वासना की धारा- 6

(Erotic Foreplay Ki Kahani)

इरोटिक फोरप्ले की कहानी में पढ़ें कि सुन्दरता और काम की मूरत लड़की को जब सेक्स के लिए मनचाहा साथी मिला तो उसने कैसे उसे मजा दिया और खुद भी आनन्द उठाया.

नमस्ते दोस्तो, आशा है धारा के साथ हुई पहली रोमांचक चुदायी
कॉकोल्ड वाइफ सेक्स कहानी
ने आप सबका भरपूर मनोरंजन किया होगा.

आइए चलते हैं इस कहानी के अगले और अंतिम भाग की ओर …

बिस्तर पे असहाय बंधे हुए शेखर के सामने एक और रोमांच खड़ा था … अपने चेहरे को पूरी तरह से मास्क से ढक कर एक झीनी साई छोटी नाइटी में!
शायद शेखर के रोमांच की सभी इच्छाओं की पूर्ति आज ही हो जानी थी.

अपनी नाइटी के अंदर कुछ भी नहीं पहना था और नाइटी इतनी झीनी थी कि शेखर को उसकी गोल-गोल सुडौल चूचियाँ साफ़-साफ़ दिख रही थीं.

धारा का बदन मानो दूध में थोड़ा सा सिंदूर मिलाकर तराशा गया हो … एकदम चिकना … मखमली बेदाग़ बदन था धारा का.

उस संगमरमर की मूरत में दाग के नाम पर उसकी चूचियों की भूरी घुंडियाँ और कैरम के गोटी के आकार का भूरा घेरा और दोनों जाँघों के बीच हल्के गुलाबी गीले पंखुड़ियों के बीच एक मद्धम सी लकीर ही थे.
कुल मिलाकर शेखर के होश उड़ाने के लिए धारा का ये रूप काफ़ी साबित हो रहा था.

धारा धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते हुए बिस्तर के नज़दीक पहुँचने लगी.

इधर शेखर का गला सूख रहा था.
शेखर बार-बार अपने होठों पे अपनी जीभ फिराकर अपनी प्यास बुझाने की नाकाम कोशिश कर रहा था.

धारा शेखर की हालत समझ रही थी और उसकी इस हालत पे मुस्कुरा रही थी. धारा ने अपने चेहरे पे बंधे मास्क को इस कदर बांधा था कि उसके गुलाब की पंखुड़ियों से नाज़ुक होंठ और हवस से भरी आल-लाल आँखें शेखर अच्छी तरह से देख पा रहा था.

उसके लबों पे फैली मुस्कान शेखर को इस बात का अहसास दिला रहे थे कि धारा आज उसे पूरी तरह से तड़पा कर उसे बेसुध बनाने का इरादा कर बैठी थी.

खैर … जब ओखली में सर डाल ही दिया है तो मूसल से क्या डरना … शेखर तो बस आज चुदायी का भरपूर मज़ा लेने के लिए ही आया था.

जैसे-जैसे धारा उसके क़रीब आ रही थी शेखर के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी.
शेखर बिल्कुल नंग-धडंग बिस्तर पे बंधा हुआ था. बस उसके पैर ही खुले हुए थे जो शेखर कि बेचैनी का सबूत दे रहे थे और बिस्तर की चादर की सिलवटें बढ़ा रहे थे.

धारा के चिकने बदन को देखकर और आने वाले रोमांचक पलों के बारे में सोच कर शेखर का लंड पूरे शवाब पर आ चुका था.
शेखर का लंड पूरी तरह से अकड़ कर खड़ा ऊपर छत को सलामी दे रहा था.

धारा अब बिल्कुल पास आ चुकी थी … शेखर के पैरों की तरफ़ धारा ने अपनी एक टांग उठाकर बिस्तर पे रखा और शेखर की ओर देखते हुए मुस्कुराते हुए अपने हाथों में पड़े हंटर की नोक को शेखर के पैरों की उँगलियों पे धीरे-धीरे फिराना शुरू किया.

‘उफ़्फ़ …’ शेखर के मुँह से एक तेज सिसकारी निकल पड़ी.
पैरों की उँगलियों पे फिर रहे हंटर उसे बिल्कुल नया मज़ा दे रहे थे.

धारा ने अब हंटर की नोक को धीरे-धीरे ऊपर की ओर चलाना शुरू किया … दाहिनी ओर खड़ी धारा ने शेखर के दाहिने पैर के पंजों से शुरू करते हुए ऊपर घुटने और फिर उसकी जाँघों तक फिराना शुरू किया.

