वासना की धारा- 7

(Hot Girl Ass Fuck Kahani)

हॉट गर्ल ऐस फक कहानी में पढ़ें कि लड़की को सेक्स के लिए अपना साथी मनपसन्द मिल जाय तो वह अपना सर्वस्व अपने प्रेमी पर न्यौछावर कर देती है.

कहानी के पिछले भाग
मुखमैथुन में आनन्द की पराकाष्ठा
में आपने पढ़ा कि

अब आगे हॉट गर्ल ऐस फक कहानी:

खैर … शेखर इसी उधेरबुन में धारा के अगले कदम का इंतज़ार कर रहा था लेकिन धारा अब भी वैसे ही अपनी चूत और गांड की झलक शेखर को दिखती हुई आगे की तरफ़ मुँह करके उसके लंड पे अपने मुँह का लार गिरा रही थी.

धीरे से धारा ने अपनी गर्दन पीछे की तरफ़ घुमायी और शेखर की ओर देखकर एक कातिल मुस्कान दी.
फिर धीरे से अपनी टाँगें एक ओर करते हुए शेखर के ऊपर से उतार दी.

शेखर को लगा जैसे अब उसके आज़ाद होने का वक्त आ गया है, धारा अब उसे आज़ाद करेगी और फिर वो बेदर्दी से धारा को चोद चोद कर उसकी चूत की धज्जियाँ उड़ा देगा!

लेकिन धारा के दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था.
उसने शेखर के ऊपर एक बार और सवारी की, उसकी कमर के ऊपर सामने से बैठते हुए शेखर के लंड को अपने भारी नितम्बों के बाँच दबाया और नितम्बों की दरारों में लंड को फँसा कर आगे पीछे करने लगी.

शेखर का लंड पहले ही धारा के चूसे जाने से पने चरम पे था और लोहे की तरह सख़्त हो चुका था.
धारा के नितम्बों के दबाव को झेल पाना शेखर के लिए गवारा नहीं हो रहा था, उसका लंड दर्द झेल रहा था.

इधर धारा ने अपनी नितम्बों से शेखर के लंड को रगड़ते हुए एक हवस भरी मुस्कान के साथ शेखर की आँखों में देखते हुए अपने शरीर पे पड़ी उस झीनी सी नाइटी को बड़ी अदा से उतार फेंका.

अब धारा का गोरा नंगा जिस्म किसी चमकते हुए संगेमरमर की मूर्ति की तरह नज़र आने लागा.
ऊपर से दो कातिल चूचियाँ … जो धारा के आगे पीछे होने की वजह से थिरक-थिरक कर माहौल को और भी हवस से भरपूर बना रहे थे.

अब आप ही सोचिए कि शेखर की हालत क्या होगी … अभी थोड़ी देर पहले आँखों के सामने चिकनी चूत और गोल भूरे रंग के गांड के छेद ने उसे ललचा-ललचा कर आधा मार ही दिया था कि अब धारा का लंड को अपने विशाल नितम्बों के नीचे मरोड़े जाने का दर्द और सामने से ये गोल कातिल चूचियों की थिरकन … बंदा समझ ही नहीं पा रहा था कि वो करे तो क्या करे … वो बस अपनी हवस से लाल हुई आँखों से धारा को घूर रहा था और अपनी हालत पे तरस खाने की मिन्नत कर रहा था.

थोड़ी देर ऐसे ही शेखर को तड़पाने के बाद धारा धीरे से झुकी और शेखर के होठों को अपने होठों में क़ैद कर लिया.

शेखर को ऐसा लगा मानो किसी तपते रेगिस्तान में उसे पानी की कुछ बूँदें मिल गयी हों … उसने धारा की होठों को बेतहाशा चूसना शुरू किया.
उसे लगा जैसे अभी थोड़ी देर पहले जिस छेद को देख कर उसे चूसने और चाटने की तमन्ना जगी थी उसकी पूर्ति धारा के होठों से ही कर लिया जाए!

लेकिन उसकी ये तमन्ना भी अधूरी रह गयी … क्यूँकि धारा ने अपने होठों को शेखर के होठों की जकड़ से छुड़ा लिया और अपनी एक उंगली शेखर के मुँह में डाल दी.

