सुनील यह तो चाहता था कि लंड को संध्या की चूत में, जड़ तक घुसेड़ के वीर्य की बारिश करे पर वह मुझे भी निराश नहीं करना चाहता था।

उसने पहले वीर्य के कुछ कतरे मेरी चूत में निकाले और उसके बाद लंड को मेरी चूत से निकाल के, संध्या की चूत में लंड को रिक्त और नर्म होने तक पूरा जड़ तक दबा के रखा।

मेरे कामातुर पाठको, मेरी कहानी से निश्चित रूप से लगातार सनसनी मिल रही होगी?
अगले भाग में हम देखेंगे कि सुनील, नीलम और विशेषकर संध्या, गोवा में अपने आनन्द के लक्ष्य को कितना और कैसे प्राप्त करते हैं?
कहानी पर अपना विश्लेषण एवं सुझाव मुझे भेज सकते हैं.

केवल इस एक लंड दो चूत कहानी पर ही अपने विचार लिखें, दोस्ती चाहने वाले मेल का मैं जवाब नहीं दूंगी।
मेरी आईडी है
[email protected]

एक लंड दो चूत कहानी का अगला भाग: निरंकुश वासना की दौड़- 7

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