शेखर के मुँह से बस उफ़्फ़ और आह्ह ही निकल पा रहा था.
वो धारा के अगले कदम का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था.

अब धारा ने हंटर की नोक को जाँघों के ठीक बग़ल से फिराते हुए शेखर के खड़े लंड के ऊपर पेडू पे फिराना शुरू किया और 5 से 6 बार वहीं फिराती रही.

शेखर के लंड की हालत और भी ख़राब हो चली और वो अब ठुनक-ठुनक कर अपनी बेताबी का इजहार करने लगा.

धारा ने थोड़ी देर उसी जगह हरकत करते हुए हंटर की नोक को अब उसकी बायीं जाँघ से लेकर नीचे पैरों के पंजों तक फिराना शुरू किया.
शेखर के बदन में झुरझुरी सी भर गयी थी, उसकी आँखें आनंद से बोझिल होकर बंद हो गयी थीं.

उसे नहीं पता था कि धारा कितनी देर उसके पैरों पर यूँ ही सिहरन देती रहेगी.

तभी एक आनंद भारी झुरझुरी ने शेखर को अपनी आँखें खोलने पे मजबूर कर दिया.

हुआ यूँ कि धारा ने हंटर की नोंक को अब सीधे शेखर के लपलपाते लंड पे धार दिया और उसके मोटे-ताजे लंड के ढके हुए सुपारे से लेकर नीचे जड़ तक फिराना शुरू कर दिया था.
लंड के चारों ओर फिराए जा रहे हंटर की नोक ने अपना कमाल दिखाना शुरू किया और शेखर के मुँह से दबी-दबी गुर्राने की आवाज़ निकलने लगी.

अगर इस वक्त शेखर के हाथ खुले होते तो शायद उसने धारा की वो झीनी नाइटी फाड़ कर उसकी रसभरी चूत में अपना लंड गाड़ दिया होता.

पर यही तो खेल था जो धारा बड़े सावधानी से खेल रही थी और शेखर को बिना छुए ही चरम पर ले जा रही थी.

अब धारा ने एक आख़िरी हमला किया, उसने शेखर के लंड के नीचे लटक रहे सामान्य से बड़ी गोटियों पे हंटर की नोक को भिड़ा दिया और दोनों गोटियों के चारों ओर गोल-गोल हरकत करने लगी.

अब शेखर के सब्र का बांध टूटने लगा. वो ज़ोर-ज़ोर से अपने पैर पटकने लगा और बिना मुँह से बोले धारा को अपने हाथ खोलने की विनती करने लगा.

शेखर के लंड का सुपारा यूँ तो आगे की चमड़ी से ढका हुआ था लेकिन खून के तेज बहाव ने उसके लंड को इतना मोटा कर दिया था कि लंड के सुपारे ने फूल कर अपना सर चमड़ी से बाहर निकालने की पूरी कोशिश कर दी थी और सुपारे का एक चौथायी ऊपरी सिर हमदी से बाहर दिखने लगा था.

अपनी गोटियों पे रेंग रहे हंटर की खुरदुरी नोक ने शेखर को अपने कामरस की एक मोटी सी बूँद बाहर निकालने पे मजबूर कर दिया था.

कमरे की हल्की सी रोशनी में भी उसके लंड के सुपारे पे बैठी हुई उस मोटी सी बूँद चमक उठी थी.

धारा की नज़रों से वो दृश्य बच नहीं सका और उसने शेखर की ओर अपनी हवस भारी आँखों से देख कर मुस्कुराते हुए अपने होंठों पर अपनी जीभ फिरायी … मानो वो उस बूँद को अपनी जीभ से चाट कर खा जाना चाहती हो.

पहली चुदायी में शेखर के लंड से खेलते वक्त धारा ने यह जताने की कोशिश की थी कि वो लंड को मुँह में लेना पसंद नहीं करती.
फिर अभी उसकी इस अदा ने शेखर को एक बार फिर से असमंजस में डाल दिया था.

शेखर के मन में कई सवाल उठने लगे … क्या धारा सच में लंड को मुँह में लेना पसंद नहीं करती या फिर वो लंड चूसना तो पसंद करती है लेकिन अपने तरीक़े से … लंड को तड़पा तड़पा कर!