शेखर ने उसकी उंगली को ही चूसना शुरू कर दिया.
धारा अपनी उंगली से शेखर की ज़ुबान से खेलने लगी थी.

इस सबके बीच शेखर को एक और अहसास हुआ … धारा के भारी भरकम नितम्ब उसके लंड के ऊपर से सरक कर आगे की ओर आने लगे थे.
मतलब धारा अब धीरे-धीरे सरकती हुई पहले शेखर के पेट फिर शेखर की छाती तक आ चुकी थी.

शेखर के दिमाग़ में कई सवाल कौंध गए … “अब क्या करेगी ये? अभी और कितना तड़पाएगी?”

दिमाग़ में उठ रहे सवालों का जवाब भी उसे जल्द ही मिल गया … धारा ने पूरी तरह आगे सरकते हुए अपनी मख़मली चिकनी हसीन चूत के दरवाज़े को शेखर के होठों के बिल्कुल क़रीब कर दिया.

“उफ़्फ़ …” शेखर के नाक में धारा के चूत की तीखी गंध समा गयी और ना चाहते हुए भी शेखर के मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकली.

हालाँकि शेखर के मुँह में अब भी धारा की उंगली थी और वो अपनी ज़ुबान से उसकी उंगली के साथ अठखेलियाँ कर रहा था लेकिन फिर भी अपनी सिसकारी नहीं रोक सका.

धारा की हर एक हरकत शेखर को शिखर पे ले जा रही थी. उसे यक़ीन नहीं हो रहा था कि उसके साथ कभी वासना का इतना मादक खेल भी खेलेगा कोई!

अब धारा ने थोड़ा और आगे सरकते हुए अपनी चूत को शेखर के होठों के बीच रखा और अपनी उंगली जो शेखर के मुँह में थी उसे बाहर निकाला.
उंगली पूरी तरह शेखर के थूक से सनी हुई थी यानि गीली थी.

उसी गीली उंगली को अपनी चूत की दरार में ऊपर नीचे करके धारा ने अपने चूत को गीला करते हुए थोड़ा सा खोल दिया और चूत का पूरा दबाव शेखर के मुँह पे दे दिया.

‘अंधा क्या माँगे … दो आँखें’
पिछले आधे घंटे से लंड चुसाई और चूत-गांड को देख-देख कर शेखर का गला सूख चुका था.
धारा की गीली चूत को मुँह में भर कर शेखर एकदम से उसे चूसने लगा जानो आम चूस रहा हो या फिर यूँ कहें कि रसभरी चूचियाँ चूस रहा हो.

उसका बस चलता तो अपने हाथों से धारा की चूत को पूरी तरह से खोल कर अपना पूरा मुँह अंदर डाल देता और सारा रस पी कर अपनी प्यास बुझा लेता.
लेकिन हाथ तो अब भी बंधे हुए थे.

धारा को शेखर की हालत का अहसास था शायद … उसने शेखर को तड़पाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी; उसे पता था कि शेखर कितना प्यास था उस वक्त.
शेखर की प्यास बुझाने के लिए धारा ने अपने दोनों हाथों की उँगलियों से अपनी चूत को जहां तक सम्भव था खोल दिया और शेखर को अछी तरह चूत चाटने और चूसने का मौक़ा दिया.

शेखर भी धारा की इस अदा से बहुत खुश हुआ और अपनी जीभ को पूरी तरह से बाहर निकल कर धारा की चूत के अंदर डालने लगा और चूत की दीवारों पे लगे रस की एक-एक बूँद को चाटने लगा.
फिर अपनी ज़ुबान को एकदम से सीधा और कड़ा करते हुए उसने धारा के चूत के असली छेद में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया जैसे लंड को अंदर बाहर कर रहा हो!

शेखर की इस हरकत ने धारा के सब्र का बांध तोड़ दिया.
आख़िर वो भी इतनी देर से वासना का ये खेल रही थी!

लंड चूस-चूस कर उसकी चूत भी गीली थी और जल्दी से जल्दी अपनी चूत में मूसल डलवा कर अपनी चूत की धज्जियाँ उड़वाना चाहती थी और अपना पानी बाहर निकालना चाहती थी.

