लागी लंड की लगन, मैं चुदी सभी के संग-3

(Lagi Lund Ki Lagan Mai Chudi Sabhi Ke Sang- Part 3)

This story is part of a series:

हमारी पहली चूत चुदाई के बाद टोनी ने एक मैसेज भेजा, जिसमें रितेश के लिये लिखा था- तुम मेरी मीना को चोद लो और मैं आकांक्षा को।
रितेश ने मेरी तरफ देखा तो मैंने मना कर दिया।
जिस पर रितेश ने भी मना कर दिया।

उसके बाद टोनी ने कहा- जब कभी भी तुम दोनों के मन में अदला बदली का ख्याल आये तो हमें कॉल करना।
कह कर हम दोनों ने एक दूसरे से विदा ली।
उसके बाद मैंने भी अपने कपड़े पहने और घर चली आई।

मैं लगभग एक महीने तक रितेश के घर नहीं गई और न ही रितेश ने मुझे कभी फोर्स किया।
हाँ, अब कॉलेज में मैं और रितेश खूब समय बिताते और रितेश अब मेरी हर छोटी छोटी बातों का ध्यान रखता।

लेकिन अब एक बार जो आग लग चुकी थी उसे मैं चाह करके भी काबू में नहीं कर पा रही थी और न ही रितेश को बता पा रही थी।
पर एक दिन उसने मुझसे कहा कि उसका मन एक बार फिर मुझमें समाने के लिये कर रहा है।
मन में मेरे भी आग लगी थी, मैंने भी मौन स्वीकृति दे दी।

उसने सबकी नजरों को बचाते हुए मेरे गालों की पप्पी ली और मेरे स्तन को दबा दिया।
मुझे या शायद किसी को भी नहीं पता होता कि कल क्या होने वाला होगा लेकिन रितेश जैसा जीवन साथी मिलना बहुत ही नसीब की बात होती है।

दो दिन बाद रितेश ने मुझे बताया कि आने वाले रविवार को उसके घर में कोई नहीं होगा और अगर मैं चाहूँ तो…
कहकर उसने अपनी बात को बीच में ही रोक लिया, जिसको मुझे पूरा समझने में कोई परेशानी नहीं हुई।

मैंने उसे एक बार फिर अपनी स्वीकृति दे दी।
मैं यह नहीं समझ पा रही थी कि रितेश मुझसे जो कहता जा रहा था, मैं उसकी किसी बात को नहीं काट पा रही थी।
लेकिन अब एक बार जब सीमांए टूट गई तो अब उस सीमा को फिर से वापस बांधना मुश्किल सा था।

खैर मैंने रितेश से पूछा कि मैं उसके पास कैसे कपड़े पहन कर आऊँ तो वो बोला- देख, हम लोग जो करेंगे, नंगे होकर ही करेंगे, इसलिये तुम्हें कोई सेक्सी कपड़े पहन कर आने की जरूरत नहीं है, और वैसे भी तुम मेरे लिये हर कपड़े में सेक्सी ही हो।

मेरे लिये एक बहुत बड़ी समस्या खतम हुई क्योंकि अगर मैं घर से कुछ खास कपड़े पहन कर निकलती तो घर वालों से काफी झूठ बोलना पड़ता।

खैर रविवार का दिन आया और मैंने घर वालों से प्रोजेक्ट का बहाना बनाया और अपने रितेश के पास पहुँच गई।

रितेश ने दरवाजा खोला, वो नंगा था और उसका लंड बिल्कुल डण्डे के समान तना हुआ था।

घर के अन्दर घुसते ही रितेश ने मुझे दबोच लिया, अपने जिस्म से चिपका लिया और मेरे गालों, होंठों, गर्दन जहां पर उसने चाहा, चुम्मे की झड़ी लगा दी।

मुझे भी वहीं नंगी कर दिया और गोदी में उठा कर अन्दर ले आया।
जब मैं उसकी गोदी में थी तो मैंने भी रितेश को चूमना शुरू किया।

फिर उसने मुझे सोफे पर बैठाया और मेरी टांगें चौड़ी करके मेरे योनि, अरे… योनि नहीं… चूत के अग्र भाग को फैलाते हुए उसमे उंगली करने लगा और उसके बाद उसमें अपनी जीभ लगा दी।

थोड़ी देर तक अपनी जीभ से मेरी चूत की मालिश करने के बाद रितेश खड़ा हुआ।

तब मैंने पहली बार उसके लंड को साफ साफ देखा जो एकदम से तना हुआ था और उसके लंड के हिस्से वाला भाग बाल रहित था जबकि अभी भी मेरी चूत में बालों की भरमार थी।

मैं रितेश से बोली- यार, तेरे इस जगह बाल क्यों नहीं हैं?
तो वो मुस्कुराते हुए बोला- मैं इसे बनाकर रखता हूँ।
‘तो मेरे भी बना दो…’ मैंने उसकी ओर खुमारी भरी नजर से देखा।