इसी उधेड़बुन में खोए हुए शेखर अपने लंड को ठुनकी देते हुए धारा की ओर हसरत भरी निगाहों से देख रहा था.
कि धारा ने अपनी गर्दन धीरे-धीरे झुकाते हुए अपने होंठों के बीच से अपनी जीभ की नोक को लपलपाते हुए बिना शेखर के लंड को पकड़े ही उसके सुपारे पे चमक रही उस बूँद पे टिका लिया और उस बूँद को चाट लिया.

“उफ़्फ़ … धाराऽऽऽ !! ” शेखर बिल्कुल तड़प सा गया.
शेखर को लगा मानो उसके लंड का पूरा लावा उछाल मार के बाहर निकल जाएगा.
अपने आप को रोकने की हालत में वो वैसे भी नहीं था.

शेखर को लगा था कि अब शायद धारा उसके लंड को अपने मुँह में पूरा डाल लेगी और उसे जन्नत का मज़ा देगी.
लेकिन शेखर की उम्मीदों के विपरीत धारा ने बस उसके लंड के सुपारे पे झलक आयी उस बूँद को ही चाट था और फिर अपनी जीभ को हटा लिया था.

शेखर के अंडकोश के साथ धारा अब भी वैसे ही खेल रही थी जैसे थोड़ी देर पहले से चला आ रहा था.

अपनी आँखें बंद किए शेखर अपने लंड को ठुनकी मार-मार के धारा के मुँह में जाने का इंतज़ार कर रहा था.
लेकिन जब धारा ने उसके लंड को अपने मुँह में नहीं भरा तो शेखर ने अपनी आँखें खोलकर ये देखने का प्रयास किया कि आख़िर वो कर क्या रही है!

आँखें खुलते ही शेखर ने देखा कि धारा एकटक उसके लंड को निहार रही थी और अपने होठों पर बड़े ही मादक अन्दाज़ में अपनी जीभ फिरा रही थी.

शेखर की आँख खुलने का अहसास धारा को भी हो चुका था … उसने वैसे ही अपने होठों पे जीभ फिराते हुए शेखर की ओर देखा.
उसकी आँखों में मिन्नत सी नज़र आ रही थी जो धारा से विनती कर रही थी कि आओ धारा … मेरा लंड अपने मुँह में भर लो और निचोड़ डालो सारा रस.

धारा को शायद शेखर की इस हालत पे तरस आ गया … उसने एक बार उसकी आँखों में देखा और फिर धीरे-धीरे अपना सर नीचे झुकाती चली गयी.
लंड की नोक के पास पहुँच कर धारा की जीभ एक बार फिर बाहर आयी और इस बार धारा ने अपनी जीभ से शेखर के सुपारे को अच्छी तरह से सहलाया.

हालाँकि सुपारा अब भी अपनी चमड़ी से बाहर नहीं आया था, वो अधखुली चमड़ी से बस बाहर झांक रहा था और जितना भी भाग बाहर था उस पर धारा की जीभ अपना कमाल दिखा रही थी.

धारा ने अपने आप को थोड़ा हिला डुला कर इस तरह से पोजिशन बनायी कि वो घोड़ी की तरह चौपाया बन गयी और अपने भारी भरकम नितम्बों को शेखर के मुँह की तरफ़ कर दिया और अपना मुँह शेखर के पैरों की तरफ़ करके उसके लंड को अपनी जीभ से लपलपा कर चाटने लगी.

अब भी धारा शेखर के बग़ल में ही थी ना कि उसके ऊपर चढ़ गयी थी … जैसा कि अमूमन 69 में होता है.
शायद उस पोजिशन में आने में अब भी थोड़ा वक्त था.

धारा ने अपनी छोटी सी झीनी नाइटी के अंदर कुछ पहना तो था नहीं, तो जब वो घोड़ी की तरह झुक कर शेखर के लंड को चाटने का मज़ा ले रही थी उस वक्त वो अपनी नितम्बों को मटका-मटका कर शेखर को ललचा रही थी और झुकने की वजह से उसकी चिकनी चूत की झलक भी शेखर को दिखा रही थी.

“उफ़्फ़ … उम्म म्म्म …” शेखर इस नज़ारे को देख कर बस आहें ही भर पा रहा था.
एक ओर धारा उसके कड़क लंड को चाट रही थी और दूसरी तरफ़ अपनी चिकनी चूत और मांसल नितम्बों को दिखा-दिखा कर उसकी हालत और भी ख़राब कर रही थी.