अब लंड तो नहीं लेकिन शेखर की जीभ ने जब लंड की तरह चूत के भीतर बाहर खेल खेलना शुरू किया.
तो धारा से बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपने हाथ अपने चूत से हटा कर उन्माद में अपनी चूचियों को अपने हाथों से मसलते हुए अपनी कमर को शेखर के मुँह पे धकेलना शुरू किया.
मानो उसका मुँह वो अपनी चूत से चोदना चाह रही हो.

“उम्म्म … ह्मम्म … शेखरर्र … और … थोड़ा और … आह्ह” अपनी फड़फड़ाती चूत को शेखर के होठों और ज़ुबान पे रगड़ते हुए धारा सिसकारियाँ भरती हुई झड़ने लगी!

शेखर के मुँह में हल्का खट्टा नारियल पानी की तरह चिपचिपा सा गाढ़ा पानी गिरने लगा जिसका स्वागत उसने अपना मुँह खोल कर किया और उस दिव्य कामरस को पीने लगा.

अभी दो तीन झटके के साथ धारा का पानी झड़ रहा था कि शेखर ने एक और हरकत की … उसने अपनी ज़ुबान को धारा के चूत के सबसे निचले हिस्से के टिका दिया और अपनी ज़ुबान को कुछ इस तरह ढाल दिया कि चूत से बहता रस धीरे धीरे नीचे गांड के छेद की तरफ़ जाने लगा.

हालाँकि शेखर कुछ इस तरह बंधा हुआ था कि बहुत कुछ तो नहीं कर सकता था लेकिन उसने आपे सिर को थोड़ा-बहुत हिला-डुला कर अपनी ज़ुबान की नोक को धारा की गांड के छेद से लगा ही दिया.

“ओह्ह … उम्म्म!” अचानक से अपनी गांड के छेद पर शेखर की ज़ुबान की नोक को महसूस करते ही धारा के मुँह से सिसकारी निकली और वो झड़ते हुए ही अपनी गांड के छेद को सिकोड़ने लगी.

चूत का रस धारा के गांड के छेद को पूरी तरह से भीगा चुका था, ऊपर से शेखर की ज़ुबान की छुअन ने धारा को उन्माद से भर दिया.
उसने खुद ही सरक कर अपनी गांड के छेद को शेखर की ज़ुबान के हवाले कर दिया और अपनी गांड का छेद ढीला छोड़ दिया.

अब धारा की रस बहाती चूत शेखर के नाक से रगड़ खा रही थी … शेखर की पूरी नाक चूत में धँस चुका था और उसकी ज़ुबान धारा की गांड के छेद में घुसने की कोशिश कर रहा था.

थोड़ी देर पहले शेखर तड़प रहा था लेकिन अब धारा की बारी थी.

“ह्म्म्म … बस्स्स … शेखरर्र … बस करो … आह्ह!” इस दोहरे मज़े ने एक बार फिर से धारा को झड़ने पे मजबूर कर दिया और वो थरथराते हुए झड़ने लगी.

लम्बी-लम्बी साँसें लेती हुई धारा लगभग निढाल सी होने लगी.

शेखर अब भी उसकी चूत के चटकारे ले रहा था, वो तो मानो धारा के शरीर के अंदर का भी सारा रस उसकी चूत के रास्ते से ही चूस लेना चाहता था.

लेकिन धारा के लिए अब अपनी चूत को चटवाना मुमकिन नहीं था.
शेखर अब भी धारा के कंट्रोल में ही था क्यूँकि बंधा हुआ शेखर ज़्यादा कुछ कर नहीं सकता था और इस बात को जानते हुए धारा एकदम से सरक कर अपने नितम्बों को शेखर की कमर के आस-पास करती हुई उसके सीने पे औंधे मुँह गिर पड़ी और तेज-तेज साँसें लेने लगी.

इधर शेखर अचानक से चूत से दूर हो जाने की वजह से तड़प उठा, अपनी बेचैनी का अहसास उसने अपनी कमर उठा कर या फिर यूँ कहें कि अपने तने हुए लंड की ठोकर धारा के नितम्बों पर मार-मार कर करवाने लगा.
उसका बस चलता तो वो चूतड़ो में एक नया छेद ही बना डालता और अपना लंड घुसाकर अपना पानी निकाल देता.

