मेरी चालू बीवी-110

(Meri Chalu Biwi-110)

इमरान 2014-10-11 Comments

This story is part of a series:

सम्पादक – इमरान

मामा जी कहा था कि यार अंकुर, यहाँ तो नंगी लड़की देखे अरसा गुजर गया।

उनकी ये बातें मेरे दिमाग में थी, मैंने सोचा क्यों ना मामाजी को आज कुछ दर्शन करा दिए जाएँ।

बस यह ख्याल आते ही शैतानी मेरे दिमाग पर हावी हो गई।

मैंने सलोनी के होंठ चूसते हुए ही साड़ी के ऊपर से उसके मखमली चूतड़ों को सहलाना शुरू कर दिया।

पर सलोनी की साड़ी बहुत भारी थी और चुभ रही थी, मैंने फुसफुसाते हुए ही उससे कहा- यार, यह इतनी भारी साड़ी कैसे पहने हो? तुमको चुभ नहीं रही?

वो मेरा इशारा एक दम से ही समझ गई, सलोनी मुस्कुराते हुए उठी, उसने एक बार मामाजी की ओर देखा, पता नहीं उसको उनकी आँखें दिखी या नहीं पर वो संतुष्ट हो गई, वो अपने कपड़े उतारने के लिए वहीं एक ओर हो गई।

अब पता नहीं मामाजी को क्या क्या दर्शन होने वाले थे??

वैसे भी सलोनी तो बहुत ही बोल्ड किस्म की लड़की है, उसको किसी के होने या ना होने से कुछ फर्क नहीं पड़ता..

मैं सलोनी की ओर ना देखकर मामाजी की ओर ही देख रहा था।

मैंने अपने चेहरे पर एक तकिया रख लिया जिससे उनको कुछ पता नहीं लगे… और मैं तकिये के बीच से ही उनको देख रहा था।

मामाजी को वैसे भी मेरी कोई फ़िक्र नहीं थी, वो तो लगातार सलोनी को ही देख रहे थे।
शायद वो एक भी ऐसा पल खोना नहीं चाहते थे।

मैंने धीरे से सलोनी की ओर देखा, उसने अपनी साड़ी निकाल दी थी और उसको सही से तह करके एक ओर रख रही थी।
उसकी पीठ हमारी ओर थी।

वैसे तो उसने कमरे की लाइट बंद कर दी थी परन्तु कमरे के ऊपर के रोशनदान और दरवाजे से बाहर की रोशनी अंदर आ रही थी।
वो जिस जगह खड़ी थी, वहाँ लाइट सीधे पड़ रही थी जिससे उसके झीने और बहुत ही पतले पेटीकोट से अंदर का पूरा नजारा मिल रहा था।

सच कह रहा हूँ, उसकी साँचे में ढली हुई केले के तने जैसी दोनों चिकनी टाँगें ऊपर तक पेटीकोट के अंदर साफ दिख रही थी।
फिर उसके चूतड़ों पर कसे हुए पेटीकोट से उसके इन मखमली चूतड़ों का आकार भी साफ़ दिख रहा था और फिर ऊपर बैकलेस ब्लाउज, उसकी साफ़ सफ्फाक और चिकनी पीठ पर केवल एक ही तनी थी, उसकी पूरी नंगी पीठ और चूतड़ के कटाव पर बंधा पेटीकोट सलोनी की पतली कमर को अच्छी तरह से दिखा रहा था।

यह दृश्य सलोनी के पूर्णतया नंगे खड़े होने से भी कहीं ज्यादा सेक्सी लग रहा था।

मुझे लगा अभी सलोनी ये कपड़े भी उतारकर अभी मामाजी की हर इच्छा पूरी कर देगी।

मगर ऐसा नहीं हुआ…

साड़ी को तह करके सही से रखने के बाद वो फिर मेरे पास आकर लेट गई। हाँ, उसने एक बार हल्का सा अपना पेटीकोट का नाड़ा जरूर सही किया था जिससे चूतड़ों का कटाव कुछ अधिक नुमाया हो गया था।