वह तुरन्त मुड़ा, पहली बार मैंने नंगे रितेश को चलते हुए देखा उसके पीछे का हिस्सा ऊपर नीचे हो रहा था और उसकी गांड के बीचोंबीच एक लकीर सी खिंची हुई थी जो मेरे लिये बड़ा ही अनोखा था।

दो मिनट बाद ही वो एक क्रीम, कैंची, काटन और एक लोटा पानी ले आया।
मुझे थोड़ा सा अपनी तरफ खींचा जिससे मेरे कमर के नीचे का हिस्सा सोफे से बाहर हो गया और बाकी मैं सोफे पर पसर गई।

उसके बाद रितेश बड़े प्यार से मेरी चूत के बड़े हुए बालों को कैची से काट-काट कर छोटा कर रहा था और बीच-बीच में जांघ, चूतड़ के उभार आदि जगह को चाट लेता था, मेरी उठी हुई चूची को दबा देता और बीच-बीच में अपने लंड को उंगली से मसलता और फिर उस उंगली को चाट लेता।

जब वो मेरी जांघ को चूमता या चाटता तो मुझे एक गुदगुदी से होती।
जब उसने मेरी चूत के बालों को कैची से ट्रिम कर दिया तो उसके बाद उसने क्रीम वाली ट्यूब उठाई और मेरी चूत के आस पास अच्छे से लगा दिया और मेरे बगल में बैठ कर मेरे चूचों को चूसने लगा और मेरे हाथों को उठाकर मेरे बगल को भी चाटता।

उसके लिये मेरा जिस्म मक्खन की तरह था और मेरे जिस्म का कोई ऐसा हिस्सा नहीं था जिसे वो चाट नहीं रहा था।
करीब दस मिनट तक ऐसा करने के बाद उसने रूई को गीला किया और जहाँ जहाँ क्रीम लगाई थी, उसको साफ करने लगा।

फिर रितेश ने मुझे शीशे के सामने खड़ा कर दिया।

अभी तक मेरी चूत जो बालों से घिरी हुई थी अब वो बिल्कुल सफाचट हो गई थी और गुलाबी जैसी पाव रोटी लग रही थी।
मेरे हाथ स्वतः ही मेरी चूत पर चले गये… क्या मखमली चूत थी मेरी!

तभी रितेश ने मुझे पीछे से जकड़ लिया और मेरे कंधे को चूमते हुए मेरी एक टांग को उठा कर टेबल पर रख दिया और मेरी चूत को सहलाते हुए वो मेरी चूत में उंगली करने लगा।

मेरे हाथों की माला ने रितेश को जकड़ लिया और आंख बन्द करके जो वो कर रहा था, उसका आनन्द लेने लगी।

कुछ देर में मेरी चूत के अन्दर का पानी बाहर निकलने लगा और रितेश की उंगली गीली होने लगी, उसने अपनी उंगली निकाल कर मेरे मुँह में घुसेड़ दी।

खारी नमकीन सी उसकी उंगली मेरे मुंह के अन्दर थी और रितेश के बोल मेरे कान के अन्दर थे, वो कह रहे थे- लो, अपना पानी चखो! बड़ा स्वादिष्ट है।

मैं उसकी तरफ घूमी और उससे पूछा- तुम्हें कैसे मालूम?
तो बोला- जान, तेरे को स्वाद दिलाने से पहले मैंने इसका स्वाद लिया है और अब मैं इसका पूरा स्वाद लूंगा।

कहकर मुझे उसने थोड़ा नीचे किया, इस प्रकार झुकाया कि मेरी चूत और गांड के छेद उसे साफ-साफ नजर आने लगे।
फिर वो बैठ कर मेरी चूत से निकले पानी को चूसने लगा और बीच-बीच में मेरी गांड को भी चाटने लगा।

उधर मैं भी शीशे से अपने आप को देख रही थी।
मेरी उठी हुई चूची रितेश के हाथ में कैद थी और जैसा रितेश चाहता वैसा ही मेरी नाजुक चूचियों के साथ करता।

कुछ देर ऐसा करने के बाद वो उठा और पीछे से मेरी चूत रूपी गुफा में अपने लंड को प्रवेश कराने लगा।
उसका लंड मेरी गुफा के अन्दर जा ही नहीं रहा था।

कई बार कोशिश करने के बाद भी जब नहीं हुआ तो उसने मेरे कूल्हों पर कस कर तीन चार चपत लगाई जिससे मैं बिलबिला गई।

मुझे भी कुछ नहीं समझ में आ रहा था तो जाकर बिस्तर पर लेट गई और अपनी टांगें फैला कर उसे निमन्त्रण देने लगी।

रितेश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, वो मेरे पास आया और फिर जिस तरह उसने पहली बार मेरी चुदाई की थी, उसी तरह अपने लंड को मेरी चूत में प्रवेश करा दिया।

इस बार भी एक दो प्रयास के बाद उसका लंड मेरे अन्दर प्रवेश कर गया और इस बार थोड़ा दर्द तो हुआ पर उस जैसा न तो दर्द था और न ही जलन जैसा पहली बार जब रितेश के लंड ने मेरी चूत रूपी गुफा के द्वार को खोला था।