कुछ 30 सेकंड तक धारा शेखर के सीने पे पड़ी हुई रही; फिर उसने एक बार शेखर के होठों को ज़ोर से चूसा और अपने चूत से निकले रस का स्वाद शेखर के होठों से लेते हुए कातिल अदा से मुस्कुराने लगी.
फिर उसने अपनी ज़ुबान बाहर निकाल कर शेखर के होठों के बीच ठेल दिया.
शेखर ने भी उसकी जीभ का स्वागत किया और अपनी ज़ुबान से उसी ज़ुबान लड़ाने लगा.

इस बीच धारा ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने नितम्बों को हल्का सा उठा कर शेखर का लंड पकड़ लिया और अपनी गीले चूत पे रगड़ने लगी.

शेखर का लंड इतना तन चुका था कि धारा के हाथों में ठीक से आ भी नहीं रहा था और ना ही चूत के मुंह पे रगड़ने के लिए मुड़ ही पा रहा था.
लंड एकदम गर्म हो चुका था और किसी भी छेद में जाने के लिए बेचैन था.

शेखर के लंड की बेचैनी को महसूस करते हुए धारा ने शेखर के होठों को चूसना बंद किया और अपनी गर्दन थोड़ा सा ऊपर उठा कर शेखर की आँखों में देखते हुए लंड की टोपी को अपनी हाथेलियों से खोलते हुए सुपारे को अपनी गांड के छेद पे रगड़ने लगी.

“उम्म्म … आह्ह!”
शेखर को समझ में आ गया कि उसका लंड धारा की खूबसूरत गांड के छेद पे ठुनक रहा है.
उम्मीद की एक मीठी सी लहर शेखर के जहन में दौड़ गयी और उसने ललचायी निगाहों से धारा की ओर देखा जैसे उसे अपनी तमन्ना बात रहा हो.

धारा ने उसकी आँखों में एकटक देखते हुए हल्की सी मुस्कान के साथ एक बार फिर से उसके होठों को अपने होठों में क़ैद कर लिया और लंड के सुपारे को अपनी गांड के छेद पे रगड़ना चालू रखा.

अब शेखर को यह यक़ीन हो चला था कि शायद आज उसका लंड अपनी ख्वाहिश पूरी कर सकेगा.

धारा ने शेखर के हाथ चूसने छोड़ दिए और धीरे-धीरे सीधी होने लगी.

शेखर का लंड और धारा की गांड का छेद दोनों पहले से ही पूरी तरह से गीले थे.
लेकिन फिर भी पता नहीं क्यूँ धारा ने अपने जिस हाथ से शेखर का लंड पकड़ रखा था उसे आगे करके अपने मुँह के पास लाकर ढ़ेर सारा थूक लिया और एक बार फिर से लंड के सुपारे से लेकर जड़ तक पूरा थूक से सन दिया और शेखर की आँखों में देखते हुए लंड को सीधा पकड़ कर अपनी गांड के छेद पे दबाव देने लगी.

“सीईईई … उम्मम्म …” धारा ने हल्की साई सिकारी भरी.
शायद लंड का सुपारा गांड की छेद में घुसने लगा था.

“उम्म म्म …” इधर शेखर को भी अपना लंड किसी बहुत ही तंग छेद में जाता सा महसूस हुआ और उसने भी उन्माद से भरी आवाज़ निकाली.

धारा उसी तरह दबाव बनाते हुए अपने भारी-भरकम चूतड़ ऊपर नीचे करती रही और देखते ही देखते शेखर का सुपारा गांड में घुस गया.

“आह्ह … ओह्ह” धारा ने दर्द भरी सिसकारी भरी और उसी हालत में अपनी कमर झुकाते हुए शेखर के ऊपर झुकने लगी … मानो ख रही हो कि लो मैंने दरवाज़े में तुम्हारे सिपाही को दाखिल तो करवा दिया है लेकिन ये दर्द मुझे आगे बढ़ने नहीं दे रहा है.