इस वक्त अगर शेखर के हाथ खुले होते तो शायद वो झपट कर धारा के नितम्बों को अपने बाहुपाश में जकड़ लेता और उसके गोरे चिकने चूतड़ों पे अपने दांत गड़ा कर नीले निशान बना देता.
लेकिन वो असहाय था.

धारा अच्छे से जानती थी कि शेखर के मुँह में उसकी चूत को देख कर ढेर सारा पानी आ रहा होगा और वो उसकी मुनिया को अपने मुँह में भरने के लिए तड़प रहा होगा.

शेखर की इस दयनीय हालत का मज़ा लेने में धारा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

और अब उसने एक और करामात दिखायी … धारा के गोरे-गोरे गोल नितम्बों की थिरकन न शेखर की नज़रों को एक टक बांधे रखा था जिसकी दरार के बीच झांकती उसकी मख़मली चिकनी चूत तो अपना जलवा दिखा ही रही थी लेकिन अब धारा ने अपने दूसरे दरवाज़े यानि कि अपनी गांड के छेद को हल्के-हल्के खोलना और बंद करना शुरू किया.

हल्के भूरे रंग के गोलाकार छेद की सिकुड़न ने अनायास ही शेखर का ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
शेखर वैसे भी गांड का दीवाना था … उसकी खुद की बीवी ने कभी भी उसे वो सौभाग्य नहीं दिया था कि शेखर उसकी गांड में अपना लंड डाल कर असली जन्नत के मज़े ले पाता.
इसलिए उसकी गांड मारने की तमन्ना अब भी अधूरी ही थी.

आज धारा के खुलते और बंद होते गांड के छेद ने शेखर की उस दबी हुई तमन्ना को और भी हवा दे दी.

“ह्म्म्म … ओह्ह … धारा … ” शेखर के मुँह से बस सिसकारियाँ ही निकल रही थीं.
उसकी सिसकारियों में उसकी बेबसी का इजहार तो था ही साथ ही कहीं ना कहीं वो धारा से मनुहार भी कर रहा था कि वो उसके हाथ खोल दे ताकि वो धारा के नितम्बों को अपने हाथों से पकड़ कर उसके गांड के खुलते सिकुड़ते छेद में अपनी जीभ डाल कर उसका मज़ा ले सके.

धारा को अच्छी तरह से पता था कि शेखर की नज़र उसकी गांड के छेद पे टिकी हुई है और इसी वजह से उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही हैं.

शेखर का बदन अब पहले से ज़्यादा अकड़ रहा था … शायद धारा के गांड के छेद की ख्वाहिश ने उसका जोश और बढ़ा दिया था.
इसका एक और प्रमाण धारा को इस बात से मिल रहा था कि शेखर का मस्त लंड जो धारा ने अपने मुँह में फँस रखा था वो अब हर सेकंड ठुनकी मारने लगा था … मतलब कि शेखर का लंड अब कभी भी अपने चरम पर पहुँच कर अपना लावा उगल सकता था.

इस बात को समझते हुए धारा ने एक बार शेखर के लंड पर पूरी तरह से अपने मुँह का दबाव बनाते हुए बिल्कुल क़ुल्फ़ी की तरह ऊपर की ओर खींचते हुए लंड को आज़ाद कर दिया.
पक्क … की आवाज़ के साथ शेखर का लंड बिल्कुल तना हुआ खड़ा था और धारा के मुँह से गिरते हुए लार से नहा रहा था.

बिल्कुल सख़्त लंड के ऊपर धारा के मुँह से गिरता हुआ लार ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे एक ऊँचे पर्वत के शिखर पर काम रस की धारा गिर रही हो.

लंड को अचानक बाहर निकाल देने की वजह से शेखर तो मानो तड़प सा गया … वो एकदम गुर्राने सा लगा … उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे!
अगर शेखर के हाथ आज़ाद होते तो शायद इस हालत में वो सच-मच यह तय नहीं कर पाता कि वो धारा के नितम्बों को जकड़ कर उसके गांड के छेद में अपनी जीभ डाल कर उसका मज़ा ले या फिर नीना के मुँह में एक बार फिर से अपना लंड घुसेड़ कर अपना माल उसके गले में उतार दे … या फिर दोनों काम एक ही साथ करे!

मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपको इस कहानी में कामुकता का अहसास हुआ होगा.
अपने विचारों से मुझे अवगत कराएं.
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कहानी का अगला भाग: वासना की धारा- 7

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