अब मैं भी उससे कुछ नहीं कह सकता था पर सलोनी थी तो मेरे पास ही, मैं वैसे भी कुछ ना कुछ तो मामाजी को दिखा ही सकता था।

मैंने उसको बाहों में भरकर फिर से प्यार करना शुरू कर दिया।

चादर उसके ऊपर कम मेरे ऊपर ही ज्यादा थी।

मैंने सलोनी को चूमते हुए पीछे से उसके पेटीकोट को ऊपर करना शुरू कर दिया, पेटीकोट वैसे भी काफी पतले और सिल्की कपड़े का था, सलोनी के चूतड़ मसले जाने से ही वो ऊपर को सिमटा जा रहा था।

मैंने आँख खोलकर सलोनी के साइड से देखा, मामाजी पूरी आँख खोले हमको ही घूर रहे थे।

सलोनी के पीछे के भाग पर केवल कंधे और पैरों पर ही चादर थी, बाकी चादर काफी हटी हुई थी।
सलोनी की नंगी पीठ और मेरे द्वारा मसले जा रहे चूतड़ उनको दिख रहे होंगे।

कुछ ही देर में वो समय भी आ गया जिसका इन्तजार हम दोनों से ज्यादा मामाजी ज्यादा बेसब्री से कर रहे थे।

सलोनी के पेटीकोट का निचला सिर मेरे हाथ तक पहुँच गया, मैंने तुरंत उसके पेटीकोट को कमर तक उठा दिया और सलोनी के सफेद, चिकने गद्देदार नंगे चूतड़ मेरे हाथों के नीचे थे।

मामाजी भी आँखें फाड़े उनको घूर रहे थे।

मैं भी बड़ी ही तन्मयता से उनको सहला और मसल रहा था। जब भी मैं सलोनी के चूतड़ के एक भाग को मुट्ठी में लेकर भींचता तो मेरी उंगलियाँ उसकी रस से भरी हुई चूत में भी चली जाती।

सलोनी की चूत से बराबर रस टपक रहा था।

इतनी देर में सलोनी ने भी अपने मुलायम हाथों से मेरी पैंट को खोलकर लण्ड अपने हाथों में ले लिया था।

वो बहुत ही सेक्सी अंदाज़ से अपनी गर्म हथेली में लिए लण्ड की खाल को ऊपर नीचे कर रही थी।

मैंने बहुत हल्के से मगर इतनी आवाज में कहा जिससे मामाजी भी सुन सकें- जानू तुम्हारी चूत तो पानी छोड़ने लगी… क्या यहीं एक बार हो जाए?

सलोनी- अह्ह्हाआ नहीं प्लीज.. अभी नहीं… यहाँ कोई भी आ सकता है। फिर ये भी तो सो रहे हैं, अभी ऐसे ही कर लेते हैं, बाद में होटल में जाकर आराम से ..प्लीज…!!

मैं- जैसी तुम्हारी मर्जी मेरी जान!

तभी मैंने ध्यान दिया कि सलोनी और मामाजी के बीच की दूरी कम हो गई है।
इसका मतलब मामाजी सलोनी के पास को खिसक कर आ रहे थे।

मैंने भी इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, मैं नहीं समझता कि मेरे रहते मामाजी इतनी हिम्मत होगी कि वो सलोनी को कुछ करने का प्रयास करेंगे।

मैं बदस्तूर सलोनी के होंठों को चूसता हुआ उसके चूतड़ सहला रहा था, कभी कभी अपनी उँगलियाँ चूतड़ के बीच से उसकी चूत में भी डाल देता था।
सलोनी लगातार मेरे लण्ड को सहला रही थी।

फिर मैं सीधा हो गया परन्तु अपनी गर्दन सलोनी के साइड में ही रखी जिससे मामाजी की हर हरकत पर नजर रख सकूँ।