अब यहाँ अगर शेखर के हाथ खुले होते तो शायद उसने धारा की कमर को थाम कर एक शानदार झटका दिया होता और अपने पूरे लंड को गांड की गहराई में उतार दिया होता.
लेकिन ये सम्भव नहीं था.
तो अब शेखर ने धारा को वैसे ही झुके रहने दिया और नीचे से अपनी कमर उठाते हुए अपने लंड को और अंदर ठूँसने लगा.

दो-चार मस्त झटके के साथ वो अपने मक़सद में कामयाब भी होने लगा और अब लगभग उसका आधा लंड धारा की तंग गांड में घुस गया था.

अब भी वैसे ही झुकी हुई धारा शेखर के उन झटकों का मज़ा ले रही थी.

धारा ने आज से पहले बस दो बार ही अपनी गांड में लंड डलवाया था और यही वजह थी कि उसकी गांड ने अब तक लंड लेने की आदत नहीं लगवायी थी और अब भी किसी कुँवारी गांड की तरह तंग ही थी.

शेखर के लंड के झटके उसे मज़ा तो दे रहे थे लेकिन साथ ही तंग छेद के खुलने का दर्द भे दे रहे थे.
धारा के चेहरे पे दर्द साफ़ झलक रहा था जो शेखर देख पा रहा था.

अगर चुदायी के पहले इतना मादक खेल ना खेला गया होता तो शायद धारा अपनी गांड मरवाने को तैयार ना होती.
लेकिन शेखर और धारा दोनों उन्माद से इतने मदहोश हो चुके थे कि अब दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे.

शेखर उसी हालत में झटके देता रहा और लंड का रास्ता बनाता रहा.
धारा की गांड का छेद शेखर के आधे लंड का रास्ता खोल चुका था, अब बस एक-दो ज़ोरदार झटके की ज़रूरत थी और पूरा क़िला फ़तह हो जाता.

परन्तु धारा जानती थी कि शेखर ये नहीं कर सकता और कमान उसे ही सम्भालना होगा.
इतना तय कर धारा सीधी हुई और एक बार फिर से अपनी हथेली में थूक लेकर शेखर के बाहर बचे आधे लंड पे जड़ तक मल दिया और एक लम्बी से साँस लेकर एक ज़ोर का झटका देकर अपने चूतड़ को पूरा दबा दिया.

“आह्ह … आह्ह्ह … उफ़्फ़ … मर गयी … शेखर.” पूरा लंड अपने अंदर लेकर दर्द से बिलबिलाते हुए धारा कराहने लगी.

लंड को जड़ तक अपनी गांड में फँसा कर धारा एकदम से रुक गयी और ज़ोर-ज़ोर से साँस लेने लगी!
ये लाज़मी भी था … शेखर का गर्म धधकता हुआ सख़्त लंड और धारा की गांड का वो तंग छेद … एक झटके में समूचे लंड को अंदर ठूँसने का दर्द तो झेलना ही पड़ता है, और वही दर्द धारा झेल रही थी.

लम्बी-लम्बी साँसें लेती हुई धारा यह सोचने लगी कि कहीं जोश में आकर जल्दबाज़ी तो नहीं कर दी.

लंड था कि पूरी गांड पर अपना क़ब्ज़ा जमा चुका था, एक सूत की भी जगह ख़ाली नहीं बची थी.
ज़रा सा भी हिलने पर धारा को ऐसा लग रहा था जैसे गांड फट कर चिथड़े-चिथड़े हो जाएगी.
इसी वजह से वो डर के मारे ना तो हिल रही थी और ना ही कुछ और कर पा रही थी.

शेखर को धारा की हालत का अंदाज़ा हो रहा था … उसने कभी किसी की गांड मारी तो नहीं थी लेकिन उसे इतना पता था कि ढंग से मारे जाने पर गांड की धज्जियाँ उड़ ही जाती हैं और जिसकी गांड मारी जा रही हो उसकी हालत ख़राब हो जाती है.

लेकिन शेखर इतनी मुद्दत के बाद सच हुए अपने सपने को टूटने भी नहीं देना चाहता था.