लेकिन मजा बहुत आ रहा था।

वो बहुत तेज-तेज धक्के लगा रहा था, जैसे शायद वो बहुत गुस्से में हो।

इस बीच में मैं पानी छोड़ चुकी थी पर रितेश अभी भी धक्का लगाये जा रहा था।
कुछ ही पल बाद उसका शरीर अकड़ने लगा और फिर कटे हुए पेड़ की तरह मेरे ऊपर गिर गया।

इस समय में उसके लावे को अपने अन्दर महसूस कर सकती थी।
थोड़ी देर बाद जब उसके शरीर की शिथिलता खत्म हुई तो वो खड़ा हुआ और कम्प्यूटर पर एक ब्लू फिल्म लगा दी जिसमें लड़का लड़की को कुतिया बना कर पीछे से चोद रहा था।

फिल्म लगाने के बाद रितेश मेरे पास आया और बोला मैं तुम्हें ऐसे ही चोदना चाहता हूँ।

मैंने उसके लंड को पकड़ा और बोली- लो, मैं इस तरह झुक जाती हूं, तुम एक बार फिर कोशिश कर लो।
कहकर मैं भी उस फिल्म की लड़की की तरह झुक गई।

रितेश हंसा और बोला- पगली, पहले मेरा लंड तो चूस कर खड़ा तो कर! जब तक यह खड़ा नहीं होगा तो जायेगा कैसे।

इन दो चुदाई में इतनी तो बात समझ में आ गई थी कि लंड की पूरी ताकत उसके टाईट होने पर है, अगर ढीला है तो फिर वो किसी काम का नहीं।

रितेश अपने हाथ में अपने सिकुड़े हुए लंड को लिये था और हंस रहा था।

मैं पलटी और घुटने के बल बैठ कर उसके लंड को अपने मुंह में ले लिया।
जैसे ही मैंने उसके लंड को अपने मुंह में लिया तो मेरे और उसके मिलन का जो रस था, उसका स्वाद मेरे मुंह में था।

मैं उसके लंड को चूस रही थी।
तभी रितेश ने अपने लंड को मेरे मुंह से बाहर निकाला और उसके खाल को पीछे करते हुए लंड के टोपे को दिखाते हुए मुझे उस हिस्से पर अपनी जीभ फिराने के लिये बोला।

रितेश जैसे जैसे बोलता गया, मैं उसके टोपे को चाटती गई और रितेश के मुंह से सी-सी की आवाज आती गई।

कुछ ही देर में उसका लंड खड़ा हो गया।
रितेश ने मुझसे कम्प्यूटर की तरफ मुंह करके झुकने के लिये बोला।

मेरे दिल मैं तो एक ही बात थी कि जो रितेश कहे उसे करते जाओ।
इसलिये मैं कम्प्यूटर की तरफ मुंह करके झुक गई और रितेश मेरी कमर को पकड़ के अपने लंड को मेरी चूत में सेट किया और एक धक्का दिया।

इस बार लंड सीधे मेरी चूत के अन्दर था।

अब मैं और उस फिल्म की लड़की एक ही पोजिशन में थे और रितेश उसी तरह धक्के मार रहा था जैसे उस फिल्म का लड़का कर रहा था।

जिस-जिस पोजिशन में वो लड़का उस लड़की की चुदाई कर रहा था उसी पोजिशन में रितेश मेरी भी चुदाई करता।

उस लड़के ने लड़की को दीवार से सटा कर खड़ा कर दिया और उसकी एक टांग को पकड़ कर हवा में उठाकर उसको चोद रहा था तो रितेश ने भी मुझे उसी तरह की पोज में कर दिया और अपनी कार्यवाही शुरू कर दी।
उसकी नजर भी स्क्रीन पर थी।

फिर चार-पांच धक्के मारने के बाद रितेश ने मुझे डायनिंग टेबल पर बैठाया और अपना लंड मेरी चूत में डालने के बाद मुझे गोदी में उठा कर उछल कूद करने लगा।

अब इस समय मैं अपनी तो कुछ नहीं कह सकती पर रितेश को खूब मजा आ रहा था।

कुछ दस पन्द्रह शॉट लगाने के बाद एक बार फिर रितेश ने मुझे उसी तरह लेकर एक कुर्सी पर बैठ गया।

दूसरे ही पल लगा कि रितेश एक बार फिर अपनी गर्मी को मेरे अन्दर उतार दिया।

ठीक उसी समय उस लड़के ने लड़की को नीचे बैठा कर अपने लंड को उसके मुंह में लगा दिया और कुछ सफेद सा उसके मुंह में डालने लगा जिसको लड़की ने पूरा गटक लिया और फिर मुंह से लड़के का लंड चाट कर उसकी मलाई को साफ कर दिया।

ऐसा देख कर मैंने रितेश से पूछा- तुम अपनी मलाई मेरे अन्दर क्यों डाल देते हो?
वो बोला- मुझे अच्छा लगता है।

तीन चार घंटे बीत चुके थे तो मैंने रितेश को चूम कर बाय किया और अपने घर चली आई।

कहानी जारी रहेगी।
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