अब सलोनी अपने हाथ को तेजी से मेरे लण्ड पर चला रही थी।

तभी मैंने महसूस किया कि मामाजी अपने हाथ को सलोनी के पास को ला रहे हैं।

माय गॉड… क्या मेरे रहते भी मामाजी इतनी हिम्मत कर सकते हैं? क्या वो सलोनी को छूने जा रहे हैं? क्या करूँ… क्या उनको रोकूँ?
अगर सलोनी ने कुछ ऐतराज किया तो क्या होगा? फालतू में यहाँ पंगा हो जायेगा।

फिर सोचा कि रहने दूँ, जो होगा देखा जायेगा।

मैं अपने काम में लगा रहा, मैंने अपना हाथ जैसे ही सलोनी के चूतड़ों से हटाया, आश्चर्य रूप से मामाजी ने तुरन्त ही अपना हाथ वहाँ रख दिया।

मैंने सोचा अब पंगा होने वाला है मगर कुछ नहीं हुआ, सलोनी ने कुछ भी नहीं बोला।

मामा जी का हाथ अब सलोनी के चूतड़ के ऊपर था, मुझको यह भी अहसास हो रहा था कि उन्होंने हाथ को केवल रखा ही नहीं था बल्कि वो अपने हाथ को चारों ओर घुमा भी रहे थे।

मेरे दोनों हाथ का पता सलोनी को होगा तो जरूर पर वो फिर भी मामा जी के हाथ के बारे में जानबूझ कर भी कुछ नहीं बोल रही थी।

मैंने देखा कि मामाजी वैसे सलोनी से कुछ दूर ही लेटे थे परन्तु उनका हाथ आसानी से सलोनी के चूतड़ पर पहुँच रहा था और उनकी इतनी हिम्मत भी हो गई थी कि वो उसको केवल रखे हुए ही नहीं थे बल्कि इधर उधर घुमा भी रहे थे।

सलोनी की ओर से कोई विरोध ना होते देख मैंने भी कुछ ऐसे ही मजा लेने की सोची।

मैं अपने हाथ को सलोनी की पीठ पर बंधी डोरी पर ले गया और डोरी का सिरा ढूंढ कर खींच दिया।

ब्लाउज का बंधन ढीला होते ही उसके सुकोमल चूची आज़ाद हो गई, अब सलोनी की चूची ब्लाउज के नीचे से बाहर आकर मेरे सीने से लग रही थी।

मैंने एक चूची पूरी बाहर निकाली, उसको अपने हाथ में ले मसलने लगा।

अब बड़ा ही मजेदार नजारा बन चुका था…

मेरे हाथ में सलोनी की चूची थी जिसको मैं मसल रहा था, सलोनी के हाथ में मेरा लण्ड था जिसे वो हिला रही थी और उसके पीछे मामाजी का हाथ सलोनी के चूतड़ों पर था जिनको वो ना जाने कैसे कैसे मसल रहे थे।

तभी मैंने सलोनी के होंठों के बीच अपने एक हाथ का अंगूठा डाल उसको लण्ड चूसने को बोला।

सलोनी बिना किसी शर्म के पूरी तरह चादर से बाहर आ अपने घुटनों के बल होकर मेरे लण्ड को अपने मुँह में दबा कर चूसने लगी।

वो बहुत ही सेक्सी तरीके से बैठी थी, उसकी पीथ ठीक मामाजी की ओर थी।

मैंने ध्यान दिया कि सलोनी का पेटीकोट सरककर उसके चूतड़ के ऊपर को हो गया है फिर भी मामाजी के लेटे होने से उनको नीचे से काफी कुछ दिख रहा होगा।

सलोनी मेरे लण्ड को पूरा अपने मुँह में दबाकर बहुत ही आवाज करते हुए उसको चूस रही थी।

मैंने भी अपना हाथ एक बार फिर से उसके चूतड़ पर रख सलोनी के पेटीकोट को खींच कर कमर से भी ज्यादा ऊपर कर दिया।

अब तो मामाजी को उसके चूतड़ और बीच की दरार के अलावा चूत के दर्शन भी हो रहे होंगे।

मैं बस इन्तजार कर रहा था कि क्या वो अब कुछ करेंगे?
या फिर देखते ही रहेंगे??
कहानी जारी रहेगी।

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