शेखर थोड़ी देर तक धारा के हिलने या फिर यूँ कहें कि उसके खुद से अपनी गांड मरवाने का इंतज़ार करत रहा.

लेकिन जब धारा बिल्कुल ही नहीं हिली तब उसे समझ आया कि चाहे जैसे भी हो आगे का क़िला उसे ही ढहाना पड़ेगा.
इतना सोच कर उसने अपनी कमर को धीरे-धीरे ऊपर नीचे हिलाना शुरू किया.
उसका लंड थोड़ा-थोड़ा अंदर बाहर होने लगा.

“आह्ह्ह … आह्ह्ह … नहीं … शेखर, रुको …” शेखर के हिलते ही धारा को एक बार फिर से दर्द होने लगा और उसकी सिसकारियाँ अब दर्द से भरने लगीं.

शेखर ने अपने दोस्तों से सुन रखा था कि गांड मारने का तरीक़ा बिल्कुल वैसा ही होना चाहिए जैसा किसी अनचुदी कुँवारी बुर को चोदने का होता है.
मतलब अगर दर्द की वजह से बुर को चोदना छोड़ दिया जाए तो फिर बुर अनचुदी ही रह जाती है और फिर कभी हाथ नहीं आती.
ऐसे में धीरे-धीरे चुदायी को लगातार जारी रखते हुए जगह बनाते हुए आगे बढ़ना पड़ता है.

शेखर ने भी यही फ़ार्मूला अपनाया और नीचे से अपनी कमर के झटके देते हुए धारा की गांड में अपना लंड अंदर-बाहर करना जारी रखा.

इस अवस्था में एक बात और राहत देती है जब आप अपनी पार्टनर की चूचियों को अपने हाथों से मसलें या फिर उसे मुँह में लेकर चुभलाए तो चूत या गांड में हो रहे दर्द में थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन यहाँ तो शेखर मजबूर ठाऊर वैसा कुछ करके धारा को राहत भी नहीं दे सकता था.

खैर उसने लगातार अपना लंड रगड़ना जारी रखा … उसकी इस कोशिश ने अपना रंग दिखाना शुरू किया और अब धारा भी दर्द से राहत महसूस करते हुए शेखर की छाती पर अपनी हाथेलियों का ज़ोर देकर खुद अपनी गांड उठाने और दबाने लगी.

लंड उसकी गांड में कसा-कसा जा रहा था, गांड के अंदर की दीवार लंड की उभरी नसों से छिल रही थी.
अब ये चूत तो थी नहीं कि लंड के झटकों के साथ अपना पानी निकल कर चिकनाई बढ़ा दे.
यह तो गांड थी जो पहले से ही सूखी होती है.

पर शायद धारा को इसका इल्म था इसलिए उसने एक बार फिर से अपनी हथेली पे थूक लिया और शेखर ए लंड पे मल दिया.
इसका फ़ायदा भी हुआ और पड़पड़ाती हुई गांड के छेद को राहत मिली.

अब धारा ने अपने मन में कुछ सोचा और एक बार झुक कर शेखर के होठों को ज़बरदस्त तरीक़े से चूस कर वापस से सीधी हो गयी और बिल्कुल पोर्न फ़िल्मों की रंडियों की तरह पूरे जोश में भर कर अपनी गांड को ऊपर उठा कर लंड को सुपारे तक बाहर निकल कर एक ही बार में पूरा जड़ तक अपनी गांड में डालने लगी.

“आह … आह्ह … उफ़्फ़ … आह्ह्ह … शेखर … ओह्ह … शेखर … और लो!” अपनी रफ़्तार बढ़ाते हुए धारा ने उन्माद से भारी आवाज़ के साथ ज़ोर ज़ोर से अपनी गांड पटक-पटक कर शेखर को चोदना शुरू किया.

“हाँ धारा … बस ऐसे ही … उफ़्फ़ … ओह्ह्ह … मेरी धारा!” शेखर भी मज़े में धारा का नाम लेकर बड़बड़ाते हुए उसकी गांड में अपना मूसल ठूँसने लगा.

पूरे कमरे में बस धारा और शेखर की सिसकारियाँ और शेखर के जाँघों से टकराते धारा के नितम्बों के पट-पट की आवाज़ गूजने लगी.

“ह्म्म्म … ओह्ह्ह … ओह्ह … आह्ह … फाड़ दो शेखर … फाड़ दो इसे!” धारा उन्माद में बक-बक करती हुई ज़ोर-ज़ोर से उछल उछल कर अपनी गांड मरवाने लगी.

धारा ने और भी रफ़्तार पकड़ ली … ऐसा लग रहा था जैसे वो आज शेखर को ही चोद कर उसका भोसड़ा बना देगी.
पट … पट … पट … की आवाज़ के साथ चुदायी का ज़बरदस्त खेल जारी था.

“आह्ह्ह … धारा … बस आ गया … ऐसे ही … और … और … और … उम्मम्म!” शेखर ने अपने चरम पे पहुँचने की ओर इशारा किया!

पता नहीं अचानक से धारा को क्या हुआ, शेखर को अपने चरम पे पहुँचते हुए देख कर उसने एक झटके में उसका लंड अपनी गांड से निकाला और बिना एक पल भी गँवाए अपनी गीली चूत में डाल लिया.
शेखर को कुछ समझ में आता … इससे पहले ही धारा ने राजधानी की स्पीड से अपनी चूत में शेखर का लंड निगलना शुरू किया.

फच्ह्ह … फच्ह्ह्ह … फ़च … धारा की गीली चूत का संगीत शेखर के लंड से मिलकर एक मादक धुन बजाने लगा.
दोनों लगभग अपने चरम पे थे.

“आह्ह … आह्ह्ह … शेखर … ओह्ह्ह … चोद लो … चोद लो … फाड़ दो मेरी चूत … उम्मम्म!” इतनी देर से बस सिसकारियों के साथ अपनी चुदायी करवाती धारा अब आख़िरी समय में खुल के शेखर को ललकारती हुई गंदी-गंदी भाषा में अपनी चूत फड़वाने लगी.

“हाँ धारा … मेरी जान … ये लो … और लो … आज फाड़ ही डालूँगा तुम्हारी चूत … ये लो!” शेखर भी कहाँ पीछे रहने वाला था. उसने भी अपनी कमर उठा-उठा कर धारा की चूत की गर्मी निकालनी शुरू कर दी.

स्थिति ये थी कि अब गए और तब गए … लंड और चूत दोनों एक दूसरे को हराने में लगे हुए थे और कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था.

“आह्ह्ह … आह्ह्ह … ओह्ह!” धारा और शेखर दोनों के मुँह से एक साथ आह की आवाज़ आयी और दोनों एक साथ ही झड़ गए!

धारा एकदम से निढाल होकर शेखर के सीने पे पसर गयी.

शेखर का शरीर अब भी थरथरा रहा था. उसके लंड से अब भी ठुनक-ठुनक कर वीर्य की बूँदें बाहर आ रही थीं.
इतना स्खलन शायद ही शेखर ने पहले कभी महसूस किया था.

ये धारा का ही असर था शायद या फिर इतने सालों में गांड मारने की उसकी तमन्ना पूरी होने की ख़ुशी!

खैर जो भी हो, चुदायी का तूफ़ान शांत हो चुका था और कमरे में सिर्फ़ धारा और शेखर की तेज-तेज साँसों का शोर सुनाई दे रहा था.
ऐसी खामोशी थी जैसे सुनामी आकर गयी हो और पूरा माहौल शांत हो गया हो.
जोश से भरी इस चुदायी ने दोनों को इतना थका दिया था कि दोनों उसी अवस्था में नींद की आग़ोश में समा गए.

लगभग आधे घंटे के बाद शेखर की आँख खुली, उसके हाथ खुले हुए थे … शरीर पे कपड़े भी आ चुके थे!

शेखर हड़बड़ा कर बिस्तर से उठा और इधर-उधर देखने लगा.
कमरे में अंधेरा था और एक बहुत ही मद्धम साई नीली रोशनी थी.
गौर से सामने देखने पर उसे ऐसा लगा जैसे कोई सोफ़े पे बैठा हुआ है.

इससे पहले कि शेखर कुछ कहता या कुछ पूछता, उसे धारा की आवाज़ सुनायी दी.

“उठ गए, जूस पी लो … थकान मिट जाएगी!” धारा ने बड़े ही प्यार से शेखर को कहा.

शेखर उस अंधेरे में भी धारा को देखने की कोशिश करने लगा लेकिन चाह कर भी कुछ नज़र नहीं आया.
हाँ इतना ज़रूर देख सका कि धारा एक नाइटी में अपने चेहरे पे मास्क पहने बैठी है.

यह देखकर शेखर एक पल के लिए मायूस सा हो गया.
अभी कुछ देर पहले तक जिस हुस्न की मल्लिका के मख़मली जिस्म को वो भोग रहा था उसका हसीन चेहरा भी देखने को नसीब नहीं हो सका था.

उसे उम्मीद थी कि इतनी ज़बरदस्त चुदायी के बाद शायद धारा उसपर भरोसा करके उसके सामने आ जाएगी और उनके बीच में कोई भी पर्दा नहीं रहेगा.
पर उसका ये सोचना ग़लत साबित हो रहा था.

“शेखर … सुबह हो चुकी है … अब तुम्हें जाना चाहिए. और हाँ तुम्हारी शर्ट की जेब में एक ख़त है, अपने घर पहुँच कर उसे पढ़ लेना. बाक़ी बातें ख़त पढ़ने के बाद!” धारा ने एक साँस में शेखर से कहा और धीरे से उसे बाहर जाने का इशारा किया.

शेखर को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, चुदायी का खुमार अब भी उसके ऊपर छाया हुआ था.
अनमने ढंग से वो धारा की बात सुनकर उठा और बाहर निकल गया.

सुबह के 5 बज चुके थे और बाहर हल्का-हल्का उजाला हो चुका था.
शेखर ने एक कैब लिया और अपने रूम की ओर चल पड़ा.

अब भी शेखर धारा की जवानी के खुमार में खोया हुआ था.

तभी उसे ख़त की बात याद आयी और उसने अपनी जेब से वो ख़त निकाला और पढ़ने लगा.

“शेखर, मुझे नहीं पता जो हमने किया वो सही था या नहीं लेकिन मैं ये रात कभी नहीं भूलूँगी. आज तक मैं अपने पति की ख़ुशी के लिए दूसरों के सामने नंगी होती रही और अपने जिस्म की नुमायश करती रही. कभी कभी तो सोना भी पड़ा. लेकिन आज तक जिससे भी मिली, उसने बस अपने मन की की और मुझे बस एक हाड़ मांस की चीज़ की तरह बर्ताव किया. लेकिन तुम कुछ अलग थे. पता नहीं क्यूँ लेकिन मुझे तुम पर यक़ीन था इसीलिए अपने पति की जानकारी के बिना ही मैं तुमसे मिली और ये सब किया. और मुझे ये भी यक़ीन है कि मैं जो तुमसे कहने वाली हूँ तुम उसका भी मान रखोगे. शेखर, आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे और ना ही कभी किसी साइट पे चैट करेंगे. हाँ, मैंने अपने पर्सनल फ़ोन नम्बर लिख दिया है, हम बस होने पे एक दोस्त की तरह बातें कर सकते हैं. अगर तुम्हें मंज़ूर हो तो ठीक है वरना ये समझ लेना कि धारा से कभी मिले ही नहीं. मैं पिछली रात को अपनी ज़िंदगी की सबसे हसीन रात मान कर हमेशा अपने जहां में एक अच्छी याद की तरह रखना चाहती हूँ, उम्मीद है तुम समझ रहे होगे कि मैं ये क्यूँ कह रही हूँ.
धारा.”

ख़त का एक एक शब्द शेखर के जहन में गूंजने सा लगा और वो कैब के बाहर शून्य की ओर देखता हज़ारों सवाल और कुछ मीठी यादों के साथ अपने रूम की तरफ़ बढ़ गया.

तो दोस्तो, शेखर और धारा की दास्तान यहीं ख़त्म करते हैं.
अगली कहानी में कुछ ऐसे ही मज़ेदार वाकये को लेकर आपके सामने आऊँगा.
तब तक के लिए अपने समीर को इजाजत दीजिए.

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